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आपराधिक कानून

संस्वीकृति का अधिकार

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 08-May-2024

चेक्कुट्टी बनाम केरल राज्य

"संस्वीकृति के अधिकार का प्रयोग कम सज़ा पाने के लिये एक उपकरण के रूप में नहीं किया जाएगा।"

न्यायमूर्ति पी. सोमराजन

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चेक्कुट्टी बनाम केरल राज्य के मामले में केरल उच्च न्यायालय ने माना है कि संस्वीकृति के अधिकार का प्रयोग कम सज़ा पाने के लिये एक उपकरण के रूप में नहीं किया जाएगा।

चेक्कुट्टी बनाम केरल राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • मौजूदा मामले में आरोपी लंबे समय तक फरार रहा तथा विचारण न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं हुआ, हालाँकि कथित अपराध बहुत गंभीर प्रकृति का है, जो भारतीय दण्ड संहिता, 1860 ( IPC) के प्रावधानों के दायरे में आएगा।
  • जैसा कि मेडिकल रिपोर्ट से स्पष्ट है, पीड़ित को कथित तौर पर जो चोटें आई हैं, उससे पता चलता है कि किस तरह से चोटें पहुँचाई गईं, जो पीड़ित के सिर के महत्त्वपूर्ण हिस्से पर हैं।
  • मजिस्ट्रेट ने ज़ुर्माने की कम सज़ा, केवल इसलिये दी क्योंकि आरोपी ने विचारण न्यायालय के समक्ष संस्वीकृति कर लिया था।
  • इसके बाद शिकायतकर्त्ता ने केरल उच्च न्यायालय के समक्ष आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की।
  • याचिका को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने सज़ा के आदेश को रद्द कर दिया तथा मामले को नए सिरे से विचार करने एवं उचित सज़ा का आदेश देने के लिये विचारण न्यायालय में वापस भेज दिया गया।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायमूर्ति पी. सोमराजन ने कहा कि संस्वीकृति के अधिकार का प्रयोग कम सज़ा पाने के उपकरण के रूप में नहीं किया जाना चाहिये। अभियुक्त द्वारा संस्वीकृति के मामले में न्यायालय  को उदार दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिये तथा सज़ा देने के मामले में केवल इस आधार पर कोई रियायत नहीं दी जा सकती कि अभियुक्त ने संस्वीकृति कर लिया है। दूसरी ओर, वाक्य में उचित संतुलन प्रतिबिंबित होना चाहिये।

संस्वीकृति का अधिकार क्या है?

परिचय:

  • संस्वीकृति का अधिकार, एक ऐसा अधिकार है, जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के अधीन प्रदान किया गया है, जिसमें अभियुक्त को अवसर तय होने के बाद दोषी या दोषी न होने को स्वीकार करने का अवसर दिया गया है।
  • एक बार जब आरोपी स्वयं को दोषी नहीं मानता है, तो न्यायाधीश मामले की सुनवाई के लिये न्यायिक प्रक्रिया प्रारंभ करता है।
  • यदि अभियुक्त संस्वीकृति करता है, तो न्यायाधीश उसके तर्क को दर्ज करेगा तथा अपने विवेक से उसे दोषसिद्धि दे सकता है।

प्रासंगिक विधिक  प्रावधान:

विचारण

धारा

उद्देश्य

सत्र न्यायालय के समक्ष मुकदमा

CrPC की धारा 229

यदि अभियुक्त संस्वीकृति करता है, तो न्यायाधीश याचिका को रिकॉर्ड करेगा तथा अपने विवेक से उसे दोषसिद्धि दे सकता है

वारंट मामलों का विचारण

CrPC की धारा 241

यदि अभियुक्त संस्वीकृति करता है, तो मजिस्ट्रेट याचिका दर्ज करेगा तथा अपने विवेक से उसे दोषसिद्धि दे सकता है।

CrPC की धारा 242

यदि अभियुक्त तर्क देने से मना करता है या तर्क नहीं देता है या विचारण चलाए जाने का दावा नहीं करता है या मजिस्ट्रेट धारा 241 के अधीन अभियुक्त को दोषसिद्धि नहीं देता है, तो मजिस्ट्रेट अभियोजन के लिये साक्ष्य का विकल्प चुनेगा।

समन मामलों का विचारण

CrPC की धारा 252

यदि अभियुक्त संस्वीकृति करता है, तो मजिस्ट्रेट अभियुक्त द्वारा प्रयुक्त शब्दों में यथासंभव उसके तर्क दर्ज करेगा तथा अपने विवेक से उसे दोषसिद्धि दे सकता है।

CrPC की धारा 254

यह उस प्रक्रिया से संबंधित है, जब अभियुक्त संस्वीकृति नहीं