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सांविधानिक विधि

विधिक सहायता देने वाले अधिवक्ताओं के लिये मातृत्व लाभ

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 24-Apr-2024

दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम अन्वेशा देब

"विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ सूचीबद्ध एक अधिवक्ता कर्मचारी नहीं है तथा इसलिये, मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के अधीन मातृत्व लाभ की अधिकारी नहीं है”।

न्यायमूर्ति वी. कामेश्वर राव एवं सौरभ बनर्जी

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय  

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम अन्वेशा देब के मामले में माना है कि विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ सूचीबद्ध एक अधिवक्ता कर्मचारी नहीं है तथा इसलिये, मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के अधीन मातृत्व लाभ की अधिकारी नहीं है।

दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम अन्वेशा देब मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, प्रतिवादी को किशोर न्याय बोर्ड- I, सेवा कुटीर, किंग्सवे कैंप, नई दिल्ली में विधिक सेवा अधिवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • अपनी नियुक्ति की अवधि के दौरान, अप्रैल 2017 में, उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया तथा इसलिये सात महीने के मातृत्व अवकाश के लिये आवेदन किया।
  • प्रतिवादी द्वारा मातृत्व लाभ प्राप्त करने हेतु अपने दावे के संबंध में प्राधिकरण के सदस्य सचिव को एक पत्र भी भेजा गया था।
  • प्रतिवादी को प्राधिकरण से एक ईमेल प्राप्त हुआ, जिसमें मातृत्व लाभ के उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया, क्योंकि विधिक सेवा अधिवक्ता को समान अनुदान देने का कोई प्रावधान नहीं है।
  • प्राधिकरण के निर्णय से व्यथित होकर प्रतिवादी ने दिल्ली उच्च न्यायालय के विद्वान एकल न्यायाधीश से संपर्क किया।
  • एकल न्यायाधीश ने दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (DSLSA) को अपने पैनल में शामिल विधिक सहायता अधिवक्ता को चिकित्सा, मौद्रिक एवं अन्य लाभ जारी करने का आदेश दिया।
  • DSLSA ने अपील दायर कर इस निर्णय को उच्च न्यायालय की खंड पीठ के समक्ष चुनौती दी|
  • अपील को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने एकल न्यायाधीश के निर्णय को रद्द कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति वी. कामेश्वर राव एवं सौरभ बनर्जी की पीठ ने कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ सूचीबद्ध एक अधिवक्ता 'कर्मचारी' नहीं है तथा इसलिये, वह मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के अधीन मातृत्व लाभ का अधिकारी नहीं है।
  • आगे यह माना गया कि एक अधिवक्ता जो इस रूप में कार्य करता रहता है तथा एक कर्मचारी जो भर्ती नियमों के अनुसार नियुक्त किया गया है, के बीच तुलना नहीं की जा सकती है और विद्वान एकल न्यायाधीश ने अधिनियम के लाभों को प्रतिवादी तक पहुँचाने में चूक की है, विशेष रूप से, उसकी नियुक्ति की प्रकृति को देखते हुए।

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 क्या है?

  • परिचय:
    • मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 वह विधि है, जो महिलाओं को उनके मातृत्व के दौरान रोज़गार में लाभ देता है।
    • यह महिला-कर्मचारी को 'मातृत्व लाभ' सुनिश्चित करता है, जिससे कार्य से अनुपस्थिति के दौरान नवजात बच्चे की देखभाल के लिये उनके वेतन का भुगतान किया जाता है।
    • यह 10 से अधिक कर्मचारियों को रोज़गार देने वाले किसी भी प्रतिष्ठान पर लागू होता है। इस अधिनियम को मातृत्व संशोधन विधेयक, 2017 के अधीन आगे संशोधित किया गया था।
    • यह अधिनियम मातृत्व की गरिमा की रक्षा करने वाला एक महत्त्वपूर्ण विधि है।
    • इससे यह सुनिश्चित करने में भी मदद मिलती है कि कामकाजी महिलाएँ भी अपने बच्चों की उचित देखभाल करने में सक्षम हैं। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के अतिरिक्त, मातृत्व लाभ महिलाओं को उनके वित्तीय स्थिति में भी सहायता करते हैं।
  • अर्हता:
    • अधिनियम के अधीन लाभ प्राप्त करने का अधिकारी होने के लिये, कर्मचारी (महिला) को पिछले 12 महीनों में 80 दिनों की अवधि के लिये प्रतिष्ठान में नियोजित होना चाहिये।
  • निर्णयज विधि:
    • सताक्षी मिश्रा बनाम यूपी राज्य (2022) के मामले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 में मातृत्व लाभ देने के लिये पहले एवं दूसरे बच्चे के बीच समय के अंतर के संबंध में ऐसी कोई शर्त नहीं है।