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सांविधानिक विधि

शिक्षा का अधिकार

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 26-Sep-2024

महेश सीताराम राउत बनाम महाराष्ट्र राज्य

कारावास किसी व्यक्ति के शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं करता है।”

न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोखले और न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोखले और न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी की पीठ ने कहा कि कारावास किसी व्यक्ति के शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं करता है।

उच्चतम न्यायालय ने महेश सीताराम राउत बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में यह निर्णय दिया।

महेश सीताराम राउत बनाम महाराष्ट्र राज्य वाद की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • याचिकाकर्त्ता एक अभियुक्त है, जिसके खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 153 A, 505 (1) (B), 117, 120 B, 34 और विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 की धारा 13, 16, 17, 18, 18 B, 20, 38, 39 और 40 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
  • आरोप-पत्र दाखिल किया गया और मामला राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) को स्थानांतरित कर दिया गया। 
  • अभियुक्त के खिलाफ मामला विशेष न्यायाधीश, सिटी सिविल एवं सत्र न्यायालय, मुंबई के समक्ष लंबित है।
  • याचिकाकर्त्ता वर्तमान में नवी मुंबई के तलोजा सेंट्रल जेल में बंद है। 
  • याचिकाकर्त्ता विशेष न्यायाधीश द्वारा दी गई अनुमति के अनुसार महाराष्ट्र कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (CET) विधि की परीक्षा में शामिल हुआ था। 
  • अंतिम मेरिट सूची में उसे 95वाँ स्थान दिया गया था।
  • उन्हें सिद्धार्थ विधि महाविद्यालय में अनंतिम रूप से सीट आवंटित की गई थी और उनकी बहन ने याचिकाकर्त्ता को आवंटित सीट को फ्रीज़ करने के लिये आवश्यक शुल्क का भुगतान किया था। 
  • याचिकाकर्त्ता को प्रवेश लेने के उद्देश्य से अपने दस्तावेज़ों के सत्यापन के लिये शारीरिक रूप से उपस्थित होना आवश्यक था। 
  • हालाँकि वह शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं था क्योंकि वह तलोजा सेंट्रल जेल में बंद था। 
  • याचिकाकर्त्ता का कहना है कि 21 सितंबर 2023 को उसे ज़मानत पर रिहा करने का आदेश पारित किया गया था। हालाँकि NIA ने इस आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर की है। 
  • याचिकाकर्त्ता ने कहा कि उसे सिद्धार्थ विधि महाविद्यालय में प्रवेश लेने की अनुमति दी जानी चाहिये क्योंकि शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। 
  • हालाँकि सिद्धार्थ विधि महाविद्यालय के वकील ने प्रस्तुत किया कि LLB एक पेशेवर पाठ्यक्रम है और विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार अभ्यर्थी की प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष के दौरान 75% की न्यूनतम उपस्थिति अनिवार्य है। याचिकाकर्त्ता जेल में होने के कारण निस्संदेह उपरोक्त उपस्थिति की आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम नहीं होगा। 
  • इस प्रकार, यह मामला उच्च न्यायालय के समक्ष आया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्त्ता ने विधि महाविद्यालय में एल.एल.बी. पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिये सी.ई.टी. परीक्षा दी थी।
  • न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थिति में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए सीट आवंटित किये जाने के बावजूद महाविद्यालय में प्रवेश लेने के अवसर से वंचित करना याचिकाकर्त्ता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्त्ता को सिद्धार्थ विधि महाविद्यालय में एल.एल.बी. पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • इसके अलावा न्यायालय ने कहा कि चूँकि महाविद्यालय को दस्तावेज़ों के सत्यापन के लिये अभ्यर्थी की भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता होती है, इसलिये न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता के अधिकृत प्रतिनिधि/निकटतम रिश्तेदार को महाविद्यालय में भौतिक रूप से उपस्थित होने एवं दस्तावेज़ों को सत्यापित करने या वैकल्पिक रूप से, तलोजा केंद्रीय कारागार से दस्तावेज़ों पर याचिकाकर्त्ता के हस्ताक्षर लेने की अनुमति देने पर विचार करने का निर्णय महाविद्यालय पर छोड़ दिया।
  • हालाँकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्त्ता को विश्वविद्यालय और सिद्धार्थ विधि महाविद्यालय के किसी भी मानदण्ड को पूरा करने से कोई छूट नहीं दी गई है, जो कि अभ्यर्थियों के लिये प्रचलित नियमों एवं विनियमों के अनुसार आवश्यक है।
  • साथ ही, विश्वविद्यालय और महाविद्यालय न्यूनतम उपस्थिति मानदण्ड या किसी अन्य पात्रता मानदण्ड को पूरा करने में विफलता के लिये याचिकाकर्त्ता को परीक्षा में बैठने की अनुमति देने से इनकार करने के लिये स्वतंत्र थे।

