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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत उद्घोषणा एवं कुर्की

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 26-Jul-2024

फैयाज़ अब्बास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 

"केवल घोषित व्यक्ति की संपत्ति ही कुर्क की जा सकती है, फलस्वरूप, उस संपत्ति की कुर्की का कोई औचित्य नहीं बनता जिसमें अभियुक्त निवास कर रहा हो।"

न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की पीठ ने कहा कि केवल फरार व्यक्ति की संपत्ति कुर्क की जा सकती है, न कि वह संपत्ति जिसमें वह रहता हो।

फैयाज़ अब्बास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • सैयद अली हसन ने फैयाज़ अब्बास (अपीलकर्त्ता ), फैज़ अब्बास (अपीलकर्त्ता का बेटा) एवं गुड्डो (अपीलकर्त्ता  की पत्नी) के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
  • लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 3 एवं 4 तथा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 323, 328, 363, 376, 504 एवं 506 के अधीन प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
  • अपीलकर्त्ता के बेटे फैज़ अब्बास की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं की जा सकी, इसलिये दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 82 के अधीन एक आदेश दिया गया।
  • इसके बाद CrPC की धारा 83 के अधीन एक आदेश भी पारित किया गया, जिसके अंतर्गत अपीलकर्त्ता के घर को कुर्क किया गया।
  • चूँकि संपत्ति फरार व्यक्ति के पिता की थी, इसलिये अपीलकर्त्ता ने CrPC की धारा 84 के अधीन अपनी आपत्तियाँ दर्ज कीं
  • मामला अधीनस्थ न्यायालय में गया, जहाँ कुर्की का आदेश वैध माना गया, क्योंकि आरोपी पूरे घर के दो कमरों में रह रहा है।
  • इसलिये अपीलकर्त्ता द्वारा दायर आपत्तियों को खारिज कर दिया गया। इसलिये अपील उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • उच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा कि CrPC की धारा 82 एवं धारा 83 के अवलोकन से यह पता लगाया जा सकता है कि कुर्क की गई संपत्ति घोषित व्यक्ति की ही होनी चाहिये।
  • इस प्रकार, धारा 83 के अधीन आदेश पारित करने के लिये प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकाला जाना चाहिये कि जिस संपत्ति के लिये कुर्की का आदेश पारित किया जा रहा है, वह अभियुक्त की है तथा ऐसे निष्कर्ष के बिना ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता।
  • न्यायालय ने उदाहरण देते हुए कहा कि घोषित व्यक्ति का मात्र निवास स्थान संबंधित प्राधिकारी को किराये की संपत्ति को ज़ब्त या कुर्क करने का अधिकार नहीं दे सकता, क्योंकि उक्त किराये की संपत्ति घोषित व्यक्ति की नहीं होगी।
  • विस्तार से बताते हुए न्यायालय ने नज़ीर अहमद बनाम किंग एम्परर (1936) के मामले का हवाला दिया, जिसमें प्रिवी काउंसिल ने कहा था कि जब किसी निश्चित कार्य को एक तरीके से करने की शक्ति दी जाती है, तो उसे उसी तरीके से किया जाना चाहिये।

CrPC की धारा 82 एवं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 84 के अधीन उद्घोषणा क्या है?

  • CrPC की धारा 82 में फरार व्यक्ति के लिये उद्घोषणा से संबंधित विधि का प्रावधान किया गया है। BNSS में यह BNSS की धारा 84 के अंतर्गत प्रावधानित किया गया है।
  • CrPC एवं BNSS के मध्य तुलना:

CrPC की धारा 82

BNSS की धारा 84

(1) यदि किसी न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण है (चाहे साक्ष्य लेने के बाद या नहीं) कि कोई व्यक्ति, जिसके विरुद्ध उसके द्वारा वारंट जारी किया गया है, फरार हो गया है या अपने आपको इस प्रकार छिपा रहा है कि ऐसे वारंट का निष्पादन नहीं किया जा सकता, तो ऐसा न्यायालय एक लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है जिसमें उससे यह अपेक्षा की जाएगी कि वह किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर और किसी विनिर्दिष्ट समय पर उपस्थित हो, जो ऐसी उद्घोषणा के प्रकाशन की तिथि से कम-से-कम तीस दिन की अवधि के अंदर होगा।

