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आपराधिक कानून
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत उद्घोषणा एवं कुर्की
26-Jul-2024
फैयाज़ अब्बास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य "केवल घोषित व्यक्ति की संपत्ति ही कुर्क की जा सकती है, फलस्वरूप, उस संपत्ति की कुर्की का कोई औचित्य नहीं बनता जिसमें अभियुक्त निवास कर रहा हो।" न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की पीठ ने कहा कि केवल फरार व्यक्ति की संपत्ति कुर्क की जा सकती है, न कि वह संपत्ति जिसमें वह रहता हो।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैयाज़ अब्बास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में यह निर्णय दिया।
फैयाज़ अब्बास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- सैयद अली हसन ने फैयाज़ अब्बास (अपीलकर्त्ता ), फैज़ अब्बास (अपीलकर्त्ता का बेटा) एवं गुड्डो (अपीलकर्त्ता की पत्नी) के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
- लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 3 एवं 4 तथा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 323, 328, 363, 376, 504 एवं 506 के अधीन प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
- अपीलकर्त्ता के बेटे फैज़ अब्बास की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं की जा सकी, इसलिये दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 82 के अधीन एक आदेश दिया गया।
- इसके बाद CrPC की धारा 83 के अधीन एक आदेश भी पारित किया गया, जिसके अंतर्गत अपीलकर्त्ता के घर को कुर्क किया गया।
- चूँकि संपत्ति फरार व्यक्ति के पिता की थी, इसलिये अपीलकर्त्ता ने CrPC की धारा 84 के अधीन अपनी आपत्तियाँ दर्ज कीं।
- मामला अधीनस्थ न्यायालय में गया, जहाँ कुर्की का आदेश वैध माना गया, क्योंकि आरोपी पूरे घर के दो कमरों में रह रहा है।
- इसलिये अपीलकर्त्ता द्वारा दायर आपत्तियों को खारिज कर दिया गया। इसलिये अपील उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- उच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा कि CrPC की धारा 82 एवं धारा 83 के अवलोकन से यह पता लगाया जा सकता है कि कुर्क की गई संपत्ति घोषित व्यक्ति की ही होनी चाहिये।
- इस प्रकार, धारा 83 के अधीन आदेश पारित करने के लिये प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकाला जाना चाहिये कि जिस संपत्ति के लिये कुर्की का आदेश पारित किया जा रहा है, वह अभियुक्त की है तथा ऐसे निष्कर्ष के बिना ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता।
- न्यायालय ने उदाहरण देते हुए कहा कि घोषित व्यक्ति का मात्र निवास स्थान संबंधित प्राधिकारी को किराये की संपत्ति को ज़ब्त या कुर्क करने का अधिकार नहीं दे सकता, क्योंकि उक्त किराये की संपत्ति घोषित व्यक्ति की नहीं होगी।
- विस्तार से बताते हुए न्यायालय ने नज़ीर अहमद बनाम किंग एम्परर (1936) के मामले का हवाला दिया, जिसमें प्रिवी काउंसिल ने कहा था कि जब किसी निश्चित कार्य को एक तरीके से करने की शक्ति दी जाती है, तो उसे उसी तरीके से किया जाना चाहिये।
CrPC की धारा 82 एवं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 84 के अधीन उद्घोषणा क्या है?
