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दंड विधि

नाबालिग पत्नी के साथ सहमति से बनाया गया यौन संबंध भी बलात्कार

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 19-Nov-2024

एस बनाम महाराष्ट्र राज्य

“इस मामले में अभियोजन पक्ष ने साबित कर दिया है कि अपराध की तिथि पर पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम थी”

न्यायमूर्ति गोविंद सनप

स्रोत: Bombay High Court

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एस बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में अनिवार्य रूप से इस सिद्धांत को सुदृढ़ किया है कि नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों से जुड़े मामलों में, सहमति या वैवाहिक स्थिति की परवाह किये बिना, विवाह को बचाव के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

एस बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 64(2)(f), 64(2)(i), 64(2)(m), 65(1) और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 4, 6 और 8 के तहत दंडनीय अपराधों के लिये अपीलकर्त्ता के विरुद्ध मूल आपराधिक मामला दायर किया गया था।
  • प्रारंभिक संबंध:
    • शिकायतकर्त्ता एक नाबालिग लड़की थी
    • अपीलकर्त्ता और शिकायतकर्त्ता के बीच प्रेम संबंध थे
    • शिकायत दर्ज करने के समय लड़की 31 सप्ताह की गर्भवती थी
  • कथित घटनाक्रम:
    • कथित तौर पर अपीलकर्त्ता ने शिकायतकर्त्ता के साथ ज़बरन यौन संबंध बनाए
    • उसने शादी का झूठा वादा करके संबंध बनाना जारी रखा
    • शिकायतकर्त्ता के गर्भवती होने के बाद, उसने उससे शादी करने का अनुरोध किया
    • शिकायतकर्त्ता ने पड़ोसियों की मौजूदगी में उसके साथ माला का आदान-प्रदान किया 
    • उसने एक घर किराए पर लिया और उसे विश्वास दिलाया कि वह उसकी पत्नी है।
    • उसने शिकायतकर्त्ता पर गर्भपात के लिये दबाव डाला
    • उसके इनकार करने पर, उसने कथित तौर पर उसके साथ मारपीट की
    • शिकायतकर्त्ता अपने माता-पिता के घर लौट आई
    • अपीलकर्त्ता ने कथित तौर पर उसके माता-पिता के घर पर उसके साथ दो बार मारपीट की
    • गर्भ में पल रहे बच्चे के पिता होने से भी इनकार कर दिया।
  • शिकायतकर्त्ता ने वर्धा पुलिस की बाल कल्याण समिति (CWC) के समक्ष मामला दर्ज कराया।
  • ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही के दौरान, शिकायतकर्त्ता ने CWC अधिकारियों को उनके वरमाला समारोह की तस्वीरें दिखाने की बात स्वीकार की। 
  • अपीलकर्त्ता ने दावा किया कि यौन क्रियाएँ सहमति से की गई थीं। 
  • उसने तर्क दिया कि चूँकि वे विवाहित थे, इसलिये ये कृत्य बलात्कार नहीं माने जा सकते। 
  • यह एक आपराधिक अपील थी जिसकी सुनवाई बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में हुई। 
  • अपील में वर्धा ज़िले के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि:
    • सहमति और विवाह पर:
      • न्यायालय ने माना कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार है, भले ही तर्क के लिये यह मान लिया जाए कि उनके बीच तथाकथित विवाह था।
      • पत्नी के साथ सहमति से यौन संबंध बनाने का बचाव स्वीकार नहीं किया जा सकता, जब पत्नी 18 वर्ष से कम उम्र की हो।
      • भले ही कथित विवाह हुआ हो, 18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ बिना सहमति के यौन संबंध बनाना बलात्कार माना जाता है।
    • साक्ष्य के मूल्यांकन पर:
      • न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने साबित किया कि अपराध की तारीख पर पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम थी।
      • इसके अलावा, पीठ ने कहा कि न केवल मेडिकल अधिकारी के साक्ष्य बल्कि उसके जन्म प्रमाण पत्र, DNA रिपोर्ट जैसे अन्य साक्ष्य भी पीड़िता के साक्ष्य की पुष्टि करते हैं।
    • ट्रायल कोर्ट के फैसले पर:
      • सबूतों का फिर से मूल्यांकन करने पर न्यायालय ने पाया कि ट्रायल जज ने कोई गलती नहीं की है। 
      • सभी मामलों में उनके निष्कर्ष ठोस और ठोस कारणों से समर्थित हैं। 
      • रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों को खारिज करने और उन पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं दिखता है।
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपीलकर्त्ता की इस दलील को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया कि उसकी पत्नी के साथ सहमति से बनाया गया संभोग बलात्कार नहीं माना जा सकता।
  • न्यायालय ने नाबालिगों के साथ यौन संबंध के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के उदाहरण का अनुसरण किया।
    • नाबालिगों से जुड़े मामलों में बलात्कार का निर्धारण करते समय पीड़िता की वैवाहिक स्थिति को अप्रासंगिक माना गया।
  • उपरोक्त टिप्पणियाँ करने के बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बलात्कार के आरोपों और पोक्सो अधिनियम के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा।
    • न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरा रखते हुए अपील खारिज कर दी।
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अनिवार्यतः इस सिद्धांत को सुदृढ़ किया कि नाबालिगों के विरुद्ध यौन अपराधों से संबंधित मामलों में, चाहे सहमति या वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, विवाह को बचाव के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

बलात्कार कृत्य क्या है?

