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सांविधानिक विधि

वायु प्रदूषण पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश

 19-Nov-2024

एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (दिल्ली प्रदूषण)

“सर्वोच्च न्यायालय ने जनता से मास्क पहनने और स्वास्थ्य संबंधी उपायों का पालन करने का आग्रह किया है, क्योंकि दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता का स्तर ‘गंभीर+’ श्रेणी में है।”

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह।

स्रोत: सर्वोच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता ‘गंभीर प्लस’ श्रेणी में रहने के कारण भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मास्क पहनने सहित निवारक स्वास्थ्य उपायों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया है। न्यायालय द्वारा AQI के 450 को पार करने के कारण ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के तहत चरण-IV उपायों को लागू करने का आदेश दिया गया। न्यायालय ने GRAP प्रोटोकॉल के क्रियान्वयन में देरी के लिये वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) की आलोचना की, और कहा कि निवारक कार्रवाई पहले (AQI की गंभीर श्रेणी में पहुँचने से पहले) ही की जानी चाहिये थी।

  • न्यायालय ने यह भी कहा कि वायु गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार की परवाह किये बिना, CAQM को शीघ्रता से कार्य करना चाहिये।

एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (दिल्ली प्रदूषण) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु की गुणवत्ता में गंभीर रूप से गिरावट आ रही है, जिसके कारण वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) को लागू किया गया है।
  • GRAP को चार अलग-अलग चरणों में वर्गीकृत किया गया है,: पहला चरण - ‘खराब’ (AQI 201-300), दूसरा चरण - ‘बहुत खराब’ (AQI 301-400), तीसरा चरण - ‘गंभीर’ (AQI 401-450) और चौथा चरण- ‘अत्यंत गंभीर’ (AQI 450 से ऊपर)। 
  • CAQM द्वारा प्रारंभ में GRAP चरण-I को 14 अक्तूबर, 2024, उसके बाद चरण-II को 21 अक्तूबर, 2024 तथा चरण-III को 14 नवंबर, 2024 को लागू किया गया।
  • 17 नवंबर, 2024 को, दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 450 से अधिक दर्ज किया गया, जो "गंभीर+" श्रेणी को दर्शाता है, जिसमें लगातार कुछ घंटों के अंतराल में 447, 452 और 457 की रीडिंग दर्ज की गई।
  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)और IITM के पूर्वानुमान के अनुसार घने कोहरे, परिवर्तनशील वायु और प्रतिकूल मौसम संबंधी स्थितियों के कारण वायु की गुणवत्ता "गंभीर/गंभीर+" श्रेणी में बनी रहेगी।
  • वायु प्रदूषण में कई कारक योगदान देते हैं, जिनमें पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना, पटाखों का उपयोग, वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, कचरा जलाना तथा औद्योगिक प्रदूषण शामिल हैं। 
  • पर्यावरण संबंधी नियम पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (EPA), 1986 द्वारा शासित होते हैं, जिसे वर्ष 2023 में जन विश्वास अधिनियम द्वारा संशोधित किया गया था। जन विश्वास अधिनियम ने दंडात्मक उपायों के स्थान पर उल्लंघन के लिये दंड की प्रणाली लागू की।
  • यह मामला संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों से जुड़ा है, जो नागरिकों को प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के अधिकार की गारंटी देता है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने पाया कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने 12 नवंबर, 2024 को AQI के 401 के स्तर को दर्ज करने के बावजूद GRAP चरण III को लागू करने में देरी की, इसे लागू करने के लिये 14 नवंबर, 2024 तक इंतजार किया तथा इसी तरह AQI 450 के पार कर जाने के बाद चरण IV के कार्यान्वयन में भी देरी की। 
  • न्यायालय ने पाया कि CAQM का दृष्टिकोण 29 अक्तूबर, 2018 के अपने पहले के आदेश के विपरीत था, जिसमें प्रदूषण चरणों का सख्ती से पालन किये बिना पूर्व-निवारक कदम उठाने का निर्देश दिया गया था। 
  • न्यायालय ने मौजूदा प्रतीक्षा और निगरानी की रणनीति को "पूरी तरह से गलत" बताया तथा इस बात पर बल दिया कि CAQM AQI में सुधार के लिये इंतजार नहीं कर सकता तथा AQI के सीमांत स्तर से ऊपर जाने की आशंका में उसे तुरंत GRAP चरणों को क्रियान्वित करना चाहिये।
  • न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान दिया कि किस एजेंसी के AQI डेटा को आधिकारिक माना जाना चाहिये, यह दर्शाता है कि इस पर आगे विचार करने की आवश्यकता है। उपग्रह निगरानी के संबंध में, न्यायालय ने पाया कि वर्तमान नासा उपग्रह केवल सीमित समय (सुबह 10:30 बजे और दोपहर 1:30 बजे) पर ही खेत में लगने वाली आग के डेटा को कैप्चर करते हैं, जबकि दक्षिण कोरिया के GEO-KOMSAT 2A जैसे स्थिर उपग्रह पूरे दिन व्यापक रूप से डेटा प्रदान कर सकते हैं। 
  • न्यायालय ने पाया कि नागरिकों को प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहना सुनिश्चित करना केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के लिये एक संवैधानिक दायित्व है, जिसके लिए उन्हें GRAP उपायों से परे सभी संभव कार्रवाई करने की आवश्यकता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि GRAP चरण IV कार्यान्वयन अधिक कठोर होना चाहिये, जिसमें सरकारों और स्थानीय अधिकारियों के पास विवेकाधिकार कम होना चाहिये। 
  • न्यायालय ने पाया कि GRAP दिशा-निर्देशों के बावजूद, 12वीं कक्षा तक की भौतिक कक्षाओं के संबंध में तत्काल निर्णय लेने की आवश्यकता थी, जो दर्शाता है कि मौजूदा प्रोटोकॉल में निर्धारित स्थिति की तुलना में अधिक तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।