(1) यदि किसी न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण है (चाहे साक्ष्य लेने के पश्चात् या नहीं) कि कोई व्यक्ति, जिसके विरुद्ध उसके द्वारा वारंट जारी किया गया है, फरार हो गया है या अपने को इस प्रकार छिपा रहा है कि ऐसे वारंट का निष्पादन नहीं किया जा सकता, तो ऐसा न्यायालय एक लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकेगा जिसमें उससे यह अपेक्षा की जाएगी कि वह किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर और किसी विनिर्दिष्ट समय पर, ऐसी उद्घोषणा के प्रकाशन की तिथि से कम-से-कम तीस दिन के अंदर उपस्थित हो।

(2) उद्घोषणा इस प्रकार प्रकाशित की जाएगी-

(i) (a) इसे उस नगर या गाँव के किसी प्रमुख स्थान पर सार्वजनिक रूप से पढ़ा जाएगा जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है;

(b) इसे उस घर या वासस्थान के किसी प्रमुख भाग पर, जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है या ऐसे नगर या गाँव के किसी प्रमुख स्थान पर चिपकाया जाएगा;

(c) उसकी एक प्रति न्यायालय के किसी सहजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी;

(ii) न्यायालय, यदि वह उचित समझे, उद्घोषणा की एक प्रति उस स्थान में प्रसारित होने वाले दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशित करने का निर्देश भी दे सकता है जहाँ ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है।

(2) उद्घोषणा इस प्रकार प्रकाशित की जाएगी-

(i) (a) इसे उस नगर या गाँव के किसी प्रमुख स्थान पर सार्वजनिक रूप से पढ़ा जाएगा जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है;

(b) इसे उस घर या वासस्थान के किसी प्रमुख भाग पर, जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है, या ऐसे नगर या गाँव के किसी प्रमुख स्थान पर चिपकाया जाएगा;

(c) उसकी एक प्रति न्यायालय के किसी सहजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी;

(ii) न्यायालय, यदि वह उचित समझे, उद्घोषणा की एक प्रति उस स्थान में प्रसारित होने वाले दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशित करने का निर्देश भी दे सकता है जहाँ ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है।

(3) उद्घोषणा जारी करने वाले न्यायालय द्वारा लिखित में यह कथन कि उद्घोषणा उपधारा (2) के खंड (i) में निर्दिष्ट तरीके से निर्दिष्ट दिन पर विधिवत् प्रकाशित की गई थी, इस बात का निर्णायक साक्ष्य होगा कि इस धारा की अपेक्षाओं का अनुपालन किया गया है और उद्घोषणा ऐसे दिन प्रकाशित की गई थी।

(3) उद्घोषणा जारी करने वाले न्यायालय द्वारा लिखित में यह कथन कि उद्घोषणा उपधारा (2) के खंड (i) में विनिर्दिष्ट रीति से विनिर्दिष्ट दिन को सम्यक रूप से प्रकाशित कर दी गई थी, इस बात का निर्णायक साक्ष्य होगा कि इस धारा की अपेक्षाओं का अनुपालन किया गया है और उद्घोषणा ऐसे दिन प्रकाशित कर दी गई थी।

(4) जहाँ उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा किसी ऐसे व्यक्ति के संबंध में है जो भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 302, 304, 364, 367, 382, ​​392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 400, 402, 436, 449, 459 या 460 के अधीन दण्डनीय अपराध का अभियुक्त है तथा ऐसा व्यक्ति उद्घोषणा द्वारा अपेक्षित विनिर्दिष्ट स्थान एवं समय पर उपस्थित होने में असफल रहता है, वहाँ न्यायालय ऐसी जाँच करने के पश्चात्, जैसी वह ठीक समझे, उसे उद्घोषित अपराधी घोषित कर सकेगा और इस आशय की घोषणा कर सकेगा।

(4) जहाँ उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा किसी ऐसे व्यक्ति के संबंध में है, जो किसी ऐसे अपराध का अभियुक्त है, जो भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन दस वर्ष या अधिक के कारावास से, या आजीवन कारावास से, या मृत्युदण्ड से दण्डनीय है तथा ऐसा व्यक्ति उद्घोषणा द्वारा अपेक्षित विनिर्दिष्ट स्थान एवं समय पर उपस्थित होने में असफल रहता है, वहाँ न्यायालय ऐसी जाँच करने के पश्चात्, जैसी वह ठीक समझे, उसे उद्घोषित अपराधी घोषित कर सकेगा और इस आशय की घोषणा कर सकेगा।

