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सांविधानिक विधि

पसंदीदा व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार

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 11-Jun-2024

नाजिया अंसारी एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

कोई भी व्यक्ति, किसी वयस्क व्यक्ति के कहीं पर भी जाने अथवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने अथवा अपनी इच्छा के अनुसार विवाह करने पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता है”।

न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर और अरुण कुमार सिंह देशवाल

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नाजिया अंसारी एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि कोई भी व्यक्ति, किसी वयस्क व्यक्ति पर अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ कहीं जाने अथवा रहने, अथवा अपनी इच्छा के अनुसार विवाह करने पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता है, क्योंकि यह एक मौलिक अधिकार है जो भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 21 से प्राप्त होता है।

नाजिया अंसारी एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में पहला याचिकाकर्त्ता लगभग 21 साल की एक वयस्क महिला है। दूसरा याचिकाकर्त्ता एक वयस्क पुरुष है। आरोप है कि इन दोनों ने अपनी मर्ज़ी और स्वतंत्र इच्छा से शादी की है।
  • उसने 17 अप्रैल 2024 को मुस्लिम रीति-रिवाज़ों के अनुसार दूसरे याचिकाकर्त्ता से विवाह किया, जिसके संबंध में 25 अप्रैल 2024 को तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड द्वारा जारी विवाह प्रमाण-पत्र मौजूद है।
  • दूसरे याचिकाकर्त्ता से विवाह करने के उसके निर्णय से व्यथित होकर महिला के चाचा ने उसके पति के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करायी।
  • इसके बाद पुलिस ने न केवल उसके पति को गिरफ्तार कर लिया, बल्कि महिला को भी अभिरक्षा में लेकर उसके चाचा को सौंप दिया।
  • जब पुलिस ने महिला को बयान दर्ज कराने के लिये मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया तो उसने स्पष्ट रूप से कहा कि उसने अपनी मर्ज़ी से शादी की है और उसके पति को इस मामले में झूठा फँसाया गया है।
  • महिला ने यह भी आशंका व्यक्त की कि उसे मार दिया जाएगा क्योंकि उसके चाचा उसे धमकी दे रहे थे; इसके बावजूद, संबंधित मजिस्ट्रेट ने उसे उसके चाचा के घर भेजने का निर्देश दिया।
  • FIR को चुनौती देते हुए याचिकाकर्त्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की।
  • रिट याचिका को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने आरोपित FIR को रद्द कर दिया
  • न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि उसके चाचा या परिवार का कोई अन्य सदस्य उसे किसी भी तरह से नुकसान न पहुँचाए।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर और न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि दोनों याचिकाकर्त्ता बालिग हैं तथा उन्हें साथ रहने या विवाह करने का अधिकार है। अतः महिला के चाचा को कथित FIR दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं था और इसलिये , उसके अनुसार की गई सभी कार्यवाही स्पष्ट रूप से अवैध थी।
  • भले ही याचिकाकर्त्ताओं ने एक-दूसरे से शादी न की हो, फिर भी कोई भी व्यक्ति किसी वयस्क को अपनी पसंद की जगह जाने, अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने या अपनी इच्छानुसार विवाह करने से नहीं रोक सकता। यह अधिकार COI के अनुच्छेद 21 से प्राप्त होता है।

COI का अनुच्छेद 21 क्या है?

परिचय:

  • अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
    • जीवन का अधिकार केवल पशु अस्तित्त्व या जीवित रहने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार और जीवन के वे सभी आयाम शामिल हैं जो मनुष्य के जीवन को सार्थक, पूर्ण तथा जीने लायक बनाते हैं।
  • अनुच्छेद 21 दो अधिकार सुरक्षित करता है:
    • जीवन का अधिकार
    • व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
  • इस अनुच्छेद को जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा करने वाला प्रक्रियात्मक मैग्ना कार्टा कहा गया है।
  • यह मौलिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति, नागरिक और विदेशियों को समान रूप से उपलब्ध है।
  • भारत के उच्चतम न्यायालय ने इस अधिकार को मौलिक अधिकारों का हृदय बताया है।
  • यह अधिकार केवल राज्य के विरुद्ध ही प्रदान किया गया है।

अनुच्छेद 21 के अधीन अधिकार:

  • अनुच्छेद 21 में निम्नलिखित अधिकार शामिल हैं:
    • निजता का अधिकार
    • विदेश जाने का अधिकार
    • आश्रय का अधिकार
    • एकांत कारावास के विरुद्ध अधिकार
    • सामाजिक न्याय और आर्थिक सशक्तीकरण का अधिकार
    • हथकड़ी लगाने के विरुद्ध अधिकार
    • अभिरक्षा में मृत्यु के विरुद्ध अधिकार
    • विलंबित मृत्युदण्ड के विरुद्ध अधिकार
    • डॉक्टरों की सहायता
    • सार्वजनिक मृत्युदण्ड के विरुद्ध अधिकार
    • सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
    • प्रदूषण मुक्त जल और वायु का अधिकार
    • प्रत्येक बच्चे के पूर्ण विकास का अधिकार
    • स्वास्थ्य और चिकित्सा सहायता का अधिकार
    • शिक्षा का अधिकार
    • विचाराधीन कैदी की सुरक्षा

निर्णयज विधियाँ:

  • फ्राँसिस कोराली मुलिन बनाम प्रशासक (1981) मामले में न्यायमूर्ति पी. भगवती ने कहा था कि संवैधानिक दायित्व संहिता का अनुच्छेद 21 एक लोकतांत्रिक समाज में उच्चतम महत्त्व के संवैधानिक मूल्य को दर्शाता है।
  • खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1963) में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि जीवन शब्द का अर्थ केवल पशु अस्तित्त्व से कहीं अधिक है। इसके वंचना के विरुद्ध निषेध उन सभी अंगों और क्षमताओं तक फैला हुआ है जिनके द्वारा जीवन का आनंद लिया जाता है। यह प्रावधान किसी व्यक्ति के शरीर से पैर को काटकर अथवा आँख निकालकर या शरीर के किसी अन्य अंग को नष्ट करके शरीर को विकृत करने पर भी समान रूप से प्रतिबंध लगाता है जिसके माध्यम से आत्मा बाहरी दुनिया से संवाद करती है।