शिक्षा का अधिकार क्या है?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1993) मामले में माना कि देश के नागरिकों द्वारा शिक्षा प्राप्त करना मौलिक अधिकार है।
  • न्यायालय ने इस मामले में माना कि ऐसा अधिकार भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 से प्राप्त होता है।
  • इसके बाद, संविधान (छियासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2002 अधिनियमित किया गया, जिसमें निम्नलिखित संवैधानिक संशोधन प्रस्तुत किये गए: 
  • अनुच्छेद 21 A: 
    • इसे भाग III अर्थात मौलिक अधिकारों में सम्मिलित किया गया।
    • इसके अंतर्गत यह प्रावधान है कि राज्य छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को ऐसी रीति से निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगा, जैसा राज्य विधि द्वारा निर्धारित करे।
  • अनुच्छेद 45: 
    • इसे भाग IV यानी राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों में शामिल किया गया था। 
    • इस अनुच्छेद में प्रावधान है कि राज्य सभी बच्चों को छह वर्ष की आयु पूरी करने तक प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा।
  • अनुच्छेद 51 A: 
    • इसे भाग IV A यानी मौलिक कर्त्तव्यों में शामिल किया गया। 
    • अनुच्छेद 51A में प्रत्येक नागरिक के मौलिक कर्त्तव्यों की सूची दी गई है। 
    • इन कर्त्तव्यों में खंड (k) जोड़ा गया और यह प्रावधान किया गया कि भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा यदि वह माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिये शिक्षा के अवसर प्रदान करे।
    • इसके अलावा, अनुच्छेद 21A को लागू करने के लिये वर्ष 2009 में निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम या शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) लागू किया गया।

शिक्षा के अधिकार के संबंध में प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय विधिक प्रावधान क्या हैं?

  • मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा - अनुच्छेद 26
    • शिक्षा कम-से-कम प्रारंभिक और मौलिक चरणों में निशुल्क होगी। तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा सामान्य रूप से उपलब्ध कराई जाएगी तथा उच्च शिक्षा योग्यता के आधार पर सभी के लिये समान रूप से सुलभ होगी।
    • शिक्षा सभी राष्ट्रों, नस्लीय और धार्मिक समूहों के बीच सहिष्णुता और मित्रता को बढ़ावा देगी।
    • माता-पिता को अपने बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा के प्रकार को चुनने का पूर्व अधिकार है।
  • बाल अधिकारों पर कन्वेंशन - अनुच्छेद 28
    • राज्य पक्ष बच्चे के शिक्षा के अधिकार को मान्यता देते हैं, इस अधिकार को उत्तरोत्तर और समान अवसर के आधार पर प्राप्त करने की दृष्टि से,
    • राज्य पक्ष यह सुनिश्चित करने के लिये सभी उचित उपाय करेंगे कि स्कूल का अनुशासन बच्चे की मानवीय गरिमा के अनुरूप और वर्तमान कन्वेंशन के अनुरूप तरीके से संचालित किया जाए।
    • राज्य पक्ष शिक्षा से संबंधित मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देंगे और प्रोत्साहित करेंगे।
  • आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (ICESC) - अनुच्छेद 13
    • वर्तमान प्रसंविदा के राज्य पक्ष सभी के शिक्षा के अधिकार को मान्यता देते हैं।
    • इस अनुच्छेद के किसी भी भाग की व्याख्या इस प्रकार नहीं की जाएगी कि इससे व्यक्तियों और निकायों की शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना और निर्देशन की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप हो।
  • ICESC का अनुच्छेद 14
  • प्रत्येक राज्य पक्ष अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा को निशुल्क प्रदान करेगा और इस संबंध में विस्तृत कार्य योजना तैयार करेगा।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 क्या है?