- CrPC की धारा 82 में फरार व्यक्ति के लिये उद्घोषणा से संबंधित विधि का प्रावधान किया गया है। BNSS में यह BNSS की धारा 84 के अंतर्गत प्रावधानित किया गया है।
- CrPC एवं BNSS के मध्य तुलना:
CrPC की धारा 82 |
BNSS की धारा 84 |
(1) यदि किसी न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण है (चाहे साक्ष्य लेने के बाद या नहीं) कि कोई व्यक्ति, जिसके विरुद्ध उसके द्वारा वारंट जारी किया गया है, फरार हो गया है या अपने आपको इस प्रकार छिपा रहा है कि ऐसे वारंट का निष्पादन नहीं किया जा सकता, तो ऐसा न्यायालय एक लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है जिसमें उससे यह अपेक्षा की जाएगी कि वह किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर और किसी विनिर्दिष्ट समय पर उपस्थित हो, जो ऐसी उद्घोषणा के प्रकाशन की तिथि से कम-से-कम तीस दिन की अवधि के अंदर होगा। |
(1) यदि किसी न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण है (चाहे साक्ष्य लेने के पश्चात् या नहीं) कि कोई व्यक्ति, जिसके विरुद्ध उसके द्वारा वारंट जारी किया गया है, फरार हो गया है या अपने को इस प्रकार छिपा रहा है कि ऐसे वारंट का निष्पादन नहीं किया जा सकता, तो ऐसा न्यायालय एक लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकेगा जिसमें उससे यह अपेक्षा की जाएगी कि वह किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर और किसी विनिर्दिष्ट समय पर, ऐसी उद्घोषणा के प्रकाशन की तिथि से कम-से-कम तीस दिन के अंदर उपस्थित हो। |
(2) उद्घोषणा इस प्रकार प्रकाशित की जाएगी- (i) (a) इसे उस नगर या गाँव के किसी प्रमुख स्थान पर सार्वजनिक रूप से पढ़ा जाएगा जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है; (b) इसे उस घर या वासस्थान के किसी प्रमुख भाग पर, जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है या ऐसे नगर या गाँव के किसी प्रमुख स्थान पर चिपकाया जाएगा; (c) उसकी एक प्रति न्यायालय के किसी सहजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी; (ii) न्यायालय, यदि वह उचित समझे, उद्घोषणा की एक प्रति उस स्थान में प्रसारित होने वाले दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशित करने का निर्देश भी दे सकता है जहाँ ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है। |
(2) उद्घोषणा इस प्रकार प्रकाशित की जाएगी- (i) (a) इसे उस नगर या गाँव के किसी प्रमुख स्थान पर सार्वजनिक रूप से पढ़ा जाएगा जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है; (b) इसे उस घर या वासस्थान के किसी प्रमुख भाग पर, जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है, या ऐसे नगर या गाँव के किसी प्रमुख स्थान पर चिपकाया जाएगा; (c) उसकी एक प्रति न्यायालय के किसी सहजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी; (ii) न्यायालय, यदि वह उचित समझे, उद्घोषणा की एक प्रति उस स्थान में प्रसारित होने वाले दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशित करने का निर्देश भी दे सकता है जहाँ ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है। |
(3) उद्घोषणा जारी करने वाले न्यायालय द्वारा लिखित में यह कथन कि उद्घोषणा उपधारा (2) के खंड (i) में निर्दिष्ट तरीके से निर्दिष्ट दिन पर विधिवत् प्रकाशित की गई थी, इस बात का निर्णायक साक्ष्य होगा कि इस धारा की अपेक्षाओं का अनुपालन किया गया है और उद्घोषणा ऐसे दिन प्रकाशित की गई थी। |
(3) उद्घोषणा जारी करने वाले न्यायालय द्वारा लिखित में यह कथन कि उद्घोषणा उपधारा (2) के खंड (i) में विनिर्दिष्ट रीति से विनिर्दिष्ट दिन को सम्यक रूप से प्रकाशित कर दी गई थी, इस बात का निर्णायक साक्ष्य होगा कि इस धारा की अपेक्षाओं का अनुपालन किया गया है और उद्घोषणा ऐसे दिन प्रकाशित कर दी गई थी। |
