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सिविल कानून
विवाह-विच्छेद के विचारण के विषय में परिवार का अधिकार
« »02-Aug-2024
अनिकेत अरुण धात्रक (मृत) बनाम शलाका अनिकेत धात्रक "विवाह-विच्छेद लेने का अधिकार एक व्यक्तिगत अधिकार है जो पूर्ण रूपेण व्यक्ति में निहित है तथा व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत परिवार के सदस्यों द्वारा इसका पालन नहीं किया जा सकता है"। न्यायमूर्ति मंगेश पाटिल एवं शैलेश ब्रह्मे |
स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने हाल ही में अनिकेत अरुण धात्रक (मृत्यु) बनाम शलाका अनिकेत धात्रक मामले में निर्णय दिया कि विवाह-विच्छेद मांगने का अधिकार एक व्यक्तिगत अधिकार है तथा व्यक्ति की मृत्यु के बाद परिवार के सदस्यों को उत्तराधिकार में नहीं मिल सकता है।
- यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब न्यायालय ने मृतक व्यक्ति के परिवार की अपील को खारिज कर दिया है, जिन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान उसकी मृत्यु के बाद उसकी पत्नी के विरुद्ध विवाह-विच्छेद की कार्यवाही जारी रखने की मांग की थी।
अनिकेत अरुण धात्रक (मृत्यु) बनाम शलाका अनिकेत धात्रक मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अनिकेत एवं शलाका ने आपसी सहमति द्वारा 14 अक्टूबर 2020 को विवाह-विच्छेद के लिये याचिका दायर की।
- अपने समझौते के अनुसार, अनिकेत ने याचिका दायर करते समय शलाका को 5,00,000 रुपए की गुजारा भत्ता राशि में से 2,50,000 रुपए का भुगतान किया।
- विवाह-विच्छेद के लिये दूसरा प्रस्ताव दायर किये जाने से पहले, 15 अप्रैल 2021 को कोविड-19 महामारी के दौरान अनिकेत की मृत्यु हो गई।
- 28 अप्रैल 2021 को शलाका ने विवाह-विच्छेद के लिये अपनी सहमति की याचिका वापस लेने का बयान प्रस्तुत किया तथा याचिका का निपटान करने का अनुरोध किया।
- अनिकेत की माँ एवं भाइयों (अपीलकर्त्ता) ने विवाह-विच्छेद की कार्यवाही जारी रखने के लिये उसके विधिक उत्तराधिकारी के रूप में रिकॉर्ड पर लाने के लिये आवेदन किया।
- शलाका ने इस आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि अनिकेत की मृत्यु के बाद कार्यवाही का कारण जीवित नहीं रहा।
- कुटुंब न्यायालय ने अपील कर्त्ताओं को कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में रिकॉर्ड पर आने की अनुमति देने से इनकार कर दिया और शलाका के अनुरोध के अनुसार विवाह-विच्छेद याचिका का निपटान कर दिया।
- अपीलकर्त्ताओं ने इस निर्णय के विरुद्ध बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपील की।
- मुख्य मुद्दा यह था कि क्या आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद के लिये वाद संस्थित करने का अधिकार मृतक पति के परिवार के सदस्यों के पास तब भी बना रहता है जब दूसरा प्रस्ताव संस्थित होने से पहले उसकी मृत्यु हो जाती है।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- न्यायालय ने पाया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-B (2) के अंतर्गत दूसरा प्रस्ताव प्रस्तुत करना आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद का आदेश पारित करने के लिये एक पूर्व शर्त है।
- न्यायालय को धारा 13-B (2) में निर्दिष्ट प्रावधान के अनुसार, दोनों पक्षों के संयुक्त प्रस्ताव पर ही आगे का विचारण करने का अधिकार प्राप्त होता है। यह प्रक्रिया स्वचालित नहीं है तथा इसे अकेले एक पक्ष द्वारा प्रारंभ नहीं किया जा सकता है।
- विवाह-विच्छेद प्राप्त करने का अधिकार एक व्यक्तिगत अधिकार है जो एक्टियो पर्सोनलिस मोरिटुर कम पर्सोना के सिद्धांत के अनुसार विधिक उत्तराधिकारियों तक जीवित नहीं रहता है।
- दूसरे संयुक्त प्रस्ताव की अनुपस्थिति में, आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद के लिये याचिका दूसरे प्रस्ताव को संस्थित करने से पहले एक पक्ष की मृत्यु पर समाप्त हो जाती है।
