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आपराधिक कानून
विद्वेष के हस्तांतरण का सिद्धांत
23-Nov-2023
नन्हे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य: "विद्वेष के हस्तांतरण के सिद्धांत" के अनुसार, यदि कोई आपराधिक कारण शामिल हो तो अपराध किसी अन्य व्यक्ति को प्रेषित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, यदि कोई व्यक्ति, व्यक्ति A पर बंदूक चलाए और इसे हानि पहुँचाने का इरादा हो, लेकिन गोली छूट जाए तथा व्यक्ति B को लगे, तो 'दुर्भाग्यवश हस्तांतरण सिद्धांत' का अनुप्रयोग किया जा सकता है। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और पंकज मित्तल: |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने नन्हे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में कहा कि विद्वेष के हस्तांतरण के सिद्धांत में यह प्रावधान है कि जहाँ कोई आपराधिक कारण शामिल हो, अपराध किसी अन्य व्यक्ति को प्रेषित किया जा सकता है।
नन्हे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में सूचक मोहम्मद अली ने 30 मई, 2007 को पुलिस स्टेशन में प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report- FIR) दर्ज कराई, जिसमें कहा गया था कि उक्त तिथि को अपराह्न करीब साढ़े तीन बजे वह अपने बेटे सद्दाम हुसैन (मृतक) के साथ कुछ घरेलू सामान खरीदने के लिये घर से संतराम की दुकान पर जा रहे थे।
- जब वह दुकान पर पहुँचा तो उसने देखा कि महेंद्र और नन्हे (अपीलकर्त्ता) आपस में झगड़ रहे थे।
- इसके बाद अपीलकर्त्ता ने गोली चला दी जो मृतक की गर्दन में जा लगी, जबकि महेंद्र घायल हो गया।
- ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ता को भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code- IPC) की धारा 302 के तहत अपराध का दोषी ठहराया।
- अपीलकर्त्ता को दोषी ठहराने व सज़ा देने के निर्णय और आदेश की इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि की गई थी।
- इससे व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने SC के समक्ष अपील दायर की।
- हालाँकि अपील मज़बूत नहीं है और तद्नुसार उच्चतम न्यायालय ने इसे खारिज़ कर दिया है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने IPC की धारा 302 के तहत हत्या के मामले में अपीलकर्त्ता की सज़ा को बरकरार रखने के लिये हस्तांतरित विद्वेष के सिद्धांत को लागू किया और कहा कि यदि किसी व्यक्ति का अपराधिक मामलों में शामिल होने या किसी की हत्या करने का इरादा है यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति की हत्या करता है जिसकी मृत्यु का उसने कभी इरादा नहीं किया था, तो भी वह मृत्यु कारित करने का दोषी होगा।
- न्यायालय ने आगे कहा कि अपीलकर्त्ता का मृतक को मारने का कोई इरादा नहीं था क्योंकि उसने एक अन्य व्यक्ति महेंद्र के साथ अपना बदला लेने के इरादे से गोली चलाई थी, जिसके साथ उसकी बहस हुई थी। हालाँकि न्यायालय ने माना कि इससे कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि विद्वेष के हस्तांतरण के सिद्धांत में यह प्रावधान है कि जहाँ कोई आपराधिक कारण शामिल हो, अपराध किसी अन्य व्यक्ति को प्रेषित किया जा सकता है।
विद्वेष के हस्तांतरण का सिद्धांत क्या है?
- परिचय:
- विद्वेष के हस्तांतरण के सिद्धांत को उद्देश्य के हस्तांतरण (Transmigration of Motive) के रूप में भी जाना जाता है, जो भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 301 में निहित है।
- धारा 301 उस व्यक्ति जिसकी मौत का इरादा था, के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति की मौत का कारण बनकर आपराधिक हत्या से संबंधित है।
- यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसी बात करके, जिसका आशय मृत्यु कारित करना हो, या जिससे वह जानता हो कि मृत्यु कारित होने की संभावना है, किसी ऐसे व्यक्ति की मॄत्यु कारित करके, जिसकी मृत्यु कारित करने का न तो उसका इरादा हो और न वह यह संभाव्य जानता हो कि वह उसकी मृत्यु कारित करेगा, आपराधिक मानव वध करे, तो अपराधी द्वारा किया गया आपराधिक मानव वध उस भाँति का होगा जिस तरह का वह होता, यदि वह उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करता जिसकी मृत्यु कारित करना उसका इरादा था या वह जानता था कि उस व्यक्ति की मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है।
- यह सिद्धांत प्रावधान देता है कि जहाँ कोई आपराधिक कारण शामिल हो, अपराध किसी अन्य व्यक्ति को प्रेषित किया जा सकता है।
- उक्त सिद्धांत को स्पष्ट करने के लिये एक ऐसे व्यक्ति का उदाहरण दिया जा सकता है जिसका इरादा किसी व्यक्ति की हत्या का था लेकिन गलती से वह किसी अन्य व्यक्ति की हत्या कर देता है, तो उस व्यक्ति विशेष को मारने का इरादा न होने पर भी उसे हत्या करने का दोषी माना जाएगा।
- निर्णयज विधि:
- शंकरलाल कचराभाई और अन्य बनाम गुजरात राज्य (1965) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने IPC की धारा 301 के दायरे पर चर्चा करते हुए निम्नानुसार कहा:
- यह उस कृत्य का प्रतीक है जिसे अंग्रेज़ी लेखक विद्वेष के हस्तांतरण या उद्देश्य के स्थानांतरण के सिद्धांत के रूप में वर्णित करते हैं।
- इस धारा के तहत यदि A का आशय B की हत्या करने का है, लेकिन C की हत्या करता है, जिसकी हत्या का न तो न तो उसका इरादा हो और न वह यह संभाव्य जानता हो कि वह उसकी मृत्यु कारित करेगा, तो उसे C की हत्या के इरादे के लिये उसे कानून द्वारा ज़िम्मेदार ठहराया जाता है।
- यदि A का निशाना B पर है, लेकिन यह B से चूक जाता है क्योंकि या तो B शॉट की सीमा से बाहर चला जाता है या क्योंकि शॉट निशाने से चूक जाता है और किसी अन्य व्यक्ति C की मृत्यु हो जाती है, चाहे दृष्टि के भीतर या दृष्टि से बाहर, IPC की धारा 301 के तहत , यह माना जाता है कि A ने C को हत्या के इरादे से गोली मारी थी।
- ध्यान देने वाली बात यह है कि IPC की धारा 301 को लागू करने के लिये A की हत्या का कारण बनने का कोई इरादा नहीं होगा या उसे यह ज्ञात नहीं होगा कि वह C की हत्या का कारण बन सकता है।
- शंकरलाल कचराभाई और अन्य बनाम गुजरात राज्य (1965) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने IPC की धारा 301 के दायरे पर चर्चा करते हुए निम्नानुसार कहा:
सांविधानिक विधि
बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट की वैधता
23-Nov-2023
पवन कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2021): "बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट पर आधारित चिकित्सकीय राय पूरी तरह सटीक नहीं है।" न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया। |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया ने धारा 302/34 भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) के तहत हत्या और हत्या जैसे इरादे के लिये दोषी ठहराए गए अभियुक्त की किशोरावस्था को देखते हुए उसे हमले एवं हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई।
- उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय पवन कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2021) मामले में दिया।
पवन कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- इस मामले में चार अभियुक्त थे, आरोपी (A1), A2, A3 और A4।
- मुकदमे के दौरान A4 की मृत्यु हो गई और उसका मामला समाप्त हो गया तथा शेष तीन को दोषी ठहराया गया।
- उक्त दोषसिद्धि को इलाहाबाद उच्च न्यायालय (लखनऊ खंडपीठ) द्वारा बरकरार रखा गया है।
- इस बीच, जहाँ तक A1 व A2 का सवाल है, जो क्रमशः वर्तमान अपीलकर्ता (A3) के पिता और भाई हैं, उन्हें राज्य की छूट नीति के तहत 19 वर्ष से अधिक समय तक जेल में रहने के बाद समय से पूर्व रिहा कर दिया गया था।
- परिणामस्वरूप, उन्होंने इस न्यायालय के समक्ष कोई याचिका दायर नहीं की।
- A3 ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष कथित अपराध के समय किशोर होने का दावा किया है, उसकी याचिका ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय ने खारिज़ कर दी थी क्योंकि ज़िला अस्पताल, बाराबंकी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी की देखरेख में एक बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट आयोजित किया गया था, जहाँ अपीलकर्ता की उम्र लगभग 19 वर्ष दर्ज की गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि 'बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट' पर आधारित चिकित्सकीय राय पूरी तरह सटीक नहीं है।"
- उच्चतम न्यायालय ने किशोरावस्था के प्रश्न पर अपील को यह कहते हुए आंशिक रूप से स्वीकार किया कि यदि किशोरावस्था निर्धारित नहीं हो पाती है तो उसकी उम्र को 1 वर्ष कम किया जा सकता है।
बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट क्या है?
- बोन ऑसिफिकेशन या अस्थिजनन, अस्थि निर्माण की प्रक्रिया है। अस्थि आयु की गणना ऑसिफिकेशन टेस्ट के माध्यम से की जाती है, जो जन्म और पच्चीस वर्ष की आयु के बीच मानव शरीर में जोड़ों के संलयन पर आधारित अनुमान है, हालाँकि यह वैयक्तिक आधार पर थोड़ा भिन्न होता है।
- किसी विशेष मामले में घटना की तिथि पर अभियुक्त या पीड़ित की आयु का पता लगाने के लिये बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट किया जाता है। यह परीक्षण किशोरों से जुड़े मामलों में प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि इसमें उन बच्चों के संबंध में विशेष प्रावधान बनाए गए हैं जो कानून का उल्लंघन कर रहे हैं और साथ ही ऐसे बच्चे जिन्हें सुरक्षा एवं देखभाल की आवश्यकता है ये प्रावधान हैं: किशोर न्याय अधिनियम (बच्चों की देखभाल और संरक्षण अधिनियम), 2015 तथा 'जेजे अधिनियम 2015'।
- प्रासंगिक मामला: विनोद कटारा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022): बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट कोई सटीक विज्ञान नहीं है जो हमें व्यक्ति की सटीक उम्र बता सके।