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आपराधिक कानून

CrPC की धारा 188

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 27-May-2024

एम. अमानुल्ला खान बनाम सजीना वहाब एवं अन्य

CrPC की धारा 188 तभी लागू होती है जब संपूर्ण अपराध भारत के बाहर किया गया हो।”

न्यायामूर्ति के. बाबू

स्रोत : केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एम. अमानुल्ला खान बनाम सजीना वहाब एवं अन्य के मामले में केरल उच्च न्यायालय ने माना है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 188 के प्रावधान केवल तभी लागू होते हैं जब संपूर्ण अपराध भारत के बाहर हुआ हो।

एम. अमानुल्ला खान बनाम सजीना वहाब एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में याचिकाकर्त्ता ने अपने विरुद्ध दर्ज FIR को रद्द करने के लिये केरल उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया।
  • याचिकाकर्त्ता दुबई में काम कर रहा था तथा उस पर पद की शक्ति का दुरुपयोग करके कंपनी के खाते से अनधिकृत रूप से पैसे निकालने का आरोप है।
  • इस प्रकार गबन की गई राशि, कोल्लम ज़िले के विभिन्न बैंकों में सके व्यक्तिगत खाते तथा उसकी पत्नी के खाते में स्थानांतरित कर दी गई ।
  • याचिकाकर्त्ता के अधिवक्ता ने कहा कि चूँकि अपराध भारत के बाहर किये गए थे, अतः जाँच एजेंसी CrPC की धारा 188 के अनुसार दी गई  केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के अतिरिक्त आरोपों की जाँच करने में सक्षम नहीं थी।
  • इस मामले को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया क्योंकि यह मामला चलाने योग्य नहीं था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति के. बाबू ने कहा कि यदि अपराध पूरी तरह से भारत के बाहर नहीं किया गया है, तो मामला CrPC की धारा 188 के दायरे में नहीं आएगा तथा धारा 188 के प्रावधानों के अनुसार किसी भी अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि स्थापित विधि के कारण CrPC की धारा 188 पर निर्भर याचिकाकर्त्ता की दलील विफल हो जाती है।

CrPC  की धारा 188 क्या है?

परिचय:

  • CrPC की धारा 188 में एक अतिरिक्त-क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार लागू होने पर परीक्षण एवं पूछताछ का प्रावधान है। यह भारत के बाहर किये गए अपराधों से संबंधित है।

विधिक प्रावधान:

यह धारा बताती है कि जब कोई अपराध भारत के बाहर किया जाता है—

(a) भारत के नागरिक द्वारा, चाहे वह खुले समुद्र में हो या कहीं और; या

(b) भारत में पंजीकृत किसी जहाज़ अथवा विमान पर ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो भारत का नागरिक नहीं है।

इस अपराध के संबंध में उस व्यक्ति से इस तरह से बर्ताव किया जा सकता है जैसे कि यह अपराध भारत के भीतर किसी स्थान पर किया गया हो, जहाँ पर वह उपस्थित था।

बशर्ते कि इस अध्याय के किसी भी पूर्ववर्ती खंड में कुछ भी प्रावधान होने के बावजूद केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना भारत में ऐसे किसी भी अपराध की जाँच अथवा मुकदमा नहीं चलाया जाएगा।

निर्णयज विधियाँ:

  • नेरेल्ला चिरंजीवी अरुण कुमार बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2021) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 188 के अनुसार, किसी भारतीय नागरिक के विरुद्ध भारत के बाहर किये गए अपराधों के लिये आपराधिक मामले की सुनवाई, भारत की केंद्र सरकार की अनुमति के बिना प्रारंभ नहीं हो सकती।
  • सरताज खान बनाम उत्तराखंड राज्य (2022) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 188 के अधीन केंद्र सरकार की अनुमति केवल तभी आवश्यक है जब संपूर्ण अपराध भारत के बाहर किया गया हो।