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आपराधिक कानून

अपमानजनक ई-मेल द्वारा स्त्री की गरिमा को आहत करने पर दण्ड का प्रावधान

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 23-Aug-2024

जोसेफ पॉल डिसूज़ा बनाम महाराष्ट्र राज्य

“व्याख्या सामाजिक परिवर्तनों के अनुरूप होनी चाहिये तथा निष्पक्षता, न्याय एवं समानता सुनिश्चित करने के लिये विधिक सिद्धांतों का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिये”।

न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोखले

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने माना है कि किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने का अपराध (लज्जा भंग)गठित करने के लिये विधि में उल्लिखित शब्द “उच्चारण” में केवल बोले गए शब्द ही शामिल नहीं हैं, बल्कि वे लिखित शब्द भी शामिल हैं जो किसी महिला को अपमानित करने के आशय से लिखे गए हों।

जोसेफ पॉल डिसूज़ा बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामले में, प्रतिवादी और याचिकाकर्त्ता एक ही सोसायटी में रहते थे तथा याचिकाकर्त्ता द्वारा प्रतिवादी के मामलों में हस्तक्षेप करने के कारण उनमें बहस हो गई।
  • इस घटना के उपरांत याचिकाकर्त्ता ने प्रतिवादी को अपमानजनक एवं मानहानि करने वाले ई-मेल भेजे।
  • प्रतिवादी ने याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध लगातार तीन बार भेजे गए ई-मेल के माध्यम से उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई।
  • प्रतिवादी ने साइबर अपराध जाँच प्रकोष्ठ के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्त्ता द्वारा ई-मेल में दिये गए बयान अश्लील, असभ्य और अत्यधिक यौन प्रकृति के हैं, जो उसकी शील भंग करते हैं तथा सोसायटी के अन्य सदस्यों को भी इसकी कॉपी भेजी गई है।
  • भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 354, 509 और 506 (2) तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT एक्ट) की धारा 67 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) भी दर्ज की गई थी।
  • ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी गई।
  • याचिकाकर्त्ता ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की और तर्क दिया कि
    • उनके बयान का उद्देश्य प्रतिवादी की गरिमा को ठेस पहुँचाना नहीं था।
    • समान आधार पर दूसरी FIR नहीं हो सकती।
    • याचिकाकर्त्ता और प्रतिवादी के बीच संबंध कभी भी अच्छे नहीं रहे तथा व्यक्तिगत द्वेष के कारण प्रतिवादी ने याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई।
    • भेजे गए ई-मेल की विषय-वस्तु में कोई अश्लीलता नहीं थी, इसलिये उन पर IT अधिनियम की धारा 67 के तहत आरोप नहीं लगाया जा सकता।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?  

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने पाया कि दर्ज की गई FIR, साइबर सेल के समक्ष दर्ज की गई शिकायत और संबंधित मामले में सेल द्वारा की गई प्रारंभिक जाँच के परिणामस्वरूप दर्ज की गई थी। इसयेलिये, दर्ज की गई FIR अवैध नहीं है।
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने ई-मेल की विषय-वस्तु का अवलोकन किया और पाया कि एक ई-मेल में याचिकाकर्त्ताकर्त्ता ने प्रतिवादी को “सुश्री बोनी” कहा है, जो दो अपराधियों पर आधारित फिल्म “बोनी एंड क्लाइड” का एक पात्र है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि याचिकाकर्त्ता का आशय प्रतिवादी का अपमान करना और उसकी छवि को धूमिल करना था।
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने IPC की धारा 509 की व्यापक व्याख्या की, जहाँ उन्होंने कहा कि IPC की धारा 509 में अपराध स्थापित करने के लिये तीन घटक आवश्यक हैं-
    • किसी महिला की गरिमा का अपमान करने के आशय की उपस्थिति।
    • जिस तरीके से यह अपमान किया जाता है।
    • यह उसकी निजता पर अतिक्रमण है।
  • उच्च न्यायालय ने कहा कि इस तरह के अतिक्रमण का तरीका किसी ‘कथन’ या ‘इशारों’ तक सीमित नहीं है। न्यायालय ने कहा कि निजता का अतिक्रमण केवल बोले गए शब्दों से ही नहीं होता, बल्कि अन्य तरीकों से भी होता है।
  • न्यायालय ने मामले पर निर्णय देने के लिये प्रावधानों के आशय पर भरोसा किया और याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध आरोपों तथा FIR को रद्द करने की याचिका को अस्वीकार कर दिया।

महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुँचाना क्या होता है? 

