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आपराधिक कानून
CrPC की धारा 82 और 83
« »15-Mar-2024
श्रीकांत उपाध्याय बनाम बिहार राज्य "यदि कोई अभियुक्त अज़मानती वारंट और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 82 के तहत उद्घोषणा उसके विरुद्ध लंबित है, तो वह गिरफ्तारी से पहले ज़मानत का हकदार नहीं होगा।" न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और संजय कुमार |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने श्रीकांत उपाध्याय बनाम बिहार राज्य के मामले में माना है कि यदि कोई अभियुक्त अज़मानती वारंट और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 82 के तहत उद्घोषणा उसके विरुद्ध लंबित है, तो वह गिरफ्तारी से पहले ज़मानत का हकदार नहीं होगा।
श्रीकांत उपाध्याय बनाम बिहार राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, उच्चतम न्यायालय के समक्ष वर्तमान अपील पटना उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध निर्देशित है जिसके तहत अपीलकर्त्ता द्वारा दायर अग्रिम ज़मानत के लिये आवेदन खारिज़ कर दिया गया था।
- आवेदन इस आधार पर खारिज़ कर दिया गया कि ट्रायल कोर्ट के वैध आदेशों की अवहेलना करने तथा कार्यवाही में देरी करने का प्रयास करने के लिये अभियुक्त के विरुद्ध अज़मानती वारंट और उद्घोषणा जारी की गई थी।
- भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) के प्रावधानों के तहत उसके और सह-अभियुक्त के विरुद्ध दर्ज मामले के संबंध में गिरफ्तारी पूर्व ज़मानत/अग्रिम ज़मानत याचिका दायर की गई थी।
- न्यायालय द्वारा अपील खारिज़ कर दी गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय कुमार की खंडपीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि विधि की स्थिति, जिसका पालन तत्परता से किया जा रहा है, ऐसे मामलों में जहाँ एक अभियुक्त जिसके विरुद्ध अज़मानती वारंट लंबित है और CrPC की धारा 82 व 83 के तहत उद्घोषणा की प्रक्रिया जारी है, वह अग्रिम ज़मानत से अनुतोष का हकदार नहीं है।
- न्यायालय ने लवेश बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य (2012) के मामले में दिये गए निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें यह कहा गया था कि जब एक व्यक्ति जिसके विरुद्ध वारंट जारी किया गया था तथा वह वारंट के निष्पादन से बचने के लिये फरार है या स्वयं को छुपा रहा है और CrPC की धारा 82 के तहत घोषित अपराधी घोषित किया गया है, वह अग्रिम ज़मानत से अनुतोष का हकदार नहीं है।
इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?
CrPC की धारा 82:
यह धारा किसी फरार व्यक्ति के लिये उद्घोषणा से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) यदि किसी न्यायालय को (चाहे साक्ष्य लेने के पश्चात् या लिये बिना) यह विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति जिसके विरुद्ध उसने वारंट जारी किया है, फरार हो गया है, या अपने को छिपा रहा है जिससे ऐसे वारंट का निष्पादन नहीं किया जा सकता तो ऐसा न्यायालय उससे यह अपेक्षा करने वाली लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है कि वह व्यक्ति विनिर्दिष्ट स्थान में और विनिर्दिष्ट समय पर, जो उस उद्घोषणा के प्रकाशन की तारीख से कम-से-कम तीस दिन पश्चात् का होगा, हाज़िर हो।
(2) उद्घोषणा निम्नलिखित रूप से प्रकाशित की जाएगी:
(i) (a) वह उस नगर या ग्राम के, जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्य तौर पर निवास करता है, किसी सहजदृश्य स्थान में सार्वजनिक रूप से पढ़ी जाएगी।
(b) वह उस गृह या वासस्थान के, जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्य तौर पर निवास करता है, किसी सहजदृश्य भाग पर या ऐसे नगर या ग्राम के किसी सहजदृश्य स्थान पर लगाई जाएगी।
(c) उसकी एक प्रति उस न्याय सदन के किसी सहजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी।
(ii) यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह यह निदेश भी दे सकता है कि उद्घोषणा की एक प्रति उस स्थान में, परिचालित किसी दैनिक समाचारपत्र में प्रकाशित की जाए जहाँ ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है;
