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आपराधिक कानून
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के तहत लाभ
« »19-Feb-2024
कर्नाटक राज्य बनाम प्रताप “अपराधी परिवीक्षा अधिनियम,1958” के प्रावधानों को तब लागू नहीं किया जा सकता जब किसी अभियुक्त को POCSO के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया जाता है। न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार और न्यायमूर्ति विजयकुमार ए. पाटिल |
स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, कर्नाटक राज्य बनाम प्रताप के मामले में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह माना है कि लैंगिक अपराधों से बालकों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया व्यक्ति, अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के तहत लाभ प्राप्त नहीं कर सकता है।
कर्नाटक राज्य बनाम प्रताप मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि जब पीड़ित लड़की अपने घर लौट रही थी, तो रास्ते में अभियुक्त ने उसे पकड़ लिया, चूमा और उसके साथ बलात्कार करने का प्रयास किया।
- वह अभियुक्त के चंगुल से बचकर अपने घर लौट आई।
- इसके बाद, पीड़िता ने अपने माता-पिता को सूचित किया और पुलिस को एक रिपोर्ट दी गई, जिसने जाँच की तथा अभियुक्त के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया।
- अभियुक्त पर भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 354A और POCSO की धारा 8 के तहत दण्डनीय अपराधों के लिये आरोप पत्र दायर किया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण विरोधाभास देखते हुए अभियुक्त को अपराध से बरी कर दिया।
- इसके बाद, ट्रायल कोर्ट के निर्णय को चुनौती देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई है।
- उच्च न्यायालय ने माना कि अभियुक्त दण्डित किया जा सकता है और ज़ुर्माने के अलावा न्यूनतम 3 वर्ष कारावास की सज़ा निर्धारित की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार और न्यायमूर्ति विजयकुमार ए. पाटिल की पीठ ने कहा कि POCSO एक विशेष अधिनियम है। यह अधिनियम अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 के लागू होने के बाद किर्यान्वित है।
- मौजूदा मामले में अभियुक्त को POCSO की धारा 8 के अनुसार दण्डित किया जा सकता है, जिसमें ज़ुर्माने के अलावा न्यूनतम 3 वर्ष के कारावास की सज़ा का प्रावधान है।
- इसलिये, न्यूनतम सज़ा दी जानी चाहिये और अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 के प्रावधान लागू नहीं होते हैं।
- आगे यह माना गया कि जब भी किसी अभियुक्त को POCSO के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया जाता है तो अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 के प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता है।
प्रासंगिक विधिक प्रावधान क्या हैं?
IPC की धारा 354A:
- IPC की धारा 354A लैंगिक उत्पीड़न को परिभाषित करती है और दण्डित करती है जबकि यही प्रावधान भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 75 के तहत शामिल किया गया है।
- यह धारा व्यक्तियों की गरिमा की रक्षा के उद्देश्य से दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 के माध्यम से पेश की गई थी।
इसमें कहा गया है कि,
(1) एक व्यक्ति निम्नलिखित में से कोई भी कार्य कर रहा है-
(i) शारीरिक संस्पर्श और अग्रक्रियाएँ करने, जिनमें अवांछनीय व लैंगिक संबंध बनाने संबंधी स्पष्ट प्रस्ताव अंतर्वलित हों; या
(ii) लैंगिक स्वीकृति के लिये कोई मांग या अनुरोध करने; या
(iii) किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध अश्लील साहित्य दिखाने ; या
(iv) लैंगिक आभासी टिप्पणियाँ करने, वाला पुरुष लैंगिक
न के अपराध का दोषी होगा।
(2) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खंड (i) या खंड (ii) या खंड (iii) में विनिर्दिष्ट अपराध करेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या ज़ुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
(3) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खंड (iv) में विनिर्दिष्ट अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी
भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या ज़ुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
POCSO की धारा 8:
- इस अधिनियम की धारा 8 लैंगिक उत्पीड़न के लिये सज़ा से संबंधित है।
- जो कोई, लैंगिक हमला करेगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958:
- अपराधियों को परिवीक्षा पर या सम्यक चेतावनी के बाद रिहा करने और उससे संबंधित मामलों के लिये अधिनियम।
- इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य अपराधियों को खूँखार अपराधियों में बदलने के बजाय स्वयं को सुधारने का अवसर देना है।
- इस अधिनियम में अपराधियों को परिवीक्षा पर या उचित चेतावनी के बाद रिहा करने का प्रावधान है।
- अधिनियम अच्छे व्यवहार के लिये परिवीक्षा पर अपराधियों की रिहाई की अनुमति देता है, यदि उनके द्वारा किये गए कथित अपराध को आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड से दण्डित नहीं किया जाता है।
- अधिनियम पहली बार के अपराधियों को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 379, 380, 381, 404, और 420 के तहत दोषी ठहराए गए लोगों के साथ-साथ उन लोगों के लिये उचित चेतावनी पर रिहा करने की अनुमति देता है जो 2 साल की सज़ा या ज़ुर्माना या दोनों के अधीन हैं