(4) जहाँ उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा किसी ऐसे व्यक्ति के संबंध में है जो भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 302, 304, 364, 367, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 400, 402, 436, 449, 459 या 460 के अधीन दण्डनीय अपराध का अभियुक्त है तथा ऐसा व्यक्ति उद्घोषणा द्वारा अपेक्षित विनिर्दिष्ट स्थान एवं समय पर उपस्थित होने में असफल रहता है, वहाँ न्यायालय ऐसी जाँच करने के पश्चात्, जैसी वह ठीक समझे, उसे उद्घोषित अपराधी घोषित कर सकेगा और इस आशय की घोषणा कर सकेगा। |
(4) जहाँ उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा किसी ऐसे व्यक्ति के संबंध में है, जो किसी ऐसे अपराध का अभियुक्त है, जो भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन दस वर्ष या अधिक के कारावास से, या आजीवन कारावास से, या मृत्युदण्ड से दण्डनीय है तथा ऐसा व्यक्ति उद्घोषणा द्वारा अपेक्षित विनिर्दिष्ट स्थान एवं समय पर उपस्थित होने में असफल रहता है, वहाँ न्यायालय ऐसी जाँच करने के पश्चात्, जैसी वह ठीक समझे, उसे उद्घोषित अपराधी घोषित कर सकेगा और इस आशय की घोषणा कर सकेगा। |
(5) उपधारा (2) एवं (3) के उपबंध उपधारा (4) के अधीन न्यायालय द्वारा की गई घोषणा पर उसी प्रकार लागू होंगे, जैसे वे उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा पर लागू होते हैं। |
(5) उपधारा (2) एवं (3) के उपबंध न्यायालय द्वारा उपधारा (4) के अधीन की गई घोषणा पर उसी प्रकार लागू होंगे, जिस प्रकार वे उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा पर लागू होते हैं। |
- BNSS द्वारा अधिनियमित नए प्रावधान:
- मुख्य परिवर्तन BNSS की धारा 84(4) के अधीन घोषित अपराधी के संबंध में है।
- BNSS के अधीन घोषित अपराधी वह व्यक्ति होगा, जो किसी ऐसे अपराध का आरोपी हो जिसके लिये भारतीय न्याय संहिता, 2023 या किसी अन्य लागू विधि के अधीन दस वर्ष या उससे अधिक का कारावास या आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड की सज़ा हो सकती है अथवा जो उद्घोषणा के अनुसार उपस्थित होने में विफल रहता है।
CrPC की धारा 83 एवं BNSS की धारा 85 के अधीन संपत्ति की कुर्की से क्या अभिप्राय है?
- CrPC की धारा 83 में फरार व्यक्ति की संपत्ति कुर्क करने का प्रावधान है। BNSS के अधीन यह प्रावधान BNSS की धारा 84 के अधीन है। यह ध्यान देने वाली बात है कि BNSS की धारा 85 के अधीन एक अतिरिक्त प्रावधान जोड़ा गया है।
- CrPC एवं BNSS के मध्य तुलना:
CrPC की धारा 83 |
BNSS की धारा 85 |
(1) धारा 82 के अधीन उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय, उद्घोषणा जारी करने के बाद किसी भी समय उद्घोषणा जारी करने वाले व्यक्ति की किसी भी संपत्ति, जंगम या स्थावर, या दोनों की कुर्की का ऑर्डर डिलीवर: लेकिन जहाँ उद्घोषणा जारी करने के बाद न्यायालय का शपथ-पत्र द्वारा या अन्यथा समाधान हो जाता है कि वह व्यक्ति, संबंध में उद्घोषणा जारी की जानी है, (a) अपनी पूरी संपत्ति या उसके किसी भाग का निपटान करने वाला है, या (b) अपनी पूरी संपत्ति या उसके किसी भाग को न्यायालय के स्थानीय अधिकार क्षेत्र से हटाने वाला है, तो वह उद्घोषणा जारी करने के साथ ही कुर्की का आदेश दे सकता है। |
(1) धारा 84 के अधीन उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय, कारणों को लेखबद्ध करके, उद्घोषणा जारी करने के पश्चात् किसी भी समय उद्घोषित व्यक्ति की किसी भी संपत्ति, जंगम या स्थावर या दोनों की कुर्की का आदेश दे सकेगा: परंतु जहाँ उद्घोषणा जारी करने के समय न्यायालय का शपथ-पत्र द्वारा या अन्यथा समाधान हो जाता है कि वह व्यक्ति, जिसके संबंध में उद्घोषणा जारी की जानी है- (a) अपनी संपूर्ण संपत्ति या उसके किसी भाग का निपटान करने वाला है; या (b) अपनी संपूर्ण संपत्ति या उसके किसी भाग को न्यायालय के स्थानीय अधिकार क्षेत्र से हटाने वाला है, तो वह उद्घोषणा जारी करने के साथ-साथ संपत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है। |
