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आपराधिक कानून

मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा सौदा अभिवाक के विषय पर सुझाव

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 21-Aug-2024

श्री जी. वेंकटेशन बनाम राज्य

“भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अधीन केवल लिंग-केंद्रित अपराधों को ही सौदा अभिवाक से बाहर रखा गया है, न कि महिलाओं के खिलाफ सभी अपराधों को।”

न्यायमूर्ति जी. जयचंद्रन

स्रोत: मद्रास उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

मद्रास उच्च न्यायालय के हालिया निर्णय में स्पष्ट किया गया है कि "महिलाओं के विरुद्ध अपराध", जिन्हें सौदा अभिवाक से बाहर रखा गया है, में केवल लिंग-केंद्रित या लिंग-तटस्थ अपराध शामिल हैं, न कि महिलाओं से संबंधित सभी अपराध।

  • न्यायमूर्ति जी. जयचंद्रन ने श्री जी. वेंकटेशन बनाम राज्य के मामले में यह निर्णय दिया।
  • न्यायमूर्ति जी. जयचंद्रन ने यह भी अनुशंसा की कि ट्रायल कोर्ट को आरोप तय होने के तुरंत बाद आरोपी व्यक्तियों को उनके सौदा अभिवाक के अधिकारों के विषय में सूचित करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे विधि द्वारा निर्धारित 30-दिन की अवधि के अंदर इस विकल्प का प्रयोग कर सकें।

श्री जी. वेंकटेशन बनाम राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • श्री जी. वेंकटेशन पर जूनियर बेलीफ भाग्यलक्ष्मी के विरुद्ध कारित अपराध का आरोप लगाया गया था।
  • यह घटना 2 अप्रैल, 2021 को हुई, जब भाग्यलक्ष्मी वेंकटेशन के आवास पर गार्निशी समन देने गई थीं।
  • श्री जी. वेंकटेशन ने कथित तौर पर भाग्यलक्ष्मी को मौखिक रूप से गाली दी, उन पर शारीरिक हमला किया तथा उन्हें अपने घर में दोषपूर्ण तरीके से रोक लिया।
  • वेंकटेशन के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 173, 294 (B), 323, 342, 353, 427 और तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम की धारा 4 के अधीन मामला दर्ज किया गया था।
  • जाँच के बाद, एक आरोप-पत्र दायर किया गया तथा मामले को सुनवाई के लिये ले जाया गया।
  • श्री जी. वेंकटेशन ने प्रारंभ में कार्यवाही को रद्द करने के लिये एक याचिका दायर की, जिसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया।
  • इसके बाद, श्री जी. वेंकटेशन ने अपने आचरण के लिये क्षमा मांगने की इच्छा व्यक्त की तथा सौदा अभिवाक को अग्रसर करने की मांग की।
  • उन्होंने ट्रायल कोर्ट के समक्ष सौदा अभिवाक के लिये आवेदन दायर करने का प्रयास किया, लेकिन इसे स्वीकार करवाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
  • श्री जी. वेंकटेशन ने फिर से उच्च न्यायालय में अपील की, जिसमें शिकायतकर्त्ता के न्यायालय कर्मचारी होने के कारण संभावित पक्षपात के विषय में चिंता व्यक्त की गई।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सौदा अभिवाक से बाहर रखे गए "महिलाओं के विरुद्ध अपराध" शब्द की व्याख्या प्रतिबंधात्मक रूप से की जानी चाहिये, जिसमें केवल लिंग-केंद्रित या लिंग-तटस्थ अपराध शामिल हों, न कि महिलाओं के विरुद्ध किये गए सभी सामान्य अपराध।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सौदा अभिवाक के मामलों में कारावास का प्रावधान अनिवार्य नहीं है, तथा जहाँ कोई न्यूनतम सज़ा निर्धारित नहीं है, वहाँ न्यायालय "न्यायालय उठने तक" से लेकर निर्धारित अवधि के अधिकतम 1/4 तक कारावास का प्रावधान कर सकता है।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सौदा अभिवाक की प्रक्रिया केवल अभियुक्त के आवेदन पर ही प्रारंभ होनी चाहिये तथा न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ऐसा आवेदन स्वेच्छा से और सूचित सहमति से किया गया हो।
  • न्यायालय ने अनुशंसा की कि ट्रायल कोर्ट को आरोप तय करने के तुरंत बाद योग्य अभियुक्तों को सौदा अभिवाक का सहारा लेने के उनके अधिकार के विषय में सूचित करना चाहिये, ताकि इस अधिकार का समय पर प्रयोग सुनिश्चित हो सके।
  • न्यायालय ने सुझाव दिया कि ट्रायल कोर्ट सौदा अभिवाक के मामलों में पारस्परिक रूप से संतोषजनक निपटान (MSD) प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिये विधिक सेवा प्राधिकरणों से सहायता ले सकते हैं।
  • न्यायालय ने त्वरित विचारण, मुकदमेबाज़ी की लागत में कमी लाने तथा अपराधियों को पुनर्वास का अवसर प्रदान करने के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये सौदा अभिवाक के प्रावधानों के उचित कार्यान्वयन के महत्त्व को बताया।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 290 क्या है?

