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सांविधानिक विधि

विरोध प्रदर्शन का अधिकार

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 25-Jun-2024

फेडरल बैंक लिमिटेड बनाम फेडरल बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन

आंदोलनकारी को अपनी इच्छानुसार किसी भी स्थान पर विरोध प्रदर्शन करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है तथा यदि ऐसा होता है तो उस विरोध प्रदर्शन पर तर्कसंगत प्रतिबंध लगाया जा सकता है”।

न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने फेडरल बैंक लिमिटेड बनाम फेडरल बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के मामले में माना है कि आंदोलनकारी को अपनी इच्छानुसार किसी भी स्थान पर विरोध प्रदर्शन करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है तथा यदि ऐसा होता है तो ऐसे विरोध प्रदर्शन पर उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

फेडरल बैंक लिमिटेड बनाम फेडरल बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में याचिकाकर्त्ता फेडरल बैंक लिमिटेड एक बैंकिंग कंपनी है।
  • प्रतिवादी फेडरल बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन है, जो एक ट्रेड यूनियन है, जिसमें याचिकाकर्त्ता के बैंक के स्केल I से लेकर III कैडर के अधिकारी इसके सदस्य हैं।
  • बैंक ने इस यूनियन तथा उसके सदस्यों एवं समर्थकों पर, बैंक अधिकारियों एवं ग्राहकों को बैंक के साथ लेन-देन करने में बाधा डालने से रोकने के लिये स्थायी निषेधाज्ञा हेतु ट्रायल कोर्ट के समक्ष वाद दायर किया।
  • ट्रायल कोर्ट ने बैंक परिसर के 200 मीटर के दायरे में प्रदर्शन पर रोक लगाते हुए एक अस्थायी निषेधाज्ञा जारी की।
  • अपील में ज़िला न्यायालय ने इस आदेश को संशोधित किया और निर्देश दिया कि आंदोलनकारियों द्वारा बैंक के शांतिपूर्ण कामकाज में बाधा डालने वाले किसी भी तरह के प्रदर्शन से रोका जाए।
  • इसके उपरांत केरल उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई।
  • उच्च न्यायालय ने बैंक कार्यालय परिसर से 50 मीटर के अंदर किसी भी प्रकार के प्रदर्शन, धरना, नारेबाज़ी पर प्रतिबंध लगा दिया है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ की एकल पीठ ने कहा कि भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत अधिकार असीम नहीं हैं और इसका प्रयोग इस तरह से किया जाना चाहिये कि नियोक्ता के अपने वैध व्यवसाय को चलाने के अधिकार में हस्तक्षेप न हो। न्यायालय ने कहा कि वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी अन्य व्यक्ति के संपत्ति का आनंद लेने या व्यवसाय करने के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
  • आगे यह भी माना गया कि इस अधिकार का प्रयोग इस तरह से नहीं किया जा सकता कि नियोक्ताओं को डराकर उन्हें अधीनता में लाने के लिये बाध्य किया जा सके।

विरोध करने का अधिकार क्या है?

परिचय:

  • विरोध करने का अधिकार, मौलिक अधिकारों के अंतर्गत कोई स्पष्ट अधिकार नहीं है, इसे संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से प्राप्त किया जा सकता है।
  • यह अधिकार, प्रत्येक नागरिक को शांतिपूर्ण ढंग से एकत्र होने एवं राज्य की कार्यवाही या निष्क्रियता के विरुद्ध विरोध करने में सक्षम बनाते हैं।
  • विरोध का अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि लोग निगरानीकर्त्ता के रूप में कार्य कर सकें और सरकार के कार्यों पर लगातार निगरानी रख सकें।
  • यह सरकार को उसकी नीतियों एवं कार्यों के विषय में प्रतिपुष्टि प्रदान करता है जिसके उपरांत सरकार परामर्श, बैठकों तथा चर्चा के माध्यम से अपनी गलतियों का संज्ञान लेती है और उसमें सुधार करती है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 19(1)(a): वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, सरकार के आचरण पर स्वतंत्र रूप से राय व्यक्त करने के अधिकार में परिवर्तित हो जाता है।
  • अनुच्छेद 19(1)(b): राजनीतिक उद्देश्यों हेतु संघ बनाने के लिये, संघ बनाने के अधिकार की आवश्यकता होती है। इनका गठन सामूहिक रूप से सरकारी निर्णयों को चुनौती देने के लिये किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 19(1)(c): शांतिपूर्वक एकत्र होने का अधिकार, लोगों को प्रदर्शनों, आंदोलनों एवं सार्वजनिक सभाओं के माध्यम से सरकार के कार्यों पर प्रश्न उठाने और आपत्ति जताने तथा विरोध प्रदर्शन प्रारंभ करने की अनुमति देता है।

विरोध प्रदर्शन के अधिकार पर प्रतिबंध:

  • अनुच्छेद 19(2) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर तर्कसंगत प्रतिबंध लगाता है। ये तर्कसंगत प्रतिबंध निम्नलिखित हितों के लिये अध्यारोपित किये जाते हैं:
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता,
    • राज्य की सुरक्षा
    • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध,
    • सार्वजनिक व्यवस्था
    • शालीनता या नैतिकता
    • न्यायालय की अवमानना
    • मानहानि
    • किसी अपराध के लिये उकसाना

निर्णयज विधियाँ:

  • रामलीला मैदान घटना बनाम गृह सचिव, भारत संघ एवं अन्य मामले (2012) में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि नागरिकों को एकत्रित होने और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने का मौलिक अधिकार है, जिसे मनमानी कार्यकारी या विधायी कार्यवाही से नहीं छीना जा सकता।
  • ज़दूर किसान शक्ति संगठन बनाम भारत संघ एवं अन्य (2018) में, उच्चतम न्यायालय ने प्रदर्शन करने के लिये, स्थानीय निवासियों के हितों के साथ प्रदर्शनकारियों के हितों को संतुलित करने का प्रयास किया और पुलिस को शांतिपूर्ण विरोध एवं प्रदर्शनों के लिये क्षेत्र के सीमित उपयोग हेतु एक उचित तंत्र विकसित करने तथा मापदंड निर्धारित करने का निर्देश दिया।