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सिविल कानून
साझा घर से तलाकशुदा पत्नी के निष्कासन पर प्रतिबंध
« »27-Jun-2024
जयश्री बनाम इंद्रपालन एवं अन्य “यह माना गया है कि पीड़िता और जिस व्यक्ति के विरुद्ध घरेलू हिंसा के आरोप के संबंध में राहत का दावा किया गया है, के बीच स्थायी घरेलू संबंध होना चाहिये”। न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन |
स्रोत: केरल उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने जयश्री बनाम इंद्रपालन एवं अन्य मामले में यह माना है कि तलाक से पहले या बाद में साझा घर में रह रही महिला को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त घर से निष्कासित नहीं किया जा सकता।
जयश्री बनाम इंद्रपालन और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में याचिकाकर्त्ता प्रतिवादी की पत्नी थी, जिसका एक नाबालिग बच्चा था।
- प्रतिवादी ने 31 दिसंबर 2022 को परित्याग के आधार पर तलाक के लिये आवेदन दायर किया।
- याचिकाकर्त्ता ने तलाक के आदेश के विरुद्ध केरल उच्च न्यायालय में अपील दायर की जिसे न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया था।
- अपील के लंबित रहने के दौरान याचिकाकर्त्ता ने महिला संरक्षण एवं घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट न्यायालय में एक याचिका दायर की, ताकि उसे साझा घर से निष्कासित न किया जाए।
- प्रतिवादी ने याचिकाकर्त्ता के प्रतिउत्तर में न्यायालय को बताया कि कभी भी उनके बीच कोई साझा घर नहीं था।
- प्रतिवादों पर विचार करते हुए मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्त्ता को निष्कासित करने का आदेश दिया तथा उसे एक माह के भीतर घर खाली करने का आदेश दिया।
- इसके बाद याचिकाकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय प्रभा त्यागी बनाम कमलेश देवी (2022) का उदाहरण देते हुए केरल उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की परिधि में आने के लिये मामले के लंबित रहने से पूर्व या उसके दौरान घरेलू संबंध का अस्तित्त्व होना चाहिये।
- न्यायालय ने ‘घरेलू संबंध’ और ‘साझा घर’ शब्दों के अर्थ और परिधि को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित किया।
- केरल उच्च न्यायालय ने ‘साझा घर में निवास करने के अधिकार’ की सीमा को भी परिभाषित किया, जहाँ यह कहा गया कि निवास के अधिकार का दावा तब भी किया जा सकता है जब कोई वास्तविक निवास न हो, इस प्रकार, घरेलू संबंध में किसी भी महिला को साझा घर में निवास करने का अधिकार है।
- न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों और घरेलू संबंध की परिभाषा का उदाहरण देते हुए कहा कि तलाकशुदा महिला का तलाक के बाद कोई घरेलू संबंध नहीं रहता है तथा वह पिछले घरेलू संबंध के आधार पर निवास के अधिकार का दावा नहीं कर सकती है।
घरेलू हिंसा अधिनियम के महत्त्वपूर्ण प्रावधान क्या हैं?
पीड़ित व्यक्ति:
- धारा2(a): कोई भी महिला जो घरेलू संबंध में रह रही हो और घरेलू हिंसा का शिकार होने का आरोप लगाती हो।
घरेलू संबंध:
- धारा 2(f): इसमें कहा गया है कि विवाह, रक्त संबंध, अवैध विवाह, गोद लिये गए बच्चे के माध्यम से किसी महिला के साथ साझा घर का कोई भी संबंध साझा घर के अंतर्गत आता है।
साझा घर:
- धारा 2(s): वह स्थान जहाँ पीड़िता या तो पति के साथ या अकेले रहती है या वह स्थान जहाँ से उसे निष्कासित कर दिया गया है, साझा घर कहलाता है।
निवास का अधिकार:
- धारा 17: इस धारा में कहा गया है कि प्रत्येक पीड़ित महिला को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर, घरेलू संबंध वाले साझा घर में रहने का अधिकार है।
घरेलू हिंसा अधिनियम पर आधारित ऐतिहासिक निर्णयज विधियाँ क्या हैं?
- प्रभा त्यागी बनाम कमलेश देवी (2022): इस निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि निवास के अधिकार का दावा करने के लिये वास्तविक निवास की आवश्यकता नहीं है, यदि पीड़ित महिला उस व्यक्ति के साथ घरेलू संबंध में है जिसके विरुद्ध शिकायत दर्ज की गई है, तो यह इस अधिकार का दावा करने के लिये पर्याप्त है।
- इंद्रा शर्मा बनाम वी.के.वी. शर्मा (2013): इस मामले में घरेलू संबंध की व्यापक रूप से व्याख्या की गई, जहाँ यह माना गया कि विवाह की मात्र विशेषताएँ ही घरेलू संबंध कहलाने के लिये पर्याप्त होंगी।
- वंधना बनाम टी. श्रीकांत (2007): इस मामले में साझा घर शब्द की परिधि को यह कहते हुए बढ़ा दिया गया था कि साझा घर में रहने के अधिकार का निर्धारण करते समय रहने की अवधि पर विचार नहीं किया जाना चाहिये, भले ही एक महिला ने एक दिन के लिये घर साझा किया हो, वह इस अधिकार के अधीन दावा कर सकती है यदि वह घरेलू संबंध में है।