(2) ऐसा आदेश उस ज़िले के अंदर ऐसे व्यक्ति की किसी संपत्ति की कुर्की को प्राधिकृत करेगा जिसमें वह बनाया गया है तथा वह ऐसे व्यक्ति की किसी संपत्ति की, जो ऐसे ज़िले के बाहर है, कुर्की को प्राधिकृत करेगा जब वह उस ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकित किया गया हो जिसके ज़िले में ऐसी संपत्ति स्थित है। |
(2) ऐसा आदेश उस ज़िले के भीतर ऐसे व्यक्ति की किसी संपत्ति की कुर्की को प्राधिकृत करेगा जिसमें वह बनाया गया है; तथा वह ऐसे व्यक्ति की किसी संपत्ति की, जो ऐसे ज़िले के बाहर है, कुर्की को प्राधिकृत करेगा जब वह उस ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकित किया गया हो जिसके ज़िले में ऐसी संपत्ति स्थित है। |
(3) यदि कुर्क की जाने वाली आदेशित संपत्ति ऋण या अन्य चल संपत्ति है, तो इस धारा के अधीन कुर्की निम्नलिखित आधार पर की जाएगी- (क) ज़ब्ती द्वारा; या (ख) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा; या (ग) घोषित व्यक्ति को या उसकी ओर से किसी को ऐसी संपत्ति के वितरण पर रोक लगाने वाले लिखित आदेश द्वारा; या (घ) ऐसे सभी या किन्हीं दो तरीकों द्वारा, जिन्हें न्यायालय उचित समझे। |
(3) यदि कुर्क की जाने वाली आदेशित संपत्ति ऋण या अन्य चल संपत्ति है, तो इस धारा के अधीन कुर्की निम्नलिखित आधार पर की जाएगी- (क) ज़ब्ती द्वारा; या (ख) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा; या (ग) घोषित व्यक्ति को या उसकी ओर से किसी को ऐसी संपत्ति सौंपने पर रोक लगाने वाले लिखित आदेश द्वारा; या (घ) ऐसे सभी या किन्हीं दो तरीकों द्वारा, जिन्हें न्यायालय उचित समझे |
(4) यदि वह संपत्ति, जिसे कुर्क करने का आदेश दिया गया है, स्थावर है, तो इस धारा के अधीन कुर्की, राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा में, उस ज़िले के कलेक्टर के माध्यम से की जाएगी जिसमें भूमि स्थित है तथा अन्य सभी दशाओं में- (a) कब्ज़ा लेकर; या (b) रिसीवर की नियुक्ति करके; या (c) घोषित व्यक्ति को या उसकी ओर से किसी को संपत्ति सौंपे जाने पर किराया देने पर प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा; या (d) ऐसे सभी या किन्हीं दो तरीकों द्वारा, जिन्हें न्यायालय उचित समझे। |
(4) यदि वह संपत्ति, जिसे कुर्क करने का आदेश दिया गया है, स्थावर है, तो इस धारा के अधीन कुर्की, राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा में, उस ज़िले के कलेक्टर के माध्यम से की जाएगी जिसमें भूमि स्थित है, और अन्य सभी दशाओं में- (a) कब्ज़ा लेकर; या (b) रिसीवर की नियुक्ति करके; या (c) घोषित व्यक्ति को या उसकी ओर से किसी को संपत्ति सौंपे जाने पर किराया देने पर प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा; या (d) ऐसे सभी या किन्हीं दो तरीकों द्वारा, जिन्हें न्यायालय उचित समझे। |
(5) यदि कुर्क की जाने वाली आदेशित संपत्ति पशुधन से बनी है या नाशवान प्रकृति की है, तो न्यायालय, यदि वह समीचीन समझे, तो उसकी तत्काल बिक्री का आदेश दे सकता है तथा ऐसी स्थिति में बिक्री से प्राप्त राशि न्यायालय के आदेश के अधीन रहेगी। |
(5) यदि कुर्क की जाने वाली संपत्ति में पशुधन शामिल है या वह नाशवान प्रकृति की है, तो न्यायालय, यदि वह समीचीन समझे, तो उसकी तत्काल बिक्री का आदेश दे सकता है तथा ऐसी स्थिति में बिक्री से प्राप्त राशि न्यायालय के आदेश के अधीन रहेगी। |
(6) इस धारा के अधीन नियुक्त रिसीवर की शक्तियाँ, कर्त्तव्य एवं दायित्व वही होंगे जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन नियुक्त रिसीवर के हैं। |
(6) इस धारा के अधीन नियुक्त रिसीवर की शक्तियाँ, कर्त्तव्य एवं दायित्व वही होंगे जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अधीन नियुक्त रिसीवर के हैं। |
- यह ध्यान देने वाली बात है कि इस प्रावधान के संबंध में BNSS में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। हालाँकि नया प्रावधान BNSS की धारा 86 के रूप में एक नया प्रावधान है।
