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आपराधिक कानून

कंपनी के खिलाफ NI अधिनियम

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 25-Sep-2024

किशोर शंकर सिगनापुरकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

“न्यायिक व्यक्ति को केवल उस व्यक्ति के माध्यम से बुलाया जा सकता है, जो कंपनी के मामलों का प्रभारी है और यदि कंपनी के प्रभारी व्यक्ति को बुलाया जाता है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि कंपनी को मुकदमे के लिये नहीं बुलाया गया है।” 

न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने किशोर शंकर सिगनापुरकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में यह माना है कि यदि चेक पर हस्ताक्षर करने वाले निदेशक को बुलाया गया है तो यह माना जाएगा कि कंपनी को भी बुलाया गया है।

किशोर शंकर सिगनापुरकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामले में आवेदक मेसर्स सिग्नापुरकर लेदर हाउस प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी का निदेशक है, जिसके खिलाफ प्रतिवादी ने परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI) की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज की थी।
  • प्रतिवादी, मेसर्स इंडकोट शू कंपोनेंट लिमिटेड ने आरोप लगाया कि आवेदक ने उसके नाम पर 12 चेक जारी किये हैं।
  • प्रतिवादी ने आरोप लगाया कि आवेदक द्वारा भुगतान रोक दिये जाने के कारण चेक प्रदान करने के समय बाउंस हो गए।
  • पीड़ित होकर, प्रतिवादी ने आवेदक को डिमांड नोटिस भेजा और आवेदक ने उनका पालन नहीं किया।
  • प्रतिवादी ने आवेदक के विरुद्ध NI अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की और कंपनी के निदेशक के विरुद्ध समन जारी किया गया।
  • आवेदक ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 482 के तहत समन को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी और तर्क दिया कि कंपनी को समन किये बगैर सीधे उसे समन जारी नहीं किया जा सकता है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि:
    • उच्चतम न्यायालय के एक मामले का हवाला देते हुए "भुगतान रोकने" का निर्देश चेक अनादरण के दायरे में आता है।
    • यदि चेक या परक्राम्य लिखत पर पक्षकारों के हस्ताक्षर हैं, तो यह ध्यान रखना पर्याप्त है कि हस्ताक्षर करने वाला पक्षकार शामिल था और उसे समस्त संव्यवहार की संपूर्ण जानकारी थी, उसे NI अधिनियम की धारा 141 के तहत उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
    • धारा 141 के तहत आरोप लगाने के लिये कंपनी को उत्तरदायी बनाना महत्त्वपूर्ण है।
    • साक्ष्य प्रस्तुत करके यह दावा करने वाले व्यक्ति पर साक्ष्य प्रस्तुत करने का भार होगा कि उसकी कोई संलिप्तता नहीं थी और उसे अपराध के आरंभ होने की जानकारी नहीं थी।
  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि:
    • आवेदक को समन जारी करना इस प्रकार माना जाएगा कि समन कंपनी को भी जारी किया गया है।
    • आवेदक को जारी किया गया डिमांड नोटिस कंपनी को जारी किया गया माना जाएगा, इसलिये यह समन पर भी लागू होगा।
  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उपरोक्त टिप्पणियों के आधार पर आवेदक की अर्जी खारिज कर दी।

ऐतिहासिक निर्णय:

  • इलेक्ट्रॉनिक्स ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम इंडियन टेक्नोलॉजिस्ट्स एंड इंजीनियर्स (इलेक्ट्रॉनिक्स) (पी) लिमिटेड (1996):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि 'भुगतान रोकना' निर्देश को चेक के अनादरण के रूप में शामिल किया जाना चाहिये।
  • के.के. आहूजा बनाम वी.के. वोरा (2009):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि जब किसी चेक पर किसी व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किये जाते हैं तो चेक के अनादरण पर वह व्यक्ति NI अधिनियम की धारा 141 के तहत उत्तरदायी होगा।
  • अनीता हाडा बनाम गॉडफादर ट्रैवल्स एंड टूर्स (पी) लिमिटेड (2012):
    • न्यायालय ने माना कि चेक के अनादरण के मामलों में कंपनी को NI अधिनियम की धारा 141 के तहत उत्तरदायी बनाना महत्त्वपूर्ण है।
  • एस.पी. मणि और मोहन डेयरी बनाम स्नेहलता एलंगोवन (2022):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि अपराध के दायित्व को सिद्ध करने का भार और यह कि किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध का कोई ज्ञान नहीं था, उस व्यक्ति पर होगा जो अपने तर्क का समर्थन करने वाले साक्ष्य प्रस्तुत करके उसे टाल सकता है।

चेक अनादरण क्या है?

