Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

सिविल कानून

RTI अधिनियम के अंतर्गत CIC

    «    »
 05-Jun-2024

 भारत संघ बनाम राम गोपाल दीक्षित

केंद्रीय सूचना आयोग को MPLADS के अंतर्गत संसद सदस्यों द्वारा निधियों के उपयोग पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है”।

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद

स्रोत:  दिल्ली  उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?    

संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) के अंतर्गत निधियों के उपयोग पर केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के अधिकार क्षेत्र के संबंध में भारत संघ बनाम राम गोपाल दीक्षित मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय की हाल की टिप्पणी ने ध्यान आकर्षित किया है।

  • न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने टिप्पणी की कि केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के पास सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) के अंतर्गत सांसदों द्वारा धन के उपयोग पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है।

भारत संघ बनाम राम गोपाल दीक्षित मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • राम गोपाल दीक्षित (प्रतिवादी) ने 26.09.2016 को लोकसभा के CPIO को एक RTI आवेदन प्रस्तुत किया था, जिसमें विभिन्न सूचनाएँ मांगी गई थीं, जिनमें हाथरस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले तत्कालीन संसद सदस्य श्री राजेश दिवाकर द्वारा प्रारंभ किये गए, लंबित और पूरे किये गए कार्यों के विषय में विवरण तथा MPLADS कोष के उपयोग तथा पूर्वोत्तर रेलवे में कार्यों की सूचना शामिल थी।
  • RTI आवेदन का उत्तर 21.10.2016 को प्रदान किया गया।
  • इस उत्तर से असंतुष्ट होकर प्रतिवादी ने अपील की एवं तत्पश्चात् CIC के समक्ष द्वितीय अपील दायर की।
  • भारत संघ ने सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के माध्यम से, इस अपील में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) द्वारा जारी आदेशों को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की है।
    • याचिकाकर्त्ता का कहना है कि CIC ने MPLADS कोष के व्यय में संसद सदस्यों की गतिविधियों पर टिप्पणी करके अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है, जो कथित तौर पर CIC के अधिकार क्षेत्र से बाहर का क्षेत्र है।
    • याचिकाकर्त्ता का कहना है कि CIC को अपनी जाँच सीधे RTI आवेदन से संबंधित मामलों तक ही सीमित रखनी चाहिये थी तथा अपनी सीमा से बाहर के मुद्दों पर विचार करने से बचना चाहिये था।
  • याचिकाकर्त्ता के मामले का मुख्य तर्क यह है कि सांसदों द्वारा MPLADS निधि के उपयोग की जाँच में CIC की भागीदारी, सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत उसके वैधानिक अधिकार से परे के क्षेत्र में अतिक्रमण करती है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि केंद्रीय सूचना आयोग के पास सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) के अंतर्गत सांसदों को आवंटित धनराशि के उपयोग की जाँच करने का अधिकार नहीं है।
  • न्यायालय ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI) की धारा 18 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि CIC का मुख्य सूचना आयुक्त केवल RTI अधिनियम के अंतर्गत मांगी गई सूचना से संबंधित मुद्दों या किसी अन्य मुद्दे से ही निपट सकता है, जिससे आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना का दुरुपयोग होता हो।
    • माननीय मुख्य सूचना आयुक्त को किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण के कामकाज पर प्रतिकूल टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि RTI अधिनियम का दायरा धन के उपयोग के आकलन की जाँच करने के बजाय सार्वजनिक प्राधिकरणों के नियंत्रण में सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करने तक सीमित है।
    • इसने कहा कि CIC का कार्यक्षेत्र RTI आवेदन में उठाए गए प्रश्नों या अन्य संबंधित पहलुओं तक ही सीमित होना चाहिये।
    • इस बात पर ज़ोर देते हुए कि केंद्रीय सूचना आयोग सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज पर प्रतिकूल टिप्पणी नहीं कर सकता, न्यायालय ने संसद सदस्यों द्वारा MPLADS निधि के उपयोग के संबंध में केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा की गई टिप्पणियों को हटा दिया।
  • CIC ने RTI अधिनियम की धारा 19(8)(a)(iii) के अंतर्गत सार्वजनिक प्राधिकरण को सांसद, निर्वाचन क्षेत्र और विशिष्ट परियोजनाओं के आधार पर वर्गीकृत विस्तृत निधि आवंटन सूचना प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया।

RTI अधिनियम क्या है?