परिचय:

  • जब कोई कार्य महिलाओं का अपमान करने के लिये किया जाता है, तो उसे उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाना कहा जाता है।
  • कृत्य किसी भी प्रकृति का हो सकता है, चाहे मौखिक हो या अशाब्दिक, इरादा यह होना चाहिये कि
  • भारत में यह एक गंभीर अपराध है और इसके लिये दण्ड का प्रावधान है।

गरिमा क्या है?

  • भारतीय दण्ड संहिता में 'गरिमा' को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, परंतु इसका तात्पर्य स्त्रियों के व्यवहार, वाणी एवं आचरण में शालीनता और संयम से है।
  • एक महिला की गरिमा, चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो, आंतरिक रूप से उसके लिंग और स्त्रीत्व से संबद्ध होती है।

गरिमा को ठेस पहुँचाना क्या है?

  • गरिमा को ठेस पहुँचाने में ऐसे कृत्य शामिल होते हैं जो आपत्तिजनक, अशिष्ट या महिला की शालीनता एवं नैतिकता की भावना को अपमानित करने वाले होते हैं।
  • इसमें अनुचित स्पर्श, बलपूर्वक कपड़े उतरवाना, अभद्र इशारे या शील का अपमान करने के आशय से की गई टिप्पणियाँ शामिल हैं।

इसके आवश्यक तत्त्व क्या हैं?

  • किसी महिला के विरुद्ध हमला या आपराधिक बल का प्रयोग।
  • आशय या ज्ञान कि ऐसे कृत्यों से उसकी शील भंग होने की संभावना है।
  • किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने का आशय होना।
  • जिस तरह से यह अपमान किया गया है।
  • उसकी निजता में अनाधिकृत हस्तक्षेप है।

बलात्संग एवं लज्जा भंग में क्या अंतर है?

स्थिति

स्त्री की गरिमा को ठेस पहुँचाना(लज्जा भंग)

बलात्संग

BNS की धारा

धारा 74

धारा 63

परिभाषा

किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से किये गए कृत्य।

बिना सहमति के यौन संबंध बनाना।

विस्तार

व्यापक अर्थ में, किसी महिला को खींचना, बलपूर्वक उसके वस्त्र उतारना, शारीरिक हिंसा करना आदि कृत्य शामिल हैं।

इसमें विशेष रूप से यौन संबंध बनाना शामिल हैं।

मुख्य तत्त्व

"व्यवहार की स्त्री मर्यादा" या "लज्जा की भावना" का उल्लंघन करना।

इसमें प्रवेशन अनिवार्य तत्त्व है।

महिलाओं की लज्जा भंग करने से संबंधित मामले क्या हैं?

  • पंजाब राज्य बनाम मेजर सिंह (1967): अंतिम परीक्षण यह है कि क्या यह कृत्य महिला की शालीनता को प्रभावित करने में सक्षम है। एक महिला जन्म से ही अपने लिंग के आधार पर शालीन होती है। शालीनता के उल्लंघन का निर्धारण करने में पीड़िता की आयु अप्रासंगिक है।
  • केरल राज्य बनाम हम्सा (1988): लज्जा भंग करना समाज के रीति-रिवाज़ों और आदतों पर निर्भर करता है। यहाँ तक ​​कि ऐसे आशय वाले संकेत भी IPC की धारा 354 के अधीन आ सकते हैं।
  • राम मेहर बनाम हरियाणा राज्य (1998): किसी महिला को पकड़ना, उसे एकांत स्थान पर ले जाना और उसके वस्त्र उतारने का प्रयास करना लज्जा भंग करने के समान है।
  • तारकेश्वर साहू बनाम बिहार राज्य (2006): शालीनता एक ऐसा गुण है जो महिलाओं के वर्ग से जुड़ा हुआ है। आरोपी का दोषी आशय महत्त्वपूर्ण है, पीड़ित की प्रतिक्रिया नहीं। भले ही पीड़ित को आक्रोश का अनुभव न हो (नींद में, अवयस्क, आदि), अपराध दण्डनीय है।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के अधीन महिलाओं की गरिमा की सुरक्षा के लिये क्या प्रावधान हैं?