- दोनों पक्षों की आपसी सहमति न्यायालय के लिये धारा 13-B के अंतर्गत डिक्री पारित करने के लिये एक अधिकारिता है।
- मृतक पति या पत्नी के विधिक उत्तराधिकारियों को कुटुंब न्यायालय, अधिनियम की धारा 19 के अंतर्गत आपसी सहमति से प्रारंभ की गई विवाह-विच्छेद की कार्यवाही को आगे बढ़ाने के लिये रिकॉर्ड पर लाने का अधिकार नहीं है।
- धारा 13-B (2) में निर्दिष्ट 18 महीने की अवधि का उद्देश्य मामलों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करना है, न कि सहमति वापस लेने के लिये समय अवधि निर्दिष्ट करना।
- अधिक विचारण करने और डिक्री पारित करने के लिये न्यायालय का अधिकारिता दोनों पक्षों की संयुक्त पहल पर निर्भर करता है, न कि केवल प्रारंभिक याचिका दायर करने पर।
- विवाह-विच्छेद लेने के अधिकार की व्यक्तिगत प्रकृति कार्यवाही में एक पक्ष की मृत्यु के बाद विधिक उत्तराधिकारियों द्वारा इसे जारी रखने से रोकती है।
- न्यायालय को कुटुंब न्यायालय के आदेश में कोई अवैधता नहीं मिली, इस लिये उसने अपील खारिज कर दी।
आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद क्या है?
- परिचय:
- आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद बिना किसी दोष के सिद्धांत के अंतर्गत आता है, जहाँ पक्षों को दूसरे व्यक्ति की ओर से दोष सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- हिंदू विधि के अंतर्गत आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद को धारा 13 B द्वारा जोड़ा गया था जिसे हिंदू विवाह (संशोधन) अधिनियम, 1976 द्वारा संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया था तथा यह 25 मई 1976 से लागू हुआ।
- विवाह-विच्छेद के लिये आवेदन:
- विवाह के दोनों पक्ष संयुक्त रूप से सक्षम न्यायालय के समक्ष विवाह-विच्छेद के लिये याचिका संस्थित कर सकते हैं, जिसमें आपसी सहमति द्वारा अपने विवाह को भंग करने का निवेदन किया जा सकता है।
- सहमति:
- दोनों पक्षों की सहमति स्वैच्छिक एवं स्पष्ट होनी चाहिये, जो विवाह को समाप्त करने तथा सभी संबंधित मुद्दों को सौहार्द्रपूर्ण ढंग से निपटान करने के लिये उनकी आपसी सहमति को दर्शाना आवश्यक है।
- विवादों का निपटान:
- पक्षों को गुज़ारा भत्ता, संपत्ति का बँटवारा एवं बच्चों की संरक्षकत्व जैसे सभी मुद्दों पर एक समझौता पत्र प्रस्तुत करना होगा, जिसे दोनों पक्षों द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिये।
- उपशमन समयावधि:
- कुछ न्यायक्षेत्रों में, एक अनिवार्य शांत अवधि हो सकती है, जिसके दौरान पक्षकार विवाह-विच्छेद के अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
- न्यायालयी कार्यवाहियाँ:
- अपेक्षित शर्तें पूरी होने और समझौता प्रस्तुत होने पर, न्यायालय याचिका की समीक्षा करेगी तथा संतुष्ट होने पर आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद का आदेश पारित करेगी।
- अंतिम डिक्री:
- विवाह-विच्छेद को अंतिम रूप तब दिया जाता है जब न्यायालय विवाह-विच्छेद का आदेश जारी करता है, जो विधिक रूप से विवाह को भंग कर देता है।
इस मामले में विधिक प्रावधान क्या हैं?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 B
- आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद के लिये, पक्षों द्वारा संयुक्त रूप से दो याचिकाएँ संस्थित की जानी चाहिये।
- धारा 13 B (1) के अनुसार:
- विवाह विच्छेद के लिये संयुक्त याचिका जिला न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।
- चाहे विवाह हिंदू विवाह (संशोधन) अधिनियम, 1976 के लागू होने से पहले या बाद में संपन्न हुआ हो।
- पक्षकार एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हों।
- याचिका में यह प्रावधान होना चाहिये कि वे एक साथ नहीं रह पाए हैं, तथा वे आपसी सहमति द्वारा इस निर्णय पर सहमत हैं कि विवाह-विच्छेद मिल जाना चाहिये।
- धारा 13 B (2) द्वारा दूसरे प्रस्ताव का प्रावधान:
- दायर करने का समय?
