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सिविल कानून

IT संशोधन नियमों पर बॉम्बे उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण

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 23-Sep-2024

कुणाल कामरा बनाम भारत संघ

“नियम 3(1)(b)(v) का संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अनुसार नहीं होने के कारण प्रतिबंध द्वारा अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत गारंटीकृत मौलिक अधिकार को प्रतिबंधित करने का प्रयास करता है”।

न्यायमूर्ति अतुल चांदुरकर

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, कुणाल कामरा बनाम भारत संघ के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने माना है कि नागरिकों को केवल “वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार” है, न कि “सत्य जानने का अधिकार” तथा इसलिये राज्य यह दावा नहीं कर सकता कि नागरिकों के बीच केवल सच्ची सूचना ही प्रसारित की जानी चाहिये।

कुणाल कामरा बनाम भारत संघ मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामले में, संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थों एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता के लिये दिशानिर्देश) नियम, 2021 (IT नियम) के नियम 3(1)(b)(v) की वैधता को याचिकाकर्त्ता द्वारा चुनौती दी गई थी।
  • वर्तमान मामले में याचिकाकर्त्ता एक राजनीतिक व्यंग्यकार है तथा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपना व्यवसायिक कार्य करता है।
  • यह दलील दी गई कि इस नियम के कारण फैक्ट चेक यूनिट्स (FCU) द्वारा मनमाने ढंग से सेंसरशिप की जा सकती है, जिसके कारण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से उनकी सामग्री को हटाया जा सकता है।
  • यह भी दलील दी गई कि अगर FCU द्वारा उनकी सामग्री को फर्जी घोषित कर दिया जाता है, तो पीड़ित व्यक्ति के पास कोई उपचार नहीं है।
  • सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने तर्क दिया कि भ्रामक सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिये सेंसरशिप की आवश्यकता है तथा यह आम जनता के हित में है।
  • यह तर्क दिया गया कि केंद्र सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नागरिकों के बीच भ्रामक सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिये फैक्ट चेक यूनिट (FCU) स्थापित कर सकती है।
  • यह चुनौती दी गई कि IT नियमों के अंतर्गत संशोधन अधिकारातीत है तथा यह भारत के संविधान (COI) के अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है।
  • खंड पीठ ने इस पर खंडित राय दी:
    • IT नियमों के नियम 3(1)(b)(v) को COI के अनुच्छेद 14, 19(1)(a) एवं 19(1)(g) के प्रावधानों के विपरीत माना गया है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT अधिनियम) की धारा 79 प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
    • जबकि न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोखले ने कहा कि यह नियम संविधान के अनुच्छेदों का उल्लंघन नहीं करता है तथा न ही श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) के निर्णय के विपरीत है।
  • खंडपीठ की विभाजित राय के कारण मामले को अन्य राय के लिये तथा विवाद को समाप्त करने के लिये बॉम्बे उच्च न्यायालय को भेज दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • वर्तमान मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि:
    • डिजिटल रूप में सूचना IT नियमों के नियम 3(1)(b)(v) के प्रावधानों के अधीन नहीं है, बल्कि केवल तभी लागू होती है जब वह मुद्रित रूप में हो।
    • संशोधन से डिजिटल मीडिया उपयोगकर्त्ताओं के समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा क्योंकि IT नियमों के नियम 3(1)(b)(v) की प्रयोज्यता केवल तभी है जब कोई सूचना मुद्रित रूप में हो।
    • FCU की भूमिका यह निर्धारित करना है कि केंद्र सरकार के कार्यप्रणाली के विरुद्ध कोई सूचना फर्जी या भ्रामक है या नहीं तथा क्या सरकार मामले में पीड़ित पक्ष है या नहीं।
    • वर्तमान मामले में केंद्र सरकार मध्यस्थ के रूप में कार्य कर रही है।
    • FCU केवल केंद्र सरकार के लिये कार्य करेगी, राज्य सरकार के लिये नहीं।
    • FCU के पास सूचना की वैधता की जाँच के लिये कोई दिशानिर्देश नहीं थे।
  • उपरोक्त टिप्पणियाँ करने के बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि:
    • IT नियमों के नियम 3(1)(b)(v) में संशोधन COI के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है क्योंकि संशोधन करते समय आनुपातिकता के परीक्षण का सही तरीके से उपयोग नहीं किया जा रहा है।
    • संशोधन अति-संक्रामक है तथा COI के अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है।
    • नागरिकों के पास केवल " वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार" है, न कि "सत्य जानने का अधिकार" तथा इसलिये राज्य यह दावा नहीं कर सकता कि नागरिकों के बीच केवल सच्ची सूचना ही प्रसारित की जानी चाहिये।

IT नियम 2021 क्या हैं?

