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आपराधिक कानून

CrPC की धारा 125

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 18-Dec-2023

श्रीमती अंजना मुखोपाध्याय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

"CrPC की धारा 125 के तहत आवेदन के लंबित रहने के दौरान अंतरिम भरण-पोषण का आदेश एक अंतर्वर्ती आदेश नहीं है।"

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया

स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय

परिचय:

हाल ही में श्रीमती अंजना मुखोपाध्याय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code- CrPC) की धारा 125 के तहत आवेदन के लंबित रहने के दौरान, अंतरिम भरण-पोषण का आदेश एक अंतर्वर्ती आदेश नहीं है।

नोट:

अंतर्वर्ती आदेश मुकदमेबाज़ी के दौरान जारी किया गया एक अस्थायी आदेश है जो न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले या निर्णय को संदर्भित करता है जो मामले का अंतिम निर्णय या प्रवृत्ति नहीं है।

श्रीमती अंजना मुखोपाध्याय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में संशोधनवादी (पत्नी) पहले एक शिक्षक के रूप में कार्यरत थी और निजी ट्यूशन पढ़ा रही थी।
  • तत्पश्चात कोविड के बाद, निजी ट्यूशन भी नहीं किया जा सका और रिवीज़निस्ट भी फुट सेल्युलाइटिस, आरटी. लेग वैरिकोज वेन्स से पीड़ित है, जबकि विपरीत पक्ष (पति) सेना से सेवानिवृत्त हो गया है और सेना अधिकारियों द्वारा शुरू की गई वन रैंक वन पेंशन के बाद विपरीत पक्ष पेंशन के रूप में प्रति माह 1,50,000/- रुपए से अधिक कमा रहा था।
  • फैमिली कोर्ट के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने 15,000 रुपए प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण देने का फैसला सुनाया था।
  • अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की गई है।
  • न्यायालय ने अंतरिम गुजारा भत्ता बढ़ाते हुए अपील का निपटारा कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने कहा कि कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण देने की शक्ति दूसरे प्रावधान से CrPC की धारा 125(1) में आती है। जिस तरीके से उक्त शक्ति का प्रयोग किया जाना है वह अंततः यह निर्धारित करने के लिये है कि आदेश अंतरिम है या नहीं।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि चूँकि आदेश भौतिक तथ्यों के आधार पर आवेदन के लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण देने का निर्णायक निर्णय करता है, इसलिये इसे निश्चित रूप से एक अंतर्वर्ती आदेश नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह आवेदन के लंबित रहने के दौरान अंतरिम भरण-पोषण देने के अधिकार का निर्णय करता है।

CrPC की धारा 125 क्या है?

परिचय:

यह धारा पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण के आदेश से संबंधित है। यह प्रकट करती है कि -

(1) यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति -
(a) अपनी पत्नी का, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या

(b) अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतार का, चाहे विवाहित हो न हो, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या

(c) अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का (जो विवाहित पुत्री नहीं है) जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहाँ ऐसी संतान किसी शरीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या

(d) अपने पिता या माता का, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, भरण-पोषण करने में उपेक्षा करता है या भरण-पोषण करने से इंकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इंकार के साबित हो जाने पर, ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता या माता के भरण-पोषण के लिये ऐसी मासिक दर पर, जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय पर निर्देश दे:

परंतु मजिस्ट्रेट खण्ड (b) निर्दिष्ट अवयस्क पुत्री के पिता को ऐसा भत्ता दे जब तक वह वयस्क नहीं हो जाती है यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि ऐसी अवयस्क पुत्री के, यदि वह विवाहित हो, पति के पास पर्याप्त साधन नहीं है।

परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन मासिक भत्ते से संबंधित भरण-पोषण की कार्यवाही के दौरान मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को आदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता या माता, को अंतरिम भरण-पोषण और ऐसी कार्यवाही के खर्चे, का मासिक भत्ता दे जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे और उसका संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिसके लिये वह समय-समय पर निर्देश दे।

परंतु यह और भी कि इस द्वितीय परंतुक के अधीन अंतरिम भरण-पोषण और कार्यवाही के खर्चे का मासिक भत्ता के लिये का आवेदन को यथा सम्भव आवेदन की सूचना ऐसे व्यक्ति पर तामील से 60 दिन में निपटा दिया जाय।