  • परिचय:
    • भारतीय न्याय संहिता 2023 के तहत, बलात्कार को एक ऐसे जघन्य अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें एक पुरुष किसी महिला को उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाने के लिये मज़बूर करता है। इस कृत्य को महिला की शारीरिक अखंडता और स्वायत्तता का गंभीर उल्लंघन माना जाता है। 
    • BNS के तहत बलात्कार को व्यापक रूप से संबोधित किया जाता है, जिसमें अपराध के तत्त्वों, अपराधियों के लिये दंड और न्याय प्रदान करने के लिये प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का विवरण दिया जाता है। 
    • BNS की धारा 63 बलात्कार के अपराध को परिभाषित करती है।
  • बलात्कार की परिभाषा को समझना:
    • कानून के अनुसार, बलात्कार तब होता है जब किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध, उसकी सहमति के बिना, कुछ निर्दिष्ट शर्तों के तहत यौन संबंध बनाए जाते हैं।
    •  इन शर्तों में वे मामले शामिल हैं जहाँ सहमति जबरदस्ती, धोखे से प्राप्त की जाती है, या जब महिला नशे में, मानसिक रूप से अस्वस्थ होने या उम्र कम होने के कारण सहमति देने में असमर्थ होती है।
  • अपराध के तत्त्व:
    • BNS के तहत बलात्कार के अपराध को स्थापित करने के लिये, कुछ प्रमुख तत्त्वों को उचित संदेह से परे साबित किया जाना चाहिये। 
    • इन तत्त्वों में आमतौर पर सहमति की अनुपस्थिति, बल, जबरदस्ती या धोखे से पीड़ित का यौन प्रवेश शामिल है। 
    • इसके अलावा, कानून यह मानता है कि सहमति स्वेच्छा से और कृत्य की प्रकृति की पूरी समझ के साथ, बिना किसी डर या दबाव के साथ होनी चाहिये।
  • विधिक दंड और सज़ा:
    • BNS बलात्कार के दोषी व्यक्तियों के लिये कठोर दंड निर्धारित करता है, अपराध की गंभीरता और पीड़ित पर इसके प्रभाव को पहचानते हुए। 
    • सजा की गंभीरता मामले की परिस्थितियों के आधार पर निर्धारित होती है, जिसमें पीड़ित की उम्र, बल या हिंसा का प्रयोग, तथा सामूहिक बलात्कार या बार-बार अपराध जैसे गंभीर कारकों की उपस्थिति शामिल है।
  • संशोधन:
    • वर्ष 2013 में मुकेश एवं अन्य बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य एवं अन्य (2017) के बाद दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 के माध्यम से बलात्कार कानूनों के संबंध में IPC में महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए थे। 
    • इन संशोधनों द्वारा और भी कठोर दंड की व्यवस्था की गई, जैसे कि बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड, जब पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह अचेत अवस्था में चली जाती है।

पोक्सो अधिनियम, 2012 के तहत सहमति की आयु क्या है?

  • POCSO अधिनियम ने वर्ष 2012 में यौन गतिविधि के लिये सहमति की आयु 16 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी तथा यह 16 से 18 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं के लिये सहमति से यौन संबंध बनाने की अनुमति नहीं देता है।
  • मध्य प्रदेश राज्य बनाम बालू (2004) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि नाबालिगों की सहमति का कानून की नज़र में कोई मूल्य नहीं है, इसलिये यह वैध नहीं है।
  • ए.के. बनाम दिल्ली एनसीटी राज्य सरकार (2022) में, उच्च न्यायालय ने कहा कि POCSO अधिनियम, 2012 का उद्देश्य 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाना है, न कि सहमति से युवा वयस्कों के बीच संबंधों को अपराध बनाना।
  • दिसंबर, 2022 में सरकार ने संसद को बताया कि उसके पास सहमति की आयु को संशोधित करने की कोई योजना नहीं है।

दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 क्या है?

  • इस संशोधन अधिनियम ने सहमति की आयु को 16 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया, जिसका तात्पर्य यह है कि किसी वयस्क द्वारा 18 वर्ष से कम आयु की बालिका के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार माना जाएगा, भले ही किसी मामले में सहमति मौजूद हो या नहीं।