(5) उपधारा (2) एवं (3) के उपबंध उपधारा (4) के अधीन न्यायालय द्वारा की गई घोषणा पर उसी प्रकार लागू होंगे, जैसे वे उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा पर लागू होते हैं।

(5) उपधारा (2) एवं (3) के उपबंध न्यायालय द्वारा उपधारा (4) के अधीन की गई घोषणा पर उसी प्रकार लागू होंगे, जिस प्रकार वे उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा पर लागू होते हैं।

  •  BNSS द्वारा अधिनियमित नए प्रावधान:
    • मुख्य परिवर्तन BNSS की धारा 84(4) के अधीन घोषित अपराधी के संबंध में है।
    • BNSS के अधीन घोषित अपराधी वह व्यक्ति होगा, जो किसी ऐसे अपराध का आरोपी हो जिसके लिये भारतीय न्याय संहिता, 2023 या किसी अन्य लागू विधि के अधीन दस वर्ष या उससे अधिक का कारावास या आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड की सज़ा हो सकती है अथवा जो उद्घोषणा के अनुसार उपस्थित होने में विफल रहता है।

CrPC की धारा 83 एवं BNSS की धारा 85 के अधीन संपत्ति की कुर्की से क्या अभिप्राय है?

  • CrPC की धारा 83 में फरार व्यक्ति की संपत्ति कुर्क करने का प्रावधान है। BNSS के अधीन यह प्रावधान BNSS की धारा 84 के अधीन है। यह ध्यान देने वाली बात है कि BNSS की धारा 85 के अधीन एक अतिरिक्त प्रावधान जोड़ा गया है।
  • CrPC एवं BNSS के मध्य तुलना:

CrPC की धारा 83

BNSS की धारा 85

(1) धारा 82 के अधीन उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय, उद्घोषणा जारी करने के बाद किसी भी समय उद्घोषणा जारी करने वाले व्यक्ति की किसी भी संपत्ति, जंगम या स्थावर, या दोनों की कुर्की का ऑर्डर डिलीवर: लेकिन जहाँ उद्घोषणा जारी करने के बाद न्यायालय का शपथ-पत्र द्वारा या अन्यथा समाधान हो जाता है कि वह व्यक्ति, संबंध में उद्घोषणा जारी की जानी है,

(a) अपनी पूरी संपत्ति या उसके किसी भाग का निपटान करने वाला है, या

(b) अपनी पूरी संपत्ति या उसके किसी भाग को न्यायालय के स्थानीय अधिकार क्षेत्र से हटाने वाला है, तो वह उद्घोषणा जारी करने के साथ ही कुर्की का आदेश दे सकता है।

(1) धारा 84 के अधीन उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय, कारणों को लेखबद्ध करके, उद्घोषणा जारी करने के पश्चात् किसी भी समय उद्घोषित व्यक्ति की किसी भी संपत्ति, जंगम या स्थावर या दोनों की कुर्की का आदेश दे सकेगा: परंतु जहाँ उद्घोषणा जारी करने के समय न्यायालय का शपथ-पत्र द्वारा या अन्यथा समाधान हो जाता है कि वह व्यक्ति, जिसके संबंध में उद्घोषणा जारी की जानी है-

(a) अपनी संपूर्ण संपत्ति या उसके किसी भाग का निपटान करने वाला है; या

(b) अपनी संपूर्ण संपत्ति या उसके किसी भाग को न्यायालय के स्थानीय अधिकार क्षेत्र से हटाने वाला है, तो वह उद्घोषणा जारी करने के साथ-साथ संपत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है।

(2) ऐसा आदेश उस ज़िले के अंदर ऐसे व्यक्ति की किसी संपत्ति की कुर्की को प्राधिकृत करेगा जिसमें वह बनाया गया है तथा वह ऐसे व्यक्ति की किसी संपत्ति की, जो ऐसे ज़िले के बाहर है, कुर्की को प्राधिकृत करेगा जब वह उस ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकित किया गया हो जिसके ज़िले में ऐसी संपत्ति स्थित है।

(2) ऐसा आदेश उस ज़िले के भीतर ऐसे व्यक्ति की किसी संपत्ति की कुर्की को प्राधिकृत करेगा जिसमें वह बनाया गया है; तथा वह ऐसे व्यक्ति की किसी संपत्ति की, जो ऐसे ज़िले के बाहर है, कुर्की को प्राधिकृत करेगा जब वह उस ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकित किया गया हो जिसके ज़िले में ऐसी संपत्ति स्थित है।

