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« »11-Jan-2024
उर्मिला देवी जैन एवं अन्य बनाम अशोक कुमार एवं अन्य "भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 31 के उपबंधों के अनुसार, आकस्मिकता खंड के साथ एक विक्रय समझौते को तब तक प्रवर्तित नहीं किया जा सकता जब तक कि आकस्मिकता पूरी न हो जाए।" न्यायमूर्ति खातिम रज़ा |
स्रोत: पटना उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, उर्मिला देवी जैन एवं अन्य बनाम अशोक कुमार एवं अन्य के मामले में पटना उच्च न्यायालय ने माना है कि भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) की धारा 31 के उपबंधों के अनुसार, आकस्मिकता खंड के साथ एक विक्रय समझौते को तब तक प्रवर्तित नहीं किया जा सकता जब तक कि आकस्मिकता पूर्ण न हो जाए।
उर्मिला देवी जैन एवं अन्य बनाम अशोक कुमार एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- वादी ने प्रतिवादी द्वारा निष्पादित विक्रय समझौते के आधार पर संविदा के विशिष्ट निष्पादन की डिक्री के लिये मुकदमा दायर किया।
- वादी ने वाद संपत्ति के संबंध में संविदा के विशिष्ट निष्पादन की डिक्री के लिये अनुतोष की मांग की।
- वादी ने तर्क दिया कि मूल रूप से शंभू राम के स्वामित्व वाली संपत्ति को उनके निधन के बाद एक रजिस्ट्रीकृत वसीयत के माध्यम से प्रतिवादियों को अंतरित कर दिया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 7 नियम 11 के उपबंधों के तहत वादपत्र को खारिज़ कर दिया।
- इसके बाद, पटना उच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई जिसे बाद में खारिज़ कर दिया गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति खातिम रज़ा ने कहा कि जैसा कि ICA की धारा 31 में कहा गया, जब तक यह आकस्मिकता पूरी नहीं हो जाती, तब तक संविदा प्रवर्तन में सक्षम नहीं है।
- न्यायालय ने माना कि विक्रय का समझौता एक निश्चायक संविदा नहीं था। इसका निष्पादन निश्चित रूप से प्रतिवादियों के पक्ष में उपलब्ध होने वाले निर्णय पर निर्भर था।
- आगे यह माना गया कि संबंधित ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार, ICA की धारा 31 और 32 के प्रावधानों से प्रभावित होने के कारण, अपीलकर्त्ताओं के मामले को आगे नहीं बढ़ाया जा सकेगा, क्योंकि किसी भी स्थिति में, वादपत्र पूरी तरह से खारिज़ किये जाने योग्य है।
इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?
ICA की धारा 31:
परिचय:
- यह धारा आकस्मिक संविदाओं को परिभाषित करती है।
- इसमें कहा गया है कि एक आकस्मिक संविदा कुछ करने या न करने की एक संविदा है, यदि ऐसी संविदा से जुड़ी कोई घटना होती है या नहीं होती है।
दृष्टांत:
- यदि B का घर जल गया तो A, B को 10,000 रुपए देने की संविदा करता है। यह एक आकस्मिक संविदा है।
आकस्मिक संविदा की अनिवार्यताएँ:
- पक्षों के बीच एक संविदा होनी चाहिये।
- संविदा कुछ करने या न करने से संबंधित होना चाहिये।
- संविदा का निष्पादन भविष्य में किसी घटना के घटित होने या घटित न होने पर निर्भर करता है।
- करार के समय घटनाओं का घटित होना अनिश्चित होना चाहिये।
- यदि घटना असंभव हो जाती है, तो संविदा एक शून्य संविदा बन जाएगी।
निर्णयज विधि:
- चंदूलाल हरजीवनदास बनाम सी.आई.टी. (1967) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने यह माना था कि बीमा और क्षतिपूर्ति की सभी संविदाएँ आकस्मिक होती हैं।
ICA की धारा 32:
- परिचय:
- यह धारा किसी घटना पर निर्भर संविदाओं के प्रवर्तन से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि उन समाश्रित संविदाओं का प्रवर्तन, जो किसी अनिश्चित भावी घटना के घटित होने पर किसी बात को करने या न करने के करायालिये हो, विधि द्वारा नहीं कराया जा सकता यदि और जब तक वह घटना घटित न हो गई हो। यदि वह घटना असंभव हो जाए तो ऐसी संविदाएँ शून्य हो जाती हैं।
- दृष्टांत:
- A से B संविदा करता है कि यदि C के मरने के पश्चात् A जीवित रहा तो वह B का घोड़ा खरीदा लेगा। इस संविदा का प्रवर्तन विधि द्वारा नहीं कराया जा सकता यदि और जब तक A के जीवन-काल में C मर न जाए।