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सांविधानिक विधि

इलेक्टॉरल बॉण्ड योजना पर निर्णय

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 16-Feb-2024

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य।

“चुनावी बॉण्ड योजना असंवैधानिक है। जारीकर्त्ता बैंक (issuing bank) इसके साथ ही चुनावी बॉण्ड जारी करना बंद कर देगा।''

CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस संजीव खन्ना, बी. आर. गवई, जे. बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस संजीव खन्ना, बी.आर. गवई, जे.बी. पारदीवाला एवं मनोज मिश्रा की पीठ ने चुनावी बॉण्ड को असंवैधानिक घोषित कर दिया।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले में दिया।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि:

  • चुनौती की पृष्ठभूमि (Background of the Challenge):
    • याचिकाकर्त्ताओं ने भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 32 के तहत कार्यवाही प्रारंभ की, तथा चुनावी बॉण्ड योजना की वैधता और वित्त अधिनियम 2017 के प्रावधानों का विरोध किया।
    • इन चुनौतीपूर्ण संशोधनों ने भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (RBI अधिनियम), लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, आयकर अधिनियम, 1961 (IT अधिनियम), कंपनी अधिनियम, 2013 और वित्त अधिनियम, 2017 सहित विभिन्न कानूनों को प्रभावित किया।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में संशोधन:
    • पहले, RBI अधिनियम, 1934 की धारा 31 केवल RBI या उसके द्वारा अधिकृत संस्थाओं को भुगतान हेतु वित्तीय साधन जारी करने पर प्रतिबंध लगाती थी।
    • वित्त अधिनियम, 2017 ने धारा 31(3) पेश करके इसे परिवर्तित कर दिया, जिससे केंद्र सरकार अनुसूचित बैंकों को चुनावी बॉण्ड जारी करने के लिये अधिकृत कर सके।
  • कॉर्पोरेट योगदान विनियमन का विकास:
    • प्रारंभ में, कंपनी अधिनियम, 1956 में राजनीतिक दलों को कॉर्पोरेट योगदान को विनियमित करने वाले प्रावधानों का अभाव था।
    • कंपनी अधिनियम 2013, धारा 293A को प्रतिबिंबित करते हुए, सीमाओं को औसत शुद्ध लाभ का 7.5% तक बढ़ा दिया और प्रकटीकरण आवश्यकताओं के साथ-साथ योगदान हेतु बोर्ड के संकल्प को अनिवार्य कर दिया।
      • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 182 में वर्ष 1985 में संशोधित अधिनियम,1956 की धारा 293-A के प्रावधानों को मूल रूप से शामिल किया गया है।
      • धारा 182 किसी कंपनी को किसी भी राजनीतिक दल को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी राशि का योगदान करने में सक्षम बनाती है।
      • यह प्रावधान किसी सरकारी कंपनी या तीन वित्तीय वर्ष से कम समय से अस्तित्व में रहने वाली कंपनी को किसी राजनीतिक दल को योगदान देने से रोकता है।
    • वित्त अधिनियम, 2017 ने कॉर्पोरेट फंडिंग नियमों में और परिवर्तन कर दिया, योगदान विधियों पर प्रतिबंध लगाते हुए सीमाएँ हटा दीं तथा प्रकटीकरण दायित्वों को संशोधित किया।
      • धारा 182(1) का पहला प्रावधान जो कॉर्पोरेट फंडिंग पर एक सीमा निर्धारित करता था, वित्त अधिनियम, 2017 द्वारा हटा दिया गया था।
  • राजनीतिक दलों के लिये कर में छूट:
    • कराधान कानून (संशोधन) अधिनियम, 1978 ने IT अधिनियम, 1961 में धारा 13A पेश की, जिसमें राजनीतिक दलों के योगदान और निवेश से होने वाली आय को आयकर से छूट दी गई।
      • छूट के लिये अर्हता प्राप्त करने के लिये, राजनीतिक दलों को उचित खाते बनाए रखने, बीस हज़ार रुपये से अधिक के स्वैच्छिक योगदान को रिकॉर्ड करने और वार्षिक ऑडिटिंग से गुजरना पड़ता था।
  • योगदान के लिये प्रोत्साहन:
    • चुनाव एवं अन्य संबंधित कानून (संशोधन) अधिनियम, 2003 ने IT अधिनियम में धारा 80GGB और 80GGC को जोड़ा, जिससे राजनीतिक दलों को योगदान कर-कटौती योग्य हो गया।
      • इस कदम का उद्देश्य चेक (cheque) जैसे पारदर्शी चैनलों के माध्यम से योगदान को प्रोत्साहित करना है।
  • पारदर्शिता के उपाय:
    • वित्त अधिनियम, 2017 ने धारा 13A में संशोधन किया, जिससे राजनीतिक दलों को बिना प्रकटीकरण के चुनावी बॉण्ड के माध्यम से योगदान प्राप्त करने की अनुमति मिल गई।
      • हालाँकि, पार्टियों को बीस हज़ार रुपए से अधिक के योगदान की सूचना भारतीय चुनाव आयोग (ECI) को देनी होती थी।
  • RBI और ECI की चिंताएँ:
    • RBI ने संभावित मुद्रा का दुरुपयोग और मनी लॉन्ड्रिंग जोखिमों का हवाला देते हुए चुनावी बॉण्ड पर चिंता व्यक्त की।
    • ECI ने पारदर्शिता में कमी की आलोचना की और दुरुपयोग को रोकने के लिये कॉर्पोरेट फंडिंग पर पुनः सीमा निर्धारण की सिफारिश की। आपत्तियों के बावजूद संवैधानिक चुनौतियों के अधीन, चुनावी बॉण्ड योजना 2018 में लागू की गई थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • न्यायालय के निष्कर्ष:
    • चुनावी बॉण्ड योजना, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की कुछ धाराएँ, कंपनी अधिनियम और उसमें संशोधन, अनुच्छेद 19(1)(A) का उल्लंघन करती है, जो कि असंवैधानिक हैं।
    • कंपनी अधिनियम की धारा 182(1) के प्रावधान को हटाना, जो राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट योगदान की अनुमति देता है, जो कि मनमाना (arbitrary) है और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।
  • प्रकटीकरण हेतु निर्देश:
    • न्यायालय ने अपने फैसले को बरकरार रखने के लिये चुनावी बॉण्ड योजना के तहत राजनीतिक दलों के योगदान के बारे में जानकारी का खुलासा करना अनिवार्य कर दिया।
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक दलों को दानदाताओं, बॉण्ड राशि और प्रत्येक बॉण्ड के बदले प्राप्त क्रेडिट का विस्तृत विवरण प्रदान करना आवश्यक है।
  • निर्देश जारी किये:
    • न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड जारी करने की समाप्ति, SBI द्वारा क्रय विवरण प्रस्तुत करने, राजनीतिक दल के प्राप्तकर्त्ताओं का खुलासा करने, ECI द्वारा प्रकाशन और बिना भुनाए बॉण्ड की वापसी करने सहित कई निर्देश जारी किये हैं।
    • न्यायालय ने कहा कि जारीकर्त्ता बैंक इसके साथ ही चुनावी बॉण्ड जारी करना बंद कर देगा।