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करेंट अफेयर्स और संग्रह

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सांविधानिक विधि

पसंदीदा व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार

 11-Jun-2024

नाजिया अंसारी एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

कोई भी व्यक्ति, किसी वयस्क व्यक्ति के कहीं पर भी जाने अथवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने अथवा अपनी इच्छा के अनुसार विवाह करने पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता है”।

न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर और अरुण कुमार सिंह देशवाल

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नाजिया अंसारी एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि कोई भी व्यक्ति, किसी वयस्क व्यक्ति पर अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ कहीं जाने अथवा रहने, अथवा अपनी इच्छा के अनुसार विवाह करने पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता है, क्योंकि यह एक मौलिक अधिकार है जो भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 21 से प्राप्त होता है।

नाजिया अंसारी एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में पहला याचिकाकर्त्ता लगभग 21 साल की एक वयस्क महिला है। दूसरा याचिकाकर्त्ता एक वयस्क पुरुष है। आरोप है कि इन दोनों ने अपनी मर्ज़ी और स्वतंत्र इच्छा से शादी की है।
  • उसने 17 अप्रैल 2024 को मुस्लिम रीति-रिवाज़ों के अनुसार दूसरे याचिकाकर्त्ता से विवाह किया, जिसके संबंध में 25 अप्रैल 2024 को तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड द्वारा जारी विवाह प्रमाण-पत्र मौजूद है।
  • दूसरे याचिकाकर्त्ता से विवाह करने के उसके निर्णय से व्यथित होकर महिला के चाचा ने उसके पति के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करायी।
  • इसके बाद पुलिस ने न केवल उसके पति को गिरफ्तार कर लिया, बल्कि महिला को भी अभिरक्षा में लेकर उसके चाचा को सौंप दिया।
  • जब पुलिस ने महिला को बयान दर्ज कराने के लिये मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया तो उसने स्पष्ट रूप से कहा कि उसने अपनी मर्ज़ी से शादी की है और उसके पति को इस मामले में झूठा फँसाया गया है।
  • महिला ने यह भी आशंका व्यक्त की कि उसे मार दिया जाएगा क्योंकि उसके चाचा उसे धमकी दे रहे थे; इसके बावजूद, संबंधित मजिस्ट्रेट ने उसे उसके चाचा के घर भेजने का निर्देश दिया।
  • FIR को चुनौती देते हुए याचिकाकर्त्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की।
  • रिट याचिका को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने आरोपित FIR को रद्द कर दिया
  • न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि उसके चाचा या परिवार का कोई अन्य सदस्य उसे किसी भी तरह से नुकसान न पहुँचाए।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर और न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि दोनों याचिकाकर्त्ता बालिग हैं तथा उन्हें साथ रहने या विवाह करने का अधिकार है। अतः महिला के चाचा को कथित FIR दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं था और इसलिये , उसके अनुसार की गई सभी कार्यवाही स्पष्ट रूप से अवैध थी।
  • भले ही याचिकाकर्त्ताओं ने एक-दूसरे से शादी न की हो, फिर भी कोई भी व्यक्ति किसी वयस्क को अपनी पसंद की जगह जाने, अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने या अपनी इच्छानुसार विवाह करने से नहीं रोक सकता। यह अधिकार COI के अनुच्छेद 21 से प्राप्त होता है।

COI का अनुच्छेद 21 क्या है?

परिचय:

  • अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
    • जीवन का अधिकार केवल पशु अस्तित्त्व या जीवित रहने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार और जीवन के वे सभी आयाम शामिल हैं जो मनुष्य के जीवन को सार्थक, पूर्ण तथा जीने लायक बनाते हैं।
  • अनुच्छेद 21 दो अधिकार सुरक्षित करता है:
    • जीवन का अधिकार
    • व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
  • इस अनुच्छेद को जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा करने वाला प्रक्रियात्मक मैग्ना कार्टा कहा गया है।
  • यह मौलिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति, नागरिक और विदेशियों को समान रूप से उपलब्ध है।
  • भारत के उच्चतम न्यायालय ने इस अधिकार को मौलिक अधिकारों का हृदय बताया है।
  • यह अधिकार केवल राज्य के विरुद्ध ही प्रदान किया गया है।

अनुच्छेद 21 के अधीन अधिकार:

  • अनुच्छेद 21 में निम्नलिखित अधिकार शामिल हैं:
    • निजता का अधिकार
    • विदेश जाने का अधिकार
    • आश्रय का अधिकार
    • एकांत कारावास के विरुद्ध अधिकार
    • सामाजिक न्याय और आर्थिक सशक्तीकरण का अधिकार
    • हथकड़ी लगाने के विरुद्ध अधिकार
    • अभिरक्षा में मृत्यु के विरुद्ध अधिकार
    • विलंबित मृत्युदण्ड के विरुद्ध अधिकार
    • डॉक्टरों की सहायता
    • सार्वजनिक मृत्युदण्ड के विरुद्ध अधिकार
    • सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
    • प्रदूषण मुक्त जल और वायु का अधिकार
    • प्रत्येक बच्चे के पूर्ण विकास का अधिकार
    • स्वास्थ्य और चिकित्सा सहायता का अधिकार
    • शिक्षा का अधिकार
    • विचाराधीन कैदी की सुरक्षा

निर्णयज विधियाँ:

  • फ्राँसिस कोराली मुलिन बनाम प्रशासक (1981) मामले में न्यायमूर्ति पी. भगवती ने कहा था कि संवैधानिक दायित्व संहिता का अनुच्छेद 21 एक लोकतांत्रिक समाज में उच्चतम महत्त्व के संवैधानिक मूल्य को दर्शाता है।
  • खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1963) में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि जीवन शब्द का अर्थ केवल पशु अस्तित्त्व से कहीं अधिक है। इसके वंचना के विरुद्ध निषेध उन सभी अंगों और क्षमताओं तक फैला हुआ है जिनके द्वारा जीवन का आनंद लिया जाता है। यह प्रावधान किसी व्यक्ति के शरीर से पैर को काटकर अथवा आँख निकालकर या शरीर के किसी अन्य अंग को नष्ट करके शरीर को विकृत करने पर भी समान रूप से प्रतिबंध लगाता है जिसके माध्यम से आत्मा बाहरी दुनिया से संवाद करती है।

सिविल कानून

व्यक्तित्व का अधिकार

 11-Jun-2024

इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम रवींद्र कुमार चौधरी एवं अन्य

न्यायालय ने ‘बाप की अदालत’ ट्रेडमार्क के उल्लंघन के विरुद्ध रजत शर्मा के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा की।”

 न्यायमूर्ति अनीश दयाल

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इंडिपेंडेंट न्यूज सर्विस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम रवींद्र कुमार चौधरी एवं अन्य मामले में वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा के पक्ष में निर्णय दिया, जिसमें "बाप की अदालत" ट्रेडमार्क और इंडिया टीवी लोगो के अनधिकृत उपयोग के विरुद्ध उनके व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा की गई।

  • न्यायालय ने रवींद्र कुमार चौधरी को , जो "झांडिया टीवी" नाम का उपयोग कर रहे थे, रजत शर्मा की तस्वीर, वीडियो या नाम का किसी भी प्रकार से उपयोग करने से रोक दिया, जिससे उनके व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन होता हो।

इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम रवींद्र कुमार चौधरी एवं अन्य की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • रजत शर्मा ने कई वर्षों से टीवी समाचार साक्षात्कार शो "आप की अदालत" के प्रसारण से जनता के साथ एक महत्त्वपूर्ण जुड़ाव बनाया है और इसे एक पहचान योग्य ब्रांड के रूप में स्थापित किया है जो उनके नाम तथा इंडिया टीवी के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है।
  • वादी (इंडिया टीवी और रजत शर्मा) ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी (रविंद्र कुमार चौधरी) ने इंडिया टीवी और "आप की अदालत" से मिलते-जुलते ट्रेडमार्क तथा लोगो का अवैध रूप से उपयोग किया।
  • चौधरी के "झांडिया टीवी" ने समान लोगो और "बाप की अदालत" नाम का उपयोग किया, जो वादी के ट्रेडमार्क और शो के नाम से काफी मिलता-जुलता था।
  • वादी के अनुसार, इससे जनता में भ्रम उत्पन्न हुआ तथा उनके बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन हुआ।
  • यह विधिक विवाद ट्रेडमार्क, लोगो और शो के नाम के अनधिकृत उपयोग के आरोपों के इर्द-गिर्द घूमता है।
  • वादी ने ट्रेडमार्क उल्लंघन, व्यक्तित्व अधिकारों के उल्लंघन और बौद्धिक संपदा के अनधिकृत उपयोग का दावा किया है।
  • वादी ने प्रतिवादी द्वारा अनाधिकृत उपयोग को रोकने के लिये निषेधाज्ञा और कथित उल्लंघन के लिये संभावित क्षतिपूर्ति की मांग की है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?  

