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पारिवारिक कानून

स्वेच्छाचारी पत्नी के कृत्य

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 02-Jan-2025

महेंद्र प्रसाद बनाम श्रीमती. बिंदु देवी

"प्रतिवादी द्वारा कथित रूप से किये गए अपमानजनक कृत्यों का न तो घटना के समय या स्थान के विवरण के साथ वर्णन किया गया है, न ही ऐसे कृत्यों को संबंधित न्यायालय के समक्ष सिद्ध किया गया है।"

न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह एवं न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने महेंद्र प्रसाद बनाम श्रीमती बिन्दु देवी के मामले में माना है कि किसी 'स्वेच्छाचारी' पत्नी द्वारा अकेले यात्रा करना या किसी अवैध या अनैतिक संबंध में संलिप्त हुए बिना सिविल सोसायटी के सदस्यों के साथ बातचीत करना उसके पति के विरुद्ध क्रूरता का कृत्य नहीं माना जा सकता है।

महेंद्र प्रसाद बनाम श्रीमती बिंदु देवी मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला महेंद्र प्रसाद (अपीलकर्त्ता) एवं श्रीमती बिंदु देवी (प्रतिवादी) के मध्य वैवाहिक विवाद से संबंधित है।
  • दोनों पक्षों का विवाह 26 फरवरी 1990 को हुआ था, तथा गौना समारोह 4 दिसंबर 1992 को हुआ था।
  • दंपति को एक लड़का पैदा हुआ था।
  • सहवास की समयावधि को लेकर परस्पर विरोधी दावे हैं:
    • पति (अपीलकर्त्ता) का दावा है कि वे विवाह की तिथि से लेकर दिसंबर 1996 तक कुल मिलाकर केवल 8 महीने ही साथ रहे।
    • पत्नी (प्रतिवादी) का दावा है कि वे अगस्त 2001 तक बीच-बीच में साथ रहे।
  • अपीलकर्त्ता पेशे से एक योग्य इंजीनियर है, जबकि प्रतिवादी एक सरकारी शिक्षक है।
  • अपीलकर्त्ता ने प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, गाजीपुर के समक्ष विवाह-विच्छेद की याचिका दायर की।
  • अपीलकर्त्ता ने दो मुख्य आधारों पर विवाह-विच्छेद की मांग की:
    • प्रतिवादी द्वारा मानसिक क्रूरता।
    • प्रतिवादी द्वारा परित्याग।
  • क्रूरता के विशिष्ट आरोपों में शामिल हैं:
    • प्रतिवादी "स्वेच्छा से" कार्य करती थी तथा बाज़ारों एवं अन्य स्थानों पर बिना पर्दा किये जाती थी।
    • उसने अपीलकर्त्ता की खराब आर्थिक स्थिति के विषय में मौखिक रूप से उसका अपमान किया।
    • उसके कथित रूप से 'पंजाबी बाबा' कहे जाने वाले व्यक्ति के साथ अनैतिक संबंध थे।
  • मूल विवाह-विच्छेद याचिका को प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने खारिज कर दिया था।
  • इसके बाद अपीलकर्त्ता ने अपना विवाह-विच्छेद याचिका खारिज किये जाने के विरुद्ध कुटुंब न्यायालय अधिनियम की धारा 19 के अंतर्गत यह प्रथम अपील दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
    • मानसिक क्रूरता का आरोप का विश्लेषण:
      • इस दावे को खारिज कर दिया कि "स्वेच्छाचारी" होना तथा 'पर्दा' न करना क्रूरता है, यह देखते हुए कि दोनों पक्ष अच्छी तरह से शिक्षित थे।
      • पाया गया कि धारणा एवं व्यवहार में अंतर को स्वचालित रूप से क्रूरता के रूप में आरोपित नहीं किया जा सकता है।
      • इस तथ्य पर ध्यान दिया गया कि चूंकि यह एक पारिवारिक सहमति प्राप्त विवाह था, इसलिये दोनों परिवार एक-दूसरे की स्थिति जानते थे, इसलिये आर्थिक स्थिति के आधार पर अपमान के दावे विश्वसनीय नहीं थे।
      • हालाँकि, अंततः पाया गया कि पत्नी द्वारा लगातार साथ रहने एवं रिश्ते को बनाए रखने से मना करना मानसिक क्रूरता का मामला था।
    • परित्याग के आरोप का विश्लेषण:
      • लंबी अवधि का परित्याग (23 वर्ष) के स्पष्ट साक्ष्य मिले।
      • ध्यान दिया गया कि विवाह के 35 वर्षों में, दोनों पक्ष मुश्किल से कुछ वर्षों तक साथ रहे।
      • महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि पत्नी ने कभी भी दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिये आवेदन नहीं किया।
      • पत्नी द्वारा (अधिवक्ता के माध्यम से) यह स्वीकार करना कि दोनों पक्ष एक साथ नहीं रह सकते, फिर भी विवाह-विच्छेद से मना करना, समस्याजनक पाया गया।
    • साक्ष्य के आधार पर विश्लेषण:
      • 'पंजाबी बाबा' के साथ अनैतिक संबंधों को सिद्ध करने के लिये अपर्याप्त साक्ष्य मिले।
      • 1996-2001 के बीच सहवास के विषय में विश्वसनीय साक्ष्यों का अभाव पाया गया।
      • मध्यस्थता के असफल प्रयासों को स्वीकार किया गया।
    • समग्र वैवाहिक स्थिति पर:
      • यह पाया गया कि इस तरह के विवाह को बनाए रखना केवल एक विधिक कल्पना को जीवित रखेगा।
      • लंबे समय तक विरत रहना और साथ रहने से मना करना विवाह-विच्छेद के लिये पर्याप्त आधार है।
      • ध्यान दिया गया कि दोनों पक्ष लाभकारी नौकरी कर रहे हैं तथा उनका बच्चा अब 29 वर्ष का है।
      • उच्च न्यायालय ने अंततः ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों से असहमति जताई तथा अपील को स्वीकार करते हुए मानसिक क्रूरता एवं परित्याग दोनों के आधार पर विवाह-विच्छेद को स्वीकृति दे दी।

