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पारिवारिक कानून

हिंदू विधि में सहदायिकों पर प्रतिबंध

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 08-Aug-2024

अहमद खान एवं अन्य बनाम भास्कर दत्त पांडे एवं अन्य

“यद्यपि सहदायिक या सह-अंशधारी अपने भाग की सीमा तक भूमि का अंतरण कर सकता है, परंतु वह भूमि के किसी विशिष्ट खंड का अंतरण नहीं कर सकता”।

न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अहमद खान एवं अन्य बनाम भास्कर दत्त पांडे एवं अन्य के मामले में माना है कि संपत्ति में व्यक्ति के भाग का अंतरण किया जा सकता है, परंतु हिंदू संयुक्त कुटुंब की संपत्ति के भाग का अंतरण नहीं किया जा सकता।

अहमद खान एवं अन्य बनाम भास्कर दत्त पांडे एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, प्रतिवादी ने स्वामित्व, विभाजन, स्थायी निषेधाज्ञा और वसीयत को शून्य तथा अवैध घोषित करने के लिये सिविल जज जूनियर डिवीज़न के समक्ष वाद दायर किया।
  • प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि विवादित भूमि, हिंदू संयुक्त कुटुंब (HUF) का भाग है, क्योंकि विवादित भूमि पैतृक संपत्ति थी और सभी विधिक उत्तराधिकारी संपत्ति में समान भाग के अधिकारी हैं।
  • यह भी तर्क दिया गया कि वादी द्वारा किया गया विक्रय अवैध था, क्योंकि संपत्ति हिंदू संयुक्त कुटुंब (HUF) की है।
  • प्रतिवादी विवादित भूमि पर याचिकाकर्त्ताओं द्वारा किये जा रहे निर्माण कार्य पर रोक लगा रहे थे।
  • वर्तमान वाद में अंतिम क्रेता याचिकाकर्त्ता है।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि वादाधीन संपत्ति विक्रेता की स्व-अर्जित संपत्ति है तथा उनके द्वारा किया गया विक्रय वैध था।
  • यह भी तर्क दिया गया कि उन्हें अपनी संपत्ति पर निर्माण कार्य करने से नहीं रोका जा सकता।
  • सिविल जज जूनियर डिवीज़न ने उचित निष्कर्षों के उपरांत माना कि यदि संपत्ति संयुक्त परिवार की संपत्ति है, तो कोई भी सहदायिक उचित विभाजन के बिना भूमि के किसी विशिष्ट भाग को अंतरित नहीं कर सकता।
  • इस निर्णय के विरुद्ध ज़िला न्यायाधीश के समक्ष अपील की गई, जिन्होंने सिविल जज जूनियर डिवीज़न के आदेश को यथावत रखा।
  • वर्तमान याचिका में अपीलकर्त्ता ने भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 227 के अंतर्गत मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि सहदायिक संपत्ति में व्यक्ति के भाग का अंतरण किया जा सकता है, परंतु संपत्ति का वह भाग नहीं जो हिंदू संयुक्त कुटुंब की संपत्ति है।
  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने संपत्ति-अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 52 पर भी ज़ोर दिया।
    • यह निर्धारित किया गया कि मामले के लंबित रहने के दौरान विवादित किसी भी संपत्ति को अंतरित नहीं किया जा सकता, जिससे वाद में पक्षकारों के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
    • न्यायालय ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि लिस पेंडेंस का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि विवादित संपत्ति न्यायालय के नियंत्रण में रहेगी और वाद के लंबित रहने के दौरान अंतरण से न्यायालय के निर्णय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि निचले न्यायालय द्वारा याचिकाकर्त्ताओं को विवादित भूमि पर निर्माण कार्य करने से रोकना सही था।
  • न्यायालय ने निचले न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों में कोई क्षेत्राधिकार संबंधी त्रुटि या भौतिक अवैधता नहीं पाई, क्योंकि वे संयुक्त हिंदू कुटुंब की संपत्ति और वाद-प्रतिवाद के दौरान संपत्ति के अंतरण को नियंत्रित करने वाले विधिक सिद्धांतों के अनुरूप थे।

सहदायिक अधिकारों के संबंध में विधिक प्रावधान क्या हैं?