  • भारत सरकार ने 25 फरवरी 2021 को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थों एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता के लिये दिशानिर्देश) नियम, 2021 लागू किये, जो पिछले 2011 के दिशा-निर्देशों को प्रतिस्थापित करते हैं।
  • ये नियम 26 मई 2021 को महत्त्वपूर्ण मध्यस्थों के लिये प्रभावी हुए, तथा सोशल मीडिया दुरुपयोग एवं डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के दुरुपयोग के विषय में बढ़ती चिंताओं के प्रत्युत्तर में विकसित किये गए थे।

IT नियमों के नियम 3 में क्या संशोधन हैं?

  • नियम 3 एक विवादास्पद नियम है। इसके कुछ भागों को 2022 में तथा फिर 2023 में संशोधित किया गया। 2022 के संशोधन को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • नियम 3 के उपखंड 1 में ‘मानहानिकारक’ एवं ‘अपमानलेखीय’ शब्दों को हटाकर आधारों को तर्कसंगत बनाया गया है।
  • कोई भी सामग्री ‘मानहानिकारक’ या ‘अपमानलेखीय’  है या नहीं, इसका निर्धारण न्यायिक समीक्षा के माध्यम से किया जाएगा।
  • नियम 3 के उपखंड 1 (नियम 3(1)(b))) में कुछ सामग्री श्रेणियों को विशेष रूप से भ्रामक सूचना और ऐसी सामग्री से निपटने के लिये पुनः निहित किया गया है जो विभिन्न धार्मिक/जाति समूहों के बीच हिंसा भड़का सकती है।

IT नियमों का नियम 3(1)(b)(v) क्या है?

  • IT नियमों के नियम 3(1)(b)(v) में मध्यस्थ द्वारा उचित परिश्रम के नियम प्रावधानित किये गए हैं।
  • इसमें कहा गया है कि मध्यस्थों को अपने कर्त्तव्यों का पालन करते समय दिये गए मानदंडों की एक सूची सुनिश्चित करने की आवश्यकता है तथा इस नियम के अंतर्गत मध्यस्थों में सोशल मीडिया मध्यस्थ भी शामिल हैं।
  • विशिष्ट नियम मध्यस्थों को यह सुनिश्चित करने के लिये बाध्य करते हैं कि मध्यस्थ के नियम एवं विनियम, गोपनीयता नीति या उपयोगकर्त्ता समझौते में उसके कंप्यूटर संसाधन के उपयोगकर्त्ता को सूचित किया जाएगा कि वह भारत में लागू किसी भी विधि का उल्लंघन करने वाली किसी भी सूचना को होस्ट, प्रदर्शन, अपलोड, संशोधन, प्रकाशन, प्रेषण, संग्रहण, अद्यतन या साझा न करे।

मध्यस्थ कौन हैं?

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2(1)(w) मध्यस्थ को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करती है जो किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को प्राप्त करता है, संग्रहीत करता है या प्रसारित करता है तथा किसी अन्य व्यक्ति की ओर से ऐसे रिकॉर्ड से संबंधित कोई सेवा प्रदान करता है।
  • मध्यस्थ में नेटवर्क सेवा प्रदाता, दूरसंचार सेवा प्रदाता, इंटरनेट सेवा प्रदाता, खोज इंजन, वेब-होस्टिंग सेवा प्रदाता, ऑनलाइन-नीलामी साइट, ऑनलाइन भुगतान साइट, ऑनलाइन-मार्केटप्लेस और साइबर कैफे शामिल हैं।
  • IT अधिनियम की धारा 79(1) मध्यस्थों को तीसरे पक्ष की सूचना के लिये उत्तरदायित्व से छूट प्रदान करती है।
  • IT अधिनियम की धारा 79(3) कुछ स्थितियों को प्रावधानित करती है जब मध्यस्थों को तीसरे पक्ष की सामग्री के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।