  • धारा 74: किसी महिला की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला करना या आपराधिक बल का प्रयोग करना।
    • जो कोई किसी स्त्री पर हमला करेगा या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा, जिसका आशय यह है कि वह उसकी लज्जा भंग करने का प्रयास करेगा या यह संभाव्य जानता है कि ऐसा करने से वह उसकी लज्जा भंग करेगा, उसे किसी भाँति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम नहीं होगी किंतु जो पाँच वर्ष तक की हो सकेगी और अर्थदण्ड से भी दण्डित किया जाएगा।
  • धारा 79: किसी महिला की गरिमा का अपमान करने के उद्देश्य से कहे गए शब्द, इशारा या कार्य।
    • जो कोई किसी स्त्री की गरिमा का अपमान करने के आशय से कोई शब्द बोलेगा, कोई ध्वनि या इशारा करेगा, या किसी भी रूप में कोई वस्तु प्रदर्शित करेगा, जिसका आशय यह हो कि ऐसा शब्द या ध्वनि उस स्त्री को सुनाई दे, या ऐसा इशारा या वस्तु उस स्त्री को दिखाई दे, या ऐसी स्त्री की निजता में हस्तक्षेप करेगा, उसे साधारण कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी और अर्थदण्ड से भी दण्डित किया जाएगा।

IT अधिनियम की धारा 67 क्या है?

  • इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करने पर दण्ड–
    • जो कोई भी ऐसी सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित या प्रसारित करता है या प्रकाशित या प्रसारित करवाता है, जो कामुक है या कामुक प्रवृत्ति को प्रदर्शित करती है या यदि इसका प्रभाव ऐसा है जो ऐसे व्यक्तियों को भ्रष्ट करने की प्रवृत्ति रखता है, जो सभी प्रासंगिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, इसमें निहित या सन्निहित सामग्री को पढ़, देख या सुन सकते हैं, तो प्रथम बार दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी और अर्थदण्ड से, जो पाँच लाख रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा और दूसरी या बाद के दण्ड की स्थिति में दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी और अर्थदण्ड से, जो दस लाख रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

इंटरनेट एवं महिलाओं के विरुद्ध अपराध

  • आधुनिक प्रौद्योगिकी के आगमन ने महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने के व्यापक साधन खोल दिये हैं।
  • इंटरनेट पर प्रतिदिन कई अपराध होते हैं, जैसे महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुँचाने के लिये इंटरनेट पर अश्लील सामग्री बनाना, या इंटरनेट पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध के पीड़ितों की पहचान का प्रकटन करना, पोस्ट पर टिप्पणी के माध्यम से या उन्हें सीधे संदेश भेजकर महिलाओं का अपमान करना आदि।
  • आधुनिक प्रौद्योगिकी अपराध करने के तरीके को वास्तविक बना देती है।
  • सभी मामलों में शारीरिक क्रिया आवश्यक नहीं होती, आशय की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
  • न्यायालयों ने इंटरनेट के माध्यम से बढ़ते अपराधों के अनुसार मौजूदा दण्ड प्रावधानों की व्याख्या करने का प्रयास किया है।
    • उदाहरण के लिये:
      • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 509-B को विधि में शामिल किया गया है, जिसमें ‘दूरसंचार उपकरण या इंटरनेट सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक मोड’ द्वारा किसी महिला को परेशान करना भी दण्डनीय बनाया गया है।
      • किसी वस्तु को "प्रदर्शित" करने का अर्थ केवल उसे भौतिक रूप से प्रदर्शित करना नहीं है, यह प्रदर्शन किसी एजेंसी या किसी उपकरण जैसे व्यक्तिगत कंप्यूटर, मोबाइल फोन या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के माध्यम से हो सकता है।