  • न्यायालय ने अगली सुनवाई तक वादी के पक्ष में एकपक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा जारी कर दी, यह पाते हुए कि उन्होंने प्रथम दृष्टया मामला प्रस्तुत किया है और अन्यथा उन्हें अपूरणीय क्षति होने की संभावना है।
    • यह निषेधाज्ञा वादी और उनकी कंपनी द्वारा दायर वाद में जारी की गई थी।
  • प्रतिवादी को वादी के नाम, फोटो या वीडियो का किसी भी प्रकार से उपयोग करने से प्रतिबंधित किया गया है, जिससे वादी के व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन हो सकता हो।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को उल्लंघनकारी सामग्री हटाने का आदेश दिया गया है, जिसमें विशिष्ट ट्रेडमार्क वाले सोशल मीडिया पोस्ट भी शामिल हैं।

व्यक्तित्व अधिकार क्या है?

  • व्यक्तित्व अधिकार, जिसे प्रचार का अधिकार भी कहा जाता है।
  • यह व्यक्तियों के अपनी पहचान, समानता, नाम या व्यक्तित्व के अन्य आयामों के व्यावसायिक उपयोग को नियंत्रित करने तथा उससे लाभ कमाने के विधिक अधिकारों को संदर्भित करता है।
  • ये अधिकार व्यक्तियों को अनधिकृत व्यावसायिक शोषण से बचाते हैं, जैसे कि उनकी सहमति के बिना विज्ञापन या प्रचार प्रयोजनों के लिये उनकी छवि या नाम का उपयोग करना।
    • प्रसिद्ध हस्तियों/सेलिब्रिटीज़ के लिये अपने व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा के लिये अपना नाम पंजीकृत कराना आवश्यक है।
  • व्यक्तित्व अधिकार क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होते हैं, परंतु सामान्यतः इनमें यह नियंत्रित करने का अधिकार शामिल होता है कि किसी की पहचान का उपयोग वाणिज्यिक संदर्भों में कैसे किया जाता है तथा किसी भी अनधिकृत उपयोग के लिये मुआवज़ा पाने का अधिकार भी शामिल होता है।
    • किसी व्यक्ति की पहचान को बनाने में, अद्वितीय व्यक्तिगत विशेषताओं की एक बड़ी सूची का योगदान होता है।
    • इन सभी विशेषताओं को संरक्षित किया जाना आवश्यक है, जैसे नाम, उपनाम, मंच का नाम, चित्र, समानता, छवि और कोई भी पहचान योग्य व्यक्तिगत संपत्ति, जैसे कि उस व्यक्ति द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली विशिष्ट रेस कार।

व्यक्तित्व अधिकार के प्रकार क्या हैं?

  • व्यक्तित्व अधिकार दो प्रकार के होते हैं
    • प्रचार का अधिकार
    • गोपनीयता का अधिकार।
  • प्रचार का अधिकार किसी सेलिब्रिटी की छवि और विशेषताओं को अनधिकृत व्यावसायिक उपयोग से सुरक्षित रखता है, ठीक उसी तरह जैसे ट्रेडमार्क ब्रांडों की रक्षा करते हैं।
    • यह अधिकार व्यक्ति की मृत्यु तक बना रहता है, जिसके उपरांत न्यायालय इसका नियंत्रण अपने हाथ में ले लेता है।
  • गोपनीयता का अधिकार मशहूर हस्तियों को उनके निजी जीवन में अवांछित हस्तक्षेप से बचाता है, जैसे अनधिकृत फोटोग्राफी या निजी जानकारी का सार्वजनिक होना।
  • दोनों अधिकार भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (गोपनीयता का अधिकार) के अंतर्गत निहित हैं।

व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिये उपलब्ध विधिक उपाय क्या हैं?