  • अनुच्‍छेद 21-क और आरटीई अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ। 
  • आरटीई अधिनियम के शीर्षक में ''निशुल्‍क और अनिवार्य'' शब्‍द सम्मिलित हैं।
  • 'निशुल्‍क शिक्षा' का तात्‍पर्य यह है कि किसी बच्‍चे जिसको उसके माता-पिता द्वारा स्‍कूल में दाखिल किया गया है, को छोड़कर कोई बच्‍चा, जो उचित सरकार द्वारा समर्थित नहीं है, किसी किस्‍म की फीस या प्रभार या व्‍यय जो प्रारंभिक शिक्षा जारी रखने और पूरा करने से उसको रोके अदा करने के लिये उत्‍तरदायी नहीं होगा।
  • इस अधिनियम के लागू होने के साथ ही भारत अधिकार-आधारित ढाँचे की ओर बढ़ गया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 21क में निहित इस मौलिक बाल अधिकार को लागू करने का कर्त्तव्य केंद्र और राज्य सरकार पर डाला गया है। 
  • RTE अधिनियम निम्नलिखित प्रावधान करता है:
    • किसी पड़ोस के स्‍कूल में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने तक निशुल्‍क और अनिवार्य शिक्षा के लिये बच्‍चों का अधिकार।
    • यह गैर-प्रवेश दिये गए बच्‍चे के लिये उचित आयु कक्षा में प्रवेश किये जाने का प्रावधान करता है।
    • यह निशुल्‍क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने में उचित सकारों, स्‍थानीय प्राधिकारी और अभिभावकों कर्त्तव्‍यों तथा दायित्‍वों एवं केंद्र व राज्‍य सरकारों के बीच वित्तीय और अन्‍य ज़िम्‍मेदारियों को विनिर्दिष्‍ट करता है।
  • यह उपयुक्‍त रूप से प्रशिक्षित अध्‍यापकों की नियुक्ति के लिये प्रावधान करता है अर्थात् अपेक्षित प्रवेश और शैक्षिक योग्‍यताओं के साथ अध्‍यापक।
  • यह निषिद्ध करता है:
    • शारीरिक दण्ड और मानसिक उत्‍पीड़न; 
    • बच्‍चों के प्रवेश के लिये अनुवीक्षण प्रक्रियाएँ; 
    • प्रति व्‍यक्ति शुल्‍क; 
    • अध्‍यापकों द्वारा निजी ट्यूशन और 
  • बिना मान्‍यता के स्‍कूलों को चलाना निषिद्ध करता है।
  • यह, अन्‍यों के साथ-साथ, छात्र-शिक्षक अनुपात (पीटीआर), भवन और अवसंरचना, स्‍कूल के कार्य दिवस, शिक्षक के कार्य के घंटों से संबंधित मानदण्‍डों और मानकों को निर्धारित करता है।

शिक्षा के अधिकार पर ऐतिहासिक मामले कौन-से हैं?

  • उन्नी कृष्णन जेपी और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य (1993)
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि शिक्षा का अधिकार सीधे जीवन के अधिकार से निकलता है और शिक्षा का अधिकार संविधान के भाग-III में निहित मौलिक अधिकार के साथ सहवर्ती है।
    • शिक्षा के अधिकार को जीवन के अधिकार में निहित मानने का प्रभाव यह है कि राज्य विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही नागरिक को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर सकता है।
  •  सोसायटी फॉर अनएडेड प्राइवेट स्कूल्स ऑफ राजस्थान बनाम भारत संघ और अन्य  (2012)
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने RTE अधिनियम की धारा 12 की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जिसके अनुसार सभी स्कूलों (चाहे वे राज्य द्वारा वित्तपोषित हों या निजी) को वंचित समूहों से 25% प्रवेश स्वीकार करना होगा।
    • इस मामले में न्यायालय ने दोहराया कि सभी बच्चों को, खासकर उन बच्चों को जो प्राथमिक शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते, मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना राज्य का प्राथमिक दायित्व है।
  • मास्टर जय कुमार अपने पिता मनीष कुमार बनाम आधारशिला विद्या पीठ और अन्य (2024) के माध्यम से:
    • इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि गैर-सहायता प्राप्त निजी संस्थान द्वारा शिक्षा प्रदान करना सार्वजनिक कर्त्तव्य की परिभाषा में आता है।
    • इस मामले में न्यायालय ने माना कि सीटों के आवंटन के बाद किसी भी बच्चे को प्रवेश देने से इनकार करना RTE अधिनियम का उल्लंघन है।