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व्यापारिक सन्नियम

प्रारंभिक हित भ्रम का सिद्धांत

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 04-Jun-2024

माउंटेन वैली स्प्रिंग्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम बेबी फॉरेस्ट आयुर्वेद प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य

“प्रारंभिक हित भ्रम से तात्पर्य उस भ्रम से है जो किसी लेन-देन के प्रारंभ में होता है, परंतु लेन-देन पूरा हो जाने के उपरांत समाप्त हो जाता है”।

न्यायमूर्ति विभु बाखरू और तारा वितस्ता गंझू 

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?    

 दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में संकेत दिया कि एकल न्यायाधीश ने आयुर्वेदिक सौंदर्य प्रसाधन कंपनी फॉरेस्ट एसेंशियल्स को आयुर्वेदिक शिशु देखभाल उत्पादों में विशेषज्ञता वाली कंपनी बेबी फॉरेस्ट के साथ ट्रेडमार्क (व्यापार चिह्न) विवाद में अंतरिम राहत देने से प्रतिषेध कर प्रथम दृष्टया त्रुटि की है।

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी माउंटेन वैली स्प्रिंग्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम बेबी फॉरेस्ट आयुर्वेद प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य के मामले में दी।

माउंटेन वैली स्प्रिंग्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम बेबी फॉरेस्ट आयुर्वेद प्राइवेट लिमिटेड और अन्य की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • व्यापक बिक्री एवं विपणन के साथ वर्ष 2000 से परिचालन में, फॉरेस्ट एसेंशियल्स कंपनी  के पास वर्ग 3 सहित विभिन्न वर्गों में "फॉरेस्ट एसेंशियल्स" के लिये ट्रेडमार्क हैं।
  • घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है, वे अनेक होटल शृंखलाओं को आपूर्ति करते हैं तथा 120 देशों को निर्यात करते हैं।
  • फॉरेस्ट एसेंशियल्स वर्ष 2006 से अपने ब्रांड के अधीन शिशु देखभाल उत्पादों की बिक्री कर रहा है, जिसकी वार्षिक बिक्री काफी अधिक है तथा विदेश मंत्रालय जैसी उल्लेखनीय संस्थाओं से भी इसका समर्थन प्राप्त है।
  • होटलों से प्राप्त ईमेल और सोशल मीडिया पर टिप्पणियों से यह पता चलता है कि उपभोक्ता, फॉरेस्ट एसेंशियल्स तथा प्रतिवादी बेबी फॉरेस्ट के बीच भ्रमित हैं।
  • फॉरेस्ट एसेंशियल्स ने "फॉरेस्ट एसेंशियल्स बेबी" के ट्रेडमार्क के लिये आवेदन किया है, जिसका बेबी फॉरेस्ट द्वारा विरोध किया गया है, जो प्रतिवादियों द्वारा संभावित भ्रम की पहचान को और अधिक स्पष्ट करता है।
  • बेबी फॉरेस्ट द्वारा फॉरेस्ट एसेंशियल्स के समान नाम एवं लोगो को अपनाना, साथ ही उनकी विपणन रणनीतियाँ तथा स्थान अपनाना, वादी की प्रतिष्ठा से लाभ उठाने का प्रयास प्रतीत होता है।
  • दोनों कंपनियाँ समान उत्पादों के माध्यम से समान उपभोक्ताओं को लक्ष्य बनाती हैं, जिससे भ्रम की संभावना बढ़ जाती है।
  • वादी ने अपनी दीर्घकालिक प्रतिष्ठा पर ज़ोर दिया, साथ ही शिशु उत्पादों की प्रकृति के कारण समानता और संभावित सुरक्षा चिंताओं के उदाहरणों पर भी प्रकाश डाला।  
  • एकल न्यायाधीश न्यायालय ने कहा कि फॉरेस्ट एसेंशियल्स पृथक पंजीकरण के बिना "वन" शब्द पर विशिष्टता का दावा नहीं कर सकता।
    • इसने पैकेजिंग और लोगो में असमानताओं को भी चिह्नित किया तथा भ्रामक समानता के दावों को खारिज कर दिया।
    • व्यापक भ्रम को सिद्ध करने के लिये सोशल मीडिया संदर्भों को अपर्याप्त माना गया तथा गूगल के एल्गोरिदम की जटिलता के कारण गूगल खोज सुझावों को भ्रम का अपर्याप्त साक्ष्य माना गया।
  • इसके उपरांत अपीलकर्त्ता ने एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने के लिये डिवीज़न बेंच में अपील दायर की। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति विभु बाखरू और न्यायमूर्ति तारा वितस्ता गंझू की खंडपीठ ने प्रथम दृष्टया मामले को संबोधित करते हुए पाया कि एकल न्यायाधीश ने 'आरंभिक हित भ्रम' के सिद्धांत की व्याख्या में गलती की है, जिससे लेन-देन पूरा होने तक भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
  • 'प्रारंभिक हित भ्रम' के सिद्धांत का तात्पर्य यह है कि केवल प्रारंभिक चरण में ही भ्रम होता है तथा क्रय और विक्रय का लेन-देन पूरा होने पर कोई भ्रम नहीं होता।
  • जब विक्रय पूरा हो जाता  है तो ग्राहक को उस उत्पाद के विषय में कोई संदेह नहीं रहता जिसे वे क्रय कर रहे हैं। यह भ्रम केवल प्रारंभिक चरण में ही होता है।

ट्रेडमार्क क्या होता है?

