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आपराधिक कानून

CrPC की धारा 451

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 12-Mar-2024

ओमप्रकाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मुख्य गृह सचिव लखनऊ एवं अन्य के माध्यम से

"CrPC की धारा 451 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग दण्ड न्यायालयों द्वारा न्यायसम्मत मत से और बिना किसी अनावश्यक देरी के किया जाना चाहिये।"

न्यायमूर्ति शमीम अहमद

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ओमप्रकाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मुख्य गृह सचिव लखनऊ एवं अन्य के माध्यम से मामले में माना है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973  (CrPC) की धारा 451 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग दण्ड न्यायालयों द्वारा न्यायसम्मत मत से और बिना किसी अनावश्यक देरी के किया जाना चाहिये।

ओमप्रकाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मुख्य गृह सचिव लखनऊ एवं अन्य के माध्यम से मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, याचिकाकर्त्ता ने अपने वाहन की ज़ब्ती को चुनौती दी थी, जो कथित तौर पर उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम, 1955 के प्रावधानों का उल्लंघन करके एक बछड़े को विक्रय के लिये ले जाने में शामिल था।
  • याचिकाकर्त्ता ने ज़िला मजिस्ट्रेट, अयोध्या के समक्ष रिहाई आवेदन दायर किया और संबंधित मजिस्ट्रेट ने पुलिस द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्त्ता के आवेदन को खारिज कर दिया और पुलिस अधिकारियों को ज़ब्त किये गए वाहन की मनमाने ढंग से सार्वजनिक नीलामी करने का निर्देश दिया।
  • इसके बाद, याचिकाकर्त्ता ने संबंधित ज़िला और सत्र न्यायाधीश, फैज़ाबाद के समक्ष उक्त आदेश के विरुद्ध आपराधिक पुनरीक्षण दायर किया, जिन्होंने ज़िला मजिस्ट्रेट, अयोध्या द्वारा पारित आदेश की पुष्टि करते हुए उक्त पुनरीक्षण को खारिज़ कर दिया।
  • इसके बाद, याचिकाकर्त्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की जिसे बाद में स्वीकार कर लिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने कहा कि आदेश पारित करते समय अधीनस्थ न्यायालय द्वारा CrPC की धारा 451 के तहत शक्ति का उचित और व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाता है। CrPC की धारा 451 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग अधीनस्थ न्यायालय द्वारा न्यायसम्मत मत से और बिना किसी अनावश्यक देरी के किया जा सकता है।
  • आगे यह माना गया कि वादी को नुकसान नहीं हो सकता है, केवल खुले प्रांगण में पुलिस की हिरासत में रखी वस्तु को रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और अंततः इसके परिणामस्वरूप उक्त संपत्ति को नुकसान होगा। संपत्ति के मालिक को शेष अवधि के लिये उक्त संपत्ति के फल का आनंद लेने की अनुमति है जिसके लिये संपत्ति बनाई जा रही है।

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

CrPC की धारा 451

परिचय:

  • CrPC की धारा 451 कुछ मामलों में विचारण लंबित रहने तक संपत्ति की अभिरक्षा और व्ययन के लिये आदेश से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
    • जब कोई संपत्ति, किसी दण्ड न्यायालय के समक्ष किसी जाँच या विचारण के दौरान पेश की जाती है तब वह न्यायालय उस जाँच या विचारण के समाप्त होने तक ऐसी संपत्ति की उचित अभिरक्षा के लिये ऐसा आदेश, जैसा वह ठीक समझे, कर सकता है और यदि वह संपत्ति शीघ्रतया या प्रकृत्या क्षयशील है या यदि ऐसा करना अन्यथा समीचीन है तो वह न्यायालय, ऐसा साक्ष्य अभिलिखित करने के पश्चात् जैसा वह आवश्यक समझे, उसके विक्रय या उसका अन्यथा व्ययन किये जाने के लिये आदेश कर सकता है।
    • स्पष्टीकरण- इस धारा के प्रयोजन के लिये “संपत्ति” के अंतर्गत निम्नलिखित है-
      (a) किसी भी किस्म की संपत्ति या दस्तावेज़ जो न्यायालय के समक्ष पेश की जाती है या जो उसकी अभिरक्षा में है,
      (b) कोई भी संपत्ति जिसके बारे में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है या जो किसी अपराध के करने में प्रयुक्त की गई प्रतीत होती है।

CrPC की धारा 451 का उद्देश्य:

  • यह धारा दण्ड न्यायालय को विचारण और जाँच के दौरान उसके समक्ष पेश की गई संपत्ति की अंतरिम अभिरक्षा के लिये आदेश देने का अधिकार देती है।
  • इस धारा का उद्देश्य यह है कि कोई भी संपत्ति जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से न्यायालय के नियंत्रण में है, उसके निपटान के संबंध में न्यायालय द्वारा न्यायसंगत एवं उचित आदेश के तहत निपटान किया जाना चाहिये।

उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम, 1955

  • यह अधिनियम 6 जनवरी, 1956 को उत्तर प्रदेश राज्य में लागू किया गया था।
  • यह अधिनियम उत्तर प्रदेश में गायों और उनकी संतानों के वध पर प्रतिबंध लगाता है।
  • इस अधिनियम में वर्ष 1958, 1961, 1964,1979 और 2002 तथा 2020 में संशोधन किया गया था।
  • वर्ष 2020 के संशोधन में गाय को शारीरिक क्षति पहुँचाने पर 7 वर्ष तक का कारावास और गो-हत्या से संबंधित मामलों में 3 लाख रुपए तक ज़ुर्माने का दंडात्मक प्रावधान शामिल किया गया।