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सांविधानिक विधि
रिट ऑफ सर्टिओरीरी
« »02-Feb-2024
एम./एस. फाल्गुनी स्टील्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य रिट ऑफ सर्टिओरीरी स्वाभाविक रूप से जारी नहीं की जाती है, बल्कि यह प्रवर न्यायालय के विवेक पर दी जाती है। न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एम./एस. फाल्गुनी स्टील्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में माना है कि रिट ऑफ सर्टिओरीरी स्वाभाविक रूप से जारी नहीं की जाती है, बल्कि यह प्रवर न्यायालय के विवेक पर दी जाती है।
एम./एस. फाल्गुनी स्टील्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, याचिकाकर्त्ता स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) का अधिकृत डीलर है।
- 17 फरवरी, 2019 को, याचिकाकर्त्ता ने टैक्स चालान के तहत एक परेषण खरीदा जो SAIL द्वारा केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 (CGST अधिनियम) के प्रावधानों के अनुसार जारी किया गया था।
- इसके बाद, याचिकाकर्त्ता ने अपने माल के परिवहन के लिये एक निजी सड़क वाहन की सेवा प्राप्त की। टैक्स चालान में उक्त वाहन का नंबर था।
- याचिकाकर्त्ता ने आरोप लगाया कि प्रासंगिक समय के दौरान, विभाग का ई-वे बिल पोर्टल गड़बड़ियों और तकनीकी कमियों से ग्रस्त था तथा उक्त तथ्य के कारण, कई अवसरों पर ई-वे बिल उत्पन्न नहीं हो सके।
- CGST अधिनियम की धारा 129 के तहत ज़ुर्माना आदेश इस आधार पर पारित किया गया था कि याचिकाकर्त्ता के माल के साथ ई-वे बिल नहीं जारी नहीं किया गया था। इसके बाद प्रथम अपीलीय प्राधिकारी ने ज़ुर्माने के आदेश को बरकरार रखा।
- इसके बाद याचिकाकर्त्ता द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष तत्काल याचिका दायर की गई और आदेश के विरुद्ध रिट ऑफ सर्टिओरीरी जारी करने के लिये प्रार्थना की गई।
- उच्च न्यायालय द्वारा याचिका स्वीकार की गई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ ने कहा कि रिट ऑफ सर्टिओरीरी स्वाभाविक रूप से जारी नहीं की जाती है, बल्कि अवर न्यायालयों, अधिकरणों या प्रशासनिक निकायों के निर्णयों की समीक्षा करने और उन्हें रद्द करने के लिये प्रवर न्यायालय के विवेक पर दी जाती है। आमतौर पर, सर्टिओरीरी उन मामलों में जारी की जाती है जिनमें रिकॉर्ड पर स्पष्ट रूप से कानून की त्रुटियाँ, अधिकार क्षेत्र संबंधी मुद्दे या प्रक्रियात्मक अनियमितताएँ शामिल होती हैं जिनका कार्यवाही की निष्पक्षता और वैधता पर प्रभाव पड़ सकता है।
प्रासंगिक कानूनी प्रावधान क्या हैं?
रिट ऑफ सर्टिओरीरी:
परिचय:
- यह एक लैटिन वाक्यांश है जिसका अर्थ 'पूरी तरह से सूचित होना’ है।
- यह प्रवर न्यायालय द्वारा अवर न्यायालय को जारी किया गया एक समादेश या आदेश है।
- यह तब जारी किया जाता है जब अवर न्यायालय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।
- यदि कोई त्रुटि पाई जाती है तो प्रवर न्यायालय अवर न्यायालय द्वारा दिये गए आदेश को रद्द कर सकता है।
- यह कानून के शासन और प्रशासनिक कार्यों पर न्यायिक निगरानी सुनिश्चित करने, त्रुटियों को ठीक करने एवं शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिये एक तंत्र प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
निर्णयज विधि:
- नगेंद्र नाथ बोरा एवं अन्य बनाम हिल्स डिवीज़न और अपील आयुक्त, असम एवं अन्य (1958) मामले, में उच्चतम न्यायालय विभिन्न भारतीय एवं अंग्रेज़ी उदाहरणों की जाँच करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि उस मामले में एक अवर अधिकरण अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर निकल गया है या उसने कानून के अनुसार कार्य नहीं किया है, ऐसी में सर्टिओरीरी रिट जारी की जा सकती है।
- सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंसेज़ एवं अन्य बनाम बिकर्तन दास एवं अन्य (2023) मामले, में उच्चतम न्यायालय ने माना कि अधिकार क्षेत्र की त्रुटियों को सुधारने के लिये सर्टिओरारी रिट जारी की जा सकती है।
CGST अधिनियम:
- यह अधिनियम केंद्र सरकार द्वारा वस्तुओं या सेवाओं या दोनों की अंतर-राज्य आपूर्ति पर कर लगाने और संग्रह करने एवं उससे जुड़े मामलों के लिये प्रावधान करता है।
- इस अधिनियम की धारा 129 अभिवहन में माल और वाहनों की हिरासत, अभिग्रहण एवं उनके निरोध से संबंधित है।