AQI स्तरों में उल्लेखनीय वृद्धि के बाद चरण IV के उपाय क्या हैं?

  • दिल्ली में आवश्यक वस्तुओं/सेवा वाहकों को छोड़कर ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध है, केवल LNG/CNG/इलेक्ट्रिक/BS-VI डीजल ट्रकों को की दिल्ली में प्रवेश की अनुमति है।
  • दिल्ली के बाहर पंजीकृत हल्के वाणिज्यिक वाहनों (LCV) को शहर में प्रवेश करने से प्रतिबंधित किया गया है, केवल EV/CNG/BS-VI डीजल वाहनों को छोड़कर जो आवश्यक सामान ले जा रहे हैं या आवश्यक सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं।
  • दिल्ली में पंजीकृत BS-IV (और उससे नीचे) डीजल मध्यम माल वाहन (MGV) और भारी माल वाहन (HGV) (सिवाय आवश्यक वस्तुओं को ले जाने वाले या आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने वाले वाहनों के) पर सख्त प्रतिबंध है।
  • हाईवे, सड़क, फ्लाईओवर, बिजली पारेषण, पाइपलाइन और दूरसंचार बुनियादी ढाँचे जैसी सार्वजनिक परियोजनाओं सहित सभी निर्माण और विध्वंस (C&D) गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध है।
  • NCR राज्य सरकारें और दिल्ली सरकार छात्रों (VI-IX और XI) के लिये भौतिक कक्षाएँ की जगह शिक्षा के ऑनलाइन मोड पर स्विच करने का निर्णय ले सकती हैं।
  • NCR राज्यों में सार्वजनिक, नगरपालिका और निजी कार्यालय में कार्य हेतु 50% क्षमता निर्धारित की गई है तथा शेष कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम के तहत कार्य करेंगे। 
  • राज्य सरकारें अतिरिक्त आपातकालीन उपाय लागू कर सकती हैं, जैसे कॉलेज/शैक्षणिक संस्थान बंद करना, गैर-आपातकालीन वाणिज्यिक गतिविधियों को प्रतिबंधित करना तथा पंजीकरण संख्या के आधार पर सम-विषम वाहन योजना लागू करना।
  • संवेदनशील समूहों (बच्चों, बुजुर्गों और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं वाले लोगों) के लिये बाहरी गतिविधियों से बचने की विशेष सलाह, केंद्र सरकार के पास अपने कर्मचारियों के लिये घर से कार्य (वर्क फ्रॉम होम) करने की व्यवस्था लागू करने का विवेकाधिकार है।

GRAP (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) क्या है?

