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सांविधानिक विधि
प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत
« »29-Nov-2023
माँ विंध्य स्टोन क्रशर कंपनी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य "सभ्य समाज में कानून का शासन बनाए रखने के लिये प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिये।" न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और शेखर बी. सराफ |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में माँ विंध्य स्टोन क्रशर कंपनी बनाम यू.पी. राज्य और अन्य के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि एक सभ्य समाज में कानून का शासन बनाए रखने के लिये प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिये।
माँ विंध्य स्टोन क्रशर कंपनी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्ता को खनन और क्रशिंग स्टोन के उद्देश्य से 15 जुलाई, 2016 से 14 जुलाई, 2026 तक 10 वर्षों के लिये खनन पट्टा दिया गया था।
- 17 जुलाई, 2023 को याचिकाकर्ता को उसकी ई-मेल आईडी पर एक नोटिस मिला जिसमें आरोप था कि उसके द्वारा उस क्षेत्र के बाहर अवैध खनन किया गया है जिसके लिये खनन पट्टा दिया गया था।
- इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।
- इसके बाद याचिकाकर्ता को 2 वर्ष के लिये ब्लैकलिस्ट कर दिया गया और उसका पट्टा रद्द कर दिया गया।
- याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उसका पक्ष नहीं सुना गया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया।
- याचिका को स्वीकार करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को तत्काल प्रभाव से अपनी ज़मीन पर काम करने की अनुमति दी जाए।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ की पीठ ने कहा कि, कुछ लोगों को यह लग सकता है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन एक जटिल प्रक्रिया है, लेकिन हम पाते हैं कि एक सभ्य समाज में कानून का शासन होना चाहिये और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनिवार्य रूप से पालन होना चाहिये।
- न्यायालय ने आगे कहा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन पट्टे को रद्द करने और ब्लैकलिस्ट में डालने के आदेश को रद्द करने के लिये पर्याप्त कारण था।
प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत क्या हैं?
- परिचय:
- प्राकृतिक न्याय एक सामान्य कानून अवधारणा है जो न्यायोचित, समान और निष्पक्ष न्याय वितरण पर ज़ोर देती है।
- इसकी उत्पत्ति 'जस-नेचुरल' (jus-naturale) और 'लेक्स-नेचुरल' (lex-naturale) शब्दों से हुई है जो प्राकृतिक न्याय, प्राकृतिक कानून एवं समानता के सिद्धांतों पर ज़ोर देते हैं।
- प्राकृतिक न्याय के नियम:
- निमो जुडेक्स इन कॉसा सुआ (Nemo Judex In Causa Sua): इसका अर्थ है कि किसी को भी अपने मामले में न्यायाधीश नहीं होना चाहिये क्योंकि इससे पक्षपात का नियम कायम हो जाता है।
- ऑडी अल्टरम पार्टेम (Audi Alteram Partem): इसका अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर दिये बिना न्यायालय द्वारा निंदित या दंडित नहीं किया जा सकता है।
- निर्णयज विधि:
- मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य निर्वाचन आयुक्त (1977) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्राकृतिक न्याय की अवधारणा हर कार्य में होनी चाहिये, चाहे वह न्यायिक, अर्द्ध-न्यायिक, प्रशासनिक या अर्द्ध-प्रशासनिक कार्य हो जिसमें पक्षों के नागरिक परिणाम शामिल होते हैं।
- स्वदेशी कॉटन मिल्स बनाम भारत संघ (1981) मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को मौलिक माना जाता है और इसलिये वे प्रत्येक निर्णय लेने वाले कार्यों में निहित होते हैं।
- भारत संघ बनाम डब्ल्यू.एन. चड्ढा (1992) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि चूँकि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना और न्याय के निष्फलता को रोकना है, इसलिये ये नियम उन क्षेत्रों पर लागू नहीं होते जहाँ इनके लागू होने से अन्याय हो सकता है।