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उत्तर प्रदेश संपरिवर्तन प्रतिषेध विधि

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 19-Jun-2024

रुक्सार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

यदि प्रारंभिक चरण में अभियोजन में लगातार हस्तक्षेप होता है, तो उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 अपने इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करने में विफल हो जाएगा”।

न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर और अरुण कुमार सिंह देशवाल

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रुक्सार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में माना है कि यदि प्रारंभिक चरण में अभियोजन में बार-बार हस्तक्षेप किया जाता है तो उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 (2021 का अधिनियम) अपने इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करने में विफल हो जाएगा।

रुक्सार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, याचिकाकर्त्ता पर भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) और 2021 के अधिनियम की धारा 3 तथा 5 (1) के प्रावधानों के अधीन अपराध का आरोप लगाया गया है।
  • याचिकाकर्त्ता और सह-आरोपी अब्दुल रहमान के विरुद्ध आरोप यह है कि अब्दुल रहमान वर्ष 2022 से पीड़िता का पीछा कर रहा था, जब वह दसवीं कक्षा में पढ़ती थी।
  • वह उसका पीछा मंदिर और कॉलेज में करता था। यह भी कहा गया है कि एक बार याचिकाकर्त्ता ने पीड़िता को अपने घर बुलाया और उसके साथ बलात्कार किया। बाद में, यह एक नियमित कार्य हो गया।
  • अब्दुल रहमान शादीशुदा था और उसका भाई इरफान उर्फ ​​छोटू, सूचनाप्रदाता का पीछा करने लगा। उसने सूचनाप्रदाता से दोस्ती कर ली। उन्होंने सूचनाप्रदाता को उसकी प्रतिष्ठा खोने और उसकी ज़िंदगी बर्बाद होने का डर दिखाया।
  • याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध आरोप यह है कि उसने पीड़िता को सुझाव दिया था कि वह इस्लाम धर्म अपना ले तथा इरफान उर्फ ​​छोटू से शादी कर ले।
  • 30 मार्च 2024 को सभी आरोपियों ने साजिश के तहत पीड़िता को मिलने के बहाने अपने घर बुलाया, हाँ इरफान ने उसके साथ दुष्कर्म किया। इरफान उसे मजार पर ले गया और उसे बुर्का पहनने के लिये बाध्य किया।
  • इस दरिंदगी के बाद आरोपी ने उसे कर्वी जाने वाली ट्रेन में बिठा दिया और वापस भेज दिया। कर्वी स्टेशन पर अब्दुल रहमान ने सूचनाप्रदाता को पकड़ लिया और उसे जान से मारने की धमकी दी तथा कहा कि अगर उसने किसी को कुछ भी बताया तो उसके पूरे परिवार को मार दिया जाएगा।
  • याचिकाकर्त्ता ने कार्यवाही रद्द करने के लिये इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
  • याचिका को अस्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह मामला आरोपी को राहत देने के लिये उपयुक्त नहीं है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर और अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि 2021 का अधिनियम एक नया विधान है जिसे समाज में व्याप्त कुप्रथा को रोकने के लिये विधायिका द्वारा अधिनियमित किया गया है। यदि 2021 के अधिनियम के अधीन प्रारंभिक चरण के अभियोजन में ही लगातार हस्तक्षेप होता है, तो यह विधान जो अभी नया है तथा समाज में व्याप्त कुप्रथा को रोकने के लिये बनाया गया है, वह अटक जाएगा और अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में विफल हो जाएगा।
  • न्यायालय ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि, विशेषकर विधिक कार्यवाही के प्रारंभिक चरणों में इस तरह के हस्तक्षेप, विधान की प्रभावशीलता को कमज़ोर कर सकते हैं।

धर्म संपरिवर्तन से संबंधित प्रासंगिक विधिक प्रावधान क्या हैं?

धार्मिक संपरिवर्तन के विषय में:

  • धार्मिक संपरिवर्तन एक विशेष धार्मिक संप्रदाय से जुड़ी मान्यताओं को अपनाना है, जिसमें अन्य को शामिल नहीं किया जाता।
  • इसका अर्थ है- एक धार्मिक संप्रदाय के प्रति निष्ठा को त्यागकर दूसरे संप्रदाय से सम्बद्ध होना।
  • कुछ मामलों में, धार्मिक संपरिवर्तन धार्मिक पहचान में परिवर्तन का प्रतीक है और इसे विशेष अनुष्ठानों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

भारत में धर्म संपरिवर्तन विरोधी विधियों की स्थिति:

संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत धर्म को मानने, प्रचार करने एवं आचरण करने की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है तथा सभी धार्मिक वर्गों को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन, धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति दी गई है।
  • हालाँकि, कोई भी व्यक्ति अपने धार्मिक विश्वासों को किसी और पर थोपने के लिये स्वतंत्र नहीं है तथा परिणामस्वरूप, किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी धर्म का पालन करने के लिये बाध्य नहीं किया जाना चाहिये।

मौजूदा विधि:

  • वर्तमान में धार्मिक संपरिवर्तनों को प्रतिबंधित या विनियमित करने वाला कोई केंद्रीय विधान उपस्थित नहीं है।
  • हालाँकि, वर्ष 1954 के बाद से, कई अवसरों पर, धार्मिक संपरिवार्तनों को विनियमित करने के लिये संसद में निजी सदस्य विधेयक पेश किये गए (परंतु कभी भी स्वीकृत नहीं हुए)।
  • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2015 में केंद्रीय विधि मंत्रालय ने कहा कि संसद के पास धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधान पारित करने की विधायी क्षमता नहीं है।

विभिन्न राज्यों में धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधियाँ:

  • पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने बलपूर्वक, धोखाधड़ी या प्रलोभन से किये जाने वाले धर्म संपरिवर्तन को प्रतिबंधित करने के लिये विधान बनाए हैं।
  • उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, ओडिशा और उत्तराखंड सहित भारत के कई राज्यों ने धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधान लागू किये हैं।

धर्म संपरिवर्तन पर उच्चतम न्यायालय:

  • रेव. स्टैनिस्लॉस बनाम मध्य प्रदेश राज्य, 1977- उच्चतम न्यायालय ने माना कि COI का अनुच्छेद 25 अन्य व्यक्तियों को अपने धर्म में परिवर्तित करने का अधिकार नहीं देता है, बल्कि अपने सिद्धांतों की व्याख्या करके अपने धर्म को प्रसारित करने का अधिकार देता है।
  • हादिया केस (शफीन जहान बनाम अशोकन के.एम.), 2017 - उच्चतम न्यायालय ने माना कि पहनावा और भोजन, विचार और विचारधारा, प्रेम और साझेदारी के मामले, पहचान के केंद्रीय आयामों में आते हैं। यह भी माना गया कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।

उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 क्या है?

परिचय:

  • वर्ष 2021 में, उत्तर प्रदेश विधानसभा ने इस अधिनियम को पारित किया, जिसने नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 का स्थान लिया।
  • उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा ने 24 नवंबर 2020 को इस अध्यादेश को स्वीकृति दी, जिसके उपरांत 28 नवंबर 2020 को राज्य की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने इसे अनुमोदित और हस्ताक्षरित किया।
  • उत्तर प्रदेश राज्य में लागू, यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अधिनियमित एक धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधान है।
  • यह अधिनियम गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी धोखाधड़ी के माध्यम से या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में अवैध रूप से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाता है।

उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020:

  • यह विधेयक विवाह के लिये धर्म परिवर्तन को गैर-ज़मानती अपराध बनाता है और प्रतिवादी पर यह सिद्ध करने का दायित्व होगा कि धर्म परिवर्तन, विवाह के लिये नहीं किया गया था।
  • धर्म परिवर्तन के लिये ज़िला मजिस्ट्रेट को अधिसूचना देने की अवधि दो महीने है।
  • यदि किसी महिला द्वारा केवल विवाह के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन किया जाता है तो विवाह अमान्य घोषित कर दिया जाएगा।
  • विधिक प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कम-से-कम एक वर्ष के कारावास का दण्ड दिया जाएगा जिसे बढ़ाकर पाँच वर्ष किया जा सकता है तथा 15,000 रुपए का अर्थदण्ड भी लगाया जा सकता है।
  • यदि कोई अल्पवयस्क महिला या अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) की महिला धर्म परिवर्तन करती है, तो कारावास की अवधि न्यूनतम तीन वर्ष होगी और 25,000 रुपए के अर्थदण्ड के साथ इसे 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
  • अध्यादेश में सामूहिक धर्म संपरिवर्तन कराने वाले सामाजिक संगठनों का पंजीकरण रद्द करने सहित सख्त कार्यवाही का प्रावधान है, जिसके लिये कम-से-कम तीन वर्ष से लेकर अधिकतम 10 वर्ष तक के कारावास का दण्ड एवं 50,000 रुपए तक का अर्थदण्ड हो सकता है।