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आपराधिक कानून

किसी आरोपी की जमानत रद्द नहीं की जा सकती

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 20-Nov-2023

स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने XYZ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में कहा कि किसी आरोपी को दी गई जमानत इस दलील के आधार पर रद्द नहीं की जानी चाहिये कि जमानत पर रिहा होने के बाद आवेदक/सूचनाकर्त्ता को लगातार धमकी दे रहा है।

XYZ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष, आवेदक की ओर से तत्काल जमानत रद्द करने की अर्जी दायर की गई है, जिसमें विपक्षी संख्या 2 को दी गई जमानत को रद्द करने की मांग की गई है।
  • आवेदक मामले का मुखबिर है।
  • आवेदक के विद्वत वकील का कहना है कि आवेदक ने जमानत रद्दीकरण आवेदन इस आधार पर दायर किया है कि जमानत पर रिहा होने के बाद, विपक्षी नंबर 2 उसे लगातार धमकी दे रहा है तथा इस संबंध में, 2 सितंबर, 2023 को उच्च अधिकारियों के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया है और जब विपक्षी संख्या 2 के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई तो उसने आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन दायर किया था जो अभी भी लंबित है।
  • तत्काल जमानत रद्द करने का आवेदन मानकों से विहीन (Devoid of Metrics) है इसलिये इसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति समीर जैन ने कहा कि किसी आरोपी को दी गई जमानत उस आवेदन के आधार पर रद्द नहीं की जानी चाहिये जिसमें दावा किया गया है कि आरोपी जमानत पर रिहा होने के बाद आवेदक/सूचनाकर्त्ता को लगातार धमकी दे रहा है।
  • न्यायालय ने यह भी माना कि यदि इस तरह के आवेदन के आधार पर आरोपी को दी गई जमानत रद्द कर दी जाती है, तो इससे शुरु होने वाली प्रक्रिया कई जटिल समस्याएँ उत्पन्न करेंगी और दोनों पक्षों के बीच अंतहीन मुकदमेबाजी शुरू हो जाएगी।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि जमानत अर्जी को खारिज करना आसान है, लेकिन पहले से दी गई जमानत को रद्द करना बहुत मुश्किल है तथा रद्द करने के लिये बहुत ठोस कारण मौज़ूद होने चाहिये।

CrPC की धारा 156(3) क्या है?

परिचय:

  • CrPC की धारा 156 संज्ञेय मामलों की जाँच करने के लिये पुलिस अधिकारी की शक्ति से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि-

(1) किसी पुलिस थाने का कोई भी प्रभारी अधिकारी, मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना, किसी भी संज्ञेय मामले की जाँच कर सकता है, जो कि ऐसे थाने की सीमा के भीतर स्थानीय क्षेत्र (लोकल एरिया) पर अधिकार क्षेत्र रखने वाले न्यायालय के पास जाँच करने या अध्याय XIII के प्रावधानों के तहत प्रयास करने की शक्ति होगी।”

(2) ऐसे किसी भी मामले में किसी पुलिस अधिकारी की किसी भी कार्यवाही को किसी भी स्तर पर इस आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा कि वह मामला ऐसा था जिसकी जाँच करने के लिये इस धारा के तहत उस अधिकारी को अधिकार नहीं दिया गया था।

(3) धारा 190 के तहत अधिकार प्राप्त कोई भी मजिस्ट्रेट ऊपर बताए अनुसार ऐसी जाँच का आदेश दे सकता है।

निर्णयज़ विधि:

  • मोहम्मद यूसुफ बनाम श्रीमती आफाक जहां और अन्य (2006) में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट अपराध की सूचना लेने से पहले संहिता की धारा 156(3) के तहत जाँच का आदेश दे सकता है। यदि वह ऐसा करता है, तो उसे शिकायतकर्त्ता को शपथ लेने के लिये मज़बूर करने की अनुमति नहीं है क्योंकि वह किसी गलत काम से अनजान था।
  • रामदेव फूड प्रोडक्ट्स बनाम गुजरात राज्य (2015), उच्चतम न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 156(3) के तहत एक निर्देश केवल मजिस्ट्रेट के विचार के बाद ही दिया जाना चाहिये।