  • GRAP वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा दिल्ली-एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिये लागू किए गए आपातकालीन उपायों का एक समूह है, जिसमें विशिष्ट AQI थ्रेसहोल्ड के आधार पर कार्रवाई की जाती है। 
  • इसमें चार चरण शामिल हैं: चरण I ('खराब' AQI: 201-300), चरण II ('बहुत खराब' AQI: 301-400), चरण III ('गंभीर' AQI: 401-450), और चरण IV ('गंभीर+' AQI: >450), प्रत्येक चरण में उत्तरोत्तर सख्त उपायों को लागू किया जाता है।
  • इस योजना में निर्माण गतिविधियों, वाहनों की आवाजाही, औद्योगिक संचालन और अन्य प्रदूषणकारी गतिविधियों पर प्रतिबंध जैसे विभिन्न निवारक एवं नियंत्रण उपाय शामिल हैं, प्रत्येक चरण के साथ प्रतिबंधों की गंभीरता बढ़ती जाती है। 
  • GRAP को सितंबर, 2024 में संशोधित किया गया था ताकि इसे वायु गुणवत्ता में वास्तविक गिरावट का इंतजार करने के बजाय पूर्वानुमानों के आधार पर सक्रिय रूप से लागू किया जा सके, जिसमें AQI के गंभीर स्तर पर पहुँचने से पहले निवारक कार्रवाई की आवश्यकता होती है। 
  • कार्यान्वयन की देखरेख CAQM द्वारा अपनी उप-समिति के माध्यम से की जाती है, जो योजना के विभिन्न चरणों को लागू करने पर निर्णय लेने के लिये वायु गुणवत्ता डेटा और मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की निगरानी करती है।

भारत में वायु प्रदूषण से संबंधित मौजूदा कानून क्या हैं?

प्राथमिक पर्यावरण कानून:

  • वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981
    • प्राथमिक रूप से लागू कानून विशेष रूप से वायु प्रदूषण नियंत्रण पर केंद्रित है।
    • केंद्रीय और राज्य स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड स्थापित करता है।
    • वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कमी के लिये रूपरेखा प्रदान करता है।
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
    • पर्यावरण संरक्षण के लिये व्यापक कानून
    • सरकार को मानक निर्धारित करने और प्रदूषणकारी गतिविधियों को विनियमित करने का अधिकार देता है
    • इसमें दंड और पर्यावरण क्षतिपूर्ति के प्रावधान शामिल हैं

नियामक ढाँचा:

  • वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) अधिनियम, 2021
    • दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के लिये विशेष रूप से बनाया गया
    • वायु गुणवत्ता प्रबंधन उपायों की देखरेख करता है
    • निर्देश जारी करने और दंड आरोपित करने का अधिकार रखता है
  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
    • यह वर्ष 2019 में शुरू की गई राष्ट्रीय स्तर की नीतिगत पहल है
    • इसका उद्देश्य पार्टिकुलेट मैटर की सांद्रता को 20-30% तक कम करना है
    • शहर-विशिष्ट कार्य योजनाएँ निर्धारित की गईं हैं

कार्यान्वयन तंत्र:

  • राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) 
    • विभिन्न वायु प्रदूषकों के लिये अनुमेय सीमाएँ निर्धारित करता है
    • निगरानी ढाँचा प्रदान करता है
    • अनुपालन संबंधी आवश्यकताएँ स्थापित करता है
  • मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (संशोधनों के साथ)
    • वाहनों से उत्सर्जित प्रदूषण को नियंत्रित करता है
    • वाहनों के लिये उत्सर्जन मानक तय करता है
    • नियमित प्रदूषण जाँच को अनिवार्य करता है

सहायक विधान:

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010
    • पर्यावरण संबंधी विशेष न्यायालयों की स्थापना करता है
    • वायु प्रदूषण सहित पर्यावरण विवादों को नियंत्रित करता है
    • प्रदूषण नियंत्रण हेतु निर्देश जारी कर सकता है
  • उद्योग-विशिष्ट विनियम: 
  • औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण दिशा-निर्देश
    • उद्योग-विशिष्ट उत्सर्जन मानक
    • प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों के उपयोग को अनिवार्य बनाता है
    • औद्योगिक परियोजनाओं के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती है

दंड विधि

नाबालिग पत्नी के साथ सहमति से बनाया गया यौन संबंध भी बलात्कार

 19-Nov-2024

एस बनाम महाराष्ट्र राज्य

“इस मामले में अभियोजन पक्ष ने साबित कर दिया है कि अपराध की तिथि पर पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम थी”

न्यायमूर्ति गोविंद सनप

स्रोत: Bombay High Court

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एस बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में अनिवार्य रूप से इस सिद्धांत को सुदृढ़ किया है कि नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों से जुड़े मामलों में, सहमति या वैवाहिक स्थिति की परवाह किये बिना, विवाह को बचाव के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