- BNSS की धारा 86 में प्रावधान है:
- न्यायालय, पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त के पद के अधीनस्थ के न होने वाले पुलिस अधिकारी के लिखित अनुरोध पर, अध्याय VIII में प्रदत्त प्रक्रिया के अनुसार घोषित व्यक्ति से संबंधित संपत्ति की पहचान, कुर्की एवं ज़ब्ती के लिये अनुबंधकारी राज्य के न्यायालय या प्राधिकारी से सहायता का निवेदन करने की प्रक्रिया आरंभ कर सकता है।
सांविधानिक विधि
सातवीं अनुसूची में क राधान शक्ति की स्थिति
26-Jul-2024
मिनरल एरिया डेवलपमेंट बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एवं अन्य “संविधान की 7वीं अनुसूची की नियमित प्रविष्टियों में कर लगाने की शक्तियों को शामिल करने के लिये प्रविष्टियों की व्यापक रूप से व्याख्या नहीं की जा सकती”। 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने मिनरल एरिया डेवलपमेंट बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एवं अन्य मामले में निर्णय दिया कि राज्यों को भारतीय संविधान, 1950 (COI) की सूची II की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत खनिज संबंधी अधिकारों पर कर अध्यारोपित करने का अधिकार है, जबकि सूची I की प्रविष्टि 54 के अंतर्गत संघ के पास नियामक शक्तियाँ हैं। न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कर अध्यारोपित करने की शक्तियाँ स्पष्ट रूप से दी जानी चाहिये और सामान्य नियामक प्रविष्टियों से इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
- न्यायालय ने यह पुष्टि भी की कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) खनिज संबंधी अधिकारों या भूमि पर राज्यों की कराधान शक्तियों को प्रतिबंधित नहीं करता है, बल्कि विधायी क्षमताओं के संवैधानिक वितरण को बनाए रखता है।
- यह निर्णय 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा सुनाया गया है जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय वाई चंद्रचूड़, माननीय न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, माननीय न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, माननीय न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला, माननीय न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, माननीय न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ, माननीय न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और माननीय न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह के द्वारा निर्णय प्रदान किया गया है।
मिनरल एरिया डेवलपमेंट बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- ये अपीलें खनिज संबंधी अधिकारों पर कराधान के संबंध में संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों के वितरण से संबंधित हैं।
- विचाराधीन मुख्य विधायी प्रविष्टि, संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II की प्रविष्टि 50 है, जो खनिज संबंधी अधिकारों पर कराधान से संबंधित है।
- संसद ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) को संविधान के अनुच्छेद 246 के अंतर्गत अधिनियमित किया।
- इंडिया सीमेंट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य (1990) मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि रॉयल्टी एक कर है और राज्य विधानसभाओं में खनिज संबंधी अधिकारों पर कर लगाने की क्षमता का अभाव है।
- पश्चिम बंगाल राज्य बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (2004) में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि रॉयल्टी कोई कर नहीं है, जो कि इंडिया सीमेंट मामले पर दिये गए पूर्वनिर्णय का खंडन करता है।
- इन निर्णयों के उपरांत, कुछ राज्य विधानसभाओं ने खनिज मूल्य या रॉयल्टी को कर के मापक के रूप में उपयोग करते हुए, सूची II की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत खनिज युक्त भूमि पर कर लगाया।