  • अपने व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिये, प्रसिद्ध लोग एवं सेलिब्रिटी, विधि के समक्ष विधिक सहायता ले सकते हैं।
  • भारत में, व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा के लिये उपलब्ध विधिक उपाय भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत गोपनीयता एवं प्रचार सहित जीवन और सम्मान के अधिकार के अंतर्गत उपलब्ध है।
  • व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा करने वाले अन्य वैधानिक प्रावधानों में कॉपीराइट अधिनियम, 1957 शामिल है।
    • अधिनियम के अनुसार, नैतिक अधिकार केवल लेखकों एवं कलाकारों को दिये जाते हैं, जिनमें अभिनेता, गायक, संगीतकार एवं नर्तक शामिल हैं।
    • अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार लेखकों या कलाकारों को अपने कार्य का श्रेय पाने या उसके लेखक होने का दावा करने का अधिकार है तथा साथ ही उन्हें दूसरों को अपने काम को किसी भी तरह की क्षति पहुँचाने से रोकने का भी अधिकार है।
    • भारतीय ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 14 के अंतर्गत व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा की जाती है, जो व्यक्तिगत नामों एवं अभ्यावेदनों के उपयोग को प्रतिबंधित करती है।

इसमें शामिल प्रासंगिक मामले क्या हैं?

  • अरुण जेटली बनाम नेटवर्क सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य (2011)
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि किसी व्यक्ति की लोकप्रियता या प्रसिद्धि इंटरनेट पर वास्तविकता से भिन्न नहीं होगी।
    • न्यायालय ने यह भी कहा था कि यह नाम उस श्रेणी में आता है जिसमें व्यक्तिगत नाम होने के अतिरिक्त इसने अपनी विशिष्ट पहचान भी प्राप्त कर ली है।
  • गौतम गंभीर बनाम A.P & कंपनी एवं अन्य, (2017)
    • एक भारतीय क्रिकेटर ने दावा किया कि भोजनालयों की एक शृंखला के लिये टैगलाइन के रूप में उनके नाम का उपयोग करना, उनकी प्रसिद्धि के कारण उनके व्यक्तित्व के अधिकारों एवं ट्रेडमार्क संरक्षण का उल्लंघन है।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनके निषेधाज्ञा के आवेदन को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि दोषपूर्ण बयानी के प्रयास का कोई साक्ष्य नहीं है, क्योंकि प्रतिवादी के सोशल मीडिया पेजों पर गंभीर के सार्वजनिक बयानों की कोई सूचना नहीं है।
    • न्यायालय ने निर्णय दिया कि गंभीर के नाम का कोई व्यवसायीकरण नहीं किया गया था तथा वाद को खारिज कर दिया तथा सफल, व्यक्तित्व के अधिकार दावे के लिये अनुचित संवर्धन स्थापित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

सिविल कानून

व्यक्तित्व का अधिकार

 11-Jun-2024

इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम रवींद्र कुमार चौधरी एवं अन्य

न्यायालय ने ‘बाप की अदालत’ ट्रेडमार्क के उल्लंघन के विरुद्ध रजत शर्मा के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा की।”

 न्यायमूर्ति अनीश दयाल

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इंडिपेंडेंट न्यूज सर्विस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम रवींद्र कुमार चौधरी एवं अन्य मामले में वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा के पक्ष में निर्णय दिया, जिसमें "बाप की अदालत" ट्रेडमार्क और इंडिया टीवी लोगो के अनधिकृत उपयोग के विरुद्ध उनके व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा की गई।

  • न्यायालय ने रवींद्र कुमार चौधरी को , जो "झांडिया टीवी" नाम का उपयोग कर रहे थे, रजत शर्मा की तस्वीर, वीडियो या नाम का किसी भी प्रकार से उपयोग करने से रोक दिया, जिससे उनके व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन होता हो।

इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम रवींद्र कुमार चौधरी एवं अन्य की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • रजत शर्मा ने कई वर्षों से टीवी समाचार साक्षात्कार शो "आप की अदालत" के प्रसारण से जनता के साथ एक महत्त्वपूर्ण जुड़ाव बनाया है और इसे एक पहचान योग्य ब्रांड के रूप में स्थापित किया है जो उनके नाम तथा इंडिया टीवी के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है।
  • वादी (इंडिया टीवी और रजत शर्मा) ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी (रविंद्र कुमार चौधरी) ने इंडिया टीवी और "आप की अदालत" से मिलते-जुलते ट्रेडमार्क तथा लोगो का अवैध रूप से उपयोग किया।
  • चौधरी के "झांडिया टीवी" ने समान लोगो और "बाप की अदालत" नाम का उपयोग किया, जो वादी के ट्रेडमार्क और शो के नाम से काफी मिलता-जुलता था।
  • वादी के अनुसार, इससे जनता में भ्रम उत्पन्न हुआ तथा उनके बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन हुआ।
  • यह विधिक विवाद ट्रेडमार्क, लोगो और शो के नाम के अनधिकृत उपयोग के आरोपों के इर्द-गिर्द घूमता है।
  • वादी ने ट्रेडमार्क उल्लंघन, व्यक्तित्व अधिकारों के उल्लंघन और बौद्धिक संपदा के अनधिकृत उपयोग का दावा किया है।
  • वादी ने प्रतिवादी द्वारा अनाधिकृत उपयोग को रोकने के लिये निषेधाज्ञा और कथित उल्लंघन के लिये संभावित क्षतिपूर्ति की मांग की है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?  

  • न्यायालय ने अगली सुनवाई तक वादी के पक्ष में एकपक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा जारी कर दी, यह पाते हुए कि उन्होंने प्रथम दृष्टया मामला प्रस्तुत किया है और अन्यथा उन्हें अपूरणीय क्षति होने की संभावना है।
    • यह निषेधाज्ञा वादी और उनकी कंपनी द्वारा दायर वाद में जारी की गई थी।
  • प्रतिवादी को वादी के नाम, फोटो या वीडियो का किसी भी प्रकार से उपयोग करने से प्रतिबंधित किया गया है, जिससे वादी के व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन हो सकता हो।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को उल्लंघनकारी सामग्री हटाने का आदेश दिया गया है, जिसमें विशिष्ट ट्रेडमार्क वाले सोशल मीडिया पोस्ट भी शामिल हैं।

व्यक्तित्व अधिकार क्या है?

  • व्यक्तित्व अधिकार, जिसे प्रचार का अधिकार भी कहा जाता है।
  • यह व्यक्तियों के अपनी पहचान, समानता, नाम या व्यक्तित्व के अन्य आयामों के व्यावसायिक उपयोग को नियंत्रित करने तथा उससे लाभ कमाने के विधिक अधिकारों को संदर्भित करता है।
  • ये अधिकार व्यक्तियों को अनधिकृत व्यावसायिक शोषण से बचाते हैं, जैसे कि उनकी सहमति के बिना विज्ञापन या प्रचार प्रयोजनों के लिये उनकी छवि या नाम का उपयोग करना।
    • प्रसिद्ध हस्तियों/सेलिब्रिटीज़ के लिये अपने व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा के लिये अपना नाम पंजीकृत कराना आवश्यक है।
  • व्यक्तित्व अधिकार क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होते हैं, परंतु सामान्यतः इनमें यह नियंत्रित करने का अधिकार शामिल होता है कि किसी की पहचान का उपयोग वाणिज्यिक संदर्भों में कैसे किया जाता है तथा किसी भी अनधिकृत उपयोग के लिये मुआवज़ा पाने का अधिकार भी शामिल होता है।
    • किसी व्यक्ति की पहचान को बनाने में, अद्वितीय व्यक्तिगत विशेषताओं की एक बड़ी सूची का योगदान होता है।
    • इन सभी विशेषताओं को संरक्षित किया जाना आवश्यक है, जैसे नाम, उपनाम, मंच का नाम, चित्र, समानता, छवि और कोई भी पहचान योग्य व्यक्तिगत संपत्ति, जैसे कि उस व्यक्ति द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली विशिष्ट रेस कार।

व्यक्तित्व अधिकार के प्रकार क्या हैं?

  • व्यक्तित्व अधिकार दो प्रकार के होते हैं
    • प्रचार का अधिकार
    • गोपनीयता का अधिकार।
  • प्रचार का अधिकार किसी सेलिब्रिटी की छवि और विशेषताओं को अनधिकृत व्यावसायिक उपयोग से सुरक्षित रखता है, ठीक उसी तरह जैसे ट्रेडमार्क ब्रांडों की रक्षा करते हैं।
    • यह अधिकार व्यक्ति की मृत्यु तक बना रहता है, जिसके उपरांत न्यायालय इसका नियंत्रण अपने हाथ में ले लेता है।
  • गोपनीयता का अधिकार मशहूर हस्तियों को उनके निजी जीवन में अवांछित हस्तक्षेप से बचाता है, जैसे अनधिकृत फोटोग्राफी या निजी जानकारी का सार्वजनिक होना।
  • दोनों अधिकार भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (गोपनीयता का अधिकार) के अंतर्गत निहित हैं।

व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिये उपलब्ध विधिक उपाय क्या हैं?

