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आपराधिक कानून
दत्तक बच्चों का DNA परीक्षण
« »24-Apr-2024
सुओ मोटो बनाम केरल राज्य “दत्तक बच्चों की निजता के अधिकार का उनके विकास के किसी भी चरण में उल्लंघन नहीं किया जा सकता है, भले ही वे बलात्संग पीड़िताओं से पैदा हुए बच्चे क्यों न हों”। न्यायमूर्ति के. बाबू |
स्रोत: केरल उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सुओ मोटो बनाम केरल राज्य के मामले में केरल उच्च न्यायालय ने माना है कि दत्तक बच्चों की निजता के अधिकार का उनके विकास के किसी भी चरण में उल्लंघन नहीं किया जा सकता है, भले ही वे बलात्संग पीड़िताओं से पैदा हुए बच्चे क्यों न हों।
- उच्च न्यायालय ने उन बच्चों के DNA नमूने एकत्र करने के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये जो बलात्संग पीड़िताओं से पैदा हुए थे तथा बाद में अन्य दंपतियों द्वारा दत्तक थे।
सुओ मोटो बनाम केरल राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- केरल उच्च न्यायालय के समक्ष, परियोजना समन्वयक, पीड़ित अधिकार केंद्र, केरल राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की रिपोर्ट के आधार पर स्वत: संज्ञान लेते हुए एक आपराधिक विविध मामला दर्ज किया गया है।
- प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर की रिपोर्ट दत्तक बच्चों की गोपनीयता को भंग करने वाले एक नाज़ुक एवं संवेदनशील मुद्दे से संबंधित विधि के स्पष्ट टकराव की ओर इशारा करती है।
- रिपोर्ट में बताया गया है कि बलात्संग पीड़िताओं से पैदा हुए बच्चों के DNA एकत्र करने के न्यायालय के आदेश किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण)अधिनियम, 2015 (JJ अधिनियम) के प्रावधानों के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए जारी किये गए दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 के विनियमन 48 के विपरीत थे।
- इसके बाद, उच्च न्यायालय ने बलात्संग पीड़िताओं से पैदा हुए बच्चों के DNA नमूने एकत्र करने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- न्यायमूर्ति के. बाबू ने कहा कि कुछ मामलों में, गोद लेने वाले माता-पिता ने बच्चे को गोद लेने के तथ्य को भी नहीं बताया होगा। बच्चा दत्तक परिवार के साथ इतनी अच्छी तरह घुल-मिल गया होगा कि अचानक यह पता चलने पर कि वह एक गोद लिया हुआ बच्चा है तथा वह भी एक बलात्संग पीड़िता का बच्चा है, उसकी भावनात्मक स्थिति असंतुलित हो सकती है और परिणामस्वरूप उनमें व्यवहार संबंधी विकार एवं असामान्यताएँ प्रदर्शित हो सकती हैं। बच्चे को DNA परीक्षण के अधीन करने की यह कवायद केवल गोद लेने की दिव्य अवधारणा के उद्देश्य को विफल कर देगी।
- आगे यह देखा गया कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) में बलात्संग से संबंधित प्रावधान यह मांग नहीं करते हैं कि बलात्संग पीड़िताओं से पैदा हुए बच्चों के पितृत्व को सिद्ध करने का अपराध स्थापित करें।
कोर्ट द्वारा जारी किये दिशा-निर्देश
- न्यायालय ने उन बच्चों के DNA नमूने एकत्र करने के लिये निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किये जो बलात्संग पीड़िताओं से पैदा हुए थे तथा बाद में अन्य दंपतियों द्वारा दत्तक थे:
- न्यायालय दत्तक बच्चों की DNA जाँच की मांग करने वाले आवेदनों पर विचार नहीं करेंगी।
- बाल कल्याण समिति यह देखेगी कि दत्तक बच्चों के DNA नमूने, गोद लेने की प्रक्रिया पूरी होने से पहले ले लिये जाएँ।
- गोद लेने की प्रक्रिया में सम्मिलित सभी एजेंसियाँ या प्राधिकरण यह सुनिश्चित करेंगे कि गोद लेने के रिकॉर्ड की गोपनीयता बनाए रखी जाए, सिवाय उस समय लागू किसी अन्य विधि के अधीन अनुमति के।
- यहाँ तक कि ऐसे मामलों में जहाँ बच्चों को गोद नहीं दिया गया था, न्यायालय विशिष्ट आवश्यकता के सिद्धांत एवं आनुपातिकता के सिद्धांत का आकलन करने के बाद ही पीड़ित के बच्चों के DNA परीक्षण के अनुरोध पर विचार करेगी।
इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?
दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 का विनियम 48
- यह विनियमन गोद लेने के रिकॉर्ड की गोपनीयता से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि गोद लेने की प्रक्रिया में शामिल सभी एजेंसियाँ या प्राधिकरण यह सुनिश्चित करेंगे कि गोद लेने के रिकॉर्ड की गोपनीयता बनाए रखी जाए, सिवाय उस समय लागू किसी अन्य विधि के अधीन अनुमति के और ऐसे उद्देश्य के लिये, गोद लेने का आदेश किसी भी सार्वजनिक पर प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है।
JJ अधिनियम
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015, 15 जनवरी 2016 को लागू हुआ।
- इसने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000 को निरस्त कर दिया।
- यह अधिनियम 11 दिसंबर 1992 को भारत द्वारा अनुसमर्थित बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है।
- यह विधि का उल्लंघन करने वाले बच्चों के मामलों में 58+ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट करता है।
- यह मौजूदा अधिनियम में चुनौतियों का समाधान करना चाहता है, जैसे- गोद लेने की प्रक्रियाओं में विलंब, मामलों का ज़्यादा लंबित होना, संस्थानों का उत्तरदायित्व इत्यादि।
- यह अधिनियम विधि का उल्लंघन करने वाले 16-18 आयु वर्ग के बच्चों को संबोधित करने का प्रयास करता है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में उनके द्वारा किये गए अपराधों की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है।
- किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2021 के अनुसार, बच्चों के विरुद्ध अपराध जो JJ अधिनियम, 2015 के अध्याय "बच्चों के विरुद्ध अन्य अपराध" में उल्लिखित हैं तथा जो तीन से सात वर्ष के बीच कारावास की अनुमति देते हैं, उन्हें "असंज्ञेय" माना जाएगा।
- इस अधिनियम की धारा 2(35) के अनुसार, किशोर का अर्थ अठारह वर्ष से कम आयु का बच्चा है।