(3) उद्घोषणा जारी करने वाले न्यायालय द्वारा यह लिखित कथन कि उद्घोषणा विनिर्दिष्ट दिन उपधारा (2) के खंड (i) में विनिर्दिष्ट रीति से सम्यक् रूप से प्रकाशित कर दी गई है, इस बात का निश्चायक साक्ष्य होगा कि इस धारा की अपेक्षाओं का अनुपालन कर दिया गया है और उद्घोषणा उस दिन प्रकाशित कर दी गई थी।
(4) जहाँ उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित की गई उद्घोषणा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302, धारा 304, धारा 364, धारा 367, धारा 382, धारा 392, धारा 393, धारा 394, धारा 395, धारा 396, धारा 397, धारा 398, धारा 399, धारा 400, धारा 402, धारा 436, धारा 449, धारा 459, या धारा 460 के अधीन दण्डनीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के संबंध में है और ऐसा व्यक्ति उद्घोषणा में अपेक्षित विनिर्दिष्ट स्थान एवं समय पर उपस्थित होने में असफल रहता है तो न्यायालय, तब ऐसी जाँच करने के पश्चात् जैसी वह ठीक समझता है, उसे उद्घोषित अपराधी प्रकट कर सकेगा और उस प्रभाव की घोषणा कर सकेगा।
(5) उपधारा (2) और उपधारा (3) के उपबंध न्यायालय द्वारा उपधारा (4) के अधीन की गई घोषणा को उसी प्रकार लागू होंगे, जैसे वे उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा पर लागू होते हैं।
CrPC की धारा 83:
यह धारा फरार व्यक्ति की संपत्ति की कुर्की से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) धारा 82 के अधीन उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किये जाएँगे, उद्घोषणा जारी किये जाने के पश्चात् किसी भी समय, उद्घोषित व्यक्ति की जंगम या स्थावर, अथवा दोनों प्रकार की किसी भी संपत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है।
परंतु यदि उद्घोषणा जारी करते समय न्यायालय का शपथपत्र द्वारा या अन्यथा यह समाधान हो जाता है कि वह व्यक्ति जिसके संबंध में उद्घोषणा की जानी है, -
(a) अपनी समस्त संपत्ति या उसके किसी भाग का व्ययन करने वाला है, अथवा
(b) अपनी समस्त संपत्ति या उसके किसी भाग को उस न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता से हटाने वाला है, तो वह उद्घोषणा जारी करने के साथ ही साथ कुर्की का आदेश दे सकता है।
(2) ऐसा आदेश उस ज़िले में, जिसमें वह दिया गया है, उस व्यक्ति की किसी भी संपत्ति की कुर्की प्राधिकृत करेगा और उस ज़िले के बाहर की उस व्यक्ति की किसी संपत्ति की कुर्की तब प्राधिकृत करेगा जब वह उस ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा, जिसके ज़िले में ऐसी संपत्ति स्थित है, पृष्ठांकित कर दिया जाए।
(3) यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है, ऋण या अन्य जंगम संपत्ति हो, तो इस धारा के अधीन कुर्की-
(a) अभिग्रहण द्वारा की जाएगी; अथवा
(b) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी ; अथवा
(c) उद्घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी उस संपत्ति का परिदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी; अथवा
(d) इन रीतियों में से सब या किन्हीं दो से की जाएगी, जैसा न्यायालय ठीक समझे।
(4) यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है, स्थावर है तो इस धारा के अधीन कुर्की राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा में उस ज़िले के कलक्टर के माध्यम से की जाएगी जिसमें वह भूमि स्थित है, और अन्य सब दशाओं में-
(a) कब्ज़ा लेकर की जाएगी; अथवा
(b) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी ; अथवा
(c) उद्घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी संपत्ति का किराया देने या उस संपत्ति का परिदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी; अथवा
(d) इन रीतियों में से सब या किन्हीं दो से की जाएगी, जैसा न्यायालय ठीक समझे।
(5) यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है, जीवधन है या विनश्वर प्रकृति की है तो, यदि न्यायालय समीचीन समझता है तो वह उसके तुरंत विक्रय का आदेश दे सकता है और ऐसी दशा में विक्रय के आगम न्यायालय के आदेश के अधीन रहेंगे।
(6) उस धारा के अधीन नियुक्त रिसीवर की शक्तियाँ, कर्त्तव्य और दायित्व वे ही होंगे जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अधीन नियुक्त रिसीवर के होते हैं।