- इन राज्य करों की संवैधानिक वैधता को विभिन्न उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई।
- सिविल अपील में पटना उच्च न्यायालय ने इंडिया सीमेंट मामले में लिये गए निर्णय का उदहारण देते हुए खनन हेतु उपयोग की जाने वाली भूमि पर कर लगाने वाले बिहार राज्य के विधान को रद्द कर दिया।
- अपील पर, उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने इंडिया सीमेंट और केसोराम निर्णयों के बीच मतभेद को देखा तथा कई विधिक प्रश्नों को नौ न्यायाधीशों की पीठ को अंतरित कर दिया।
- नौ न्यायाधीशों की पीठ अब इन संदर्भित विधिक प्रश्नों पर विचार कर रही है, जिन्हें निम्नलिखित मुख्य मुद्दों में बदल दिया गया है:
- रॉयल्टी की प्रकृति के विषय में।
- विधायी प्रविष्टियों का दायरा।
- खनिज कराधान के संबंध में संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि सातवीं अनुसूची की सूची I और II के अंतर्गत नियमित प्रविष्टियों में विशिष्ट कर प्रविष्टियों के अंतर्गत आने वाली कराधान शक्तियों को शामिल करने के लिये व्यापक व्याख्या नहीं दी जा सकती।
- न्यायालय ने नियमित प्रविष्टियों की सीमा का विस्तार कर उसमें कराधान शक्ति को भी शामिल कर दिया है, जिससे संघ और राज्यों दोनों को स्वेच्छाचारी तथा असंवैधानिक अधिकार प्राप्त हो जाएगा।
- न्यायालय ने कहा कि सूची I की प्रविष्टि 54 सामान्य होने के कारण इसमें कराधान शक्ति शामिल नहीं है।
- संसद खनिज संबंधी अधिकारों पर कर लगाने के लिये विधायी क्षमता प्राप्त करने हेतु अवशिष्ट शक्तियों का उपयोग नहीं कर सकती।
- कर लगाने की शक्ति प्रविष्टि में स्पष्ट रूप से उपस्थित होनी चाहिये तथा इसे नियामक शक्तियों से निहित नहीं किया जा सकता।
- प्रविष्टि 50 सूची II, सुंदररामियर सिद्धांत का अपवाद नहीं है, जिसमें कहा गया है कि कर प्रविष्टियों को 7वीं अनुसूची में सामान्य प्रविष्टियों से अलग सूचीबद्ध किया गया है।
- न्यायालय का मानना है कि राज्यों को सूची II की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत खनिज संबंधी अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार है।
- सूची II की प्रविष्टि 50 और सूची I की प्रविष्टि 54 नियामक प्रविष्टियाँ हैं तथा स्पष्ट रूप से 'कर प्रविष्टियों' के अंतर्गत नहीं आती हैं।
- खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) की धारा 9 के अंतर्गत खनिज अधिकारों पर कर लगाने की राज्यों की शक्ति को सीमित नहीं किया गया है।
- राज्यों को सूची II की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का अधिकार है, जिसमें भूमि और भवनों पर कर शामिल है।
- सूची II की प्रविष्टि 49 में "भूमि" शब्द में सभी प्रकार की भूमि शामिल है, चाहे उनका उपयोग कुछ भी हो, जिसमें खनिज युक्त भूमि भी शामिल है।
- राज्य विधानसभाओं को सूची II की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत कराधान प्रयोजनों के लिये भूमि को वर्गीकृत करने में व्यापक विवेकाधिकार प्राप्त है।
- अपनी प्राकृतिक अवस्था में खनिज भूमि का भाग हैं और सूची II की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत कराधान प्रयोजनों के लिये सतह के ऊपर तथा नीचे की सभी चीज़ें इसमें शामिल हैं।
- MMDRअधिनियम, सूची II की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत भूमि पर कर लगाने की राज्य की शक्ति को सीमित नहीं करता है।
- MMDR अधिनियम, 1957 की धाराएँ 9, 9A और 25 सूची II की प्रविष्टि 50 के विस्तार को समाप्त या सीमित करती हैं।
- केसोराम मामले में बहुमत से लिये गए निर्णय को इस सीमा तक अस्वीकार कर दिया गया है कि रॉयल्टी कोई कर नहीं है।
- सूची II की प्रविष्टि 50, सुंदररामियर सिद्धांत का अपवाद नहीं है, जिसमें कहा गया है कि संविधान में कर प्रविष्टियों को सामान्य प्रविष्टियों से अलग सूचीबद्ध किया गया है।
संविधान की सातवीं अनुसूची क्या है?
