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आपराधिक कानून

हत्या की दोषसिद्धि

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 07-Feb-2024

पाटा @ प्रताप पुरी बनाम ओडिशा राज्य

सूक्ष्म बाल तुलना से प्राप्त साक्ष्य का उपयोग केवल किसी अभियुक्त के विरुद्ध हत्या के लिये दोषसिद्धि दर्ज करने के लिये नहीं किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति संगम कुमार साहू और संजय कुमार मिश्रा

स्रोत: उड़ीसा उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाटा @ प्रताप पुरी बनाम ओडिशा राज्य के मामले में उड़ीसा उच्च न्यायालय ने माना है कि सूक्ष्म बाल तुलना से प्राप्त साक्ष्य का उपयोग केवल किसी अभियुक्त के विरुद्ध हत्या के लिये दोषसिद्धि दर्ज करने के लिये नहीं किया जा सकता है।

पाटा @ प्रताप पुरी बनाम ओडिशा राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, अपीलकर्त्ता पाटा @ प्रताप पुरी को भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 और आयुध अधिनियम, 1959 की धारा 27 के तहत आरोप, कि 09 जून, 2003 को कटक के सलीपुर पुलिस स्टेशन के अंतर्गत तिलाड़ा गाँव में, उसने पबित्रा कुमार दास, (मृतक) की तलवार से हत्या कर दी तथा उसी दिन उसके पास बिना किसी अधिकार के अवैध रूप से तलवार रखने के लिये अपराध करने के लिये कटक के संबंधित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में मुकदमे का सामना करना पड़ा।
  • ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ता को आयुध अधिनियम, 1959 की धारा 27 के तहत आरोप से बरी करते हुए उसे IPC की धारा 302 के तहत दोषी पाया और उसे आजीवन कठोर कारावास की सज़ा सुनाई।
  • इससे व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने उड़ीसा उच्च न्यायालय में अपील की।
  • उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय को रद्द कर दिया और अपीलकर्त्ता को IPC की धारा 302 के तहत आरोप से बरी कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति संगम कुमार साहू और संजय कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि सूक्ष्म बाल तुलना से प्राप्त साक्ष्य का उपयोग केवल किसी अभियुक्त के विरुद्ध हत्या के लिये दोषसिद्धि दर्ज करने के लिये नहीं किया जा सकता है।
  • आगे कहा गया कि भले ही सूक्ष्म बाल तुलना को एक मान्य और विश्वसनीय वैज्ञानिक पद्धति पाया गया है, लेकिन यह पूरी तरह से वह आधार नहीं बन सकता है जिसके आधार पर किसी अभियुक्त के विरुद्ध दोषसिद्धि दर्ज की जा सकती है।
  • न्यायालय हिमांगशु पहाड़ी बनाम राज्य (1986) मामले में दिये गए निर्णय पर निर्भर था।
    • इस मामले में, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने माना कि बालों की तुलना का विज्ञान अभी तक उंगलियों के निशान की तुलना के विज्ञान की तरह पूर्णता तक नहीं पहुँचा है। इसलिये, ऐसी रिपोर्ट पर भरोसा करना असुरक्षित होगा।

प्रासंगिक कानूनी प्रावधान क्या हैं?

IPC की धारा 302

  • IPC की धारा 302 हत्या के लिये सज़ा से संबंधित है जबकि यही प्रावधान भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 103 के तहत शामिल किया गया है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई हत्या करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दंडनीय होगा
  • IPC की धारा 300 हत्या से संबंधित है।

आयुध अधिनियम, 1959 की धारा 27

  • यह अधिनियम आयुध और गोलाबारूद से संबंधित कानून को समेकित तथा संशोधित करता है।
    • इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य आयुध और गोलाबारूद के प्रचलन को विनियमित तथा प्रतिबंधित करना है, जो अवैध थे।
    • इस अधिनियम ने कुछ कानून का पालन करने वाले नागरिकों के लिये आत्मरक्षा सहित कुछ विशिष्ट उद्देश्यों के लिये आग्नेयास्त्र रखने और उपयोग करने की आवश्यकता को मान्यता दी।
    • यह 1 अक्तूबर, 1962 को लागू हुआ।
  • इस अधिनियम की धारा 27 आयुध आदि का उपयोग करने पर दंड से संबंधित है, इसमें कहा गया है कि-

(1)  जो कोई धारा 5 के उल्लंघन में किन्हीं आयुधों या गोलाबारूद को उपयोग में लाएगा वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा और ज़ुर्माने से भी, दंडनीय होगा।

(2)  जो कोई धारा 7 के उल्लंघन में किन्हीं प्रतिषिद्ध आयुधों या किसी प्रतिषिद्ध गोलाबारूद का प्रयोग करता है तो कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी, किंतु जो आजीवन कारावास की हो सकेगी, दंडनीय होगा और ज़ुर्माने से भी दंडनीय होगा।

(3) जो कोई किन्हीं प्रतिषिद्ध आयुधों या प्रतिषिद्ध गोलाबारूद को प्रयोग में लाएगा या धारा 7 के उल्लंघन में कोई कार्य करेगा और ऐसे प्रयोग या कार्य के परिणामस्वरूप किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो वह मृत्युदंड से दंडनीय होगा।