स्पष्टीकरण - इस अध्याय के प्रयोजनों के लिये-

(a) ‘अवयस्क’ से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसके बारे में भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 (1875 का 9) के उपबंधों के अधीन यह समझा जाता है कि उसने व्यस्कता प्राप्त नहीं की है।

(b) ‘पत्नी’ के अंतर्गत ऐसी स्त्री भी है जिसके पति ने उससे विवाह-विच्छेद कर लिया है जिसने अपने पति से विवाह-विच्छेद कर लिया है और जिसने पुनर्विवाह नही किया है।

(2) भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण के लिये ऐसा कोई भत्ता या कार्यवाही के खर्चे आदेश की तिथि से, या यदि ऐसा आदेश दिया जाता है तो भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण और कार्यवाही के खर्चे, जैसी भी स्थिति हो आवेदन की तिथि से संदेय होगा।

(3) यदि कोई व्यक्ति जिसे आदेश दिया गया हो, उस आदेश का अनुपालन करने में पर्याप्त कारण के बिना असफल रहता है तो उस आदेश के प्रत्येक भंग के लिये ऐसा कोई मजिस्ट्रेट देय रकम के ऐसी रीति से उदगृहीत किये जाने के लिये वारण्ट जारी कर सकता है जैसी रीति ज़ुर्माने उदगृहीत करने के लिये उपबंधित है और उस वारण्ट के निष्पादन के पश्चात प्रत्येक मास के न चुकाए गए भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण का भत्ता और कार्यवाही के खर्चे जैसी भी स्थिति हो या उसके किसी भाग के लिये ऐसे व्यक्ति को एक मास तक की अवधि के लिये अथवा यदि वह उससे पूर्व चुका दिया जाता है तो चुका देने के समय तक के लिये कारावास का दंडादेश दे सकता हैः परंतु इस धारा के अधीन देय किसी रकम की वसूली के लिये कोई वारण्ट तब तक जारी न किया जाएगा जब तक उस रकम को उदगृहीत करने के लिये, उस तिथि से जिसको वह देय हुई एक वर्ष की अवधि के अंदर न्यायालय से आवेदन नहीं किया गया है:

परंतु यह और कि यदि ऐसा व्यक्ति इस शर्त पर भरण-पोषण करने की प्रस्थापना करता है कि उसकी पत्नी उसके साथ रहे और वह पति के साथ रहने से इनकार करती है तो ऐसा मजिस्ट्रेट उसके द्वारा कथित इंकार के किन्हीं आधारों पर विचार कर सकता है व ऐसी प्रस्थापना के किये जाने पर भी वह इस धारा के अधीन आदेश दे सकता है यदि उसका सामाधान हो जाता है कि ऐसा आदेश देने के लिये न्यायसंगत आधार है।

स्पष्टीकरण - यदि पति ने अन्य स्त्री से विवाह कर लिया है या वह रखेल रखता है तो यह उसकी पत्नी द्वारा उसके साथ रहने से इनकार का न्यायसंगत आधार माना जाएगा।

(4) कोई पत्नी अपने पति से इस धारा के अधीन भरण-पोषण का भत्ता और कार्यवाही के खर्चे के जैसी भी स्थिति हो प्राप्त करने की हकदार न होगी यदि वह जारता की दशा में रह रही है अथवा यदि वह पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है अथवा यदि वे पारस्परिक सम्मति से पृथक रह रहे है।

(5) मजिस्ट्रेट यह साबित होने पर आदेश को रदद कर सकता है कि कोई पत्नी, जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है जारता की दशा में रह रही है अथवा पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है अथवा वे पारस्परिक सम्मति से पृथक रह रहे है।

संबंधित निर्णयज विधि:

  • के. विमल बनाम के.वीरास्वामी (1991) में उच्चतम न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 125 एक सामाजिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये पेश की गई थी। इस धारा का उद्देश्य पति से अलग होने के बाद पत्नी को आवश्यक आश्रय और भोजन प्रदान करके उसका कल्याण करना है।