  • सहदायिक:
    • जब कोई बच्चा, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) के अनुसार हिंदू संयुक्त परिवार में जन्म से पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त करता है।
    • कर्त्ता (हिंदू परिवार का मुखिया) के चौथी पीढ़ी तक के सभी सामान्य वंशज।
    • इसलिये सहदायिकों के अधिकार, परिवार के सदस्यों के जन्म एवं मृत्यु के साथ परिवर्तित हो जाते हैं।
    • हिंदू विधि की मिताक्षरा शाखा, परिवार में संबंधों की निकटता के आधार पर सहदायिक अधिकारों को मान्यता देती है तथा केवल पुरुष सदस्यों को ही पैतृक संपत्ति में भाग पाने का अधिकार दिया गया है।
    • हिंदू विधि की दायभाग शाखा का दृष्टिकोण अधिक व्यापक है, जहाँ पैतृक संपत्ति परिवार की महिला सदस्यों को भी दी जा सकती है और यदि सहदायिक की निःसंतान ही मृत्यु हो जाती है, तो संपत्ति उसकी विधवा को भी दी जा सकती है।
  • सहदायिक संपत्ति या हिंदू संयुक्त कुटुंब संपत्ति:
    • हिंदू संयुक्त कुटुंब की संपत्ति, वह संपत्ति है जिस पर हिंदू संयुक्त परिवार के सदस्यों का संयुक्त स्वामित्व होता है।
    • HSA के अनुसार, सहदायिक संपत्ति एक कुटुंब की संयुक्त संपत्ति में सभी सहदायिकों द्वारा साझा की जाने वाली पैतृक संपत्ति है।
    • यदि सहदायिक, विभाजन का दावा करने का निर्णय लेता है, तो परिवार की संयुक्त स्थिति समाप्त हो जाती है।
    • संयुक्त परिवार में जन्मे निम्नलिखित व्यक्ति सहदायिक हो सकते हैं-
      • संयुक्त परिवार में जन्मे पुरुष सदस्य
      • पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र
      • अविवाहित पुत्रियाँ
      • परिवार के सभी सदस्य एक ही पूर्वज के वंशज हों
      • पुरुष सदस्यों की पत्नियाँ
      • विवाहित पुत्रियाँ (सहदायिक हो सकती हैं, परंतु HUF की सदस्य नहीं)
  • सहदायिकों पर प्रतिबंध:
    • संयुक्त परिवार की संपत्ति को कर्त्ता के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित करने का अधिकार नहीं है। ऐसा भी तभी किया जाता है जब कोई विधिक आवश्यकता हो, या संपत्ति के हित में हो, या कोई अपरिहार्य कर्त्तव्य हो जिसका ध्यान रखना आवश्यक हो।
    • यदि कोई सहदायिक, सहदायिक संपत्ति का दुरुपयोग करता है, तो अन्य सहदायिक उसे आगे किसी भी उपयोग से रोक सकते हैं या संपत्ति पर विधिक अधिकार रख सकते हैं।

हिंदू अविभाजित परिवार क्या है?

  • अविभाजित परिवार वह होता है जिसमें परिवार की सभी परिसंपत्तियाँ साझा होती हैं।
  • समान पूर्वजों की सभी वंशज संतानें, पत्नियाँ और अविवाहित पुत्रियाँ मिलकर हिंदू अविभाजित परिवार का गठन करती हैं।
  • वह व्यक्ति जो हिंदू संयुक्त परिवार में विभाजन की मांग कर सकता है, सहदायिक है।
  • विभाजन: HSA की धारा 6 में कहा गया है कि विभाजन का तात्पर्य पंजीकरण अधिनियम, 1908 के अंतर्गत विधिवत पंजीकृत विभाजन विलेख के निष्पादन द्वारा किया गया विभाजन या न्यायालय के आदेश द्वारा किया गया विभाजन है।