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आपराधिक कानून
IPC की धारा 498-A के अधीन उत्पीड़न
«21-Jan-2025
एम.एम. बनाम महाराष्ट्र राज्य "यह कथन कि जब तक वह निश्चित राशि नहीं देती, उसे बिना किसी कारण के सहवास नहीं होना चाहिये, मानसिक एवं शारीरिक उत्पीड़न नहीं माना जाएगा।" न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी एवं रोहित जोशी |
स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी एवं न्यायमूर्ति रोहित जोशी की पीठ ने कहा है कि पति के साथ रहने के लिये किसी महिला से पैसे की मांग करना मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न नहीं माना जाएगा।
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एम.एम. बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
एम.एम. बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- मोहम्मद मुदस्सर मोहम्मद अख्तर क़ादरी (आवेदक) ने 24 जून 2022 को आयशा मोहम्मद मुदस्सर कादरी (प्रतिवादी) से मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार निकाह किया।
- इस निकाह में कई परिवार के सदस्य सह-आवेदक (सात) के रूप में शामिल थे।
- 24 जुलाई 2023 को सभी सात आवेदकों के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई।
- FIR में निम्नलिखित अपराधों का आरोप लगाया गया है:
- धारा 498-A (विवाहित महिला के प्रति क्रूरता)।
- धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुँचाने के लिये सज़ा)।
- धारा 504 (साशय अपमान)।
- धारा 506 (आपराधिक धमकी)।
- भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 34 (एकसमान आशय)।
- FIR में पत्नी के निम्नलिखित आरोप शामिल थे:
- निकाह के तीन महीने बाद ही उसे गांव से होने तथा खाना बनाने में असमर्थ होने का ताना मारा जाने लगा।
- पति को नगर परिषद में स्थायी नौकरी दिलाने के लिये पाँच लाख रुपये की मांग की गई।
- जब उसने पैसे देने में असमर्थता जताई, तो उसे कथित तौर पर साथ रहने के लिये वापस न आने को कहा गया।
- उसने अपने पिता को इस विषय में बताया, जिन्होंने रिश्तेदारों के साथ मिलकर मध्यस्थता का प्रयास किया, लेकिन कोई समझौता नहीं हो सका।
- पति ने कथित तौर पर उसके मायके जाकर उसके साथ दुर्व्यवहार किया।
- अन्य परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर उसके पति के साथ रहने के विरुद्ध उसे उकसाया।
- पैसे न लाने पर उसे जान से मारने की धमकी भी दी गई।
- मामला न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के समक्ष लंबित हो गया।
- आवेदकों ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के अधीन एक आवेदन किया, जिसमें FIR और उसके बाद की न्यायालयी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इस मामले के संबंध में कई महत्त्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं:
- न्यायालय ने सर्वप्रथम आरोपों की विशिष्टता से संबंधित समस्याओं पर ध्यान दिया।
- पत्नी ने मानसिक एवं शारीरिक उत्पीड़न का दावा किया, लेकिन उसने सामान्य ताना मारने के अतिरिक्त कोई विशेष विवरण नहीं दिया।
- न्यायालय ने विनिश्चय कि यह अविश्वसनीय है कि सभी सात आरोपी व्यक्तियों ने एक साथ उसे ताना मारा हो।
- न्यायालय ने शिकायत में प्रस्तुत आवासीय व्यवस्था पर प्रश्न किया। न्यायालय को यह असामान्य लगा कि विवाहित भाभी एवं उसके पति कथित तौर पर शिकायतकर्त्ता के साथ एक ही घर में रह रहे थे, जबकि अभिलेखों से पता चला कि वे वास्तव में औरंगाबाद में एक अलग क्षेत्र में रहते थे।
- चचेरे भाई के लिये भी यही सच था।
- 5,00,000 रुपये की मांग के संबंध में, न्यायालय ने विनिश्चय कि शिकायत में महत्त्वपूर्ण समय संबंधी विवरणों का अभाव था।
- पत्नी ने यह नहीं उल्लेख किया कि यह मांग कब की गई या यह कब तक जारी रही।
- न्यायालय ने कहा कि बिना किसी उचित प्रक्रिया के केवल यह कहना कि उसे सहवास के लिये वापस नहीं आना चाहिये, मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न नहीं माना जाएगा।
- न्यायालय ने जाँच प्रक्रिया में गंभीर मुद्दे पाए। उसने पुलिस की आलोचना की:
- साक्षियों के अभिकथनों को रिकॉर्ड करना जो "कॉपी-पेस्ट" संस्करण प्रतीत होते हैं, समान पैराग्राफ, विराम चिह्न एवं फ़ॉन्ट दिखाते हैं।
- ऐसे मामलों की जाँच में उचित संवेदनशीलता दिखाने में विफल होना।
- वैवाहिक घर के पड़ोसियों से पूछताछ नहीं करना।
- केवल पत्नी के रिश्तेदारों एवं उसके माता-पिता के पड़ोसियों के अभिकथन दर्ज करना।
- अन्य उपलब्ध साक्ष्यों या संभावनाओं पर विचार न करना।
- पति के घर की अनावश्यक रूप से तस्वीरें एवं पंचनामा बनाना।
- न्यायालय ने सभी नामित आरोपियों पर आरोप लगाने के विषय में भी महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की।
- न्यायालय ने कहा कि जाँच अधिकारियों को अपने विवेक का प्रयोग केवल उन्हीं लोगों के विरुद्ध आरोप दायर करने में करना चाहिये जिनके विरुद्ध ठोस साक्ष्य हों, विशेषकर तब जब आरोपी व्यक्ति दूर रहते हों।
- न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि अनावश्यक उत्पीड़न एवं मिथ्या आरोपों से बचना चाहिये।
- सबसे महत्त्वपूर्ण टिप्पणी FIR के संबंध में थी।
- न्यायालय ने इसे "यथासंभव अस्पष्ट" पाया तथा निर्धारित किया कि यह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 के साथ धारा 498-A, 323, 504, 506 के अंतर्गत अपराधों के मूल तत्वों का प्रकटन करने में विफल रहा।
उपरोक्त टिप्पणियों के आधार पर बॉम्बे उच्च न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यह एक अन्यायपूर्ण वाद को रोकने के लिये CrPC की धारा 482 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करने के लिये उपयुक्त मामला था, जिसके परिणामस्वरूप FIR एवं लंबित न्यायालयी कार्यवाही दोनों को रद्द कर दिया गया।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) से संबंधित प्रावधान क्या हैं?
- BNS की धारा 85 में यह प्रावधानित किया गया है:
- किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता करना।
- किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता करना। जो कोई, किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार होते हुए, ऐसी महिला के साथ क्रूरता करता है, उसे तीन वर्ष तक के कारावास से दण्डित किया जाएगा तथा वह अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा।
- यह प्रावधान पहले IPC की धारा 498A के अंतर्गत आता था।
- किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता करना।
- BNS की धारा 3(5) में यह प्रावधानित किया गया है:
- जब कोई आपराधिक कृत्य सभी के एकसमान आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा कारित किया जाता है, तो ऐसे व्यक्तियों में से प्रत्येक उस कृत्य के लिये उसी तरह उत्तरदायी होता है जैसे कि वह कृत्य स्वयं अकेले उसके द्वारा किया गया हो।
- यह प्रावधान पहले IPC की धारा 34 के अंतर्गत आता था।