परिचय:
- सातवीं अनुसूची को संविधान के अनुच्छेद 246 के साथ पढ़ा जाता है, जो संसद और राज्य विधानमंडल को उनके विधायी क्षेत्र में आने वाले किसी भी मामले पर विधि बनाने का अधिकार देता है।
- सातवीं अनुसूची, संघ और राज्यों के बीच शक्तियों तथा उत्तरदायित्वों के वितरण को निर्दिष्ट करती है। इसमें तीन सूचियाँ हैं:
- संघ सूची: इस सूची में संघीय सरकार के अनन्य अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विषय सम्मिलित हैं। वर्तमान में संघ सूची में 100 विषय हैं।
- राज्य सूची: इस सूची में राज्य सरकार के विशेष अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विषय सम्मिलित हैं। वर्तमान में राज्य सूची में 61 विषय हैं।
- समवर्ती सूची: इस सूची में संघ और राज्य सरकारों के संयुक्त अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विषय सम्मिलित हैं। वर्तमान में समवर्ती सूची में 52 विषय हैं।
सातवीं अनुसूची के लागू होने के बाद इसमें कौन-से बड़े परिवर्तन हुए हैं?
- संसद को संघ सूची के 100 विषयों पर विधान बनाने का विशेष अधिकार है।
- राज्य विधानमंडलों को राज्य सूची के 61 विषयों पर विधान बनाने का विशेष अधिकार है।
- संसद और राज्य विधानमंडल दोनों समवर्ती सूची के 52 विषयों पर विधान बना सकते हैं।
- 42वें संशोधन अधिनियम (1976) द्वारा पाँच विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
- संसद, राज्य सूची के विषयों पर केंद्रशासित प्रदेशों के लिये विधान बना सकती है।
- 101वें संशोधन अधिनियम (2018) ने GST पर संसद और राज्यों को साझा शक्ति प्रदान की, जिसमें संसद को अंतर्राज्यीय GST पर विशेष शक्ति प्राप्त है।
- संसद को उन अवशिष्ट विषयों पर भी अधिकार है जो किसी सूची में नहीं हैं।
- संविधान, राज्य और समवर्ती सूचियों पर संघ सूची की प्रधानता तथा राज्य सूची पर समवर्ती सूची की प्रधानता सुनिश्चित करता है।
- कुछ अपवादों को छोड़कर, संघर्ष की स्थिति में केंद्रीय विधान सामान्यतः राज्य विधानों पर प्रभावी होते हैं।
- सरकारिया आयोग (1983) और वेंकटचलैया आयोग (2002) ने शक्तियों के मौजूदा वितरण को एक स्थिति तक यथावत् रखा।
- समवर्ती सूची के अंतर्गत विधान बनाने के लिये संघ और राज्यों के बीच कोई अनिवार्य परामर्श प्रक्रिया नहीं है।
सातवीं अनुसूची में संशोधन की आवश्यकता क्यों हुई?
- संवैधानिक संशोधनों ने आमतौर पर विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची या समवर्ती सूची से संघ सूची में स्थानांतरित करके केंद्रीकरण को बढ़ावा दिया है।
- वर्ष 1976 के संशोधन से केंद्रीकरण में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- राजमन्नार समिति (1971) ने सातवीं अनुसूची की सूची 1 और 3 की प्रविष्टियों की समीक्षा तथा पुनर्वितरण के लिये एक उच्च-शक्ति आयोग की अनुशंसा की थी।
- इस बात पर सामान्य सहमति है कि भारत को शासन में अधिक विकेंद्रीकरण की आवश्यकता है।
- सातवीं अनुसूची के व्यापक पुनर्निरीक्षण की आवश्यकता है।
- विकास में क्षेत्रीय अंतर के कारण बाज़ार सुधार कारक (भूमि, श्रम, प्राकृतिक संसाधन) राज्य स्तरीय नियंत्रण से लाभान्वित हो सकते हैं।
- राज्य-विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए श्रम विधियों को समवर्ती सूची से राज्य सूची में स्थानांतरित किया जा सकता है।
- संघ-राज्य संबंधों पर गठित पिछले आयोगों ने सातवीं अनुसूची पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है।
- प्रथम सिद्धांतों के आधार पर सातवीं अनुसूची का स्वतंत्र निरीक्षण आवश्यक है।
भारत के संविधान में संबंधित प्रावधान क्या हैं?