- प्रथम प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने के छह माह से पहले नहीं तथा उक्त के अठारह माह के बाद नहीं।
- यदि इस बीच याचिका वापस नहीं ली जाती है।
- विवाह-विच्छेद का आदेश पारित किये जाने की प्रक्रिया:
- पक्षों का विचारण किये जाने तथा ऐसा विचारण करने के पश्चात् जैसा वह उचित समझे
- कि विवाह संपन्न हो चुका है तथा याचिका में दिये गए कथन की सत्यता की जाँच
- विवाह को डिक्री की तिथि से विघटित करने की डिक्री पारित किया जाना
- दायर करने का समय?
- उपरोक्त प्रक्रिया निर्धारित करने का उद्देश्य पक्षों को अलग होने से पहले साथ रहने की कुछ अवधि देना है।
- विवाह किसी भी व्यक्ति के जीवन का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण हिस्सा है तथा इसलिये आपसी सहमति द्वारा विवाह को भंग करने से पहले पक्षों को विवाह को भंग करने के अपने निर्णय पर विचार करने के लिये कुछ उचित समय दिया जाना चाहिये।
संदर्भित प्रमुख मामले कौन-से हैं?
- यल्लावा बनाम शांतावा (1997):
- उच्चतम न्यायालय के इस मामले में यह तय किया गया कि क्या पति की मृत्यु के बाद पत्नी एकपक्षीय विवाह-विच्छेद के आदेश को रद्द करने के लिये आवेदन कर सकती है।
- न्यायालय ने माना कि यदि कोई आदेश पारित नहीं हुआ है तो पति या पत्नी की मृत्यु के बाद विवाह-विच्छेद की कार्यवाही समाप्त हो जाती है।
- सुरेष्टा देवी बनाम ओम प्रकाश (1991):
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-B की व्याख्या करने में उच्चतम न्यायालय का यह मामला महत्त्वपूर्ण है।
- इसने माना कि आपसी सहमति केवल याचिका दायर करने के समय ही नहीं, बल्कि डिक्री के समय भी होनी चाहिये।
- हितेश भटनागर बनाम दीपा भटनागर (2011):
- उच्चतम न्यायालय के इस मामले ने सुरेष्टा देवी मामले में निर्धारित सिद्धांतों की पुष्टि की।
- इसने स्पष्ट किया कि धारा 13-B (2) में उल्लिखित 18 महीने की अवधि के बाद भी सहमति वापस ली जा सकती है।
- पक्षों को सुनने एवं उचित समझे जाने वाली जाँच करने के बाद, न्यायालय इस बात से संतुष्ट है कि याचिका में दिये गए कथन सत्य हैं; तथा
- डिक्री पारित करने से पहले किसी भी समय किसी भी पक्ष द्वारा याचिका वापस नहीं ली गई है।
- स्मृति पहाड़िया बनाम संजय पहाड़िया (2009):
- उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ के इस निर्णय ने सुरेष्टा देवी मामले में तय अनुपात को स्वीकृति दे दी।
- इसने इस बात पर ज़ोर दिया कि धारा 13-B के अंतर्गत विवाह-विच्छेद देने के लिये आपसी सहमति एक अधिकारिता है।
- न्यायालय को कुछ ठोस साक्ष्यों के आधार पर पक्षकारों के मध्य आपसी सहमति के अस्तित्व के विषय में संतुष्ट होना होगा, जो स्पष्ट रूप से ऐसी सहमति को प्रकट करती हों।