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आपराधिक कानून
कार्यवाही करने की शक्ति
« »05-Mar-2024
माजिद @ बबलू एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य "संबंधित ट्रायल कोर्ट को दोषमुक्त करने का आदेश पारित करने से पूर्व दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 319 के तहत आदेश पारित करना चाहिये।" न्यायमूर्ति प्रेम नारायण सिंह |
स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने माजिद @ बबलू और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में माना है कि संबंधित ट्रायल कोर्ट को दोषमुक्त करने का आदेश पारित करने से पूर्व दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 319 के तहत आदेश पारित करना चाहिये।
माजिद @ बबलू एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में सात अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया गया है और बाकी दो को दोषी ठहराया गया है।
- ट्रायल कोर्ट ने निर्णय सुनाया है कि याचिकाकर्त्ताओं के विरुद्ध एक अलग मुकदमा शुरू किया जाना चाहिये और इसलिये, उनके विरुद्ध अलग मुकदमे के लिये नोटिस जारी किया जाना चाहिये।
- इसके बाद, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष एक आपराधिक पुनरीक्षण दायर किया गया जिसे बाद में न्यायालय द्वारा अनुमति दी गई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति प्रेम नारायण सिंह की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि CrPC की धारा 319 के तहत एक आदेश केवल पहले से ही दोषी ठहराए गए लोगों को बरी करने वाले आदेश की घोषणा से पहले ही दिया जा सकता है, जहाँ मुकदमे का निष्कर्ष बरी हो जाता है या संयुक्त परिणाम होता है। दोषसिद्धि के मामले में, सज़ा सुनाने से पहले CrPC की धारा 319 के तहत कार्यवाही शुरू की जानी चाहिये, न्यायालय ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया।
- आगे यह माना गया कि यह विधि द्वारा स्थापित है, CrPC की धारा 319 के तहत याचिकाकर्त्ताओं को समन करने के संबंधित ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष को विधि की नज़र में बरकरार नहीं रखा जा सकता है, इसलिये याचिका की अनुमति दी जाती है।
CrPC की धारा 319 क्या है?
परिचय:
- CrPC की धारा 319 अपराध के लिये दोषी प्रतीत होने वाले अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की शक्ति से संबंधित है, जबकि इसी प्रावधान को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 358 के तहत कवर किया गया है।
- यह सिद्धांत ज्यूडेक्स दमनतुर कम नोसेंस एब्सोलविटुर (judex damantur cum nocens absolvitur) पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि दोषी को बरी कर दिये जाने पर न्यायाधीशों की निंदा की जाती है। यह खंड बताता है कि-
(1) जहाँ किसी अपराध की जाँच या विचारण के दौरान साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति ने, जो अभियुक्त नहीं है, कोई ऐसा अपराध किया है जिसके लिये ऐसे व्यक्ति का अभियुक्त के साथ विचारण किया जा सकता है, वहाँ न्यायालय उस व्यक्ति के विरुद्ध उस अपराध के लिये जिसका उसके द्वारा किया जाना प्रतीत होता है, कार्यवाही कर सकता है।
(2) जहाँ ऐसा व्यक्ति न्यायालय में हाज़िर नहीं है वहाँ पूर्वोक्त प्रयोजन के लिये उसे मामले की परिस्थितियों की अपेक्षानुसार, गिरफ्तार या समन किया जा सकता है।
(3) कोई व्यक्ति जो गिरफ्तार या समन न किये जाने पर भी न्यायालय में हाज़िर है, ऐसे न्यायालय द्वारा उस अपराध के लिये, जिसका उसके द्वारा किया जाना प्रतीत होता है, जाँच या विचारण के प्रयोजन के लिये निरुद्ध किया जा सकता है।
(4) जहाँ न्यायालय किसी व्यक्ति के विरुद्ध उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही करता है, वहाँ-
(a) उस व्यक्ति के बारे में कार्यवाही फिर से प्रारंभ की जाएगी और साक्षियों को फिर से सुना जाएगा;
(b) खंड (a) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, मामले में ऐसे कार्यवाही की जा सकती है, मानो वह व्यक्ति उस समय अभियुक्त व्यक्ति था जब न्यायालय ने उस अपराध का संज्ञान किया था जिस पर जाँच या विचारण प्रारंभ किया गया था।
धारा 319 के आवश्यक तत्त्व:
- किसी अपराध की कोई जाँच या मुकदमा चल रहा हो।
- साक्ष्यों से ऐसा प्रतीत होता हो, कि किसी व्यक्ति ने, अभियुक्त न होते हुए कोई अपराध किया हो, जिसके लिये उस व्यक्ति पर अभियुक्त के साथ मिलकर मुकदमा चलाए जाने योग्य हो।
- इस धारा के अंतर्गत शक्ति विवेकाधीन और असाधारण शक्ति है। इसका प्रयोग संयमित ढंग से और केवल उन्हीं मामलों में किया जाना चाहिये जहाँ मामले की परिस्थितियाँ इसकी मांग करती हैं।
निर्णयज विधि:
- हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य (2014) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 319 इस सिद्धांत पर आधारित है, कि निर्दोष को दण्डित नहीं किया जाए, साथ ही वास्तविक अपराधी को बचने की अनुमति न दी जाए।
- लाल सूरज @ सूरज सिंह एवं अन्य बनाम झारखंड राज्य (2008) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 319 एक विशेष प्रावधान है। इसके तहत एक असाधारण स्थिति से निपटने का प्रयास किया गया है। हालाँकि यह व्यापक आयाम प्रदान करता है, लेकिन इसका प्रयोग संयमित ढंग से करना आवश्यक है।