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सिविल कानून

स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों को आरक्षण

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 13-Sep-2024

अवनी पांडे बनाम चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण महानिदेशालय के माध्यम से महानिदेशक लखनऊ एवं अन्य

“किसी स्वतंत्रता सेनानी के प्रपौत्र को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता।”

न्यायमूर्ति आलोक माथुर

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति आलोक माथुर की पीठ ने कहा कि प्रपौत्र, स्वतंत्रता सेनानियों का ‘आश्रित’ नहीं है।    

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अवनी पांडे बनाम चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय के माध्यम से महानिदेशक लखनऊ व अन्य मामले में यह निर्णय दिया।

अवनी पांडे बनाम चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण महानिदेशालय के माध्यम से महानिदेशक लखनऊ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • याचिकाकर्त्ता MBBS पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिये NEET-UG-2024 परीक्षा में उपस्थित हुआ है।
  • याचिकाकर्त्ता उत्तर प्रदेश की मूल निवासी है और उसने बरेली से 10वीं तथा 12वीं कक्षा उत्तीर्ण की है, जबकि उसके परदादा एवं परदादी बिहार राज्य के मूल निवासी थे।
  • याचिकाकर्त्ता स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों को आरक्षण देने की मांग कर रहा है।
  • हालाँकि, याचिकाकर्त्ता को स्वतंत्रता सेनानी आश्रित श्रेणी के अंतर्गत आरक्षण का लाभ देने से प्रतिषेध कर दिया गया है।
  • याचिका प्रतिवादी संख्या 1 द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को, जिसमें अन्य राज्यों के स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों को स्वतंत्रता सेनानी श्रेणी के अंतर्गत आरक्षण का लाभ प्राप्त करने के लिये शामिल नहीं किया गया है, अवैध घोषित करने के लिये दायर की गई है, क्योंकि यह दिशा-निर्देश भेदभावपूर्ण है तथा भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्च न्यायालय ने यहाँ उठाए गए प्रश्न का उत्तर दिया: "क्या स्वतंत्रता सेनानियों की प्रपौत्री को भी उत्तर प्रदेश लोक सेवा (शारीरिक रूप से विकलांग, स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों और पूर्व सैनिकों के लिये आरक्षण) अधिनियम, 1993 की धारा 2 (b) के अनुसार स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित के रूप में लाभ दिया जाना है?"
  • न्यायालय ने पूर्वनिर्णयों का उदाहरण दिया और कहा कि यह स्थापित हो चुका है कि प्रपौत्र को 'आश्रितों' की परिभाषा में शामिल नहीं किया गया है।
  • तदनुसार, न्यायालय ने माना कि इस मामले में भी प्रपौत्री को 'आश्रितों' के दायरे में शामिल नहीं किया जाएगा।

उत्तर प्रदेश लोक सेवा (शारीरिक रूप से विकलांग, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितों और भूतपूर्व सैनिकों के लिये आरक्षण) अधिनियम, 1993 के अंतर्गत आश्रित कौन है?

  • उत्तर प्रदेश लोक सेवा (शारीरिक रूप से विकलांग, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितों और भूतपूर्व सैनिकों के लिये आरक्षण) अधिनियम, 1993 की धारा 2 (b) में 'आश्रित' की परिभाषा दी गई है।
  • यह धारा यह प्रावधान करती है कि स्वतंत्रता सेनानी के संदर्भ में 'आश्रित' का अर्थ है:
    • पुत्र या पुत्री (विवाहित या अविवाहित);
    • पौत्र(पुत्र या पुत्री का पुत्र) और पौत्री (पुत्र या पुत्री का पुत्री) (विवाहित या अविवाहित)।

आरक्षण के प्रकार क्या हैं?

  • इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) के मामले में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने माना कि आरक्षण दो प्रकार के होते हैं:
    • क्षैतिज आरक्षण
    • ऊर्ध्वाधर आरक्षण 
  • उर्ध्वाधर आरक्षण
    • ये विशेष प्रावधानों का उच्चतम स्वरूप है जो विशेष रूप से पिछड़े वर्गों (SC, ST और OBC) के लिये हैं।
    • इन वर्गों के सदस्यों द्वारा अपनी योग्यता के आधार पर प्राप्त पद, ऊर्ध्वाधर आरक्षित पदों में नहीं गिने जाते।
    • यह आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता।
  • क्षैतिज आरक्षण  
    • ये विशेष प्रावधानों का निम्नतर रूप हैं तथा अन्य वंचित नागरिकों के लिये हैं।
    • क्षैतिज आरक्षण विकलांगों, महिलाओं, स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों के लिये है।
    • उनके माध्यम से समायोजन पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षित सीटों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों को दिये गए आरक्षण पर ऐतिहासिक मामला

  • कृष्ण नंद राय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य (2020)
    • इस मामले में याचिकाकर्त्ता ने न्यायालय में आरक्षण दिये जाने की मांग की थी, क्योंकि वह एक स्वतंत्रता सेनानी का प्रपौत्र था और इसलिये वह ‘स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों’ की श्रेणी के अंतर्गत आरक्षण के लिये पात्र था।
    • न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित होने का लाभ केवल पौत्र स्तर तक के वंशजों को ही मिलेगा, इससे आगे नहीं, अर्थात् परपौत्र या उससे नीचे के वंशज ‘स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित’ की परिभाषा में नहीं आएंगे।
    • इसलिये, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याचिका को अस्वीकार कर दिया और कहा कि याचिकाकर्त्ता को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता।