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कुटुंब न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19

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 28-Dec-2023

हेमसिंह उर्फ टिंचू बनाम श्रीमती भावना

"एक बार जब क्रूरता पाई जाती है तो वह विवाह-विच्छेद की कार्रवाई का कारण बनता है। उसके बाद पक्षकार किस प्रकार व्यवहार करेंगे, यह प्रासंगिक कारक बना रह सकता है। फिर भी कानून का कोई नियम लागू नहीं हो सकता, जो न्यायालय को अन्य उपस्थित परिस्थितियों को देखे बिना पक्षकारों के बीच वैवाहिक संबंध बहाल करने के लिये आदेश पारित करने का निर्देश दे सकता है।"

न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और शिव शंकर प्रसाद

स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और शिव शंकर प्रसाद ने कहा है कि एक बार जब क्रूरता पाई जाती है तो यह विवाह-विच्छेद की कार्रवाई का कारण बनती  है। उसके बाद पक्षकार किस प्रकार व्यवहार करेंगे, यह प्रासंगिक कारक बन सकता है। फिर भी कानून का कोई नियम लागू नहीं हो सकता, जो न्यायालय को अन्य उपस्थित परिस्थितियों को देखे बिना पक्षकारों के बीच वैवाहिक संबंध बहाल करने के लिये आदेश पारित करने का निर्देश दे सकता है।

हेमसिंह उर्फ टिंचू बनाम श्रीमती भावना की पृष्ठभूमि क्या है?

  • अपीलकर्त्ता-पति ने प्रतिवादी-पत्नी के कहने पर अपनी विवाह को भंग करने के लिये कुटुंब न्यायालय, इटावा के मुख्य न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की।
  • न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी-पत्नी ने क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद की मांग की थी।
  • अपीलकर्त्ता-पति के करीबी रिश्तेदारों ने प्रतिवादी-पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों की पुष्टि की थी। इस आशय के बयान दिये गए कि अपीलकर्त्ता के पिता ने उसके बुरे आचरण के कारण उसे अपनी वसीयत से बेदखल कर दिया था।
  • न्यायालय ने दहेज आदि की मांग न करने पर विवाह बहाल कर दिये जाने की अपीलकर्त्ता-पति की इस दलील को खारिज़ करके कोई गलती नहीं की है।
  • न्यायालय ने माना कि क्रूरता हुई है और अपीलकर्त्ता-पति द्वारा दायर अपील को खारिज़ कर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थी?

  • एक बार जब क्रूरता पाई जाती है तो वह विवाह-विच्छेद की कार्रवाई का कारण बनती है। उसके बाद पक्षकार किस प्रकार व्यवहार करेंगे, यह प्रासंगिक कारक बना रह सकता है।
  • फिर भी कानून का कोई नियम लागू नहीं हो सकता, जो न्यायालय को अन्य उपस्थित परिस्थितियों को देखे बिना पक्षकारों के बीच वैवाहिक संबंध बहाल करने के लिये आदेश पारित करने का निर्देश दे सकता है।

कुटुंब न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19 क्या है?

कुटुंब न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19 'अपील' से संबंधित है।

(1) उप-धारा (2) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय और सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 में या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में या किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, किसी कुटुंब न्यायालय के प्रत्येक निर्णय या आदेश की, जो अंतर्वर्ती आदेश नहीं है, अपील उच्च न्यायालय में तथ्यों और विधि, दोनों के संबंध में होंगी।

(2) कुटुंब न्यायालय द्वारा पक्षकारों की सहमति से पारित [किसी डिक्री या आदेश की या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 9 के अधीन पारित किसी आदेश की कोई अपील नहीं होगी: परंतु इस उपधारा की कोई बात कुटुंब न्यायालय (संशोधन) अधिनियम, 1991 के प्रारंभ के पूर्व किसी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित किसी अपील या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 9 के अधीन पारित किसी आदेश को लागू नहीं होगी]।

(3) इस धारा के अधीन प्रत्येक अपील, किसी कुटुंब न्यायालय के निर्णय या आदेश की तिथि से तीस दिन की अवधि के भीतर की जाएगी।

(4) उच्च न्यायालय, स्वप्रेरणा से या अन्यथा, ऐसी किसी कार्यवाही का, जिसमें उसकी अधिकारिता के भीतर स्थित कुटुंब न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 9 के अधीन कोई आदेश पारित किया है, अभिलेख, उस आदेश को, जो अंतवर्ती आदेश न हो, तथ्यता, वैधता या औचित्य के बारे में और ऐसी कार्यवाही की नियमितता के बारे में अपना समाधान करने के प्रयोजन के लिये मंगा सकता है और उसकी परीक्षा कर सकता है।]

(5) जैसा ऊपर कहा गया है उसके सिवाय, किसी कुटुंब न्यायालय के किसी निर्णय, आदेश या डिक्री की किसी न्यायालय में कोई अपील या पुनरीक्षण नहीं होगा।

(6) उप-धारा (1) केअधीन की गई किसी अपील की सुनवाई दो या अधिक न्यायाधीशों से मिलकर बनी किसी न्यायपीठ द्वारा की जाएगी।