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आपराधिक कानून
IEA की धारा 106 का अनुप्रयोग
« »06-May-2024
फोटो कंटेंट: अनीस बनाम राज्य सरकार NCT “न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 106 के अनुप्रयोग से संबंधित सिद्धांतों की व्याख्या की”। भारत के मुख्य न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अनीस बनाम NCT राज्य सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 106 के आवेदन से संबंधित सिद्धांतों को उजागर किया है।
अनीस बनाम राज्य सरकार NCT मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, मृतक, सायरा का विवाह अपीलकर्त्ता से हुई थी।
- घटना की रात में, अपीलकर्त्ता एवं मृतक के मध्य बहस हुई तथा परिणामस्वरूप, अपीलकर्त्ता पर मृतक के पूरे शरीर पर चाकू से वार करने का आरोप है।
- अभियोजन पक्ष का यह भी कहना है कि उनकी अप्राप्तवय बेटी शाहीना, घटना की एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी साक्षी थी।
- विवेचना पूरी होने पर, विवेचना अधिकारी ने मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, कड़कड़डूमा न्यायालय, दिल्ली के न्यायालय में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिये आरोप-पत्र दायर किया, जिसने मामले को सत्र न्यायाधीश की न्यायालय, कड़कड़डूमा न्यायालय, जिसका समापन सत्र मामले में हुआ, सौंप दिया।
- सत्र न्यायाधीश ने अपीलकर्त्ता को IPC की धारा 302 के अधीन हत्या के अपराध का दोषी मानते हुए उसे आजीवन कारावास एवं 5,000 रुपए के ज़ुर्माने की सज़ा सुनाई।
- इसके बाद, दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई और उच्च न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया तथा इस तरह सज़ा के निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की।
- इसके बाद अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की, जिसे बाद में न्यायालय ने खारिज कर दिया।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- भारत के मुख्य न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने IEA की धारा 106 में दिये गए आवेदन से संबंधित सिद्धांतों की व्याख्या की, जो इस प्रकार हैं:
- न्यायालय को आपराधिक मामलों में IEA की धारा 106 को सावधानी से और युक्तियुक्त रूप से लागू करना चाहिये। यह नहीं कहा जा सकता कि इसका आपराधिक मामलों पर कोई अनुप्रयोग नहीं है।
- अभियुक्त के अपराध की ओर इशारा करने वाली परिस्थितियों के साक्ष्य प्रस्तुत करने में अभियोजन पक्ष की असमर्थता के लिये इस धारा को लागू नहीं किया जा सकता है।
- इस धारा का उपयोग, दोषसिद्धि का समर्थन करने के लिये तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक कि अभियोजन पक्ष ने अपराध को स्थापित करने के लिये आवश्यक सभी तत्त्वों को सिद्ध करके उत्तरदायित्व का निर्वहन नहीं कर लिया हो।
- यह अभियोजन पक्ष को यह सिद्ध करने के कर्त्तव्य से मुक्त नहीं करता है कि कोई अपराध किया गया था, भले ही यह विशेष रूप से अभियुक्त की जानकारी में मामला हो तथा यह अभियुक्त पर यह दिखाने का भार नहीं डालता है कि कोई अपराध नहीं किया गया था।
- यह धारा उन मामलों में लागू नहीं होती है, जहाँ विचाराधीन तथ्य, इसकी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, ऐसा है कि न केवल अभियुक्तों को, बल्कि दूसरों को भी ज्ञात होने में सक्षम है, यदि वे घटना के समय उपस्थित थे।
- यह धारा उन मामलों पर लागू होगी, जहाँ अभियोजन पक्ष, उन तथ्यों को सिद्ध करने में सफल हुआ है, जिनसे अभियुक्त के अपराध के संबंध में उचित निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
IEA की धारा 106 क्या है?
परिचय:
- यह धारा, विशेष रूप से ज्ञान पर आधारित तथ्य को सिद्ध करने के भार से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जब कोई तथ्य विशेष रूप से किसी व्यक्ति के सज्ञान में होता है, तो उस तथ्य को सिद्ध करने का भार उस व्यक्ति पर होता है।
- "विशेष रूप से" शब्द से तात्पर्य, ऐसे तथ्य से है, जो अभियुक्त के ज्ञान में प्रमुख या असाधारण हैं।
- यह धारा अभिरक्षा में मृत्यु, दहेज़ हत्या एवं अभियुक्त द्वारा दिये गए बहाने के मामलों में लागू होती है।
- यह केवल IEA की धारा 101 का अपवाद है।
उद्देश्य:
- यह धारा निष्पक्ष सुनवाई के विचार को बढ़ावा देती है, जहाँ सभी संभावित तथ्यों को सिद्ध करना आसान हो जाता है तथा किसी ऐसे तथ्य को सिद्ध करने का कोई भार नहीं होता, जो असंभव है एवं इससे आरोपी को लाभ होता है।
- यह अभियुक्त को तथ्यों की शृंखला से प्राप्त तथ्यों की धारणा का खंडन करने का अवसर प्रदान करता है।
स्पष्टीकरण:
- जब कोई व्यक्ति, उस कार्य के चरित्र एवं परिस्थितियों द्वारा सुझाए गए आशय के अतिरिक्त किसी अन्य आशय से कोई कार्य करता है, तो उस आशय को सिद्ध करने का भार उसी व्यक्ति पर होता है।
निर्णयज विधि:
- नागेंद्र शाह बनाम बिहार राज्य (2021) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि, परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामलों में, IEA की धारा 106 के अनुसार उचित स्पष्टीकरण प्रदान करने में आरोपी की विफलता, परिस्थितिजन्य शृंखला में एक अतिरिक्त कड़ी के रूप में काम कर सकती है।
शंभू नाथ मेहरा बनाम अजमेर राज्य (1956) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह शब्द विशेष रूप से इस बात पर बल देता है कि इससे तात्पर्य, उन तथ्यों से है, जो प्रमुख या असाधारण रूप से उसकी जानकारी में हैं। यदि इस धारा की अन्यथा व्याख्या की जाए, तो यह बेहद चौंकाने वाला निष्कर्ष देगा कि हत्या के मामले में यह सिद्ध करने का भार अभियुक्त पर होता है कि उसने हत्या नहीं की, क्योंकि उससे बेहतर कौन जान सकता है कि उसने हत्या की या नहीं की।