  • परिचय:
    • RTI अधिनियम, या सूचना का अधिकार अधिनियम, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में अधिनियमित विधि है।
    • इसका प्राथमिक उद्देश्य नागरिकों को इन प्राधिकरणों द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना तक पहुँच का अधिकार प्रदान करके सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना है।
    • RTI अधिनियम के अंतर्गत, भारत का कोई भी नागरिक किसी सार्वजनिक प्राधिकरण से सूचना का अनुरोध कर सकता है और प्राधिकरण निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर मांगी गई सूचना प्रदान करने के लिये बाध्य है।
    • यह विधान नागरिकों को सरकार और उसकी एजेंसियों को उनके कार्यों तथा निर्णयों के लिये जवाबदेह ठहराने के लिये सशक्त बनाने में सहायक है।
  • RTI अधिनियम का उद्देश्य:
    • सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना।
    • नागरिकों को प्राधिकारियों द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना तक पहुँच का अधिकार प्रदान करना।
    • नागरिकों को शासन प्रक्रिया में अधिक प्रभावी ढंग से भाग लेने के लिये सशक्त बनाना, जिससे लोकतांत्रिक सिद्धांतों को मज़बूती मिले।
    • शासन का उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना तथा जनता को सूचना सुगमता से उपलब्ध करा भ्रष्टाचार को कम करना।

RTI अधिनियम के अंतर्गत CIC क्या है?

  • परिचय:
  • केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) भारत में सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 के अंतर्गत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
  • यह RTI अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने तथा सूचना के अधिकार से संबंधित अपीलों और शिकायतों पर निर्णय देने के लिये उत्तरदायी है।
  • CIC, RTI अधिनियम से संबंधित मामलों में सर्वोच्च अपीलीय प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक प्राधिकरण कानून के प्रावधानों का अनुपालन करें तथा सरकारी कामकाज में पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व को बढ़ावा दें।
  • RTI 2005 की धारा 18 के अंतर्गत CIC की शक्ति एवं कार्य:
    • इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग किसी भी व्यक्ति से शिकायत प्राप्त करेगा तथा उसकी जाँच करेगा।
      • जो भी व्यक्ति, यथास्थिति, केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी को अनुरोध प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा है, या तो इस कारण से कि इस अधिनियम के अधीन ऐसा कोई अधिकारी नियुक्त नहीं किया गया है, या क्योंकि, केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या धारा 19 की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट वरिष्ठ अधिकारी या केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को अग्रेषित करने के लिये इस अधिनियम के अधीन सूचना या अपील के लिये उसका आवेदन स्वीकार करने से इनकार कर दिया है;
        • जिसे इस अधिनियम के अंतर्गत मांगी गई किसी भी सूचना तक पहुँच से इनकार कर दिया गया है;
        • जिसे इस अधिनियम के अंतर्गत निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर सूचना या सूचना तक पहुँच के अनुरोध का उत्तर नहीं दिया गया है,
        • जिसे ऐसी शुल्क राशि का भुगतान करने की आवश्यकता हो जिसे वह अनुचित समझता हो;
        • जो यह मानता है कि उसे इस अधिनियम के अंतर्गत अपूर्ण, भ्रामक या गलत सूचना दी गई है;
    • इस अधिनियम के अंतर्गत अभिलेखों तक पहुँच का अनुरोध करने या प्राप्त करने से संबंधित किसी अन्य मामले के संबंध में।
    • जहाँ केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, इस बात से संतुष्ट हो कि मामले की जाँच करने के लिये उचित आधार उपस्थित हैं, तो वह उसके संबंध में जाँच प्रारंभ कर सकता है।
    • केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, को इस धारा के अंतर्गत किसी मामले की जाँच करते समय निम्नलिखित मामलों के संबंध में वही शक्तियाँ प्राप्त होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत किसी वाद की सुनवाई करते समय सिविल न्यायालय में निहित हैं, अर्थात्:
      • व्यक्तियों को बुलाना और उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करना तथा उन्हें शपथ पर मौखिक या लिखित साक्ष्य देने एवं दस्तावेज़ या चीज़ें प्रस्तुत करने के लिये बाध्य करना;
      • दस्तावेज़ों की खोज और निरीक्षण की आवश्यकता;
      • शपथ-पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना;
      • किसी न्यायालय या कार्यालय से कोई सार्वजनिक अभिलेख या उसकी प्रतियाँ प्राप्त करना;
      • गवाहों या दस्तावेज़ों की जाँच के लिये सम्मन जारी करना;
      • कोई अन्य विषय जो निर्धारित किया जा सकता है।
    • संसद या राज्य विधानमंडल के किसी अन्य अधिनियम में अंतर्विष्ट किसी असंगत बात के होते हुए भी, यथास्थिति, केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, इस अधिनियम के अधीन किसी शिकायत की जाँच के दौरान, किसी ऐसे अभिलेख की जाँच कर सकेगा, जिस पर यह अधिनियम लागू होता है, जो लोक प्राधिकरण के नियंत्रण में है और ऐसा कोई अभिलेख किसी भी आधार पर रोका नहीं जा सकेगा।