एस बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 64(2)(f), 64(2)(i), 64(2)(m), 65(1) और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 4, 6 और 8 के तहत दंडनीय अपराधों के लिये अपीलकर्त्ता के विरुद्ध मूल आपराधिक मामला दायर किया गया था।
  • प्रारंभिक संबंध:
    • शिकायतकर्त्ता एक नाबालिग लड़की थी
    • अपीलकर्त्ता और शिकायतकर्त्ता के बीच प्रेम संबंध थे
    • शिकायत दर्ज करने के समय लड़की 31 सप्ताह की गर्भवती थी
  • कथित घटनाक्रम:
    • कथित तौर पर अपीलकर्त्ता ने शिकायतकर्त्ता के साथ ज़बरन यौन संबंध बनाए
    • उसने शादी का झूठा वादा करके संबंध बनाना जारी रखा
    • शिकायतकर्त्ता के गर्भवती होने के बाद, उसने उससे शादी करने का अनुरोध किया
    • शिकायतकर्त्ता ने पड़ोसियों की मौजूदगी में उसके साथ माला का आदान-प्रदान किया 
    • उसने एक घर किराए पर लिया और उसे विश्वास दिलाया कि वह उसकी पत्नी है।
    • उसने शिकायतकर्त्ता पर गर्भपात के लिये दबाव डाला
    • उसके इनकार करने पर, उसने कथित तौर पर उसके साथ मारपीट की
    • शिकायतकर्त्ता अपने माता-पिता के घर लौट आई
    • अपीलकर्त्ता ने कथित तौर पर उसके माता-पिता के घर पर उसके साथ दो बार मारपीट की
    • गर्भ में पल रहे बच्चे के पिता होने से भी इनकार कर दिया।
  • शिकायतकर्त्ता ने वर्धा पुलिस की बाल कल्याण समिति (CWC) के समक्ष मामला दर्ज कराया।
  • ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही के दौरान, शिकायतकर्त्ता ने CWC अधिकारियों को उनके वरमाला समारोह की तस्वीरें दिखाने की बात स्वीकार की। 
  • अपीलकर्त्ता ने दावा किया कि यौन क्रियाएँ सहमति से की गई थीं। 
  • उसने तर्क दिया कि चूँकि वे विवाहित थे, इसलिये ये कृत्य बलात्कार नहीं माने जा सकते। 
  • यह एक आपराधिक अपील थी जिसकी सुनवाई बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में हुई। 
  • अपील में वर्धा ज़िले के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि:
    • सहमति और विवाह पर:
      • न्यायालय ने माना कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार है, भले ही तर्क के लिये यह मान लिया जाए कि उनके बीच तथाकथित विवाह था।
      • पत्नी के साथ सहमति से यौन संबंध बनाने का बचाव स्वीकार नहीं किया जा सकता, जब पत्नी 18 वर्ष से कम उम्र की हो।
      • भले ही कथित विवाह हुआ हो, 18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ बिना सहमति के यौन संबंध बनाना बलात्कार माना जाता है।
    • साक्ष्य के मूल्यांकन पर:
      • न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने साबित किया कि अपराध की तारीख पर पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम थी।
      • इसके अलावा, पीठ ने कहा कि न केवल मेडिकल अधिकारी के साक्ष्य बल्कि उसके जन्म प्रमाण पत्र, DNA रिपोर्ट जैसे अन्य साक्ष्य भी पीड़िता के साक्ष्य की पुष्टि करते हैं।
    • ट्रायल कोर्ट के फैसले पर:
      • सबूतों का फिर से मूल्यांकन करने पर न्यायालय ने पाया कि ट्रायल जज ने कोई गलती नहीं की है। 
      • सभी मामलों में उनके निष्कर्ष ठोस और ठोस कारणों से समर्थित हैं। 
      • रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों को खारिज करने और उन पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं दिखता है।
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपीलकर्त्ता की इस दलील को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया कि उसकी पत्नी के साथ सहमति से बनाया गया संभोग बलात्कार नहीं माना जा सकता।
  • न्यायालय ने नाबालिगों के साथ यौन संबंध के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के उदाहरण का अनुसरण किया।
    • नाबालिगों से जुड़े मामलों में बलात्कार का निर्धारण करते समय पीड़िता की वैवाहिक स्थिति को अप्रासंगिक माना गया।
  • उपरोक्त टिप्पणियाँ करने के बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बलात्कार के आरोपों और पोक्सो अधिनियम के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा।
    • न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरा रखते हुए अपील खारिज कर दी।
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अनिवार्यतः इस सिद्धांत को सुदृढ़ किया कि नाबालिगों के विरुद्ध यौन अपराधों से संबंधित मामलों में, चाहे सहमति या वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, विवाह को बचाव के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

बलात्कार कृत्य क्या है?

