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आपराधिक कानून

अति रिक्त दस्तावेज़ी साक्ष्य

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 19-Mar-2024

बिनोद कुमार मिश्रा बनाम झारखंड राज्य

निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिये साक्ष्य के निष्कर्ष के बाद दस्तावेज़ी साक्ष्य भी पेश किये जा सकते हैं ताकि मामले का न्यायोचित निर्णय हो सके।

न्यायमूर्ति सुभाष चंद

स्रोत: झारखंड उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, झारखंड उच्च न्यायालय ने बिनोद कुमार मिश्रा बनाम झारखंड राज्य के मामले में माना है कि निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिये साक्ष्य के निष्कर्ष के बाद दस्तावेज़ी साक्ष्य भी पेश किये जा सकते हैं, ताकि मामले में उचित निर्णय दिया जा सके।

बिनोद कुमार मिश्रा बनाम झारखंड राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में याचिकाकर्त्ता ने अभियुक्त के विरुद्ध दवा का व्यवसाय स्थापित करने के लिये जारी किये गए चेक के अनादरण की शिकायत दर्ज कराई है।
  • शिकायत मामले में शिकायतकर्त्ता की गवाही पूरी की गई और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत अभियुक्त का बयान दर्ज किया गया।
  • अभियुक्त ने प्रतिरक्षा साक्ष्य में स्वयं का परीक्षण किया जिसमें अभियुक्त द्वारा यह तथ्य दर्शाया गया कि उसकी बहन का विवाह हैदराबाद में रद्द हो गया था।
  • इसके संबंध में उसने अक्तूबर, 2015 में याचिकाकर्त्ता को अवगत कराया और उक्त चेक उससे वापस मांगा गया तथा याचिकाकर्त्ता ने कहा कि वही चेक उसके कार्यालय में रखा हुआ था।
  • बार-बार मांगने पर भी उक्त चेक वापस नहीं किया गया।
  • इस तथ्य का खंडन करने के लिये, जिसे अभियुक्त ने साक्ष्य में दर्शाया था, याचिकाकर्त्ता ने FIR की प्रति संलग्न करने के लिये अवर न्यायालय के समक्ष आवेदन दायर किया।
  • उक्त आवेदन के विरुद्ध अभियुक्त की ओर से आपत्ति दाखिल की गई।
  • ट्रायल कोर्ट ने दस्तावेज़ पेश करने के लिये CrPC की धारा 311 के तहत दायर आवेदन को खारिज़ कर दिया।
  • ट्रायल कोर्ट के आदेश से व्यथित होकर, झारखंड उच्च न्यायालय के समक्ष एक आपराधिक पुनरीक्षण दायर किया गया है, जिसे बाद में उच्च न्यायालय ने अनुमति दे दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति सुभाष चंद ने कहा कि CrPC की धारा 311 का उद्देश्य निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना है जो भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 में भी निहित है। भले ही CrPC की धारा 311 में दस्तावेज़ी साक्ष्य जोड़ने के संबंध में कोई विशेष प्रावधान नहीं है, लेकिन CrPC की धारा 91 और 311 को पढ़ते हुए, निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिये साक्ष्य के निष्कर्ष के बाद भी दस्तावेज़ी साक्ष्य भी पेश किया जा सकते हैं ताकि मुकदमे का न्यायोचित निर्णय हो सके।
  • आगे यह माना गया कि संबंधित ट्रायल कोर्ट ने आक्षेपित आदेश पारित करके याचिकाकर्त्ता के आवेदन को एकमात्र आधार पर खारिज़ कर दिया है कि शिकायत को उसके साक्ष्य के समापन के बाद प्रतिरक्षा में दिये गए साक्ष्यों का खंडन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, वहीं उस निष्कर्ष को अनुचित पाया गया है और उसी आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

CrPC की धारा 311:

परिचय:

  • CrPC की धारा 311 महत्त्वपूर्ण साक्षी को समन करने या उपस्थित व्यक्तियों की जाँच करने की शक्ति से संबंधित है, जबकि समान उपबंधों को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 348 के तहत कवर किया गया है।
  • इसमें कहा गया है कि कोई न्यायालय इस संहिता के अधीन किसी जाँच, विचारण या अन्य कार्यवाही के किसी प्रक्रम में किसी व्यक्ति को साक्षी के तौर पर समन कर सकता है या किसी ऐसे व्यक्ति की, जो हाज़िर हो, यद्यपि वह साक्षी के रूप में समन न किया गया हो, परीक्षा कर सकता है, किसी व्यक्ति को, जिसकी पहले परीक्षा की जा चुकी है, पुनः बुला सकता है और उसकी पुनः परीक्षा कर सकता है; और यदि न्यायालय को मामले के न्यायसंगत विनिश्चय के लिये किसी ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य आवश्यक प्रतीत होता है तो वह ऐसे व्यक्ति को समन करेगा तथा उसकी परीक्षा करेगा या उसे पुनः बुलाएगा और उसकी पुनः परीक्षा करेगा।
  • CrPC की धारा 311 के उपबंधों के तहत, न्यायालय के पास कार्यवाही के किसी भी चरण में किसी भी व्यक्ति को साक्षी के रूप में समन करने की पूर्ण शक्ति है। इस शक्ति में किसी भी व्यक्ति को वापस बुलाना और उसकी दोबारा जाँच करना शामिल है, जिसकी पहले ही जाँच की जा चुकी है।
  • पक्षकारों के अधिकारों या शक्तियों के अनुरूप शक्ति केवल न्यायालय के पास होती है और इस शक्ति का प्रयोग तब किया जाना चाहिये, जब न्यायालय को मामले के उचित निर्णय के लिये किसी साक्षी को बुलाना/वापस बुलाना आवश्यक लगे।

उद्देश्य:

  • हनुमान राम बनाम राजस्थान राज्य (2008) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने CrPC की धारा 311 के उद्देश्य पर प्रकाश डाला, जो इस प्रकार हैं:
    • यह अभियुक्तों एवं अभियोजन पक्ष को अपना मामला प्रस्तुत करने और न्याय प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है।
    • इसका उद्देश्य न्याय की विफलता की किसी भी गुंज़ाइश को कम करना है।

निर्णयज विधि:

  • नताशा सिंह बनाम CBI (2013) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 313 का उद्देश्य न केवल अभियुक्त और अभियोजन पक्ष के दृष्टिकोण से, बल्कि एक व्यवस्थित समाज के दृष्टिकोण से भी न्याय करना है।

CrPC की धारा 91:

यह धारा दस्तावेज़ों या अन्य चीज़ों को प्रस्तुत करने के लिये समन से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-

(1) जब कभी कोई न्यायालय या पुलिस थाने का कोई भारसाधक अधिकारी यह समझता है कि किसी ऐसे अन्वेषण, जाँच, विचारण, या अन्य कार्यवाही के प्रयोजनों के लिये, जो इस संहिता के अधीन ऐसे न्यायालय या अधिकारी के द्वारा या समक्ष हो रही हैं, किसी दस्तावेज़ या अन्य चीज़ का पेश किया जाना आवश्यक या वांछनीय है तो जिस व्यक्ति के कब्ज़े या शक्ति में ऐसी दस्तावेज़ या चीज़ के होने का विश्वास है उसके नाम ऐसा न्यायालय एक समन या ऐसा अधिकारी एक लिखित आदेश उससे यह अपेक्षा करते हुए जारी कर सकता है कि उस समन या आदेश में उल्लिखित समय और स्थान पर उसे पेश करे अथवा हाज़िर हो तथा उसे पेश करे।

(2) यदि कोई व्यक्ति, जिससे इस धारा के अधीन दस्तावेज़ या अन्य चीज़ पेश करने की ही अपेक्षा की गई है उसे पेश करने के लिये स्वयं हाज़िर होने के बजाय उस दस्तावेज़ या चीज़ को पेश करवा दे तो यह समझा जाएगा कि उसने उस अपेक्षा का अनुपालन कर दिया है।

(3) इस धारा की कोई बात-

(a) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 123 और 124 या बैंककार बही साक्ष्य अधिनियम, 1891 पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी; अथवा

(b) डाक या तार प्राधिकारी की अभिरक्षा में किसी पत्र, पोस्टकार्ड, तार या अन्य दस्तावेज़ या किसी पार्सल या चीज़ को लागू होने वाली नहीं समझी जाएगी।