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अंतरिम भरण-पोषण

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 08-Feb-2024

ABC बनाम XYZ

"पति केवल इसलिये भरण-पोषण से नहीं बच सकता क्योंकि उसने न्यायालय के समक्ष दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के आदेश को चुनौती दी है।"

न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना

स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में,  कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ABC बनाम XYZ के मामले में माना है कि यदि पति दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के डिक्री पर रोक के अभाव में पत्नी को वैवाहिक घर में वापस ले जाने में विफल रहता है, तो पत्नी अपने लिये अंतरिम भरण-पोषण की मांग करने के लिये स्वतंत्र होगी।

ABC बनाम XYZ मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • याचिकाकर्त्ता पति है और प्रतिवादी उसकी पत्नी है।
  • दोनों ने 13 नवंबर, 2011 को विवाह किया और इस विवाह से एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसकी आयु अब 9 वर्ष बताई जा रही है।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्त्ता एवं प्रतिवादी के बीच संबंध खराब हो गए जिससे प्रतिवादी ने वैवाहिक घर छोड़ दिया है।
  • दोनों के बीच मतभेद के कारण उन्हें दो याचिकाएँ दायर करनी पड़ीं, एक जो पति द्वारा विवाह-विच्छेद की डिक्री की मांग करते हुए दायर की गई थी और दूसरी पत्नी द्वारा दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की मांग करते हुए दायर की गई थी।
  • संबंधित न्यायालय दोनों वैवाहिक मामलों को एक साथ लेता है और अपने सामान्य निर्णय से पति द्वारा दायर विवाह-विच्छेद की याचिका को खारिज़ कर देता है, जबकि पत्नी द्वारा दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की मांग को लेकर दायर याचिका को अनुमति देता है।
  • संबंधित न्यायालय ने, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 24 को लागू करते हुए प्रतिवादी द्वारा निष्पादन याचिका में दायर अंतरिम आवेदन पर, पत्नी और अवयस्क बालक को अंतरिम भरण-पोषण प्रदान करते हुए, आंशिक रूप से आवेदन की अनुमति दी।
  • इससे व्यथित होकर याचिकाकर्त्ता द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी जिसे बाद में न्यायालय ने खारिज़ कर दिया था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि यदि इस न्यायालय ने दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के निर्णय पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश दिया है, तो याचिकाकर्त्ता के संबंधित वकील के पास उस विवाद पर ज़ोर देने का अधिकार है।
    • चूँकि ऐसा नहीं हुआ और पति पत्नी को वैवाहिक घर में नहीं ले गया, इसलिये पत्नी के पास यह स्वतंत्रता थी कि वह डिक्री के निष्पादन के चरण में भी अपने और बच्चे के लिये अंतरिम भरण-पोषण की मांग कर सकती थी।
  • न्यायालय ने कहा कि अंतरिम भरण-पोषण के भुगतान के निर्देश में संबंधित न्यायालय द्वारा पारित आदेश में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है।
    • आगे यह माना गया कि पति केवल इसलिये भरण-पोषण से नहीं बच सकता क्योंकि उसने न्यायालय के समक्ष दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के आदेश को चुनौती दी है।

इसमें कौन-से प्रासंगिक कानूनी प्रावधान शामिल हैं?

दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन:

  • परिचय:
    • दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की अभिव्यक्ति का अर्थ उन दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन से है जो पहले पक्षकारों द्वारा प्राप्त किये गए थे।
    • इसका उद्देश्य विवाह संस्था की पवित्रता और वैधता की रक्षा करना है।
  • HMA की धारा 9 दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
    • 'जबकि पति या पत्नी में से किसी ने युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना दूसरे से अपना साहचर्य प्रत्याहृत कर लिया है तब परिवेदित पक्षकार दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिये याचिका द्वारा आवेदन ज़िला न्यायालय में कर सकेगा और न्यायालय ऐसी याचिका में किये गए कथनों की सत्यता के बारे में और बात के बारे में आवेदन मंजूर करने का कोई वैध आधार नहीं है अपना समाधान हो जाने पर तद्नुसार दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिये आज्ञप्ति देगा।"
    • स्पष्टीकरण: जहाँ यह प्रश्न उठता है कि क्या साहचर्य के प्रत्याहरण के लिये युक्तियुक्त प्रतिहेतु है, वहाँ युक्तियुक्त प्रतिहेतु साबित करने का भार उस व्यक्ति पर होगा जिसने साहचर्य से प्रत्याहरण किया है।

निर्णयज विधि:

  • सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार चड्ढा (1984) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने HMA की धारा 9 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा क्योंकि यह धारा किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है।

HMA की धारा 24:

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1995 (HMA) की धारा 24 वाद लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण और कार्यवाहियों के व्यय के प्रावधान से संबंधित है।
    • शब्द "पेंडेंट लाइट" का अर्थ है "मुकदमे का लंबित रहना" या "मामले के लंबित रहने के दौरान"
  • उक्त धारा अपर्याप्त या कोई स्वतंत्र आय नहीं होने की स्थिति में हिंदू विवाह अधिनियम, 1995 (HMA) के तहत आजीविका और किसी भी कार्यवाही के आवश्यक खर्चों का समर्थन करने के लिये अंतरिम भरण-पोषण को नियंत्रित करती है।
    • यह प्रावधान, जैसा भी मामला हो, इस उपाय को पति और पत्नी दोनों पर लागू करने का लैंगिक रूप से तटस्थ अधिकार प्रदान करता है।
  • इस धारा में कहा गया है कि जहाँ इस अधिनियम के अधीन के होने वाली किसी कार्यवाही में न्यायालय को यह प्रतीत हो कि, यथास्थिति, पति या पत्नी की ऐसी कोई स्वतंत्र आय नहीं है जो उसके संभाल और कार्यवाही के आवश्यक व्ययों के लिये पर्याप्त हो वहाँ वह पति या पत्नी के आवेदन पर प्रत्यर्थी को यह आदेश दे सकेगा कि वह अर्ज़ीदार को कार्यवाही में होने वाले व्यय तथा कार्यवाही के दौरान में प्रतिमास ऐसी दशा संदत्त करे जो अर्ज़ीदार की अपनी आय तथा प्रत्यर्थी की आय को देखते हुए न्यायालय को युक्तियुक्त प्रतीत हो।