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सांविधानिक विधि

धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002

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 21-Nov-2023

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि “जब न्यायालय द्वारा अभियुक्तों की हिरासत जारी रखी जाती है, तो न्यायालयों से अपेक्षा की जाती है कि वे संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत त्वरित सुनवाई के अधिकार को सुनिश्चित करते हुए उचित समय के भीतर मुकदमे को समाप्त कर दें।"

  • उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला तरुण कुमार बनाम सहायक निदेशक प्रवर्तन निदेशालय के मामले में दिया।

तरुण कुमार बनाम सहायक निदेशक प्रवर्तन निदेशालय की पृष्ठभूमि क्या है?

  • मेसर्स शक्ति भोग फूड्स लिमिटेड (SBFL) "शक्ति भोग" ब्रांड नाम के तहत खाद्य पदार्थों के निर्माण और बिक्री में लगी हुई थी।
  • भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व में बैंकों के संघ ने 18 मई, 2018 के अनुबंध पत्र के माध्यम से SBFL के फोरेंसिक ऑडिट के संचालन के लिये एक फोरेंसिक ऑडिटर - BDO इंडिया LLP की सेवाएँ लीं।
  • फोरेंसिक ऑडिटर ने 1 अप्रैल, 2013 से 31 मार्च, 2017 की अवधि के लिये ऑडिट समीक्षा की और 25 जून, 2019 को रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें SBFL की कार्यप्रणाली में कई वित्तीय अनियमितताओं एवं विसंगतियों का खुलासा किया गया तथा आरोप लगाया कि SBFL अपनी ऋण देनदारी का निर्वहन करने में विफल रही व इसके कारण संघ के सदस्य बैंकों को लगभग 3269.42 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(2) के साथ पठित 13(1)(d) और भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 420, 465, 467, 468 तथा 471 के साथ पठित धारा 120B के तहत अपराध के लिये केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, बैंक सिक्योरिटीज़ एंड फ्रॉड सेल (Bank Securities and Fraud Cell), नई दिल्ली द्वारा 31 दिसंबर, 2020 को एक FIR दर्ज की गई।
  • PML अधिनियम की धारा 4 के तहत दंडनीय धारा 3 के तहत अपराध की जाँच के लिये अभियुक्त के खिलाफ CBI द्वारा दर्ज की गई उक्त FIR के संबंध में SBFL और अन्य के खिलाफ 31 जनवरी, 2021 को एक प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई।
  • अपीलकर्ता ने 18 अक्तूबर, 2022 को विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) राउज़ एवेन्यू कोर्ट कॉम्प्लेक्स, नई दिल्ली के समक्ष एक शिकायत मामले में ज़मानत याचिका दायर की, जिसे विशेष न्यायाधीश ने 23 दिसंबर, 2022 के अपने आदेश के तहत खारिज़ कर दिया।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत ज़मानत आवेदन संख्या 152/2023 को भी 18 जुलाई, 2023 के आक्षेपित आदेश द्वारा खारिज़ कर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?

  • यह नहीं कहा जा सकता है कि धारा 45 में निर्धारित शर्त के लिये साक्ष्यों का भार अभियुक्त पर है कि वह इस तरह के अपराध के लिये दोषी नहीं है। हालाँकि बोझ का ऐसा निर्वहन संभावनाओं पर हो सकता है, फिर भी मौजूदा मामले में प्रतिवादी द्वारा पर्याप्त सामग्री पेश की गई हैं, जो उक्त अधिनियम की धारा 3 के तहत धन शोधन के कथित अपराध में अपीलकर्ता की बड़ी भागीदारी को दर्शाती है, न्यायालय अपीलकर्ता को ज़मानत देने की इच्छुक नहीं है।

धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 क्या है?

  • परिचय:
    • धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 भारत की संसद का एक अधिनियम है जिसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (National Democratic Alliance- NDA) सरकार द्वारा धन शोधन को रोकने तथा धन शोधन से प्राप्त संपत्ति की ज़ब्ती का प्रावधान करने के लिये अधिनियमित किया गया है। PMLA और उसके तहत अधिसूचित नियम 1 जुलाई, 2005 से लागू हुए हैं।
  • PMLA का उद्देश्य:
    • PMLA भारत में धन शोधन से निपटने के लिये है और इसके तीन मुख्य उद्देश्य हैं:
      • धन शोधन को रोकना और नियंत्रित करना।
      • लूटे गए धन से प्राप्त संपत्ति का अधिहरण करना और उसे ज़ब्त करना।
      • भारत में धन शोधन से संबंधित किसी अन्य मुद्दे से निपटने के लिये।
  • अधिनियम के महत्त्वपूर्ण प्रावधान:
    • धारा 45: अपराधों का संज्ञेय और गैर-मानती होना
      • यह धन शोधन के अपराध में आरोपित किसी अभियुक्त को ज़मानत देने के उद्देश्य से संतुष्ट होने वाली शर्तें बताती है।
    • धारा 50: समन, दस्तावेज़ पेश करने और साक्ष्य देने आदि से संबंधित अधिकारियों की शक्तियाँ।
      • इसमें समन जारी करने, दस्तावेज़ प्रस्तुत करने और साक्ष्य प्रदान करने में अधिकारियों की शक्तियों का विवरण दिया गया है। यह प्रकटीकरण और निरीक्षण, उपस्थिति को लागू करने, दस्तावेज़ों को एकत्रित करने और कमीशन जारी करने जैसे मामलों के लिये सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत निदेशक की शक्तियों को सिविल कोर्ट के समान करता है।
      • धारा 50(2) निदेशक और अन्य अधिकारियों को PMLA के तहत किसी भी जाँच या कार्यवाही के दौरान, किसी भी व्यक्ति को बुलाने का अधिकार प्रदान करती है। PML नियम, 2005 के नियम 2(p) एवं नियम 11 इन शक्तियों को और निर्दिष्ट करते हैं।
      • धारा 50(3) में कहा गया है कि समन भेजे गए सभी व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से या अधिकृत एजेंटों के माध्यम से उपस्थित होना होगा, जाँच करने पर सच्चाई बतानी होगी और आवश्यक दस्तावेज़ पेश करने होंगे।
      • धारा 50(4) धारा 50(2) और धारा 50(3) के तहत प्रत्येक कार्यवाही को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 193 एवं 228 के अनुसार न्यायिक कार्यवाही मानती है।
      • धारा 50(5) धारा 50(2) में निर्दिष्ट किसी भी अधिकारी को अधिनियम 15, 2003 के तहत किसी भी कार्यवाही में उसके समक्ष प्रस्तुत किये गए किसी भी रिकॉर्ड को ज़ब्त करने और बनाए रखने की अनुमति देती है। इस शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिये सुरक्षा उपाय मौजूद हैं।

धारा 50 के लिये प्रासंगिक मामला:

रोहित टंडन बनाम प्रवर्तन निदेशालय (2018): इस मामले में न्यायालय ने पुष्टि की कि गवाहों और अभियुक्तों के बयान PMLA अधिनियम की धारा 50 के तहत साक्ष्य में स्वीकार्य हैं।