(3) यदि कुर्क की जाने वाली आदेशित संपत्ति ऋण या अन्य चल संपत्ति है, तो इस धारा के अधीन कुर्की निम्नलिखित आधार पर की जाएगी-

(क) ज़ब्ती द्वारा; या

(ख) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा; या

(ग) घोषित व्यक्ति को या उसकी ओर से किसी को ऐसी संपत्ति के वितरण पर रोक लगाने वाले लिखित आदेश द्वारा; या

(घ) ऐसे सभी या किन्हीं दो तरीकों द्वारा, जिन्हें न्यायालय उचित समझे।

(3) यदि कुर्क की जाने वाली आदेशित संपत्ति ऋण या अन्य चल संपत्ति है, तो इस धारा के अधीन कुर्की निम्नलिखित आधार पर की जाएगी-

(क) ज़ब्ती द्वारा; या

(ख) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा; या

(ग) घोषित व्यक्ति को या उसकी ओर से किसी को ऐसी संपत्ति सौंपने पर रोक लगाने वाले लिखित आदेश द्वारा; या

(घ) ऐसे सभी या किन्हीं दो तरीकों द्वारा, जिन्हें न्यायालय उचित समझे

(4) यदि वह संपत्ति, जिसे कुर्क करने का आदेश दिया गया है, स्थावर है, तो इस धारा के अधीन कुर्की, राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा में, उस ज़िले के कलेक्टर के माध्यम से की जाएगी जिसमें भूमि स्थित है तथा अन्य सभी दशाओं में- (a) कब्ज़ा लेकर; या (b) रिसीवर की नियुक्ति करके; या (c) घोषित व्यक्ति को या उसकी ओर से किसी को संपत्ति सौंपे जाने पर किराया देने पर प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा; या (d) ऐसे सभी या किन्हीं दो तरीकों द्वारा, जिन्हें न्यायालय उचित समझे।

(4) यदि वह संपत्ति, जिसे कुर्क करने का आदेश दिया गया है, स्थावर है, तो इस धारा के अधीन कुर्की, राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा में, उस ज़िले के कलेक्टर के माध्यम से की जाएगी जिसमें भूमि स्थित है, और अन्य सभी दशाओं में- (a) कब्ज़ा लेकर; या (b) रिसीवर की नियुक्ति करके; या (c) घोषित व्यक्ति को या उसकी ओर से किसी को संपत्ति सौंपे जाने पर किराया देने पर प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा; या (d) ऐसे सभी या किन्हीं दो तरीकों द्वारा, जिन्हें न्यायालय उचित समझे।

(5) यदि कुर्क की जाने वाली आदेशित संपत्ति पशुधन से बनी है या नाशवान प्रकृति की है, तो न्यायालय, यदि वह समीचीन समझे, तो उसकी तत्काल बिक्री का आदेश दे सकता है तथा ऐसी स्थिति में बिक्री से प्राप्त राशि न्यायालय के आदेश के अधीन रहेगी।

(5) यदि कुर्क की जाने वाली संपत्ति में पशुधन शामिल है या वह नाशवान प्रकृति की है, तो न्यायालय, यदि वह समीचीन समझे, तो उसकी तत्काल बिक्री का आदेश दे सकता है तथा ऐसी स्थिति में बिक्री से प्राप्त राशि न्यायालय के आदेश के अधीन रहेगी।

(6) इस धारा के अधीन नियुक्त रिसीवर की शक्तियाँ, कर्त्तव्य एवं दायित्व वही होंगे जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन नियुक्त रिसीवर के हैं।

(6) इस धारा के अधीन नियुक्त रिसीवर की शक्तियाँ, कर्त्तव्य एवं दायित्व वही होंगे जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अधीन नियुक्त रिसीवर के हैं।

  •  यह ध्यान देने वाली बात है कि इस प्रावधान के संबंध में BNSS में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। हालाँकि नया प्रावधान BNSS की धारा 86 के रूप में एक नया प्रावधान है।
  • BNSS की धारा 86 में प्रावधान है:
    • न्यायालय, पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त के पद के अधीनस्थ के न होने वाले पुलिस अधिकारी के लिखित अनुरोध पर, अध्याय VIII में प्रदत्त प्रक्रिया के अनुसार घोषित व्यक्ति से संबंधित संपत्ति की पहचान, कुर्की एवं ज़ब्ती के लिये अनुबंधकारी राज्य के न्यायालय या प्राधिकारी से सहायता का निवेदन करने की प्रक्रिया आरंभ कर सकता है।