  • चेक अनादरण से संबंधित मामलों को धारा 138 के तहत निपटाया जाता है, जिसे वर्ष 1988 में शामिल किये गए NI अधिनियम के अध्याय 17 के तहत शामिल किया गया है।
  • NI अधिनियम की धारा 138 विशेष रूप से धन की कमी के कारण चेक अनादरण से संबंधित अपराध से निपटती है या यदि यह चेककर्त्ता के खाते द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि से अधिक है।
  • यह उस प्रक्रिया से संबंधित है जहाँ चेककर्त्ता द्वारा किसी ऋण को पूर्ण रूप या आंशिक रूप से चुकाने के लिये चेक निकाला जाता है और चेक बैंक को वापस कर दिया जाता है।

NI अधिनियम की धारा 141 क्या है?

  • NI अधिनियम की धारा 141 प्रतिनिधि दायित्व के सिद्धांत को स्थापित करती है। 
  • प्रतिनिधि दायित्व एक विधिी अवधारणा है जो एक पक्षकार को दूसरे के कार्यों के लिये ज़िम्मेदार मानती है।
  • इस धारा के अनुसार, यदि NI अधिनियम के तहत कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया जाता है, तो प्रत्येक व्यक्ति जो अपराध के समय कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिये प्रभारी और ज़िम्मेदार था, के साथ कंपनी स्वयं भी अपराध की दोषी मानी जाएगी।
  • इस प्रावधान में कहा गया है कि कंपनी से संबंधित व्यक्तियों को कंपनी के कार्यों के लिये उत्तरदायी माना जा सकता है।

कॉर्पोरेट आपराधिक दायित्व क्या है?

  • यह अवधारणा निगमों की देयता को जन्म देती है जब उनकी ओर से कोई आपराधिक उल्लंघन होता है।
  • एक कंपनी के पास सामान्यतः दो मामलों में देयताएँ होती हैं:
    • जब किसी अपराध में कंपनी की प्रत्यक्ष भागीदारी होती है।
    • जब किसी अपराध में कंपनी के एजेंटों या कर्मचारियों के माध्यम से अप्रत्यक्ष भागीदारी होती है।

NI अधिनियम की धारा 141 के तहत दायित्व कैसे सिद्ध किया जा सकता है?

  • NI अधिनियम की धारा 141 के तहत दायित्व स्थापित करने के लिये यह सिद्ध करना आवश्यक है कि व्यक्ति कंपनी के व्यवसाय के संचालन में सक्रिय रूप से शामिल था और अपराध में उसकी भूमिका थी।
  • केवल पदनाम या नाममात्र का प्रमुख होना पर्याप्त नहीं हो सकता है।
  • अभियोजन पक्षकार को व्यक्ति की भूमिका और अपराध के बीच एक सीधा संबंध प्रदर्शित करना होगा।
  • अभियोजन पक्षकार को यह सिद्ध करना होगा कि अपराध सहमति या मिलीभगत से या व्यक्ति की उपेक्षा के कारण किया गया है।

के.के. आहूजा बनाम वी.के. वोरा (2009) मामले में न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • इस मामले में न्यायालय ने कहा कि केवल वह व्यक्ति जो सीधे तौर पर शामिल था और जिसे अपराध के होने की जानकारी थी, NI अधिनियम की धारा 141 के अंतर्गत उत्तरदायी होगा।
  • न्यायालय द्वारा ऐसे व्यक्तियों की सूची प्रदान की गई जिन्हें कंपनी के कारोबार के संचालन के लिये कंपनी के प्रति उत्तरदायी ठहराया जाएगा:
    • प्रबंध निदेशक
    • पूर्णकालिक निदेशक
    • प्रबंधक
    • सचिव
    • कोई भी व्यक्ति जिसके निर्देश या अनुदेश के अनुसार कंपनी का निदेशक मंडल कार्य करने के लिये आदी है।
    • कोई भी व्यक्ति जिसे बोर्ड द्वारा उस प्रावधान का अनुपालन करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है और जिसने बोर्ड को इस संबंध में अपनी सहमति दे दी है।
    • जहाँ किसी कंपनी में खंड (a) से (c) में निर्दिष्ट कोई भी अधिकारी नहीं है, कोई भी निदेशक जो बोर्ड द्वारा इस संबंध में निर्दिष्ट किये जा सकते हैं या जहाँ कोई निदेशक निर्दिष्ट नहीं है, जिसमें सभी निदेशक शामिल हैं।