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सिविल कानून

विशेष विवाह अधिनियम, 1954

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 18-Jun-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अंतर-धार्मिक विवाह याचिका के संबंध में एक विवादास्पद आदेश दिया, जिसमें विधि की संभावित दोषपूर्ण व्याख्या एवं विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (SMA) के निहितार्थ पर चिंता जताई गई। यह मामला अविवाहित हिंदू-मुस्लिम जोड़े से जुड़ा था, जो सुरक्षा की मांग कर रहे थे, उच्च न्यायालय ने SMA के अंतर्गत उनके विवाह की वैधता पर प्रश्न किया था।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 क्या है?

  • भारत में पर्सनल लॉ व्यक्ति के धर्म के आधार पर तय होते हैं। उदाहरण के लिये हिंदू विवाह अधिनियम का पालन हिंदू करते हैं, ईसाई भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम का पालन करते हैं, तथा पारसी विवाह अधिनियम का पालन पारसी करते हैं। दूसरी ओर, मुस्लिम, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 के अंतर्गत शासित होते हैं।
  • विवाह, उत्तराधिकार एवं गोद लेने जैसे विभिन्न पहलुओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम और हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम जैसे विधियों द्वारा विनियमित किया जाता है।
  • इससे पहले, अंतर-धार्मिक विवाहों को नियंत्रित करने या सरकारी अधिकारियों द्वारा कराए गए सिविल विवाहों को विधिक मान्यता प्रदान करने के लिये कोई मौजूदा विधि नहीं थी। इस अंतर के कारण 1954 में SMA की शुरुआत हुई।
  • यह अधिनियम देश के अंदर एवं विदेश में भारतीय नागरिकों के मध्य होने वाले सिविल विवाहों की निगरानी के लिये बनाया गया था, चाहे उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
  • SMA सभी भारतीय राज्यों एवं अन्य देशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है। यह किसी भी दो व्यक्तियों को, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, इसके प्रावधानों के अंतर्गत विवाह करने की अनुमति देता है। इससे तात्पर्य यह है कि एक ही धर्म के व्यक्ति भी अगर चाहें तो SMA के अंतर्गत विवाह कर सकते हैं।

SMA के उद्देश्य क्या हैं?

  • विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 का उद्देश्य लोगों के लिये विवाह के लिये विशेष प्रावधान करना है, चाहे वे किसी भी धर्म या आस्था को मानते हों।
  • इसका उद्देश्य अंतर-धार्मिक एवं अंतर-जातीय विवाहों को सुविधाजनक बनाने के लिये एक विधिक ढाँचा प्रदान करना है जो व्यक्तियों को अपने साथी के धर्म में धर्मांतरण किये बिना विवाह करने की अनुमति देता है।
  • यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता, विवाह में व्यक्तिगत पसंद की स्वतंत्रता और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया है, ताकि आपसी सहमति एवं धार्मिक बाधाओं के बिना विवाह को सक्षम बनाया जा सके।

SMA, 1954 में विवाह करने की शर्तें क्या हैं?

  • किसी भी पक्ष का जीवनसाथी जीवित नहीं होना चाहिये। यदि दोनों में से कोई पहले से विवाहित है, तो यह महत्त्वपूर्ण है कि SMA के अंतर्गत विवाह करने से पहले पिछला विवाह विधिक रूप से भंग हो जाए।
  • दोनों व्यक्तियों को विवाह के लिये स्वतंत्र एवं पूर्ण रूप से सहमति देने में सक्षम होना चाहिये।
  • विवाह के लिये आवेदन करते समय महिला साथी की आयु कम-से-कम 18 वर्ष होनी चाहिये , तथा पुरुष साथी की आयु 21 वर्ष होनी चाहिये।
  • यदि दोनों पक्ष किसी भी पक्ष के रीति-रिवाज़ों के अनुसार निषिद्ध श्रेणी के संबंध में आते हैं तो विवाह संपन्न नहीं हो सकता। ये निषेध अलग-अलग हो सकते हैं।
  • हिंदू विधि में भाई-बहन, चाचा-भतीजी, चाची-भतीजे या भाई-बहनों के बच्चों के मध्य विवाह निषिद्ध है।

विशेष विवाह अधिनियम के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

धारा 4: अधिनियम की धारा 4 में कुछ शर्तें निर्धारित की गई हैं:

  • इसमें कहा गया है कि दोनों पक्षों में से किसी का भी कोई जीवनसाथी जीवित नहीं होना चाहिये।
  • दोनों पक्षों को सहमति देने में सक्षम होना चाहिये, विवाह के समय वे स्वस्थ होने चाहिये।
  • दोनों पक्षों के मध्य विधि के अंतर्गत निर्धारित निषिद्ध संबंधों की सीमा नहीं होनी चाहिये।
  • आयु पर विचार करते समय, पुरुष की आयु कम-से-कम 21 वर्ष एवं महिला की आयु कम-से-कम 18 वर्ष होनी चाहिये।

