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सिविल कानून

वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम

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 02-Feb-2024

इटारसी पाइप्स सेल्स एवं अन्य बनाम OMRF पाइप्स और उत्पाद एवं अन्य

"वाणिज्यिक न्यायालय ने एक संभाव्य दृष्टिकोण अपनाया है जो कानून के अनुरूप है।"

न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल और विवेक जैन

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल और विवेक जैन की पीठ वाणिज्यिक न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

इटारसी पाइप्स सेल्स एवं अन्य बनाम OMRF पाइप्स और उत्पाद एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • प्रत्यर्थियों/वादियों ने एक वाणिज्यिक वाद शुरू किया जिसमें याचिकाकर्त्ताओं/प्रतिवादियों को 21 मार्च, 2023 को नोटिस दिया गया।
  • याचिकाकर्त्ता 10 अप्रैल, 2023 को वाणिज्यिक न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुए, लेकिन उनका लिखित बयान विलंब से 09 अगस्त, 2023 को दायर किया गया।
  • मुद्दा यह उठा, कि क्या 120 दिनों से अधिक समय के बाद दाखिल किया गया बयान स्वीकार किया जा सकता है?
  • वाणिज्यिक न्यायालय ने, CPC एवं उच्चतम न्यायालय के मामलों SCG कॉन्ट्रैक्ट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड बनाम के.एस. चमनकर इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड एंड अदर्स (2019) और प्रकाश कॉरपोरेट्स बनाम डी. वी. प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (2022) के निर्णयों का संदर्भ देते हुए, निष्कर्ष निकाला कि प्रतिवादी नंबर 1 व 2 बयान के लिये विस्तारित 120-दिन की सीमा को पूर्ण करने में विफल रहे, जिससे वह अस्वीकार्य हो गया।
  • नतीजतन, न्यायालय ने लिखित बयान को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?

  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि "वाणिज्यिक न्यायालय ने एक संभाव्य दृष्टिकोण अपनाया है जो कानून के अनुरूप है"।

वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 क्या है?

  • परिचय:
    • वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 भारत के वाणिज्यिक परिदृश्य में बढ़ती जटिलताओं की पृष्ठभूमि में उभरा।
    • यह 23 अक्तूबर, 2015 को वर्ष 2016 की अधिनियम संख्या 4 के रूप में लागू हुआ।
    • वाणिज्य के विस्तार के साथ, विवाद अनिवार्य रूप से उत्पन्न होते हैं, जिनके समाधान के लिये कुशल एवं प्रभावी तंत्र की आवश्यकता होती है।
    • त्वरित और विशेष विवाद समाधान मंचों की आवश्यकता को सुनिश्चित करते हुए, विशेष रूप से वाणिज्यिक मुकदमेबाज़ी की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये इस अधिनियम की कल्पना की गई थी।
  • मुख्य प्रावधानः
    • वाणिज्यिक न्यायालयों की स्थापना:
      • यह अधिनियम पूरे देश में वाणिज्यिक वादियों तक पहुँच और निकटता सुनिश्चित करते हुए ज़िला स्तर पर वाणिज्यिक न्यायालयों की स्थापना का आदेश देता है।
      • ये न्यायालय निर्दिष्ट वाणिज्यिक मामलों पर अधिकार क्षेत्र से सुसज्जित हैं, जिससे न्यायनिर्णय में विशेषज्ञता और दक्षता को बढ़ावा मिलता है।
    • वाणिज्यिक विवादों की परिभाषा:
      • यह अधिनियम वाणिज्यिक विवादों के दायरे को रेखांकित करता है, जिसमें वाणिज्यिक लेनदेन, संविदा और समझौतों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है। अपने दायरे में आने वाले विवादों के प्रकारों पर स्पष्टता प्रदान करके, अधिनियम वाणिज्यिक मुकदमेबाज़ी में पूर्वानुमान और संबद्धता को बढ़ाता है।
    • त्वरित कार्यवाही:
      • अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं में से एक इसका त्वरित विवाद समाधान पर ज़ोर देना है।
      • मुकदमेबाज़ी के विभिन्न चरणों के लिये समय-सीमा निर्धारित की गई है, जिससे मामलों का त्वरित निपटान सुनिश्चित किया जा सके और इसके निपटान में होने वाली देरी को कम किया जा सके।
      • यह त्वरित प्रक्रिया लंबी मुकदमेबाज़ी से जुड़ी लागत और अनिश्चितताओं को कम करने में सहायक होती है।
    • विशेष न्यायनिर्णयन:
      • अधिनियम के तहत गठित वाणिज्यिक न्यायालयों में वाणिज्यिक मामलों में विशेष ज्ञान और अनुभव रखने वाले न्यायाधीशों को नियुक्त किया जाता है।
      • यह विशेषज्ञता न्यायालयों को तुरंत सूचित निर्णय देने में सक्षम बनाती है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में वादियों और हितधारकों के बीच विश्वास को बढ़ावा मिलता है।