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सिविल कानून

परिसीमा अधिनियम की धारा 5

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 05-Apr-2024

भारत संघ एवं अन्य. बनाम अपने विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से जहाँगीर बायरामजी जीजीभॉय (D)

“सीमा का प्रश्न केवल एक तकनीकी विचार नहीं है। परिसीमा के नियम सुदृढ़ सार्वजनिक नीति के सिद्धांतों एवं साम्यता के सिद्धांतों पर आधारित हैं|”

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस एवं जेबी पारदीवाला

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस एवं जे.बी. पारदीवाला ने कहा कि “सीमा का प्रश्न केवल एक तकनीकी विचार नहीं है। परिसीमा के नियम सुदृढ़ सार्वजनिक नीति के सिद्धांतों एवं साम्यता के सिद्धांतों पर आधारित हैं। हमें अपीलकर्त्ताओं की सनक एवं पसंद के आधार पर अनिश्चित काल तक प्रतिवादी के सिर पर 'डेमोकल्स की तलवार' लटकाए नहीं रखना चाहिये।”

  • उच्चतम न्यायालय ने यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य बनाम अपने विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से वी. जहाँगीर बायरामजी जीजीभॉय (D) मामले में यह सुनवाई की।

यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य बनाम अपने विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से वी. जहाँगीर बायरामजी जीजीभॉय (D) की पृष्ठभूमि क्या है?

  • यह अपील 9 जुलाई 2019 को बॉम्बे उच्च न्यायालय के एक विद्वान एकल न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश से उत्पन्न हुई।
  • उच्च न्यायालय ने 10 अक्टूबर 2006 को गैर-अभियोजन के कारण खारिज कर दी गई रिट याचिका संख्या 2307/1993 की बहाली के लिये आवेदन दायर करने में 12 साल और 158 दिनों की देरी को क्षमा करने से मना कर दिया।
  • 09 मार्च, 1951 को पट्टे पर दी गई वाद संपत्ति, पट्टा उल्लंघनों के कारण वर्ष 1981 के सिविल सूट संख्या 2599 में चली गई।
  • 29 अगस्त, 1992 को निर्णय एवं डिक्री के विरुद्ध अपील खारिज कर दी गई।
  • इसके बाद विभिन्न विधिक कार्यवाहियाँ हुईं, जिनमें वर्ष 2006 में खारिज की गई याचिका को बहाल करने का असफल प्रयास भी सम्मिलित था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि “हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि उच्च न्यायालय से विवादित आदेश पारित करने में कोई चूक नहीं हुई है तथा विधि संबंधी कोई भूल नहीं हुई है। जबकि उच्चतम न्यायालय अपने पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर रहा था।
  • SC के कई निर्णयों में कहा गया है कि विलंब को उदारता मानकर क्षमा नहीं किया जाना चाहिये। पर्याप्त न्याय प्रदान करना प्रतिपक्षी के मन में पूर्वाग्रह पैदा करना नहीं है।
  • अपीलकर्त्ता यह सिद्ध करने में विफल रहे हैं कि वे मामले पर मुकदमा चलाने में उचित रूप से चिंतनशील थे तथा यह महत्त्वपूर्ण परीक्षण इस मामले में विलंब को क्षमा करने के लिये युक्तियुक्त कारक होने के रूप में असफल रहे हैं।

परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 5 क्या है?

  • परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 5 विलंब क्षमा की अवधारणा से संबंधित है।
    • विलंब क्षमा का अर्थ है कि कुछ मामलों में पर्याप्त कारण होने पर निर्धारित समय का विस्तार।
    • विलंब को क्षमा करने की अवधारणा को मुख्य रूप से आवेदनों एवं अपीलों के लिये प्राथमिकता दी जाती है तथा यह मुकदमों को शामिल नहीं करती है।
  • धारा 5 में कहा गया है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के आदेश XXI के किसी भी प्रावधान के अधीन आवेदन के अतिरिक्त कोई भी अपील या आवेदन, निर्धारित अवधि के बाद भी स्वीकार किया जा सकता है, यदि अपीलकर्त्ता या आवेदक न्यायालय को इस प्रकार संतुष्ट करने में सफल हो जाए कि इतनी अवधि के अंदर अपील या आवेदन न करने के प्रस्तुत कारण युक्तियुक्त हैं।
  • धारा 5 के स्पष्टीकरण में कहा गया है कि यदि अपीलकर्त्ता या आवेदक निर्धारित अवधि का पता लगाने या गणना करने में HC के किसी भी आदेश, अभ्यास या निर्णय से चूक गया, तो इस धारा के अर्थ में पर्याप्त कारण हो सकते हैं।
  • रहीम शाह एवं अन्य बनाम गोविंद सिंह एवं अन्य (2023) के मामले SC ने माना कि विधायिका ने वर्ष 1963 के परिसीमा अधिनियम की धारा 5 को अधिनियमित करके विलंब को क्षमा करने की शक्ति प्रदान की है, ताकि न्यायालय, गुण-दोष के आधार पर मामलों का निपटारा करके पक्षकारों को पर्याप्त न्याय प्रदान करने में सक्षम हो सकें। विधायिका द्वारा नियोजित पर्याप्त कारण की अभिव्यक्ति पर्याप्त रूप से लोचदार है, ताकि न्यायालयों को विधि को सार्थक तरीके से लागू करने में सक्षम बनाया जा सके, जो न्याय के उद्देश्यों को पूरा करता है- जो न्यायिक संस्था के अस्तित्त्व का जीवन-उद्देश्य है।