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सिविल कानून
माध्यस्थम् अधिनियम में न्यायिक हस्तक्षेप
« »05-Feb-2024
सुरेश धानुका बनाम शाहनाज़ हुसैन "माध्यस्थम् पंचाट में हस्तक्षेप का दायरा तब तक बहुत सीमित है जब तक कि अभिलेख में स्पष्ट त्रुटि न हो और पंचाट में विकृति न हो।" न्यायमूर्ति कृष्ण राव |
स्रोत: कलकत्ता उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति कृष्ण राव की पीठ एक माध्यस्थम् याचिका में आदेश के विरुद्ध अपील पर सुनवाई कर रही थी।
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह निर्णय सुरेश धानुका बनाम शाहनाज़ हुसैन के मामले में दिया था।
सुरेश धानुका बनाम शाहनाज़ हुसैन मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- संबंधित मध्यस्थ के समक्ष, दावेदार ने तर्क दिया कि प्रतिवादी नंबर 2 ने 11 जून, 2004 के आदेश द्वारा विशिष्ट आयामों और संरचना के लेड एंटीमनी मिश्रधातु ( Lead Antimony Alloy) के तार की मांग की।
- याचिकाकर्त्ता ने पूर्व-निरीक्षण रिपोर्ट और बिलिंग के साथ अगस्त तथा सितंबर, 2004 में 141207 किलोग्राम तार की विधिवत आपूर्ति की।
- इसके बावजूद, प्रतिवादी नंबर 2 भुगतान करने में विफल रहा और तार की उपयुक्तता के साथ मुद्दों का हवाला दिया, जिससे परिचालन में रुकावट आई।
- चेतावनी और आदान-प्रदान के बाद, प्रतिवादी नंबर 2 ने पूरी खेप को अस्वीकार कर दिया तथा इसकी वापसी की मांग की।
- याचिकाकर्त्ता ने विनिर्देशों के पालन का दावा करते हुए विरोध किया।
- माध्यस्थम् शुरू हुई, जिसके परिणामस्वरूप 12 मई, 2006 को एक पंचाट आया।
- मध्यस्थ ने प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा उपयोग की गई सामग्री के लियुए 2,48,289/- रुपए दिये, लेकिन याचिकाकर्त्ता द्वारा आपूर्ति शर्तों के अनुसार अस्वीकृत सामग्री की पुनर्प्राप्ति का हवाला देते हुए शेष 16,78,599/- रुपए देने से इनकार कर दिया।
- प्रतिवादी नंबर 2 ने अपनी प्रतिरक्षा में निविदा विशिष्टताओं और अपेक्षित परीक्षण प्रमाण-पत्रों की कथित अनुपस्थिति पर प्रकाश डाला।
- मध्यस्थ ने दोनों पक्षों के तर्कों पर विचार किया और दोनों पक्षों के बीच विवाद को सुलझाते हुए 2,78,083.68/- रुपए का पंचाट दिया।
- याचिकाकर्त्ता/अपीलकर्त्ता ने वर्ष 2006 में माध्यस्थम् मूल याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया।
- उन्होंने वर्ष 2006 की याचिका में दिये गए आदेश को रद्द करने की अपील की।
- अपीलकर्त्ता ने तर्क दिया कि अवर न्यायालय और मध्यस्थ ने उसके दावों पर ठीक से विचार नहीं किया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने माध्यस्थम् पंचाटों में हस्तक्षेप के सीमित दायरे पर ध्यान दिया, हस्तक्षेप के आधार के रूप में अभिलेख पर स्पष्ट त्रुटियों या विकृतियों पर ज़ोर दिया।
- इसमें उल्लेख किया गया है कि "माध्यस्थम् पंचाट में हस्तक्षेप का दायरा तब तक बहुत सीमित है जब तक कि अभिलेख में स्पष्ट त्रुटि न हो और पंचाट में विकृति न हो"।
माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत न्यायिक हस्तक्षेप क्या है?
- परिचय:
- अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं में से एक माध्यस्थम् कार्यवाही में न्यायिक हस्तक्षेप का सीमित दायरा है।
- माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C अधिनियम) की धारा 5, विशेष रूप से अधिनियम द्वारा शासित मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा से संबंधित है।
- धारा 5: न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा:
- तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, इस भाग द्वारा शासित मामलों में, कोई न्यायिक प्राधिकारी उस दशा के सिवाय मध्यक्षेप नहीं करेगा, जिसके लिये इस भाग में ऐसा उपबंध किया गया हो।
- उद्देश्य:
- यह धारा अनिवार्य रूप से स्थापित करती है कि माध्यस्थम् मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप सीमित होना चाहिये और न्यायालयों को मध्यस्थता कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिये जब तक कि अधिनियम में स्पष्ट रूप से प्रावधान न किया गया हो।
- अधिनियम का उद्देश्य न्यायिक हस्तक्षेप को कम करके और अधिक त्वरित समाधान प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाकर विवाद समाधान के पसंदीदा तरीके के रूप में माध्यस्थम् को बढ़ावा देना है।