अनुच्छेद |
विषय |
व्याख्या |
245 |
संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए विधानों का विस्तार |
विधानों के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र को परिभाषित करता है |
246 |
संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए विधानों की विषय-वस्तु |
सातवीं अनुसूची द्वारा सूचियों के आधार पर विधायी शक्तियों का वितरण |
246A |
GST के लिये विशेष प्रावधान |
वस्तु एवं सेवा कर विधि से संबंधित |
247 |
अतिरिक्त न्यायालय स्थापित करने की संसद की शक्ति |
संघ और समवर्ती सूची के अंतर्गत विधियों के बेहतर प्रशासन के लिये |
248 |
विधान की अवशिष्ट शक्तियाँ |
संसद को राज्य या समवर्ती सूची में शामिल न होने वाले मामलों पर अधिकार देता है |
249 |
राज्य सूची के मामलों पर विधि बनाने की संसद की शक्ति |
यदि राज्यसभा प्रस्ताव पारित करती है तो यह संभव है |
250 |
आपातकाल के दौरान विधान बनाने की संसद की शक्ति |
राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान राज्य सूची के मामलों पर विधान बना सकते हैं
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251 |
संघ और राज्य विधियों के बीच असंगतता |
संघीय विधियों की व्यापकता स्थापित करता है
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252 |
दो या अधिक राज्यों के लिये सहमति से विधान बनाने की संसद की शक्ति |
सहमति देने वाले राज्यों में एक समान विधि की अनुमति देता है
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253 |
अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के कार्यान्वयन के लिये विधान |
संसद को संधियों को लागू करने की शक्ति प्रदान करता है |
254 |
समवर्ती सूची पर संघ और राज्य विधियों के बीच असंगतता |
समवर्ती सूची विधान में विवादों को संबोधित करती है |
क्या रॉयल्टी एक कर है अथवा नहीं?
- खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) संघीय नियंत्रण के अंतर्गत खानों तथा खनिज विकास को विनियमित करता है।
- धारा 9, खनन पट्टों के लिये रॉयल्टी से संबंधित है, जो निकाले गए या उपभोग किये गए खनिजों पर देय है।
- रॉयल्टी दरें द्वितीय अनुसूची में निर्दिष्ट हैं, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
- यदि प्रसंस्करण, पट्टे पर दिये गए क्षेत्र के भीतर किया जाता है तो प्रसंस्कृत खनिजों पर रॉयल्टी ली जाती है, अन्यथा अप्रसंस्कृत खनिजों पर रॉयल्टी ली जाती है।
- धारा 9A के अंतर्गत डेड रेंट देय है तथा डेड रेंट या रॉयल्टी में से जो अधिक हो, वह लिया जाएगा।
- ज़िला खनिज फाउंडेशन और राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट के लिये अतिरिक्त भुगतान की आवश्यकता है।
- यह अधिनियम बकाया राशि को भू-राजस्व बकाया के रूप में वसूलने का अधिकार देता है।
- खनन पट्टा समझौते, राज्य सरकारों और पट्टाधारकों के बीच निष्पादित किये जाते हैं।
- MMDR अधिनियम का उद्देश्य पुराने खनन समझौतों को संशोधित करना और निजी क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करना था।
- धारा 9, केंद्र सरकार को रॉयल्टी दरों की समय-समय पर समीक्षा और समायोजन करने की अनुमति देती है, जो पिछले विधान के अंतर्गत संभव नहीं था।
- रॉयल्टी दर निर्धारण को केंद्रीकृत करने का उद्देश्य पूरे भारत में एकरूपता बनाए रखना और घरेलू उद्योग की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना है।