  • परिचय:
    • भारतीय न्याय संहिता 2023 के तहत, बलात्कार को एक ऐसे जघन्य अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें एक पुरुष किसी महिला को उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाने के लिये मज़बूर करता है। इस कृत्य को महिला की शारीरिक अखंडता और स्वायत्तता का गंभीर उल्लंघन माना जाता है। 
    • BNS के तहत बलात्कार को व्यापक रूप से संबोधित किया जाता है, जिसमें अपराध के तत्त्वों, अपराधियों के लिये दंड और न्याय प्रदान करने के लिये प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का विवरण दिया जाता है। 
    • BNS की धारा 63 बलात्कार के अपराध को परिभाषित करती है।
  • बलात्कार की परिभाषा को समझना:
    • कानून के अनुसार, बलात्कार तब होता है जब किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध, उसकी सहमति के बिना, कुछ निर्दिष्ट शर्तों के तहत यौन संबंध बनाए जाते हैं।
    •  इन शर्तों में वे मामले शामिल हैं जहाँ सहमति जबरदस्ती, धोखे से प्राप्त की जाती है, या जब महिला नशे में, मानसिक रूप से अस्वस्थ होने या उम्र कम होने के कारण सहमति देने में असमर्थ होती है।
  • अपराध के तत्त्व:
    • BNS के तहत बलात्कार के अपराध को स्थापित करने के लिये, कुछ प्रमुख तत्त्वों को उचित संदेह से परे साबित किया जाना चाहिये। 
    • इन तत्त्वों में आमतौर पर सहमति की अनुपस्थिति, बल, जबरदस्ती या धोखे से पीड़ित का यौन प्रवेश शामिल है। 
    • इसके अलावा, कानून यह मानता है कि सहमति स्वेच्छा से और कृत्य की प्रकृति की पूरी समझ के साथ, बिना किसी डर या दबाव के साथ होनी चाहिये।
  • विधिक दंड और सज़ा:
    • BNS बलात्कार के दोषी व्यक्तियों के लिये कठोर दंड निर्धारित करता है, अपराध की गंभीरता और पीड़ित पर इसके प्रभाव को पहचानते हुए। 
    • सजा की गंभीरता मामले की परिस्थितियों के आधार पर निर्धारित होती है, जिसमें पीड़ित की उम्र, बल या हिंसा का प्रयोग, तथा सामूहिक बलात्कार या बार-बार अपराध जैसे गंभीर कारकों की उपस्थिति शामिल है।
  • संशोधन:
    • वर्ष 2013 में मुकेश एवं अन्य बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य एवं अन्य (2017) के बाद दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 के माध्यम से बलात्कार कानूनों के संबंध में IPC में महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए थे। 
    • इन संशोधनों द्वारा और भी कठोर दंड की व्यवस्था की गई, जैसे कि बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड, जब पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह अचेत अवस्था में चली जाती है।

पोक्सो अधिनियम, 2012 के तहत सहमति की आयु क्या है?

  • POCSO अधिनियम ने वर्ष 2012 में यौन गतिविधि के लिये सहमति की आयु 16 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी तथा यह 16 से 18 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं के लिये सहमति से यौन संबंध बनाने की अनुमति नहीं देता है।
  • मध्य प्रदेश राज्य बनाम बालू (2004) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि नाबालिगों की सहमति का कानून की नज़र में कोई मूल्य नहीं है, इसलिये यह वैध नहीं है।
  • ए.के. बनाम दिल्ली एनसीटी राज्य सरकार (2022) में, उच्च न्यायालय ने कहा कि POCSO अधिनियम, 2012 का उद्देश्य 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाना है, न कि सहमति से युवा वयस्कों के बीच संबंधों को अपराध बनाना।
  • दिसंबर, 2022 में सरकार ने संसद को बताया कि उसके पास सहमति की आयु को संशोधित करने की कोई योजना नहीं है।

दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 क्या है?

  • इस संशोधन अधिनियम ने सहमति की आयु को 16 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया, जिसका तात्पर्य यह है कि किसी वयस्क द्वारा 18 वर्ष से कम आयु की बालिका के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार माना जाएगा, भले ही किसी मामले में सहमति मौजूद हो या नहीं।