  • ट्रेडमार्क, वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये एक विशिष्ट पहचानकर्त्ता के रूप में कार्य करता है, जो ब्रांड और उसकी प्रतिष्ठा का प्रतिनिधित्व करता है।
  • ट्रेडमार्क का उल्लंघन न केवल बौद्धिक संपदा के मूल्य को कम करता है, बल्कि अनधिकृत पक्षों को, ब्रांड से जुड़ी प्रतिष्ठा से लाभ उठाने की अनुमति देकर व्यवसायों के लिये संकट भी उत्पन्न करता है।

ट्रेडमार्क के अंतर्गत प्रारंभिक हित भ्रम का सिद्धांत क्या है?

  • परिचय:
    • 'प्रारंभिक हित भ्रम', ट्रेडमार्क विधि की एक अवधारणा है, जहाँ उपभोक्ता के समक्ष किसी अन्य उत्पाद अथवा सेवा के समान ट्रेडमार्क वाला उत्पाद अथवा सेवा आने पर, प्रारंभ में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, भले ही वस्तु के क्रय करने से पूर्व ही यह भ्रम दूर हो जाए।
    • मूलतः यह एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है, जहाँ किसी उत्पाद या सेवा में उपभोक्ता की प्रारंभिक रुचि, किसी ज्ञात ट्रेडमार्क के साथ समानता के कारण आकर्षित होती है, जिससे संभावित भ्रम की स्थिति पैदा होती है, भले ही बाद में उस भ्रम का समाधान हो जाए।
    • इस सिद्धांत का उद्देश्य ट्रेडमार्क स्वामियों को, भ्रामक रूप से समान ट्रेडमार्क के कारण संभावित ग्राहकों की प्रारंभिक रुचि या ध्यान के विचलन से बचाना है, भले ही वस्तु का वास्तविक विक्रय हुआ हो अथवा नहीं।
  • उत्पत्ति:
    • प्रारंभिक हित सिद्धांत विश्व भर के विभिन्न न्यायक्षेत्रों में न्यायिक व्याख्याओं से उत्पन्न हुआ है।
    • जबकि किसी उत्पाद में निहित गुणवत्ता और प्रतिष्ठा के कारण उपभोक्ता की रुचि, विधिक रूप से समस्याजनक नहीं है, परंतु ट्रेडमार्क, साख या उत्पाद नाम के अविधिक उपयोग से उत्पन्न रुचि, इस विधि का उल्लंघन करती है, जैसा कि विश्व स्तर पर कई मामलों में स्थापित हुआ है।
    • प्रारंभिक हित भ्रम वास्तविक विक्रय से पूर्व होने वाले भ्रम से संबंधित है, जो विक्रय के समय होने वाले भ्रम से भिन्न है।
    • यह तब उत्पन्न होता है जब उपभोक्ता ने किसी उत्पाद पर निर्णय ले लिया है, परंतु अभी तक विक्रय स्थल पर नहीं पहुँचा है।
    • यह तब लागू नहीं होता जब उपभोक्ता विक्रय स्थल पर पहुँचने के उपरांत समान ट्रेडमार्क देखकर भ्रमित हो जाता है।
  • सिद्धांत से संबंधित कानूनी प्रावधान:
    • ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 29(1) में प्रावधान है कि ट्रेडमार्क समानता के परिणामस्वरूप उल्लंघन स्थापित करने के लिये भ्रम की संभावना होनी चाहिये। 
    • ऐसे भ्रम के मामलों में, यह आमतौर पर विक्रय के समय होता है, जहाँ उल्लंघन करने वाला पक्ष ट्रेडमार्क की स्थापित प्रतिष्ठा का लाभ उठाता है।
    • इसके विपरीत, प्रारंभिक रुचि भ्रम की स्थिति में, विक्रय से पूर्व ही भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, परंतु उपभोक्ता लेन-देन पूरा करने से पहले असमानता का अनुभव होने के बावजूद भी उत्पाद के प्रति वरीयता विकसित कर लेता है।
    • यह विभिन्न तरीकों से हो सकता है, जैसे कि मेटा टैग के रूप में किसी दूसरे के ट्रेडमार्क का उपयोग करना। न्यायालयों ने कई निर्णयों में इसे लगातार उल्लंघन के रूप में मान्यता दी है।

प्रारंभिक हित भ्रम के सिद्धांत से संबंधित प्रमुख निर्णयज मामले क्या हैं?

  • कॉन्सिम इन्फो प्राइवेट लिमिटेड बनाम गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य, (2010):
    • न्यायालय ने 'आरंभिक हित भ्रम' की अवधारणा पर चर्चा की तथा मेटाटैग में ट्रेडमार्क के अनधिकृत उपयोग से जुड़े मामलों में इसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।
    • यह सिद्धांत बताता है कि ट्रेडमार्क उल्लंघन तब होता है जब वस्तु के विक्रय से पूर्व उपभोक्ता में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
    • हालाँकि सामान्यतः विक्रय के समय भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। विश्व भर में न्यायालयों ने इस मुद्दे से जूझना शुरू कर दिया है, विशेषतः इंटरनेट के संदर्भ में, जहाँ ट्रेडमार्क स्वामी की वेबसाइट की तलाश करने वाले उपयोगकर्त्ताओं को समान डोमेन नामों या प्रतिस्पर्धी द्वारा विज्ञापनों में ट्रेडमार्क के अनधिकृत उपयोग द्वारा पुनर्निर्देशित किया जाता है।