क्रूरता क्या है?

अभिप्राय:

  • भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 86 के अनुसार क्रूरता से अभिप्रेत है:
    • कोई भी साशय कृत्य जो ऐसी प्रकृति का हो जिससे महिला को आत्महत्या करने के लिये प्रेरित किया जा सके या महिला के जीवन, अंग या स्वास्थ्य (मानसिक या शारीरिक) को गंभीर चोट या खतरा हो;
    • या महिला का उत्पीड़न जहाँ ऐसा उत्पीड़न उसे या उसके किसी संबंधित व्यक्ति को किसी संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा की किसी अविधिक मांग को पूरा करने के लिये विवश करने के उद्देश्य से हो या उसके या उसके किसी संबंधित व्यक्ति द्वारा ऐसी मांग को पूरा करने में विफलता के कारण हो।

आवश्यक तत्त्व:

  • किसी अपराध को कारित करने के लिये निम्नलिखित आवश्यक तत्वों का पूर्ण होना आवश्यक है:
    • महिला विवाहित होनी चाहिये;
    • उसके साथ क्रूरता या उत्पीड़न कारित किया गया हो;
    • ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न या तो महिला के पति द्वारा या उसके पति के रिश्तेदार द्वारा किया गया हो।

BNS में प्रावधान:

  • धारा 85: किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता करना
    • जो कोई, किसी स्त्री का पति या पति का रिश्तेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के साथ क्रूरता कारित करेगा, उसे तीन वर्ष तक के कारावास से दण्डित किया जाएगा तथा वह अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा।

 

हिंदू विधि के अंतर्गत प्रावधान:

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) में 1976 के संशोधन द्वारा क्रूरता को धारा 13(1)(ia) के अंतर्गत विवाह-विच्छेद का आधार बनाया गया।
    धारा 13 – विवाह-विच्छेद
    • खंड (1) में कहा गया है कि इस अधिनियम के प्रारंभ होने से पहले या बाद में संपन्न कोई भी विवाह, पति या पत्नी द्वारा प्रस्तुत याचिका पर, इस आधार पर विवाह-विच्छेद की डिक्री द्वारा विघटित किया जा सकता है कि दूसरा पक्ष-
      • विवाह संपन्न होने के पश्चात् याचिकाकर्त्ता के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया है;
      • या1976 से पहले क्रूरता केवल HMA की धारा 10 के अंतर्गत न्यायिक पृथक्करण का दावा करने का आधार थी।