  • अपने व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिये, प्रसिद्ध लोग एवं सेलिब्रिटी, विधि के समक्ष विधिक सहायता ले सकते हैं।
  • भारत में, व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा के लिये उपलब्ध विधिक उपाय भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत गोपनीयता एवं प्रचार सहित जीवन और सम्मान के अधिकार के अंतर्गत उपलब्ध है।
  • व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा करने वाले अन्य वैधानिक प्रावधानों में कॉपीराइट अधिनियम, 1957 शामिल है।
    • अधिनियम के अनुसार, नैतिक अधिकार केवल लेखकों एवं कलाकारों को दिये जाते हैं, जिनमें अभिनेता, गायक, संगीतकार एवं नर्तक शामिल हैं।
    • अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार लेखकों या कलाकारों को अपने कार्य का श्रेय पाने या उसके लेखक होने का दावा करने का अधिकार है तथा साथ ही उन्हें दूसरों को अपने काम को किसी भी तरह की क्षति पहुँचाने से रोकने का भी अधिकार है।
    • भारतीय ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 14 के अंतर्गत व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा की जाती है, जो व्यक्तिगत नामों एवं अभ्यावेदनों के उपयोग को प्रतिबंधित करती है।

इसमें शामिल प्रासंगिक मामले क्या हैं?

  • अरुण जेटली बनाम नेटवर्क सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य (2011)
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि किसी व्यक्ति की लोकप्रियता या प्रसिद्धि इंटरनेट पर वास्तविकता से भिन्न नहीं होगी।
    • न्यायालय ने यह भी कहा था कि यह नाम उस श्रेणी में आता है जिसमें व्यक्तिगत नाम होने के अतिरिक्त इसने अपनी विशिष्ट पहचान भी प्राप्त कर ली है।
  • गौतम गंभीर बनाम A.P & कंपनी एवं अन्य, (2017)
    • एक भारतीय क्रिकेटर ने दावा किया कि भोजनालयों की एक शृंखला के लिये टैगलाइन के रूप में उनके नाम का उपयोग करना, उनकी प्रसिद्धि के कारण उनके व्यक्तित्व के अधिकारों एवं ट्रेडमार्क संरक्षण का उल्लंघन है।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनके निषेधाज्ञा के आवेदन को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि दोषपूर्ण बयानी के प्रयास का कोई साक्ष्य नहीं है, क्योंकि प्रतिवादी के सोशल मीडिया पेजों पर गंभीर के सार्वजनिक बयानों की कोई सूचना नहीं है।
    • न्यायालय ने निर्णय दिया कि गंभीर के नाम का कोई व्यवसायीकरण नहीं किया गया था तथा वाद को खारिज कर दिया तथा सफल, व्यक्तित्व के अधिकार दावे के लिये अनुचित संवर्धन स्थापित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

पारिवारिक कानून

परित्याग के आधार पर विवाह-विच्छेद

 11-Jun-2024

X बनाम Y

“प्रतिवादी/पति की 2017 से दो वर्ष से अधिक समय तक गिरफ्तारी एवं कारावास, पत्नी के लिये पारिस्थितिजन्य परित्याग के समतुल्य है, जो विवाह-विच्छेद देने का एक आधार है।”

न्यायमूर्ति विवेक रूसिया एवं न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार वाणी

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला एवं न्यायमूर्ति हृदेश की पीठ ने परित्याग के आधार पर विवाह-विच्छेद को स्वीकृति दे दी।

