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सिविल कानून

दिव्यांग व्यक्तियों के लिये आरक्षण का प्रावधान

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 14-Oct-2024

नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य

“वर्ष 2016 का अधिनियम देश में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन को प्रभावी बनाने के लिये लाया गया है।”

मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति प्रणव त्रिवेदी

स्रोत: गुजरात उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति प्रणव त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि सरकार को इस भूल को सुधारना चाहिये तथा दिव्यांग व्यक्तियों को आरक्षण प्रदान करना चाहिये। 

  • गुजरात उच्च न्यायालय ने नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य के मामले में यह निर्णय दिया।

नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान जनहित याचिका निम्नलिखित के कार्यान्वयन के एकमात्र उद्देश्य से दायर की गई है:
    • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPWD अधिनियम) विशेष रूप से RPWD अधिनियम की धारा 34।
    • दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम,
    • 1995 (PWD अधिनियम), भारत संघ एवं अन्य बनाम राष्ट्रीय दृष्टिहीन संघ एवं अन्य (2013) में उच्चतम न्यायालय द्वारा 8 अक्टूबर 2013 को पारित निर्देश।
  • इस मामले में याचिकाकर्त्ता ने आरोप लगाया कि उच्चतम न्यायालय ने PWD अधिनियम की धारा 33 की व्याख्या इस प्रकार की है कि प्रत्येक उपयुक्त सरकार को किसी प्रतिष्ठान में न्यूनतम 3% रिक्तियों पर नियुक्ति करनी होती है, जिसमें से 1% अंधेपन एवं कम दृष्टि से पीड़ित लोगों, सुनने में बाधा से पीड़ित व्यक्तियों और चलने-फिरने में अक्षमता या मस्तिष्क पक्षाघात से पीड़ित व्यक्तियों के लिये आरक्षित होती हैं।
  • इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय ने माना था कि आरक्षण की गणना कैडर की कुल स्वीकृत रिक्तियों के आधार पर की जाती है, न कि अधिसूचित पदों के आधार पर।
  • RPWD अधिनियम के अधिनियमन के साथ आरक्षण 3% से बढ़ाकर 4% कर दिया गया है तथा दो और बेंचमार्क दिव्यांगताएं शामिल की गई हैं।
  • इसके अतिरिक्त, अधिनियम की धारा 34 के अंतर्गत आगे ले जाने का सिद्धांत भी जोड़ा गया है।

भारत संघ एवं अन्य बनाम राष्ट्रीय दृष्टिहीन संघ एवं अन्य (2013) मामले में क्या निर्णय दिया गया?

  • उच्चतम न्यायालय द्वारा निम्नलिखित निर्देश जारी किये गये:
    • उपयुक्त सरकार को निर्देश दिया गया कि वह तीन महीने की अवधि के अंदर सभी प्रतिष्ठानों में उपलब्ध रिक्तियों की संख्या की गणना करे तथा दिव्यांग व्यक्तियों के लिये पदों की पहचान करे तथा बिना किसी चूक के इसे लागू करे।
    • दिव्यांग व्यक्तियों के लिये आरक्षण योजना का पालन न करने को गैर-आज्ञाकारिता का कार्य माना जाना चाहिये तथा विभाग/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों/सरकारी कंपनियों में नोडल अधिकारी को दिव्यांग व्यक्तियों के लिये आरक्षण के उचित एवं सख्त कार्यान्वयन के लिये उत्तरदायी बनाया जाना चाहिये।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • गुजरात राज्य में 1995 का अधिनियम वर्ष 2000 में ही लागू किया गया था तथा वर्ष 1996 से 2000 के बीच 1995 के अधिनियम की धारा 33 के अनुपालन में कोई आरक्षण नहीं था। साथ ही, 2016 का अधिनियम 2021 में लागू किया गया।
  • न्यायालय ने पाया कि 1995 के अधिनियम एवं 2016 के अधिनियम के कार्यान्वयन के मामले में गुजरात सरकार के मुख्य सचिव के मन में गलतफहमी थी।
  • न्यायालय ने कहा कि अधिनियम के उपबंधों को तत्काल लागू किया जाना चाहिये, क्योंकि अधिनियम के गैर-कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप गुजरात राज्य में दिव्यांग व्यक्तियों को आरक्षण के लाभ से वंचित होना पड़ेगा।
  • राज्य की ओर से उपस्थित विद्वान महाधिवक्ता ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि राज्य सरकार उपर्युक्त दोनों अधिनियमों को लागू करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • संबंधित महाधिवक्ता ने न्यायालय को आश्वासन दिया है कि राज्य कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार के साथ समन्वय करेगा तथा बैकलॉग रिक्तियों की गणना करके और विशेष भर्ती अभियान आयोजित करने की योजना तैयार करके स्थिति को सुधारने का समाधान ढूंढेगा।
  • मामले की अगली सुनवाई 22 नवंबर 2024 को होगी।

आरक्षण के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

  • इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) के मामले में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने माना कि आरक्षण दो प्रकार के होते हैं:
    • क्षैतिज आरक्षण
    • ऊर्ध्वाधर आरक्षण
  • ऊर्ध्वाधर आरक्षण:
    • ये विशेष उपबंधों का उच्चतम रूप हैं जो विशेष रूप से पिछड़े वर्गों SC, ST एवं OBC के सदस्यों के लिये हैं।
    • इन वर्गों के सदस्यों द्वारा उनकी योग्यता के आधार पर प्राप्त पदों को ऊर्ध्वाधर आरक्षित पदों में नहीं गिना जाता है।
    • ये 50% से अधिक नहीं हो सकते।
  • क्षैतिज आरक्षण:
    • वे विशेष उपबंधों का कमतर रूप हैं तथा अन्य वंचित नागरिकों (जैसे दिव्यांग, महिलाएँ आदि) के लिये हैं।
    • उनके माध्यम से समायोजन पिछड़े वर्गों के लिये उर्ध्वगामी आरक्षित सीटों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

दिव्यांग व्यक्तियों के संबंध में आरक्षण के प्रावधान क्या हैं?

दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016

  • धारा 32:
    • यह उपबंध उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान करता है।
    • इसमें प्रावधान है कि उच्च शिक्षा के सभी सरकारी संस्थान (सरकार से सहायता प्राप्त करने वाले संस्थानों सहित) बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के लिये कम से कम 5% सीटें आरक्षित रखेंगे।
  • धारा 33:
    • इस उपबंध में यह प्रावधान है कि उपयुक्त सरकार संबंधित श्रेणी में ऐसे पदों की पहचान करेगी जिनमें आरक्षण दिया जाना चाहिये।
  • धारा 34
    • खंड (1) में यह प्रावधान है कि प्रत्येक समुचित सरकार प्रत्येक सरकारी प्रतिष्ठान में पदों के प्रत्येक समूह में कैडर संख्या की कुल रिक्तियों की कम से कम 4% संख्या बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्तियों से भरेगी।
    • उपर्युक्त पदों में से 1% निम्नलिखित श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों के लिये आरक्षित रहेंगे:
      • अंधापन एवं अल्प दृष्टि
      • बधिर एवं अल्प बधिर
      • चलने-फिरने में अक्षमता जिसमें सेरेब्रल पाल्सी, ठीक हो चुके कुष्ठ रोग, बौनापन, एसिड अटैक पीड़ित और मस्कुलर डिस्ट्रॉफी शामिल हैं
    • इसके अतिरिक्त, 1% निम्नलिखित के लिये आरक्षित रहेगा:
      • ऑटिज्म, बौद्धिक दिव्यांगता, विशिष्ट अधिगम दिव्यांगता एवं मानसिक बीमारी।
      • खण्ड (a) से (d) (ऊपर उल्लेखित) के अंतर्गत व्यक्तियों में से प्रत्येक दिव्यांगता के लिये पहचाने गए पदों में बधिर-अंधापन सहित एकाधिक दिव्यांगताएँ।
    • धारा 34 के खंड 2 में अपूर्ण पदों की स्थिति में अग्रसर होने का नियम दिया गया है।
    • धारा 34 के खंड 3 में यह प्रावधान है कि बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के रोजगार के लिये ऊपरी आयु सीमा में छूट दी जा सकती है।

दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 (PWD अधिनियम)

  • धारा 32:
    • धारा 32 में प्रावधान है कि युक्तियुक्त सरकार
    • प्रतिष्ठानों में ऐसे पदों की पहचान करें, जिन्हें दिव्यांग व्यक्तियों के लिये आरक्षित किया जा सकता है।
    • तीन वर्ष से अधिक नहीं के आवधिक अंतराल पर, पहचाने गए पदों की सूची की समीक्षा करें तथा प्रौद्योगिकी के विकास को ध्यान में रखते हुए सूची को अद्यतन करें।
  • धारा 33
    • धारा 33 में उल्लिखित दिव्यांगताओं से पीड़ित व्यक्तियों को दिये जाने वाले आरक्षण का प्रतिशत प्रदान किया गया है।
    • प्रत्येक समुचित सरकार प्रत्येक प्रतिष्ठान में दिव्यांगता वाले व्यक्तियों या व्यक्तियों के वर्ग के लिये कम से कम तीन प्रतिशत रिक्तियां नियुक्त करेगी, जिनमें से एक प्रतिशत निम्नलिखित से पीड़ित व्यक्तियों के लिये आरक्षित होगा-
      • अंधापन या अल्प दृष्टि;
      • अल्प बधिर
      • लोको मोटर दिव्यांगता या सेरेब्रल पाल्सी, प्रत्येक दिव्यांगता के लिये पहचाने गए पदों में:
    • बशर्ते कि समुचित सरकार किसी विभाग या स्थापन में किये जाने वाले कार्य के प्रकार को ध्यान में रखते हुए, अधिसूचना द्वारा, ऐसी शर्तों के अधीन, यदि कोई हों, जो ऐसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएँ, किसी स्थापन को इस धारा के उपबंधों से छूट दे सकेगी।
  • धारा 39:
    • सभी सरकारी शैक्षणिक संस्थान एवं सरकार से सहायता प्राप्त करने वाले अन्य शैक्षणिक संस्थान, दिव्यांग व्यक्तियों के लिये कम से कम तीन प्रतिशत सीटें आरक्षित रखेंगे।
  • धारा 40:
    • समुचित सरकारें एवं स्थानीय प्राधिकारी दिव्यांग व्यक्तियों के लाभ के लिये सभी गरीबी उन्मूलन योजनाओं में कम से कम तीन प्रतिशत धनराशि आरक्षित रखेंगे।