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आपराधिक कानून
पॉक्सो अधिनिमय के तहत प्रेम संबंध अपराध नहीं
« »01-Nov-2023
मृगराज गौतम @ रिप्पू बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य। पॉक्सो अधिनियम, 2012 का उद्देश्य किशोरों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना कभी नहीं था। न्यायमूर्ति कृष्ण पहल |
स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मृगराज गौतम @ रिप्पू बनाम यूपी राज्य और अन्य के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 का उद्देश्य किशोरों के बीच सहमति से बने शारीरिक संबंधों को अपराध बनाना नहीं था।
मृगराज गौतम @ रिप्पू बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अभियोजन पक्ष के अनुसार, आवेदक ने अन्य आरोपी व्यक्तियों के साथ मिलकर 13 मई, 2023 की रात को 15 वर्षीय नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाकर भगाया।
- आरोपी पर भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 363 और धारा 366 और पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 7 और 8 के तहत मामला दर्ज़ किया गया था।
- आवेदक 18 मई, 2023 से जेल में बंद है और इसलिये इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष जमानत याचिका दायर की गई है।
- आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि आवेदक को अनावश्यक परेशान करने और उसे पीड़ित करने के लिये वर्तमान मामले में झूठा फँसाया गया था।
- उच्च न्यायालय ने आरोपी की जमानत अर्जी मंजूर कर ली।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिये बनाया गया था। आजकल यह अक्सर उनके शोषण का एक साधन बन गया है। इस अधिनियम का उद्देश्य किशोरों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना कभी नहीं था।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि जमानत देते समय न्यायालय को प्रेम से उत्पन्न हुए सहमति संबंध के तथ्य पर विचार करना चाहिये क्योंकि अगर पीड़िता के बयान को नजरअंदाज कर दिया गया और आरोपी को जेल में डालकर पीड़ित होने के लिये छोड़ दिया गया तो यह न्याय की विफलता होगी।
इसमें शामिल कानूनी प्रावधान
पॉक्सो अधिनियम, 2012
- यह अधिनियम वर्ष 2012 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत पारित किया गया था।
- यह बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन प्रहार और अश्लील साहित्य सहित अपराधों से बचाने के लिये बनाया गया एक व्यापक कानून है।
- यह लैंगिक रूप से तटस्थ अधिनियम है और बच्चों के कल्याण को सर्वोपरि महत्त्व का विषय मानता है।
- यह ऐसे अपराधों और संबंधित मामलों और घटनाओं की सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है।
- इस अधिनियम में पॉक्सो संशोधन विधेयक, 2019 द्वारा प्रवेशन यौन उत्पीड़न और गंभीर प्रवेशन यौन उत्पीड़न के अपराधों के लिये सजा के रूप में मृत्युदंड की शुरुआत की गई थी।
- धारा 7. लैंगिक हमला- जो कोई, लैंगिक आशय से बच्चे की योनि, लिंग, गुदा या स्तनों को स्पर्श करता है या बच्चे से ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य बच्चे की योनि, लिंग, गुदा या स्तन का स्पर्श कराता है या लैंगिक आशय से कोई अन्य कार्य करता है जिसमें प्रवेशन किये बिना शारीरिक संपर्क अंतर्ग्रस्त होता है, लैंगिक हमला करता है, यह कहा जाता है।
- धारा 8. लैंगिक हमले के लिये दंड जो कोई, लैंगिक हमला करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
भारतीय दंड संहिता, 1860
- IPC की धारा 363:
- भारतीय दंड संहिता की धारा 363 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति भारत से या किसी क़ानूनी अभिभावक की संरक्षता से किसी का अपहरण करता है तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास की सजा जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और साथ ही वह आर्थिक दंड के लिये भी उत्तरदायी होगा।
- IPC की धारा 366:
- यह धारा अपहरण, व्यपहरण या महिला को शादी के लिये मजबूर करने आदि से संबंधित है।
- जो कोई किसी स्त्री का उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी व्यक्ति से विवाह करने के लिये उस स्त्री को विवश करने के आशय से या वह विवश की जाएगी यह सम्भाव्य जानते हुए अथवा अवैध संभोग करने के लिये उस स्त्री को विवश करना या बहकाना या वह स्त्री अवैध संभोग के लिये विवश या बहक जाएगी यह संभाव्य जानते हुए व्यपहरण या अपहरण करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास की सजा जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जायेगा; और जो कोई इस संहिता या प्राधिकरण के दुरुपयोग या मजबूर कर किसी भी विधि में परिभाषित आपराधिक धमकियों के माध्यम से किसी स्त्री को किसी अन्य व्यक्ति से अवैध संभोग करने के लिये विवश करने या बहकाने के आशय से या वह स्त्री विवश या बहक जाएगी यह संभाव्य जानते हुए उस स्त्री को किसी स्थान से जाने के लिये उत्प्रेरित करेगा, उसे भी उपरोक्त प्रकार से दण्डित किया जायेगा।