  • मध्य प्रदेश सरकार ने यह निर्णय X बनाम Y के मामले में दिया।

X बनाम Y मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • अपीलकर्त्ता/पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13(1) के अंतर्गत प्रतिवादी/पति के साथ अपने विवाह के समापन की मांग करते हुए याचिका दायर की। 21 नवंबर 2011 को विवाह संपन्न हुआ था।
  • अपीलकर्त्ता/पत्नी ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी/पति का स्वभाव क्रूर, आक्रामक एवं चिड़चिड़ा था तथा उसने उसे शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित किया।
  • प्रतिवादी/पति के विरुद्ध दो आपराधिक मामले दर्ज किये गए।
  • दूसरे मामले में प्रतिवादी/पति को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 के अधीन दोषी ठहराया गया तथा अपने पिता की हत्या के लिये आजीवन कारावास की सज़ा दी गई।
  • कुटुंब न्यायालय ने अपीलकर्त्ता/पत्नी की विवाह-विच्छेद की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आपराधिक मामले में दोषसिद्धि क्रूरता नहीं है तथा वर्ष 2017 में आपराधिक मामला दर्ज होने से पहले क्रूरता का कोई साक्ष्य नहीं था।
  • अपीलकर्त्ता/पत्नी ने कुटुंब न्यायालय के निर्णय को चुनौती देते हुए अपील दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि प्रतिवादी/पति की हत्या एवं आजीवन कारावास की सज़ा उसके प्रति मानसिक क्रूरता है तथा उसके एवं उसकी अप्राप्तवय पुत्री के लिये उसके साथ रहना दुष्कर होगा।
  • अपीलकर्त्ता/पत्नी ने यह भी दावा किया कि वर्ष 2017 से प्रतिवादी/पति की गिरफ्तारी एवं कारावास दो वर्ष से अधिक समय तक परित्याग करने के समतुल्य है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • इस अपील में न्यायालय द्वारा विचारित एकमात्र मुद्दा यह है कि क्या भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अधीन आपराधिक मामले में पति को दोषी ठहराना एवं आजीवन कारावास की सज़ा देना, पत्नी के प्रति "मानसिक क्रूरता" के तुल्य है।
    • न्यायालय ने कहा कि यद्यपि HMA में पति या पत्नी को आजीवन कारावास की सज़ा दिये जाने पर विवाह-विच्छेद देने का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन मानसिक क्रूरता के आधार पर विवाह-विच्छेद देने का प्रावधान है।
  • न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी/पति की आक्रामक प्रकृति, उसके विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अधीन अभियोजित करना तथा उसके बाद धारा 302 के अधीन अपने पिता की हत्या के लिये उसे दोषी ठहराए जाने के कारण, उसके साथ रहने के दौरान पत्नी एवं उसकी अप्राप्तवय पुत्री की सुरक्षा को लेकर लगातार भय बना रहेगा।
  • न्यायालय ने कहा कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अधीन पति को दोषी ठहराना एवं आजीवन कारावास की सज़ा देना, पत्नी के प्रति मानसिक क्रूरता है, जिसके कारण उसे अपने पति से विवाह-विच्छेद लेने का अधिकार है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि वर्ष 2017 से प्रतिवादी/पति की गिरफ्तारी एवं कारावास, दो वर्ष से अधिक समय तक पत्नी के पारिस्थितिजन्य परित्याग के समतुल्य है, जो विवाह-विच्छेद देने का एक अतिरिक्त आधार है।
  • तद्नुसार, न्यायालय ने अपील को अनुमति दी, पत्नी की याचिका को खारिज करने वाले कुटुंब न्यायालय के निर्णय को खारिज कर दिया तथा 21 नवंबर 2011 को अपीलकर्त्ता/पत्नी एवं प्रतिवादी/पति के मध्य हुए विवाह को भंग कर दिया।

परित्याग के द्वारा विवाह-विच्छेद से संबंधित विधियाँ क्या है?

  • परिचय:
    • परित्याग HMA की धारा 13(1)(ib) के अंतर्गत विवाह-विच्छेद का आवेदन करने के लिये एक युक्तियुक्त आधार है।
    • यह विवाह के सार को नकारने को संदर्भित करता है, जो एक साथ रहना है। जब एक पति या पत्नी बिना किसी उचित कारण के और उनकी सहमति के बिना दूसरे को त्याग देते हैं, तो इसे परित्याग माना जाता है।
    • HMA में परित्याग की अवधारणा को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, क्योंकि यह एक गतिशील एवं परिवर्तनशील अवधारणा है, जो समय और सामाजिक मानदंडों के साथ परिवर्तित होती रहती है।
  • परित्याग के तत्त्व:
    • फैक्टम डेसेरेन्डी: एक पति या पत्नी का दूसरे से वास्तविक पृथक्करण या शारीरिक रूप से पृथक होना।
    • एनिमस डेसेरेन्डी: दूसरे पति या पत्नी को छोड़ने या सदैव के लिये त्यागने का आशय।
    • उचित कारण का अभाव: परित्याग किसी उचित कारण या औचित्य के बिना होना चाहिये।
    • सहमति का अभाव: परित्याग, परित्यक्त पति या पत्नी की इच्छा के विरुद्ध या उसकी सहमति के बिना होना चाहिये।
    • दो वर्षों की निरंतर अवधि: परित्याग, विवाह-विच्छेद याचिका की प्रस्तुति से ठीक पहले कम-से-कम दो वर्षों की निरंतर अवधि के लिये जारी रहना चाहिये।
  • परित्याग के प्रकार:
    • वास्तविक परित्याग: जब एक पति या पत्नी दूसरे पति या पत्नी को स्थायी रूप से त्यागने के आशय से वैवाहिक घर को शारीरिक रूप से छोड़ देता है।
    • रचनात्मक परित्याग: जब एक पति या पत्नी का आचरण ऐसा हो कि दूसरे पति या पत्नी के लिये उनके साथ रहना असंभव हो जाए, जिससे दूसरे पति या पत्नी को वैवाहिक घर छोड़ने के लिये विवश होना पड़े।
  • परित्याग की समाप्ति:
    • सहजीवन की बहाली: यदि परित्यक्त पति या पत्नी आपसी सहमति एवं सुलह के आशय से परित्यक्त पति या पत्नी के साथ विवाह संस्थित करते हैं, तो परित्याग समाप्त हो जाता है।
    • वैवाहिक संभोग की बहाली: वैवाहिक संभोग सुलह एवं परित्याग को समाप्त करने के आशय के रूप में देखा जा सकता है, बशर्ते कि यह एक आकस्मिक कार्य न हो।
    • सुलह का प्रस्ताव: यदि परित्याग करने वाला पति या पत्नी वास्तव में सुलह करने एवं वैवाहिक जीवन में वापस लौटने का प्रस्ताव करता है तथा प्रस्ताव के साथ अनुचित शर्तें नहीं हैं, तो परित्याग को समाप्त किया जा सकता है।
  • परित्याग के लिये उचित कारण:
    • दूसरे पति या पत्नी द्वारा क्रूरता या दुर्व्यवहार।
    • दूसरे पति या पत्नी द्वारा व्यभिचार या अनैतिक आचरण।
    • बिना किसी औचित्य के साथ रहने या वैवाहिक दायित्वों को निभाने से मना करना।
    • बिना किसी वैध कारण के कामकाजी पति या पत्नी से नौकरी से त्याग-पत्र माँगना।

परित्याग के द्वारा विवाह-विच्छेद से संबंधित महत्त्वपूर्ण मामले क्या हैं?

  • सावित्री पांडे बनाम प्रेम चंद्र पांडे (2002):
    • इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने HMA के अंतर्गत विवाह-विच्छेद के लिये 'परित्याग' का अर्थ स्पष्ट किया।
    • न्यायालय ने कहा कि HMA के अंतर्गत विवाह-विच्छेद करने के उद्देश्य से परित्याग का अर्थ है, एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे की सहमति के बिना एवं बिना किसी उचित कारण के पूर्ण ज्ञान में स्थायी रूप से परित्याग।
    • परित्याग अपने आप में एक पूर्ण कार्य नहीं है, यह आचरण का एक सतत् क्रम है, जिसे प्रत्येक मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिये।
  • शिवशंकरन बनाम संथिमीनल (2022):
    • इस मामले में, उच्चतम न्यायालय कोर्ट ने विवाह भंग के परिणामों एवं महिलाओं द्वारा महसूस किये जाने वाले विनाशकारी प्रभावों पर चर्चा की।
    • न्यायालय ने कहा कि विवाह दो व्यक्तियों के मध्य एक साधारण सा मिलन से कहीं अधिक है। एक बार जब यह सौहार्दपूर्ण संबंध टूट जाता है, तो परिणाम बेहद विनाशकारी एवं कलंकपूर्ण हो सकते हैं।
    • इस तरह के विघटन का प्राथमिक प्रभाव विशेष रूप से महिलाओं द्वारा महसूस किया जाता है, जिन्हें सामाजिक समायोजन एवं समर्थन की उसी डिग्री की गारंटी प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है, जो उन्हें विवाहित होने के दौरान प्राप्त थी।