धारा 5 एवं 6:

  • इन धाराओं के अंतर्गत, विवाह करने के इच्छुक पक्षों को अपने विवाह की सूचना उस क्षेत्र के विवाह अधिकारी को देनी होती है, जहाँ पति-पत्नी में से कोई एक पिछले 30 दिनों से रह रहा हो।
  • इसके बाद, विवाह अधिकारी अपने कार्यालय में विवाह की सूचना प्रकाशित करता है।
  • यदि किसी को विवाह पर कोई आपत्ति है तो वह 30 दिनों के भीतर इसके विरुद्ध शिकायत दर्ज करा सकता है।
  • यदि विवाह अधिकारी को विवाह के विरुद्ध कोई आपत्ति है तो विवाह को खारिज किया जा सकता है।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय की कमियाँ क्या हैं?

अनुच्छेद 21 का उल्लंघन:

  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि क्या अंतर-धार्मिक जोड़े का विवाह वैध होगा, बजाय इसके कि उन्हें जिन खतरों का सामना करना पड़ रहा है तथा उनकी सुरक्षा की आवश्यकता पर ध्यान दिया जाए।
  • इस दृष्टिकोण ने भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत उनके मूल अधिकार को अनदेखा कर दिया है, जो उनके जीवन एवं स्वतंत्रता की रक्षा करता है, भले ही उनका विवाह पंजीकृत हो या नहीं।
  • अप्रासंगिक संदर्भ:
  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का आदेश विशेष विवाह अधिनियम के मूल सिद्धांतों एवं उद्देश्यों का खंडन करता है।
  • मोहम्मद सलीम बनाम शम्सुद्दीन (2019) के मामले का उहारण देते हुए, मुस्लिम-हिंदू विवाह में संपत्ति उत्तराधिकार से संबंधित एक उच्चतम न्यायालय का पूर्वनिर्णय, न्यायालय ने अंतर-धार्मिक विवाहों की वैधता एवं पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का निर्णय करने के लिये इसे अनुचित रूप से लागू किया, जो उसे नहीं करना चाहिये था।

SMA की धारा 4:

  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 पर विश्वास करना, जो निषिद्ध डिग्री के अंतर्गत विवाह से संबंधित है, मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण है।
  • यह प्रावधान विशेष रूप से उन व्यक्तियों के मध्य विवाह को प्रतिबंधित करता है जो निकट संबंधी हैं, न कि अलग-अलग धर्मों के हैं।
  • न्यायालय यह स्वीकार करने में विफल रही कि अधिनियम का उद्देश्य किसी भी दो भारतीय नागरिकों के मध्य विवाह को विधिक मान्यता देना है, चाहे उनकी धार्मिक संबद्धता कुछ भी हो।

अंतर-धार्मिक एवं अंतर-जातीय विवाह

  • आज के सामाजिक-राजनीतिक वातावरण में अंतर-धार्मिक एवं अंतर-जातीय विवाहों को सतर्कता का सामना करना पड़ता है, विशेषकर तब जब माता-पिता द्वारा इसे स्वीकृति नहीं दी जाती है। "लव जिहाद" एवं दक्षिणपंथी प्रचार जैसी अवधारणाओं से यह और भी बढ़ जाता है।

शफीन जहान बनाम के.एम. अशोकन (2018)

  • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि वयस्क व्यक्तियों के मामले में विवाह की वैधता का निर्णय न्यायालय द्वारा नहीं किया जा सकता।
  • भारत के संविधान में विवाह करने के अधिकार का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन इसकी व्याख्या अनुच्छेद 21 द्वारा निर्देशित की जा सकती है, जो जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान करता है।
  • हाल की व्याख्याओं को स्वायत्तता, गोपनीयता एवं स्वतंत्रता के संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिये , ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विवाह जैसे मामलों में व्यक्तिगत विकल्पों को सामाजिक मानदंडों या पूर्वाग्रहों के अनुचित हस्तक्षेप के बिना संरक्षित किया जा सके।

निष्कर्ष:

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का हालिया निर्णय विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के लक्ष्यों के विरुद्ध है। इसमें शामिल व्यक्तियों के मूल अधिकारों की रक्षा करने के बजाय अंतर-धार्मिक विवाह की वैधता पर प्रश्न करके, न्यायालय ने लोगों को अपने जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता का समर्थन करने एवं समानता को बढ़ावा देने के अधिनियम के उद्देश्य की अनदेखी की है। यह स्थिति यह सुनिश्चित करने के महत्त्व को उजागर करती है कि न्यायिक निर्णय सामाजिक चुनौतियों या धार्मिक मतभेदों के बावजूद व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखें।