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सांविधानिक विधि

साम्पत्तिक अधिकार का उप-अधिकार

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 17-May-2024

कोलकाता नगर निगम एवं अन्य बनाम बिमल कुमार शाह एवं अन्य

"किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करने से पहले, आवश्यक प्रक्रियाओं का निर्धारण करना  अनुच्छेद 300A के अंतर्गत 'विधिक अधिकार' का एक अभिन्न अंग है”।

न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति अरविंद कुमार

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सांपत्तिक अधिकार को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक सिद्धांतों को यथावत रखा, आवश्यक उप-अधिकारों की पहचान की तथा निगम के कार्यों को अवैध एवं सांविधिक प्रावधानों और संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन पाया।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी कोलकाता नगर निगम एवं अन्य बनाम बिमल कुमार शाह  एवं अन्य के मामले में की। 

कोलकाता नगर निगम एवं अन्य बनाम बिमल कुमार शाह एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • तथ्य:
    • कोलकाता नगर निगम (KMC) ने कोलकाता नगर निगम अधिनियम, 1980 की धारा 352 के अंतर्गत बिरिंची बिहारी शाह की संपत्ति प्राप्त करने का दावा किया है।
    • विचाराधीन संपत्ति परिसर संख्या 106C है, जो नारिकेलडांगा नॉर्थ रोड, कोलकाता- 700011 पर स्थित है।
    • बिरिंची शाह को अपने पिता द्वारा निष्पादित निपटान विलेख के माध्यम से संपत्ति मिली।
    • वर्ष 2009 में, जब KMC ने संपत्ति पर बलपूर्वक कब्ज़ा करने का प्रयास किया, तो बिरंची शाह ने KMC के विरुद्ध प्रतिबंध आदेश की मांग करते हुए उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की।
    • वर्ष 2010 में, KMC ने मालिक के रूप में बिरिंची शाह का नाम हटा दिया तथा आधिकारिक रिकॉर्ड में अपना नाम डाल दिया, जिससे बिरिंची शाह द्वारा एक और रिट याचिका दायर की गई।
  • ट्रायल कोर्ट (एकल न्यायाधीश) के विचार:
    • एकल न्यायाधीश ने माना कि KMC के पास अधिनियम की धारा 352 के अंतर्गत अनिवार्य अधिग्रहण की कोई शक्ति नहीं है तथा कथित अधिग्रहण को रद्द कर दिया।
  • उच्च न्यायालय (खंड पीठ) के विचार:
    • खंडपीठ ने अपने निर्णय में एकल न्यायाधीश के आदेश की पुष्टि की तथा कहा कि धारा 352 के अंतर्गत अनिवार्य अधिग्रहण की कोई शक्ति नहीं है।
    • खंड पीठ ने KMC को पाँच महीने के भीतर अधिनियम की धारा 536 या 537 के अंतर्गत अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू करने या संपत्ति के स्वामी के रूप में अंतिम दर्ज स्वामी का नाम बहाल करने का निर्देश दिया।
  • उच्चतम न्यायालय से अपील:
    • खंड पीठ के निर्णय के बाद, KMC ने उच्चतम न्यायालय  के समक्ष अपील दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या हैं?

  • संपत्ति का संवैधानिक अधिकार:
    • 44वें संशोधन द्वारा संशोधित, भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 300A सांपत्तिक अधिकार की रक्षा करता है तथा किसी भी व्यक्ति को उसकी अचल संपत्ति से वंचित करने से पहले निष्पक्ष प्रक्रिया के अनुपालन की आवश्यकता होती है।
    • केवल क्षतिपूर्ति प्रदान करने से संपत्ति के वैध अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती।
    • संपत्ति के अधिकार को शुरू में भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(f) तथा अनुच्छेद 31 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी।
  • सांपत्तिक अधिकार को निर्मित करने वाले उप-अधिकार:
    न्यायालय ने सात उप-अधिकारों की पहचान की, जो अनुच्छेद 300A के अंतर्गत संपत्ति के संवैधानिक अधिकार का भाग हैं:
    • संपत्ति अर्जित करने के आशय से सूचना का अधिकार
    • प्रस्तावित अधिग्रहण के विरुद्ध सुनवाई एवं आपत्तियाँ उठाने का अधिकार।
    • अधिग्रहण प्राधिकारी से तर्कसंगत निर्णय का अधिकार।
    • केवल सार्वजनिक प्रयोजन के लिये संपत्ति अर्जित करना राज्य का कर्त्तव्य।
    • क्षतिपूर्ति या उचित क्षतिपूर्ति पाने का संपत्ति के स्वामी का अधिकार।
    • एक कुशल एवं शीघ्र अधिग्रहण की प्रक्रिया का अधिकार।
    • निष्कर्ष का अधिकार अर्थात् प्रक्रिया पूरी करने के बाद संपत्ति का अंतिम रूप से राज्य में निहित होना।
  • वैधानिक निगमन एवं न्यायिक मान्यता:
    • भूमि अधिग्रहण पर संघ एवं राज्य के विधियों ने इन उप-अधिकारों को विभिन्न रूपों में सम्मिलित किया है।
    • न्यायालयों ने वैधानिक प्रावधानों से स्वतंत्र होते हुए भी इन उप-अधिकारों के महत्त्व को पहचाना है।
  • वर्तमान मामले में टिप्पणियाँ:
    • अधिनियम की धारा 352 निजी संपत्ति प्राप्त करने की कोई प्रक्रिया प्रदान नहीं करती है।
    • विधिक सलाहकारों द्वारा चिंता जताए जाने के बावजूद, अपीलकर्त्ता-निगम ने उचित प्रक्रिया का पालन किये बिना संपत्ति हासिल करने के लिये कोलकाता म्युनिसिपल अधिनियम की धारा 352 (A) को लागू करके वैधानिक प्रावधानों का व्यापक उल्लंघन किया।
    • धारा 352(A) के अंतर्गत अधिग्रहण अविधिक, अमान्य एवं अधिनियम के विरुद्ध था।
  • अपील खारिज करना:
    • उच्च न्यायालय ने रिट याचिका को सही माना तथा धारा 352 के अंतर्गत भूमि अधिग्रहण के निगम के मामले को खारिज कर दिया।
    • उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध निगम की अपील खारिज कर दी।
    • निगम को 60 दिनों के अंदर प्रतिवादी को 5,00,000 रुपए की लागत का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। 

साम्पत्तिक अधिकार के उप-अधिकार क्या हैं?

  • अधिग्रहण की सूचना का अधिकार:
    • राज्य का कर्त्तव्य है कि वह व्यक्ति को स्पष्ट, ठोस एवं सार्थक नोटिस के माध्यम से उसकी संपत्ति प्राप्त करने के अपने आशय के विषय में सूचित करे।
  • सुने जाने का अधिकार:
    • नोटिस के बाद, संपत्ति धारक को अपनी आपत्तियों एवं चिंताओं को बताने का अधिकार है, जिसको सार्थक सुनवाई प्रदान करनी चाहिये न कि औपचारिक कार्यवाही।
  • तर्कसंगत निर्णय का अधिकार:
    • प्राधिकारी को एक सूचित निर्णय लेना चाहिये तथा आपत्तिकर्त्ता को एक तर्कसंगत आदेश के माध्यम से इसकी सूचना देनी चाहिये।
  • केवल सार्वजनिक प्रयोजन के लिये अधिग्रहण करने का कर्त्तव्य:
    • अधिग्रहण, एक सार्वजनिक उद्देश्य के लिये होना चाहिये, जो अधिग्रहण के उद्देश्य को निर्धारित करता है तथा बड़े संवैधानिक लक्ष्यों के अनुरूप होना चाहिये।
  • क्षतिपूर्ति या उचित मुआवज़े का अधिकार:
    • संपत्ति के अधिकार से वंचित करने की अनुमति केवल क्षतिपूर्ति पर ही दी जाती है, चाहे वह मौद्रिक मुआवज़ा हो, पुनर्वास हो, या इसी तरह का कोई साधन हो।
    • उचित एवं युक्तियुक्त क्षतिपूर्ति किसी भी अधिग्रहण प्रक्रिया के लिये एक अनिवार्य शर्त है।
  • एक कुशल एवं शीघ्र प्रक्रिया का अधिकार:
    • प्रशासन को उचित समय के अंदर अधिग्रहण प्रक्रिया को पूरा करने में कुशल होना चाहिये, क्योंकि विलंब संपत्ति धारक के लिये पीड़ादायी होता है।
  • निष्कर्ष का अधिकार:
    • अधिग्रहण प्रक्रिया की परिणति केवल क्षतिपूर्ति का भुगतान नहीं है, बल्कि वास्तविक भौतिक कब्ज़ा लेना तथा राज्य में संपत्ति का अंतिम अधिकार प्राप्त करना भी है।