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डीपफेक टेक्नोलॉजी के विरुद्ध समाज की सुरक्षा करता भारतीय कानून

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 09-Nov-2023

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

परिचय

तीव्र तकनीकी प्रगति के प्रभुत्त्व वाले युग में, डीपफेक तकनीक के उदय ने हमारे समाज के लिये नई चुनौतियाँ पेश की हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के परिणाम के रूप में डीपफेक, चौंकाने वाले यथार्थवाद के साथ ऑडियो और वीडियो सामग्री के हेरफेर को सक्षम बनाता है, जो अक्सर सच्चाई और कल्पना के बीच की रेखाओं को धुंधला कर देता है। जैसे-जैसे डीपफेक का उपयोग तेज़ी से बढ़ रहा है, विश्व भर के कानून निर्माता इसके संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिये व्यापक कानून की तत्काल आवश्यकता से जूझ रहे हैं। डीपफेक के विरुद्ध एकल कानून (stand-alone law) की कमी एक भारतीय अभिनेत्री के एक मॉर्फड वीडियो (morphed video) के देश भर में प्रसारित होने के बाद सुर्खियों में आई।

डीपफेक टेक्नोलॉजी क्या है?

डीपफेक चेहरों की अदला-बदली, आवाज़ों की नकल करने और यहाँ तक कि वीडियो में भावभँगिमाओं को बदलकर अत्यधिक विश्वसनीय कृत्रिम मीडिया बनाने के लिये मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करता है।

इस तकनीक का उपयोग आमतौर पर व्यक्तियों को धोखा देने और लोक धारणा में हेरफेर करने, गोपनीयता, सुरक्षा और सूचना की अखंडता हेतु महत्त्वपूर्ण खतरे उत्पन्न करने के लिये किया जाता है।

डीपफेक टेक्नोलॉजी के विरुद्ध भारत में क्या कानून हैं?

भारत में डीपफेक तकनीक के लिये एक विशिष्ट कानून का अभाव है, हालाँकि मौजूदा अधिनियमों में कई प्रावधानों के तहत एजेंसियों द्वारा दोषियों पर आरोप लगाए जाते हैं।

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT अधिनियम) की धारा 66D:
    • यह धारा संचार उपकरणों या कंप्यूटर संसाधनों का उपयोग करके प्रतिरूपण द्वारा छल करने पर दंड देती है।
    • इस धारा के तहत कारावास तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और दोषी को जुर्माना भी भरना पड़ सकता है जो एक लाख रुपए तक बढ़ सकता है।
  • IT अधिनियम, 2000 की धारा 66E:
    • इसमें कहा गया है कि, जो कोई जानबूझकर किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके निजी भाग के चित्र को कैप्चर, प्रकाशित या प्रसारित करता है, वह उस व्यक्ति की निज़ता का उल्लंघन करता है।
    • इस धारा के तहत कारावास तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या दो लाख रुपए से अधिक नहीं का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
  • भारतीय कॉपीराइट अधिनियम 1957 की धारा 51:
    • इसमें मालिक द्वारा दिये गए किसी भी लाइसेंस के बिना कॉपीराइट का उल्लंघन करने की शर्तों को शामिल किया गया है।

डीपफेक टेक्नोलॉजी के विविध दुरुपयोग को कवर करने वाले कानून क्या हैं?

  • IT अधिनियम, 2000 की धारा 66C:
    • डीपफेक का उपयोग पहचान की चोरी के लिये किया जा सकता है।
    • इसलिये, यह धारा पहचान की चोरी के कृत्य को तीन वर्ष तक का कारावास और एक लाख रुपए तक के जुर्माने से दंडित करती है।
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 294:
    • डीपफेक का उपयोग करके अश्लील सामग्री बनाई जा सकती है।
    • इसलिये, यह धारा अश्लील हरकतों और गानों पर तीन महीने तक का कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित करती है।
  • भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 21:
    • किसी और की निजी सामग्री को मॉर्फ करने से निज़ता का गंभीर उल्लंघन होता है और यह व्यक्ति की शारीरिक अखंडता के लिये भी खतरा होगा।
    • अनुच्छेद 21 निज़ता के अधिकार और शारीरिक अखंडता को इसके अभिन्न अंग के रूप में शामिल करता है।

डीपफेक टेक्नोलॉजी को अपराध घोषित करने वाले विशिष्ट कानून की कमी के पीछे क्या कारण हैं?

  • डीपफेक टेक्नोलॉजी लगातार विकसित हो रही है, जिससे कानून निर्माताओं के लिये नवाचार की गति को बनाए रखना और लंबे समय तक कानून बनाना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
  • डीपफेक विभिन्न रूप ले सकता है, जिसमें हास्य पैरोडी, कलात्मक रचनाएँ, या दुर्भावनापूर्ण प्रतिरूपण शामिल हैं। इसलिये, इसकी परिभाषा और दायरा अभी भी पूरी तरह से निर्धारित नहीं किया गया है।
  • कुछ देश यह तर्क दे सकते हैं कि मौजूदा कानून, जैसे कि मानहानि, पहचान की चोरी, या निज़ता आक्रमण से संबंधित, डीपफेक से होने वाले नुकसान को संबोधित करने के लिये पर्याप्त हैं।

आगे की राह

  • इंटरनेट की सीमाहीन प्रकृति के कारण डीपफेक खतरों की वैश्विक पहुँच को संबोधित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
  • डीपफेक से निपटने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है क्योंकि यह हर अगले दिन खबरों में रहता है और चुनावों के दौरान इसका दुरुपयोग हो सकता है और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इसका दुरुपयोग होने पर यह देश की सुरक्षा के लिये खतरा बन सकता है।
  • डीपफेक टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग से निपटने के लिये एक विशिष्ट कानून के लागू होने तक लोक जागरूकता की भी आवश्यकता है।