परिचय:

  • BNSS की धारा 290 सौदा अभिवाक के लिये आवेदन से संबंधित है। पहले यह दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 265B के अधीन दिया गया था।
  • आरोपी व्यक्ति आरोप तय होने की तिथि से 30 दिनों के अंदर उस न्यायालय में सौदा अभिवाक के लिये आवेदन दायर कर सकता है, जहाँ विचारण लंबित है।
  • आवेदन में मामले और संबंधित अपराध का संक्षिप्त विवरण शामिल होना चाहिये।
  • आरोपी को एक शपथ-पत्र संलग्न करना होगा जिसमें यह उल्लेख किया गया हो कि:
    a) उन्होंने अपराध के लिये दण्ड की प्रकृति एवं सीमा को समझने के बाद स्वेच्छा से सौदा अभिवाक का विकल्प चुना है।
    b) उन्हें पहले उसी अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया गया है।
  • आवेदन प्राप्त होने पर, न्यायालय को लोक अभियोजक या शिकायतकर्त्ता तथा अभियुक्त को एक निश्चित तिथि पर उपस्थित होने के लिये नोटिस जारी करना चाहिये।
  • निर्धारित तिथि पर, न्यायालय अभियुक्त की कैमरे के सामने, दूसरे पक्ष की उपस्थिति के बिना, जाँच करेगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आवेदन स्वैच्छिक है।
  • यदि न्यायालय संतुष्ट है कि आवेदन स्वैच्छिक है:
    a) इसमें लोक अभियोजक/शिकायतकर्त्ता एवं अभियुक्त को आपसी सहमति से समाधान निकालने के लिये 60 दिन तक का समय दिया जाएगा।
    b) इस समाधान में अभियुक्त द्वारा पीड़ित को दिया जाने वाला क्षतिपूर्ति एवं अन्य व्यय शामिल हो सकते हैं।
    c) इसके बाद न्यायालय आगे की विचारण के लिये तिथि तय करेगी।
  • यदि न्यायालय पाता है कि आवेदन अनैच्छिक है या अभियुक्त को पहले भी उसी अपराध के लिये दोषी ठहराया जा चुका है:
    a) यह संहिता के नियमित प्रावधानों के अनुसार मामले को अग्रसर करेगा।
    b) मामला उस चरण से जारी रहेगा, जहाँ सौदा अभिवाक का आवेदन दायर किया गया था।
  • इस प्रक्रिया का उद्देश्य सौदा अभिवाक के लिये एक संरचित दृष्टिकोण प्रदान करना, स्वैच्छिक भागीदारी सुनिश्चित करना, पीड़ितों के हितों की सुरक्षा करना, तथा न्यायिक निगरानी बनाए रखते हुए मामले का त्वरित समाधान करना है।

विधिक प्रावधान:

  • सौदा अभिवाक के लिये आवेदन (BNSS की धारा 290):
    • अभियुक्त को आरोप तय होने के 30 दिनों के अंदर आवेदन दाखिल करना होगा।
    • आवेदन में केस का विवरण एवं स्वैच्छिक भागीदारी का शपथ-पत्र शामिल होना चाहिये।
    • न्यायालय सभी पक्षों को नोटिस जारी करता है तथा स्वैच्छिकता सुनिश्चित करने के लिये बंद कमरे में अभियुक्त की जाँच करता है।
    • यदि स्वैच्छिकता है, तो न्यायालय पारस्परिक रूप से संतोषजनक निपटान के लिये 60 दिनों तक की अनुमति देता है।
  • पारस्परिक रूप से संतोषजनक निपटान के लिये दिशा-निर्देश (BNSS की धारा 291):
    • पुलिस रिपोर्ट मामलों में, न्यायालय अभियोजक, विवेचना अधिकारी, अभियुक्त एवं पीड़ित को शामिल करता है।
    • गैर-पुलिस रिपोर्ट मामलों में, न्यायालय अभियुक्त एवं पीड़ित को शामिल करता है।
    • न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि पूरी प्रक्रिया स्वैच्छिक रहे।
    • यदि चाहें तो पक्ष अपने अधिवक्ताओं के साथ भाग ले सकते हैं।
  • निपटान की रिपोर्ट (BNSS की धारा 292):
    • न्यायालय संतोषजनक निपटान की रिपोर्ट तैयार करता है, जिस पर सभी प्रतिभागियों के हस्ताक्षर होते हैं।
    • यदि कोई निपटान नहीं होता है, तो न्यायालय इसे रिकॉर्ड करता है तथा नियमित विचारण के साथ आगे बढ़ता है।
  • मामले का निपटान (BNSS की धारा 293):
    • न्यायालय पीड़ित को उसके निर्णय के अनुसार क्षतिपूर्ति प्रदान करता है।
    • वह अभियुक्त को परिवीक्षा पर या प्रासंगिक विधियों के अधीन रिहा कर सकता है।
    • न्यूनतम सज़ा वाले अपराधों के लिये:
      a) न्यायालय अभियुक्त को न्यूनतम सज़ा की आधी सज़ा सुना सकता है।
      b) पहली बार अपराध करने वालों के लिये, इसे न्यूनतम सज़ा के एक-चौथाई तक घटाया जा सकता है।
    • अन्य अपराधों के लिये:
      क) न्यायालय निर्धारित दण्ड का एक-चौथाई भाग दे सकता है।
      ख) पहली बार अपराध करने वालों के लिये, यह निर्धारित दण्ड का छठा भाग तक कम किया जा सकता है।
  • निर्णय एवं अंतिमता (BNSS की धारा 294-295):
    • न्यायालय अपना निर्णय पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित ओपन न्यायालय में देता है।
    • निर्णय अंतिम होता है तथा अपील के विकल्प सीमित होते हैं (अनुच्छेद 136 के अंतर्गत SLP, अनुच्छेद 226 एवं 227 के अंतर्गत रिट)।
  • न्यायालय की शक्तियाँ एवं प्रक्रियात्मक मामले (BNSS की धारा 296-297):
    • न्यायालय के पास ज़मानत, विचारण और मामले के निपटान से संबंधित सभी शक्तियाँ सुरक्षित रहती हैं।
    • अभिरक्षा में बिताई गई अवधि को दी गई सज़ा में से घटा दिया जाता है।
  • बचत एवं गैर-अनुप्रयोग (BNSS की धारा 298-300):
    • ये प्रावधान BNSS के असंगत प्रावधानों को रद्द कर देते हैं।
    • सौदा अभिवाक के दौरान दिये गए कथनों का किसी अन्य उद्देश्य के लिये उपयोग नहीं किया जा सकता है।
    • ये प्रावधान किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अंतर्गत किशोरों या बच्चों पर लागू नहीं होते हैं।